हिन्दी साहित्य- सीमांचल | कल्पना की उड़ान
NCERT Solutions for Class 9th: पाठ 1 - धूल स्पर्श भाग-1 हिंदी
रामविलास शर्मा
पृष्ठ संख्या: 10
प्रश्न अभ्यास
मौखिक
निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए −
1. हीरे के प्रेमी उसे किस रुप में पसंद करते हैं?
उत्तर
हीरे के प्रेमी उसे साफ़ सुथरा, खरादा हुआ, आँखों में चकाचौंध पैदा करता हुआ देखना पसंद करते हैं।
2. लेखक ने संसार में किस प्रकार के सुख को दुर्लभ माना है?
उत्तर
लेखक ने संसार में अखाड़े की मिट्टी में लेटने, मलने के सुख को दुर्लभ माना है क्योंकि यह मिट्टी तेल और मट्ठे से सिझाई जाती है। इससे देवता पर भी चढ़ाया जाता है।
3. मिट्टी की आभा क्या है? उसकी पहचान किससे होती है?
उत्तर
मिटटी की आभा धूल है। मिटटी की पहचान उसके धूल से होती है।
लिखित
(क) निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए −
1. धूल के बिना किसी शिशु की कल्पना क्यों नहीं की जा सकती?
उत्तर
धूल का जीवन में बहुत महत्व है। कोई भी शिशु धूल से सनकर विविध खेल खेलता है। यह धूल जब शिशु के मुख पर पड़ती है तो उसकी स्वाभाविक सुंदरता निखार जाती है।। इसलिए धूल के बिना किसी शिशु की कल्पना नहीं की जा सकती।
2. हमारी सभ्यता धूल से क्यों बचना चाहती है?
उत्तर
हमारी सभ्यता धूल से बचना चाहती है क्योंकि धूल के प्रति उनमें हीन भावना है। वे इसे सुंदरता के लिए खतरा मानते हैं। इस धूल से बचने के लिए ऊँचे-ऊँचे इमारतों रहते हैं ताकि वे धूल से बचें रहें। वे कृत्रिम चीज़ों को पसंद करते हैं, कल्पना में विचरते रहना चाहते हैं, वास्तविकता से दूर रहते हैं। वह हीरों का प्रेमी है धूल भरे हीरों का नहीं। धूल की कीमत को वह नहीं पहचानते।
3. अखाड़े की मिट्टी की क्या विशेषता होती है?
उत्तर
अखाड़े की मिट्टी साधारण मिट्टी से भिन्न है । इसे तेल और मट्ठे से सिझाया जाता है। इसे देवता पर चढ़ाया जाता है। पहलवान को अखाड़े की मिट्टी ही विश्वविजयी बनाती है।
4. श्रद्धा, भक्ति, स्नेह की व्यंजना के लिए धूल सर्वोत्तम साधन किस प्रकार है?
उत्तर
श्रद्धा विश्वास का, भक्ति ह्रदय की भावनाओं का और स्नेह प्यार के बंधन का प्रतीक है। व्यक्ति धूल को माथे से लगाकर उसके प्रति अपनी भक्ति व्यक्त करते है, योद्धा धूल को आखों से लगाकर उसके प्रति अपनी श्रद्धा जताते हैं। हमारा शरीर भी मिट्टी से बना है। इस प्रकार धूल अपने देश के प्रति श्रद्धा, भक्ति, स्नेह, की व्यंजना के लिये धूल सर्वोत्तम साधन है।
5. इस पाठ में लेखक ने नगरीय सभ्यता पर क्या व्यंग्य किया है?
उत्तर
नगरीय सभ्यता में सहजता के स्थान पर कृत्रिमता पर ज़ोर रहता है। वे धूल से बचना चाहते हैं, उससे दूर रहना चाहते हैं। उन्हें काँच के हीरे अच्छे लगते हैं। वे वास्तविकता से दूर रहकर बनावटी जीवन जीते हैं। इस तरह लेखक ने धूल पाठ में नगरीय सभ्यता पर व्यंग्य किया है।
(ख) निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए −
1. लेखक 'बालकृष्ण' के मुँह पर छाई गोधूलि को श्रेष्ठ क्यों मानता है?
उत्तर
लेखक 'बालकृष्ण' के मुँह पर छाई गोधूलि को श्रेष्ठ इसलिए मानता है क्योंकि वह उसकी सहज पार्थिवता को निखार देती है। बनावटी प्रसाधन भी वह सुंदरता नहीं दे पाते। धूल से उनकी शारीरिक कांति जगमगा उठती है।
2. लेखक ने धूल और मिट्टी में क्या अंतर बताया है?
उत्तर
धूल और मिट्टी में उतना ही अंतर है जितना शब्द और रस में, देह और प्राण में, चाँद और चांदनी में। दोनों एक दूसरे के पूरक हैं, मिट्टी रुप है तो धूल प्राण है। मिट्टी की आभा धूल है तो मिट्टी की पहचान भी धूल है।
3. ग्रामीण परिवेश में प्रकृति धूल के कौन-कौन से सुंदर चित्र प्रस्तुत करती है?
उत्तर
ग्रामीण परिवेश में प्रकृति धूल के अनेक सुंदर चित्र प्रस्तुत करती है।शिशु के मुख पर धूल फूल की पंखुड़ियों के समान सुंदर लगती है । उसकी सुंदरता को निखारती है। सांयकाल गोधूलि के उड़ने की सुंदरता का चित्र ग्रामीण परिवेश में प्रस्तुत करती है जोकि शहरों के हिस्से नहीं पड़ती ।
4. "हीरा वही घन चोट न टूटे"- का संदर्भ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
"हीरा वही घन चोट न टूटे"- का अर्थ है असली हीरा वही है जो हथोड़े की चोट से भी न टूटे और अटूट होने का प्रमाण दे। इसी तरह ग्रामीण लोग हीरे के समान होते हैं मजबूत और सुदृढ़। वे कठिनाइयों से नहीं घबराते।
5. धूल, धूलि, धूली, धूरि और गोधूलि की व्यंजनाओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
धूल यथार्थवादी गद्य है तो धूलि उसकी कविता। धूली छायावादी दर्शन है और धूरि लोक-संस्कृति का नवीन जागरण है। गोधूलि गायों एवं ग्वालों के पैरों से सायंकाल में उड़ने वाली धूलि है जो गाँव के जीवन की अपनी संपत्ति है।
6. "धूल" पाठ का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
लेखक ने पाठ "धूल" में धूल का महत्त्व स्पष्ट किया है कि धूल से ही हमारा शरीर बना है परंतु आज का नगरीय जीवन इससे दूर रहना चाहता है जबकि ग्रामीण सभ्यता का वास्तविक सौंदर्य "धूल" ही है।
7. कविता को विडंबना मानते हुए लेखक ने क्या कहा है?
उत्तर
लेखक से पुस्तक विक्रेता के निमंत्रण पत्र में गोधूलि वेला में आने का आग्रह किया गया तो उसने इसे कविता की विडंबना माना क्योंकि कवियों ने गोधूलि की महिमा बताई है परन्तु यह गोधूलि गायों ग्वालों के पैरो से उड़ती ग्राम की धूलि थी शहरी लोग इसकी सुंदरता और महत्ता को कहाँ समझ पाते हैं। इसका अनुभव तो गाँव में रहकर ही किया जा सकता है। यहाँ तक कि कविता के पास भी इसके महत्व के बयान की क्षमता नहीं होती।
(ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए −
1. फूल के ऊपर जो रेणु उसका श्रृंगार बनती है, वही धूल शिशु के मुँह पर उसकी सहज पार्थिवता को निखार देती है।
उत्तर
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे पाठ्यपुस्तक 'स्पर्श' से ली गयी हैं जिसके लेखक रामविलास शर्मा जी हैं। इस कथन का आशय यह है कि जिस तरह फूल के ऊपर धूल आ जाने से वह उसकी सज्जों सज्जा को बढाती है उसी प्रकार शिशु के मुख पर धूल उसकी सुंदरता को ओर भी निखार देती है।
2. 'धन्य-धन्य वे हैं नर मैले जो करत गात कनिया लगाय धूरि ऐसे लरिकान की' − लेखक इन पंक्तियों द्वारा क्या कहना चाहता है?
उत्तर
यहाँ लेखक बता रहे हैं की वह नर धन्यवाद के पात्र हैं जो धूरि भरे शिशुओं को गोद में उठाकर गले से लगा लेते हैं । बच्चों के साथ उनका शरीर भी धूल से सन जाता है। लेखक को 'मैले' शब्द में हीनता का बोध होता है क्योंकि वह धूल को मैल नहीं मानते। 'ऐसे लरिकान' में भेदबुद्धी नज़र आती है।
3. मिट्टी और धूल में अंतर है, लेकिन उतना ही, जितना शब्द और रस में, देह और प्राण में, चाँद और चाँदनी में।
उत्तर
लेखक मिट्टी और धूल में अंतर की व्याख्या करते हुए कहते हैं कि दोनों एक दूसरे से जुड़े हैं। एक के बिना दूसरे की कल्पना नहीं की जा सकती। जैसे चाँद के बिना चाँदनी नहीं होती, देह के बिना प्राण नहीं होते। यदि शब्द न हो तो लेख या कविता में रस कहाँ से आएगा। उसी तरह मिट्टी के रंग रुप की पहचान धूल से ही होती है।
4. हमारी देशभक्ति धूल को माथे से न लगाए तो कम-से-कम उस पर पैर तो रखे।
उत्तर
लेखक का इस वाक्य से आशय है की जिस धूल को वीर योद्धा अपनी मातृभूमि के प्रति श्रद्धा प्रकट करते हैं, धूल मस्तक पर लगाते हैं, किसान धूल में ही सन कर काम करता है उस धूल से बचने की कोशिश की जाती है। नगरीय लोग इसे तुच्छ समझते हैं। चाहे वह देश की धूल को माथे से न भी लगाए परंतु उसकी वास्तविकता से परिचित हो।
5. वे उलटकर चोट भी करेंगे और तब काँच और हीरे का भेद जानना बाकी न रहेगा।
उत्तर
यहां कांच की तुलना नगरीय सभ्यता से तथा हीरे की तुलना ग्रामीण सभ्यता से की गयी है। हीरा बहुत मजबूत होता है और कांच एक चोट से टूट जाता है और बिखर कर दूसरों को भी चोट पहुँचाता है। हीरा हथौड़े की चोट से भी नहीं टूटता ये बात दोनों के परीक्षण के बाद ही पता लगती है। हीरा काँच को काटता है। उसी तरह ग्रामीण, हीरे की तरह मजबूत और सुदृढ़ होते हैं। वे उलटकर वार भी कर सकते हैं। समय का हथौड़ा इस सच्चाई को सामने लाता है।
भाषा अध्यन
1. निम्नलिखित शब्दों के उपसर्ग छाँटिए-
उदाहरण: विज्ञपित − वि (उपसर्ग) ज्ञापित
संसर्ग, उपमान, संस्कृति, दुर्लभ, निर्द्वंद्व, प्रवास, दुर्भाग्य, अभिजात, संचालन।
उत्तर
उदाहरण: विज्ञपित − वि (उपसर्ग) ज्ञापित
| | |उपसर्ग |शब्द |
|1 |संसर्ग |सम |सर्ग |
|2 |उपमान |उप |मान |
|3 |संस्कृति |सम् |स्कृति |
|4 |दुर्लभ |दुर् |लभ |
|5 |निर्द्वंद |निर् |द्वंद्व |
|6 |प्रवास |प्र |वास |
|7 |दुर्भाग्य |दुर् |भाग्य |
|8 |अभिजात |अभि |जात |
|8 |संचालन |सम् |चालन |
2. लेखक ने इस पाठ में धूल चूमना, धूल माथे पर लगाना, धूल होना जैसे प्रयोग किए हैं।
धूल से संबंधित अन्य पाँच प्रयोग और बताइए तथा उन्हें वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर
1. धूल चटाना − भारतीय सेना ने दुश्मन सेना को धूल चटा दी।
2. धूल फाँकना − वह बाजार में सारा दिन धूल फाँकता रहा ।
3. धूल उड़ाना − उसकी सारी मेहनत धूल में उड़ गई।
4. धूल में मिलना − उन लोगों ने बहुत मेहनत से सजावट की पर एक आँधी के झोंके से सब धूल में मिल गया।
5. धूल धुसरित − धूल धुसरित बालक सुंदर लगता है।
पाठ का सार
इस लेख में लेखक ने धूल की जीवन में महत्ता को स्पष्ट करने का प्रयास किया है। लेखक ने धूल भरे शिशुओं को धूल भरे हीरे कहकर संबोधित किया है। धूल के बिना शिशुओं की कल्पना नहीं की जा सकती है। हमारी सभ्यता धूल के संसर्ग से बचना चाहती है। लेखक आगे कहता है कि जो बचपन में धूल से खेला है , वह जवानी में अखाड़े की मिट्टी में सनने से कैसे वंचित रह सकता है? जितने सारतत्त्व जीवन के लिए अनिवार्य हैं, वे सब मिट्टी से ही मिलते हैं। ग्राम भाषाओं में हमने गोधूलि शब्द को अमर कर दिया है। गोधूलि पर कितने कवियों ने अपनी कलम नहीं तोड़ दी , लेकिन यह गोधूलि गाँव की अपनी संपत्ति है , जो शहरों के बाँटे नहीं पड़ी। श्रद्धा, भक्ति, स्नेह इनकी चरम व्यंजना के लिए धूल से बढ़कर और कौन साधन है? यहाँ तक कि घृणा, असूया आदि के लिए भी धूल चाटने , धूल झाड़ने आदि की क्रियाएँ प्रचलित हैं ।धूल, धूलि, धूली, धूरि आदि की व्यंजनाएँ अलग-अलग हैं। धूल जीवन का यथार्थवादी गद्य, धूलि उसकी कविता है। धूली छायावादी दर्शन है ,जिसकी वास्तविकता संदिग्ध है और धूरि लोक-संस्कृति का नवीन जागरण है। इन सबका रंग एक ही है, रूप में भिन्नता जो भी हो। ये धूल भरे हीरे अमर हैं।
लेखक परिचय
रामविलास शर्मा
इनका जन्म उत्तर प्रदेश के उन्नाव ज़िले में सन 1912 में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा इन्होने गाँव में ही पायी तथा उच्चा शिक्षा के लिए लखनऊ आ गए, वहां से अंग्रेजी में एम.ए. करने के बाद विश्वविधालय में प्राध्यापक और पीएच डी की डिग्री हासिल की। लेखन के क्षेत्र में पहले-पहले कविताएँ लिखकर फिर एक उपन्यास और नाटक लिखने के बाद पूरी तरह से आलोचना कार्य में जुट गए।
प्रमुख कार्य
कृतियाँ - भारतेंदु और उनका युग , महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिंदी नवजागरण , प्रेमचंद और उनका युग , निराला की साहित्य साधना , भारत के प्राचीन भाषा परिवार और हिंदी , भाषा और समाज , भारत में अंग्रेज़ी राज्य और मार्क्सवाद , इतिहास दर्शन , भारतीय संस्कॄति और हिंदी प्रदेश , गाँधी , अंबेडकर , लोहिया और भारतीय इतिहास की समस्याएँ , बुद्ध वैराग्य और प्रारंभिक कविताएँ , सदियों के सोए जाग उठे(कविता) , पाप के पुजारी (नाटक) , चार दिन (उपन्यास) और अपनी धरती अपने लोग (आत्मकथा)।
पुरस्कार - साहित्य अकादमी , व्यास सम्मान , शलाका सम्मान आदि।
कठिन शब्दों के अर्थ
• खरादा हुआ - सुडौल और चिकना बनाया हुआ।
• रेणु – धूल
• पार्थिवता – पृथ्वी से संबंधित
• अभिजात - कुलीन
• संसर्ग – संपर्क
• कनिया – गोद
• लरिकान – बच्चे
• नौबत – हालत
• असारता – सार रहित
• विडंबना – विसंगति
• बांटे – हिस्से
• असूया – ईर्ष्या
NCERT Solutions for Class 9th: पाठ 2 - दुःख का अधिकार स्पर्श भाग-1हिंदी
यशपाल
पृष्ठ संख्या: 17
प्रश्न अभ्यास
मौखिक
निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए -
1. किसी पोशाक देखकर हमें क्या पता चलता है?
उत्तर
किसी की पोशाक को देखकर हमें समाज में उसके अधिकार और दर्जे का पता चलता है।
2. खरबूजे बेचने वाली स्त्री से कोई ख़रबूज़े क्यों नही खरीद रहा था?
उत्तर
ख़रबूज़े बेचने वाली स्त्री से कोई ख़रबूज़े इसलिए नही खरीद रहा था क्योंकि वह मुँह छिपाए सिर को घुटनो पर रख फफक-फफककर रो रही थी।
3. उस स्त्री को देखकर लेखक को कैसा लगा?
उत्तर
उस स्त्री को देखकर लेखक लेखक के मन में एक व्यथा सी उठी और वो उसके रोने का कारण जानने का उपाय सोचने लगा।
4. उस स्त्री के लड़के की मृत्यु का कारण क्या था?
उत्तर
उस स्त्री के लड़के की मृत्यु खेत में पके खरबूज चुनते समय साँप के काटने से हुई ।
5. बुढ़िया को कोई भी क्यों उधार नही देता?
उत्तर
बुढ़िया के परिवार में एकमात्र कमाने वाला बेटा मर गया था। ऐसे में पैसे वापस न मिलने के डर के कारण कोई उसे उधार नही देता।
लिखित
(क) निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए -
1. मनुष्य के जीवन में पोशाक का क्या महत्व है?
उत्तर
मनुष्य के जीवन में पोशाक मात्र एक शरीर ढकने का साधन नही है बल्कि समाज में उसका दर्जा निश्चित करती है। पोशाक से मनुष्य की हैसियत, पद तथा समाज में उसके स्थान का पता चलता है। पोशाक मनुष्य के व्यक्तित्व को निखारती है। जब हम किसी से मिलते हैं, तो पहले उसकी पोशाक से प्रभावित होते हैं तथा उसके व्यक्तित्व का अंदाज़ा लगाते हैं। पोशाक जितनी प्रभावशाली होगी, उतने अधिक लोग प्रभावित होगें।
2. पोशाक हमारे हमारे लिए कब बंधन और अड़चन बन जाती है?
उत्तर
पोशाक हमारे लिए बंधन और अड़चन तब बन जाती है जब हम अपने से कम दर्ज़े या कम पैसे वाले व्यक्ति के साथ उसके दुख बाँटने की इच्छा रखते हैं। लेकिन उसे छोटा समझकर उससे बात करने में संकोच करते हैं और उसके साथ सहानुभूति तक प्रकट नहीं कर पाते हैं।
3. लेखक उस स्त्री के रोने का कारण क्यों नही जान पाया?
उत्तर
लेखक की पोशाक रोने का कारण जान पाने की बीच अड़चन थी। वह फुटपाथ पर बैठकर उससे पूछ नही सकता था। इससे उसके प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचती। इस वजह से वह उस स्त्री के रोने का कारण नही जान पाया।
4. भगवाना अपने परिवार का निर्वाह कैसे करता था?
उत्तर
भगवाना शहर के पास डेढ़ बीघा ज़मीन में कछियारी करके परिवार का निर्वाह करता था।
5. लड़के के मृत्यु के दूसरे ही दिन बुढ़िया खरबूजे बेचने क्यों चल पड़ी?
उत्तर
बुढ़िया बहुत गरीब थी। लड़के की मृत्यु पर घर में जो कुछ था सब कुछ खर्च हो गया। लड़के के छोटे-छोटे बच्चे भूख से परेशान थे, बहू को तेज़ बुखार था। ईलाज के लिए भी पैसा नहीं था। इन्हीं सब कारणों से वह दूसरे ही दिन खरबूज़े बेचने चल दी।
6. बुढ़िया के दुःख को देखकर लेखक को अपने पड़ोस की संभ्रांत महिला की याद क्यों आई?
उत्तर
लेखक को बुढ़िया के दुःख को देखकर अपने पड़ोस की संभ्रांत महिला की याद इसलिए आई क्योंकि उसके बेटे का भी देहांत हुआ था। वह दोनों के दुखों के तुलना करना चाहता था। दोनों के शोक मानाने का ढंग अलग था। धनी परिवार के होने की वजह से वह उसके पास शोक मनाने को असीमित समय था और बुढ़िया के पास शोक का अधिकार नही था।
(ख) निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए -
1. बाजार के लोग खरबूजे बेचने वाली स्त्री के बारे में क्या-क्या कह रहे थे? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
बाज़ार के लोग खरबूज़ेबेचने वाली स्त्री के बारे में तरह-तरह की बातें कह रहे थे। कोई घृणा से थूककर बेहया कह रहा था, कोई उसकी नीयत को दोष दे रहा था, कोई कमीनी, कोई रोटी के टुकड़े पर जान देने वाली कहता, कोई कहता इसके लिए रिश्तों का कोई मतलब नहीं है, परचून वाला लाला कह रहा था, इनके लिए अगर मरने-जीने का कोई मतलब नही है तो दुसरो का धर्म ईमान क्यों ख़राब कर रही है।
2. पास पड़ोस की दूकान से पूछने पर लेखक को क्या पता चला?
उत्तर
पास पड़ोस की दूकान से पूछने पर लेखक को पता चला कि बुढ़िया का जवान बेटा सांप के काटने से मर गया है। वह परिवार में एकमात्र कमाने वाला था। उसके घर का सारा सामान बेटे को बचाने में खर्च हो गया। घर में दो पोते भूख से बिलख रहे थे। इसलिए वो खरबूजे बेचने बाजार आई है।
3. लड़के को बचाने के लिए बुढ़िया ने क्या- क्या उपाय किए ?
उत्तर
लड़के के मृत्यु होने पर बुढ़िया पागल सी हो गयी। वह जो कर सकती थी उसने किया। वह ओझा को बुला लायी झाड़ना-फूंकना हुआ। नागदेवता की पूजा भी हुई। घर में जितना अनाज था दान दक्षिणा में समाप्त हो गया। परन्तु उसका बेटा बच न सका।
4. लेखक ने बुढ़िया के दुःख का अंदाजा कैसे लगाया?
उत्तर
लेखक उस पुत्र-वियोगिनी के दु:ख का अंदाज़ा लगाने के लिए पिछले साल अपने पड़ोस में पुत्र की मृत्यु से दु:खी माता की बात सोचने लगा जिसके पास दु:ख प्रकट करने का अधिकार तथा अवसर दोनों था परन्तु यह बुढ़िया तो इतनी असहाय थी कि वह ठीक से अपने पुत्र की मृत्यु का शोक भी नहीं मना सकती थी।
5. इस पाठ का शीर्षक 'दु:ख का अधिकार' कहाँ तक सार्थक है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
इस पाठ का शीर्षक 'दु:ख का अधिकार' पूरी तरह से सार्थक सिद्ध होता है क्योंकि यह अभिव्यक्त करता है कि दु:ख प्रकट करने का अधिकार व्यक्ति की परिस्थिति के अनुसार होता है। यद्यपि दु:ख का अधिकार सभी को है। गरीब बुढ़िया और संभ्रांत महिला दोनों का दुख एक समान ही था। दोनों के पुत्रों की मृत्यु हो गई थी परन्तु संभ्रांत महिला के पास सहूलियतें थीं, समय था। इसलिए वह दु:ख मना सकी परन्तु बुढ़िया गरीब थी, भूख से बिलखते बच्चों के लिए पैसा कमाने के लिए निकलना था। उसके पास न सहूलियतें थीं न समय। वह दु:ख न मना सकी। उसे दु:ख मनाने का अधिकार नहीं था। इसलिए शीर्षक पूरी तरह सार्थक प्रतीत होता है।
पृष्ठ संख्या: 18
निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए -
1.जैसे वायु की लहरें कटी हुई पतंग को सहसा भूमि पर नहीं गिर जाने देतीं उसी तरह खास परिस्थितियों में हमारी पोशाक हमें झुक सकने से रोके रहती है।
उत्तर
यहाँ लेखक ने पोशाक की तुलना वायु की लहरों से की है। जिस प्रकार पतंग के कट जाने पर वायु की लहरें उसे कुछ समय के लिए उड़ाती रहती हैं, एकाएक धरती से टकराने नही देतीं ठीक उसी प्रकार किन्हीं ख़ास परिस्थतियों में पोशाक हमें नीचे झुकने से रोकती हैं।
2. इनके लिए बेटा-बेटी, खसम-लुगाई,धर्म-ईमान सब रोटी का टुकड़ा है।
उत्तर
इस वाक्य में गरीबी पर चोट की गयी है। गरीबों को कमाने के लिए रोज घर से निकलना पड़ता है । परन्तु लोग कहते हैं उनके लिए रिश्ते-नाते कोई मायने नही रखते हैं। वे सिर्फ पैसों के गुलाम होते हैं। रोटी कमाना उनके लिए सबसे बड़ी बात होती है।
3. शोक करने, गम मनाने के लिए भी सहूलियत चाहिए और… दुखी होने का भी एक अधिकार होता है।
उत्तर
शोक करने, गम मनाने के लिए सहूलियत चाहिए। यह व्यंग्य अमीरी पर है क्योंकि अमीर लोगों के पास दुख मनाने का समय और सुविधा दोनों होती हैं। इसके लिए वह दु:ख मनाने का दिखावा भी कर पाता है और उसे अपना अधिकार समझता है। जबकि गरीब विवश होता है। वह रोज़ी रोटी कमाने की उलझन में ही लगा रहता है। उसके पास दु:ख मनाने का न तो समय होता है और न ही सुविधा होती है। इसलिए उसे दु:ख का अधिकार भी नहीं होता है।
भाषा अध्यन
2. निम्नलिखित शब्दों के पर्याय लिखिए −
|ईमान | |
|बदन | |
|अंदाज़ा | |
|बेचैनी | |
|गम | |
|दर्ज़ा | |
|ज़मीन | |
|ज़माना | |
|बरकत | |
उत्तर
|ईमान |ज़मीर, विवेक |
|बदन |शरीर, तन, देह |
|अंदाज़ा |अनुमान |
|बेचैनी |व्याकुलता, अधीरता |
|गम |दुख, कष्ट, तकलीफ |
|दर्ज़ा |स्तर, कक्षा |
|ज़मीन |धरती, भूमि, धरा |
|ज़माना |संसार, जग, दुनिया |
|बरकत |वृद्धि, बढ़ना |
पृष्ठ संख्या: 19
3. निम्नलिखित उदाहरण के अनुसार पाठ में आए शब्द-युग्मों को छाँटकर लिखिए -
उत्तर
|फफक |फफककर |
|दुअन्नी |चवन्नी |
|ईमान |धर्म |
|आते |जाते |
|छन्नी |ककना |
|पास |पड़ोस |
|झाड़ना |फूँकना |
|पोता |पोती |
|दान |दक्षिणा |
|मुँह |अँधेरे |
4. पाठ के संदर्भ के अनुसार निम्नलिखित वाक्यांशों की व्याख्या कीजिए −
बंद दरवाज़े खोल देना, निर्वाह करना, भूख से बिलबिलाना, कोई चारा न होना, शोक से द्रवित हो जाना।
उत्तर
1. बंद दरवाज़े खोल देना − प्रगति में बाधक तत्व हटने से बंद दरवाज़े खुल जाते हैं।
2. निर्वाह करना − परिवार का भरण-पोषण करना
3. भूख से बिलबिलाना − बहुत तेज भूख लगना (व्याकुल होना)
4. कोई चारा न होना − कोई और उपाय न होना
5. शोक से द्रवित हो जाना − दूसरों का दु:ख देखकर भावुक हो जाना।
5. निम्नलिखित शब्द-युग्मों और शब्द-समूहों को अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए −
|(क) |छन्नी-ककना |अढ़ाई-मास |पास-पड़ोस |
| |दुअन्नी-चवन्नी |मुँह-अँधेरे |झाड़ना-फूँकना |
|(ख) |फफक-फफककर |बिलख-बिलखकर |
| |तड़प-तड़पकर |लिपट-लिपटकर |
उत्तर
(क)
1. छन्नी-ककना − मकान बनाने में उसका छन्नी-ककना तक बिक गया।
2. अढ़ाई-मास − वह विदेश में अढ़ाई-मास ही रहा।
3. पास-पड़ोस − पास-पड़ोस अच्छा हो तो समय अच्छा कटता है।
4. दुअन्नी-चवन्नी − आजकल दुअन्नी-चवन्नी को कौन पूछता है।
5. मुँह-अँधेरे − वह मुँह-अँधेरे उठ कर चला गया।
6. झाड़-फूँकना − गाँवों में आजकल भी लोग झाँड़ने-फूँकने पर विश्वास करते हैं।
(ख)
1. फफक-फफककर − बच्चे फफक-फफककर रो रहे थे।
2. तड़प-तड़पकर − आंतकियों के लोगों पर गोली चलाने से वे तड़प-तड़पकर मर रहे थे।
3. बिलख-बिलखकर − बेटे की मृत्यु पर वह बिलख-बिलखकर रो रही थी।
4. लिपट-लिपटकर − बहुत दिनों बाद मिलने पर वह लिपट-लिपटकर मिली।
6. निम्नलिखित वाक्य संरचनाओं को ध्यान से पढ़िए और इस प्रकार के कुछ और वाक्य बनाइए :
|(क) |1 |लड़के सुबह उठते ही भूख से बिलबिलाने लगे। |
| |2 |उसके लिए तो बजाज की दुकान से कपड़ा लाना ही होगा। |
| |3 |चाहे उसके लिए माँ के हाथों के छन्नी-ककना ही क्यों न बिक जाएँ। |
|(ख) |1 |अरे जैसी नीयत होती है, अल्ला भी वैसी ही बरकत देता है। |
| |2 |भगवाना जो एक दफे चुप हुआ तो फिर न बोला। |
उत्तर
(क)
|1 |लड़के सुबह उठते ही भूख से बिलबिलाने लगे। |
| |बुढ़िया के पोता-पोती भूख से बिलबिला रहे थे। |
|2 |उसके लिए तो बजाज की दुकान से कपड़ा लाना ही होगा। |
| |बच्चों के लिए खिलौने लाने ही होंगे। |
|3 |चाहे उसके लिए माँ के हाथों के छन्नी-ककना ही क्यों न बिक जाएँ। |
| |उसने बेटी की शादी के लिए खर्चा करने का इरादा किया चाहे इसके लिए उसका सब कुछ ही क्यों न बिक जाए। |
(ख)
|1 |अरे जैसी नीयत होती है, अल्ला भी वैसी ही बरकत देता है। |
| |जैसा दूसरों के लिए करोगे वैसा ही फल पाओगे। |
|2 |भगवाना जो एक दफे चुप हुआ तो फिर न बोला। |
| |जो समय निकल गया तो फिर मौका नहीं मिलेगा। |
पाठ का सार
लेखक ने कहा है कि मनुष्यों की पोशाकें उन्हें विभिन्न श्रेणियों में बाँट देती हैं। प्राय: पोशाक की समाज में मनुष्य का अधिकार और उसका दर्ज़ा निश्चित करती है। हम जब झुककर निचली श्रेणियों की अनुभूति को समझना चाहते हैं तो यह पोशाक ही बंधन और अड़चन बन जाती है। बाज़ार में खरबूजे बेचने आई एक औरत कपड़े में मुँह छिपाए सिर को घुटनों पर रखे फफक-फफककर रो रही थी। पड़ोस के लोग उसे घृणा की नज़रों से देखते हैं और उसे बुरा-भला कहते हैं। पास-पड़ोस की दुकानों से पूछने पर पता चलता है कि उसका तेईस बरस का लड़का परसों सुबह साँप के डसने से मर गया था। जो कुछ घर में था , सब उसे विदा करने में चला गया था। घर में उसकी बहू और पोते भूख से बिल-बिला रहे थे। इसलिए वह बेबस होकर खरबूज़े बेचने आई थी ताकि उन्हें कुछ खिला सके ; परंतु सब उसकी निंदा कर रहे थे , इसलिए वह रो रही थी। लेखक ने उसके दुख की तुलना अपने पड़ोस के एक संभ्रांत महिला के दुख से करने लगता है जिसके दुख से शहर भर के लोगों के मन उस पुत्र-शोक से द्रवित हो उठे थे। लेखक सोचता चला जा रहा था कि शोक करने, ग़म मनाने के लिए भी सहूलियत चाहिए और दु:खी होने का भी एक अधिकार होता है।
लेखक परिचय
यशपाल
इनका जन्म फ़िरोज़पुर छावनी में सन 1903 में हुआ। इन्होंने आरंभिक शिक्षा स्थानीय स्कूल में और उच्च शिक्षा लाहौर में पाई। वे विद्यार्थी काल से ही क्रांतिकारी गतिविधियों में जुट गए थे। अमर शहीद भगत सिंह आदि के साथ मिलकर इन्होंने भारतीय आंदोलन में भाग लिया। सन 1976 में इनका देहांत ही गया।
प्रमुख कार्य
कृतियाँ - देशद्रोही , पार्टी कामरेड , दादा कामरेड , झूठा सच तथा मेरी, तेरी, उसकी बात (उपन्यास) ; ज्ञानदान , तर्क का तूफ़ान , पिंजड़े की उड़ान , फूलों का कुर्ता , उत्तराधिकारी (कहानी संग्रह) और सिंहावलोकन (आत्मकथा)।
पुरस्कार - ‘मेरी,तेरी,उसकी बात’ पर इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला।
कठिन शब्दों के अर्थ
• अनुभूति – एहसास
• अधेड़ – ढलती उम्र का
• व्यथा – पीड़ा
• व्यवधान – रुकावत
• बेहया – बेशर्म
• नीयत – इरादा
• बरकत – वृद्धि
• ख़सम – पति
• लुगाई – पत्नी
• सूतक – छूत
• कछियारी – खेतों में तरकारियाँ बोना
• निर्वाह – गुज़ारा
• मेड़ – खेत के चारों ओर मिट्टी का घेरा
• तरावत – गीलापन
• ओझा – झाड़-फूँक करने वाला
• छन्नी-ककना – मामूली गहना
• सहूलियत - सुविधा
NCERT Solutions for Class 9th: पाठ 3 - एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा स्पर्श भाग-1 हिंदी
बचेंद्री पाल
पृष्ठ संख्या: 31
प्रश्न अभ्यास
मौखिक
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए -
1. अग्रिम दल का नेतृत्व कौन कर रहा था?
उत्तर
अग्रिम दल का नेतृत्व प्रेमचंद कर रहा था।
2. लेखिका को सागरमाथा नाम क्यों अच्छा लगा?
उत्तर
लेखिका को सागरमाथा नाम अच्छा लगा क्योंकि सागर के पैर नदियाँ हैं तो सबसे ऊँची चोटी उसका माथा है और यह एक फूल की तरह दिखाई देता है, जैसे माथा हो।
3. लेखिका को ध्वज जैसा क्या लगा?
उत्तर
लेखिका को एक बड़े भारी बर्फ़ का बड़ा फूल (प्लूम) पर्वत शिखर पर लहराता हुआ ध्वज जैसा लगा।
4. हिमस्खलन से कितने लोगो की मृत्यु हुई और कितने लोग घायल हुए?
उत्तर
हिमस्खलन से एक की मृत्यु हुई और चार लोग घायल हुए।
5. मृत्यु के अवसाद देखकर कर्नल खुल्लर ने क्या कहा?
उत्तर
मृत्यु के अवसाद को देखकर कर्नल खुल्लर ने कहा कि एवरेस्ट जैसे महान अभियान में खतरों को और कभी-कभी तो मृत्यु भी आदमी को सहज भाव से स्वीकार करना चाहिए।
6. सहायक की मृत्यु कैसे हुई?
उत्तर
जलवायु अनुकूल न होने के कारण रसोई सहायक की मृत्यु हुई।
7. कैंप- चार कहाँ और कब लगाया गया?
उत्तर
कैंप-चार 29 अप्रैल, 1984 को 7900 मीटर पर साउथ कोल में लगाया गया था।
8. लेखिका ने शेरपा कुली को अपना परिचय किस तरह दिया?
उत्तर
लेखिका ने शेरपा कुली को अपना परिचय यह कह कर दिया कि वह बिल्कुल ही नौसिखिया है और एवरेस्ट उसका पहला अभियान है।
9. लेखिका की सफलता पर कर्नल खुल्लर ने उसे किन शब्दों में बधाई दी?
उत्तर
लेखिका की सफलता पर बधाई देते हुए कर्नल खुल्लर ने कहा, "मैं तुम्हारी इस अनूठी उपलब्धि के लिए तुम्हारे माता-पिता को बधाई देना चाहूँगा देश को तुम पर गर्व है और अब तुम ऐसे संसार में जाओगी जो तुम्हारे अपने पीछे छोड़े हुए संसार से एकदम भिन्न होगा। "
लिखित
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30) शब्दों में लिखिए -
1. नजदीक से एवेरेस्ट को देखकर लेखिका को कैसा लगा?
उत्तर
नजदीक से एवरेस्ट को देखकर लेखिका भौंचक्की रही गई। वह एवरेस्ट ल्होत्से और नुत्से की ऊँचाइयों से घिरी बर्फ़ीली ढेढ़ी-मेढ़ी नदी को निहारती रही।
2. डॉ मीनू मेहता ने क्या जानकारियां दीं?
उत्तर
डॉ मीनू मेहता अल्मुनियम सीढ़ियों से अस्थाई पुलों का निर्माण, लट्ठों और रस्सियों का उपयोग, बर्फ की आड़ी -तिरछी दीवारों पर रस्सियों को बाँधना और अग्रिम दाल के अभियांत्रिक कार्यो के बारे में जानकारी दी।
3. तेनजिंग ने लेखिका की तारीफ़ में क्या कहा?
उत्तर
तेनजिंग ने लेखिका की तारीफ़ में कहा कि वह एक पर्वतीय लड़की है। उसे तो शिखर पर पहले ही प्रयास में पहुँच जाना चाहिए।
4. लेखिका को किनके साथ चढ़ाई करनी थी?
उत्तर
लेखिका को अपने दल तथा जय और मीनू के साथ चढ़ाई करनी थी। परन्तु वे लोग पीछे रह गए थे। उनके पास भारी बोझ था और वे बिना ऑक्सीजन के आ रहे थे। इस कारण उनकी गति कम हो गई थी। उनकी स्थिति देखकर लेखिका चिंतित थी।
5. लोपसांग ने तंबू का रास्ता कैसे साफ़ किया?
उत्तर
लोपसांगने अपनी स्विस छुरी की सहायता से तंबू का रास्ता साफ़ किया क्योंकि तंबू के रास्ते एक बड़ा बर्फ़ पिंड गिरने से हिमपुंज बन गया था और इससे कैंप नष्ट हो गया था, लेखिका भी उसमें दब गई थीं। इसलिए लोपसांग ने छुरी से बर्फ़ काटकर लेखिका को बाहर निकाला।
6. साउथ कोल कैंप पहुँचकर लेखिका ने अगले दिन की महत्त्वपूर्ण चढ़ाई की तैयारी कैसे शुरु की?
उत्तर
साउथ कोल कैंप पहुँचकर लेखिका ने अगले दिन की महत्त्वपूर्ण चढ़ाई की तैयारी करने के लिए खाना, कुकिंग गैस, कुछ ऑक्सीजन सिलिंडर इकट्ठे किए, दूसरे सदस्यों की मदद के लिए, थरमसों को जूस व गरम चाय से भरने के लिए नीचे जाने का निश्चय किया।
(ख) निम्नलिखित प्रश्नो का उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए -
1. उपनेता प्रेमचंद ने किन स्थितियों से अवगत कराया?
उत्तर
उपनेता प्रेमचंद ने अभियान दल के सदस्यों को पहली बड़ी बाधा खुंभु हिमपात की स्थिति से अवगत कराया। उन्होंने यह भी बताया कि उनके दल ने कैंप-एक (6000 मीटर),जो हिमपात के ठीक ऊपर है, वहाँ तक का रास्ता साफ़ कर दिया। उन्होंने यह भी बताया कि पुल बना दिया गया है, रस्सियाँ बाँध दी गई हैं तथा झंडियों से रास्ते को चिह्नित कर दिया गया है। इसके साथ-साथ बड़ी कठिनाइयों का जायजा ले लिया गया है। उन्होंने यह भी बताया कि ग्लेशियर बर्फ़ की नदी है और बर्फ़ का गिरना जारी है। यदि हिमपात अधिक हो गया तो अभी तक किए गए सारे काम व्यर्थ हो सकते हैं।
2. हिमपात किस तरह होता है और उससे क्या-क्या परिवर्तन आते हैं?
उत्तर
बर्फ़ के खंडो का अव्यवस्थित ढंग से गिरने को हिमपात कहा जाता है। हिमपात बर्फ़ (ग्लेशियर) की नदी होती है। ग्लेशियर के बहने से अक्सर बर्फ़ में हलचल मच जाती है। इससे बर्फ़ की बड़ी-बड़ी च़ट्टाने तत्काल गिर जाया करती हैं। अन्य कारणों से भी अचानक खतरनाक स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इससे धरातल पर बड़ी चौड़ी दरारें पड़ जाती हैं।
3. लेखिका के तम्बू में गिरे बर्फ़ पिंड का वर्णन किस तरह किया गया?
उत्तर
लेखिका रात 12.30 बजे अपने तम्बू में गहरी नींद में सो रही थीं तभी एक सख्त चीज़ लेखिका के सिर के पिछले हिस्से से टकराई और वह जाग गई। एक लंबा बर्फ़ पिंड ल्होत्से ग्लेशियर से टूटकर कैंप के ऊपर आ गिरा था। उसमें अनेक हिमखंडो का पुंज था। वह अत्यंत तेज़ गति के साथ और गर्जना के साथ गिरा था। इसने लेखिका के कैंप को नष्ट कर दिया था। इससे चोट तो सभी को लगी पर मृत्यु किसी की भी नहीं हुई।
4. लेखिका को देखकर 'की' हक्का-बक्का क्यों रह गया?
उत्तर
लेखिका को देखकर 'की' हक्का बक्का रह गया क्योंकि इतनी बर्फ़ीली हवा में नीचे उतरना जोखिम भरा था फिर भी लेखिका सबके लिए चाय व जूस लेने नीचे उतर रही थी और उसे 'की' से भी मिलना था।
5. एवेरेस्ट पर चढ़ने के लिए कितने कैंप बनाये गए? उनका वर्णन कीजिए।
उत्तर
एवरेस्ट पर चढ़ने के लिए कुल 6 कैंप बनाए गए थे।
1. बेस कैंप- यह मुख्य कैंप था।
2. कैंप-1 −यह कैंप 6000 मीटर की ऊँचाई पर बनाया गया। यह हिमपात के ठीक ऊपर था। इसमें सामान जमा था।
3. कैंप-2 −यह चढ़ाई के रास्ते में था।
4. कैंप-3 −इसे ल्होत्से की बर्फ़ीली सीधी ढ़लान पर लगाया गया था। यह रंगीन नायलॉन से बना था। यहीं ल्होत्से ग्लेशियर से टूटकर बर्फ़ पिंड कैंप पर आ गिरा था।
5. कैंप-4 −यह समुद्र तट से 7900 मीटर की ऊँचाई पर था। साउथ कोल स्थान पर लगने के कारण साउथ कोल कैंप कहलाया।
6. शिखर कैंप − यह अंतिम कैंप था। यह एवरेस्ट के ठीक नीचे स्थित था।
पृष्ठ संख्या: 32
6. चढ़ाई के समय एवरेस्ट की चोटी की स्थिति कैसी थी?
उत्तर
जब लेखिका एवरेस्ट की चोटी पर पहुँची तब वहाँ तेज़ हवा के कारण बर्फ़ उड़ रही थी। एवरेस्ट की चोटी शंकु के आकार की थी। वहाँ इतनी भी जगह नहीं थी कि दो व्यक्ति एक साथ खड़े हो सकें। चारों ओर हज़ारों मीटर लंबी सीधी ढलान थी। लेखिका के सामने सुरक्षा का प्रश्न था। वहाँ फावड़े से बर्फ़ की खुदाई की गई ताकि स्वयं को सुरक्षित कर स्थिर किया जा सके।
7. सम्मिलित अभियान में सहयोग एवं सहायता की भावना का परिचय बचेंद्री के किस कार्य से मिलता है।
उत्तर
जब बचेंद्री अपने दल के सदस्यों के साथ साउथकोल कैंप पहुँची तो केवल वह अपने लिए नहीं सोच रही थी बल्कि अपने दल के प्रत्येक सदस्य के लिए सोच रही थी। लेखिका ने अपने साथियों के लिए जूस और चाय लेने के लिए तेज़ बर्फ़ीली हवा में भी नीचे उतरकर जोखिम भरा काम किया। इस व्यवहार से कार्य में उसके सहयोग और सहायता की भावना का परिचय मिलता है।
निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए -
1. एवरेस्ट जैसे महान अभियान में खतरों को और कभी-कभी तो मृत्यु भी आदमी को सहज भाव से स्वीकार करनी चाहिए।
उत्तर
यह कथन अभियान दल के नेता कर्नल खुल्लर का है। इन शब्दों का उल्लेख उन्होंने शेरपा कुली की मृत्यु के समाचार के बाद कहा था। उन्होंने सदस्यों के उत्साहवर्धन करते हुए अभियान के दौरान होने वाली दुर्घटनाओं को वास्तविकता से परिचित करना चाहा। एवरेस्ट की चढ़ाई कोई आसान काम नहीं है, यह जोखिम भरा अभियान होता है। यहाँ इतने खतरे हैं कि कभी कभी मृत्यु भी हो सकती है। इसके लिए तैयार रहना चाहिए विचलित नहीं होना चाहिए।
2. सीधे धरातल पर दरार पड़ने का विचार और इस दरार का गहरे-चौड़े हिम-विदर में बदल जाने का मात्र खयाल ही बहुत डरावना था। इससे भी ज़्यादा भयानक इस बात की जानकारी थी कि हमारे संपूर्ण प्रयास के दौरान हिमपात लगभग एक दर्जन आरोहियों और कुलियों को प्रतिदिन छूता रहेगा।
उत्तर
इस कथन का आशय है कि हिमपात के कारण बर्फ़ के खंडो के दबाव से कई बार धरती के धरातल पर दरार पड़ जाती है। यह दरार गहरी और चौड़ी होती चली जाती है और हिम विदर में बदल जाती है यह बहुत खतरनाक होते हैं और भी ज़्यादा खतरनाक बात तब होती है जब पता रहे कि पूरे प्रयासों के बाद यह भयंकर हिमपात पर्वतारोहियों व कुलियों को परेशान करता रहेगा ।
3. बिना उठे ही मैंने अपने थैले से दुर्गा माँ का चित्र और हनुमान चालीसा निकाला। मैंने इनको अपने साथ लाए लाल कपड़े में लपेटा, छोटी-सी पूजा-अर्चना की और इनको बर्फ़ में दबा दिया। आनंद के इस क्षण में मुझे अपने माता-पिता का ध्यान आया।
उत्तर
लेखिका एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचकर घुटनों के बल बैठ कर बर्फ़ पर अपना माथा लगाया और चुंबन किया। उसके बाद एक लाल कपड़े में माँ दुर्गा का चित्र और हनुमान चालीसा को लपेटा और छोटी से पूजा करके बर्फ़ में दबा दिया। इस रोमांचक यात्रा के सफलता पर वह बहुत खुश थी और सुख के क्षणों में उसने अपने माता पिता को याद किया। ।
भाषा अध्यन
1. इस पाठ में प्रयुक्त निम्नलिखित शब्दों की व्याख्या पाठ का संदर्भ देकर कीजिए −
निहारा है, धसकना, खिसकना, सागरमाथा, जायज़ा लेना, नौसिखिया
उत्तर
1. निहारा है − यह पाठ एवरेस्ट की चोटी को बचेंद्री पाल ने निहारा है।
2. धसकना-खिसकना − ये दोनों शब्द हिम-खंडो के गिरने के संदर्भ में आए हैं।
3. सागरमाथा − नेपाली एवरेस्ट चोटी को सागरमाथा कहते हैं।
4. जायज़ा लेना − यह शब्द प्रेमचंद ने कैंप के परीक्षण निरीक्षण कर स्थिति के बारे में प्रयुक्त हुआ है।
5. नौसिखिया − बचेंद्री पाल ने तेनजिंग को अपना परिचय देते हुए यह शब्द प्रयुक्त किया है।
2. निम्नलिखित पंक्तियों में उचित विराम चिह्नों का प्रयोग कीजिए −
(क) उन्होंने कहा तुम एक पक्की पर्वतीय लड़की लगती हो तुम्हें तो शिखर पर पहले ही प्रयास में पहुँच जाना चाहिए
(ख) क्या तुम भयभीत थीं
(ग) तुमने इतनी बड़ी जोखिम क्यों ली बचेंद्री
उत्तर
(क) उन्होंने कहा "तुम एक पक्की पर्वतीय लड़की लगती हो तुम्हें तो शिखर पर पहले ही प्रयास में पहुँच जाना चाहिए"।
(ख) क्या तुम भयभीत थीं?
(ग) तुमने इतनी बड़ी जोखिम क्यों ली, बचेंद्री?
3. नीचे दिए उदाहरण के अनुसार निम्नलिखित शब्द-युग्मों का वाक्य में प्रयोग कीजिए −
उदाहरण : हमारे पास एक वॉकी-टॉकी था।
टेढ़ी-मेढ़ी
गहरे-चौड़े
आस-पास
हक्का-बक्का
इधर-उधर
लंबे-चौड़े
उत्तर
टेढ़ी-मेढ़ी − यह पगडंडी बहुत टेढ़ी-मेढ़ी है।
गहरे-चौड़े − वहाँ गहरे-चौड़े गड्ढे थे।
आस-पास − गाँव के आस-पास खेत हैं।
हक्का-बक्का −उसको वहाँ देखकर मैं हक्का-बक्का रह गया।
इधर-उधर − इधर-उधर की बातें करना बंद करो।
लंबे-चौड़े − यहाँ बहुत लंबे-चौड़े मैदान हैं।
पृष्ठ संख्या: 33
4. उदाहरण के अनुसार विलोम शब्द बनाइए −
उदाहरण : अनुकूल − प्रतिकूल
|नियमित − |...................|
|आरोही − |...................|
|सुंदर − |...................|
|विख्यात − |...................|
|निश्चित − |...................|
उत्तर
|नियमित − |अनियमित |
|आरोही − |अवरोही |
|सुंदर − |असुंदर |
|विख्यात − |अविख्यात |
|निश्चित − |अनिश्चित |
5. निम्नलिखित शब्दों में उपयुक्त उपसर्ग लगाइए −
जैसे : पुत्र − सुपुत्र
वास व्यवस्थित कूल गति रोहण रक्षित
|वास − |प्रवास |
|व्यवस्थित − |अव्यवस्थित |
|कूल − |प्रतिकूल |
|गति − |प्रगति |
|रोहण − |आरोहण |
|रक्षित − |आरक्षित |
6. निम्नलिखित क्रिया विशेषणों का उचित प्रयोग करते हुए रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए −
अगले दिन, कम समय में, कुछ देर बाद, सुबह तक
(क) मैं .............. यह कार्य कर लूँगा।
(ख) बादल घिरने के .............. ही वर्षा हो गई।
(ग) उसने बहुत ............... इतनी तरक्की कर ली।
(घ) नाङकेसा को .............. गाँव जाना था।
उत्तर
(क) मैं अगले दिन यह कार्य कर लूँगा।
(ख) बादल घिरने के कुछ देर बाद ही वर्षा हो गई।
(ग) उसने बहुत कम समय में इतनी तरक्की कर ली।
(घ) नाङकेसा को सुबह तक गाँव जाना था।
पाठ का सार
प्रस्तुत लेख में बचेंद्री पाल ने अपने अभियान का रोमांचकारी वर्णन किया है कि 7 मार्च को एवरेस्ट अभियान दल दिल्ली से काठमांडू के लिए चला। नमचे बाज़ार से लेखिका ने एवरेस्ट को निहारा। लेखिका ने एवरेस्ट पर एक बड़ा भारी बर्फ़ का फूल देखा। यह तेज़ हवा के कारण बनता है। 26 मार्च को अभियान दल पैरिच पहुँचा तो पता चला कि खुंभु हिमपात पर जाने वाले शेरपा कुलियों में से बर्फ़ खिसकने के कारन एक कुली की मॄत्यु हो गई और चार लोग घायल हो गए। बेस कैंप पहुँचकर पता चला कि प्रतिकूल जलवायु के कारण एक रसोई सहायक की मृत्यु हो गई है। फिर दल को ज़रुरी प्रशिक्षण दिया गया। 29 अप्रैल को वे 7900 मीटर ऊँचाई पर स्थित बेस कैंप पहुँचे जहाँ तेनजिंग ने लेखिका का हौसला बढ़ाया। 15-16 मई, 1984 को अचानक रात 12:30 बजे कैंप पर ग्लेशियर टूट पड़ा जिससे कैंप तहस-नहस हो गया , हर व्यक्ति चोट-ग्रस्त हुआ। लेखिका बर्फ़ में दब गई थी। उन्हें बर्फ़ से निकाला गया। फिर कुछ दिनों बाद लेखिका साउथकोल कैंप पहुँची। वहाँ उन्होंने पीछे आने वाले साथियों की मदद करके सबको खुश कर दिया। अगले दिन वह प्रात: ही अंगदोरज़ी के साथ शिखर – यात्रा पर निकली। अथक परिश्रम के बाद वे शिखर – कैंप पहुँचे। एक और साथी ल्हाटू के आ जाने से और ऑक्सीजन आपूर्ति बढ़ जाने से चढ़ाई आसान हो गई। 23 मई , 1984 को दोपहर 1:07 बजे लेखिका एवरेस्ट की चोटी पर खड़ी थी। वह एवरेस्त पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला थी। चोटी पर दो व्यक्तियों के साथ खड़े होने की ज़गह नहीं थी, उन्होंने बर्फ के फावड़े से बर्फ की खुदाई कर अपने आप को सुरक्षित किया। लेखिका ने घुटनों के बल बैठकर ‘सागरमाथे’ के ताज को चूमा। फिर दुर्गा माँ तथा हनुमान चालीसा को कपडे में लपेटकर बर्फ़ में दबा दिया। अंगदोरज़ी ने उन्हें गले से लगकर बधाई दी। कर्नल खुल्लर ने उन्हें बधाई देते हुए कहा – मैं तुम्हरे मात-पिता को बधाई देना चाहूँगा। देश को तुम पर गर्व है। अब तुम जो नीचे आओगी , तो तुम्हें एक नया संसार देखने को मिलेगा।
लेखक परिचय
बचेंद्री पाल
इनका जन्म सन 24 मई, 1954 को उत्तरांचल के चमोली जिले के बमपा गाँव में हुआ। पिता पढ़ाई का खर्च नहीं उठा सकते थे। अत: बचेंद्री को आठवीं से आगे की पढ़ाई का खर्च सिलाई-कढ़ाई करके जुटाना पड़ा। विषम परिस्थितियों के बावज़ूद बचेंद्री ने संस्कृत में एम.ए. और फिर बी. एड. की शिक्षा हासिल की। बचेंद्री को पहाद़्ओं पर चढ़ने शौक़ बचपन से था। पढ़ाई पूरी करके वह एवरेस्ट अभियान – दल में शामिल हो गईं। कई महीनों के अभ्यास के बाद आखिर वह दिन आ ही गया , जब उन्होंने एवरेस्ट विजय के लिए प्रयाण किया।
कठिन शब्दों के अर्थ
• दुर्गम – जहाँ जाना कठिन हो
• ध्वज – झंडा
• हिम-स्खलन – बर्फ़ का गिरना
• नेतॄत्व – अगुवाई
• अवसाद – निराशा
• ज़ायजा लेना – अनुमान लेना
• हिम-विदर – बर्फ़ में दरार पड़ना
• अंतत: - आखिरकार
• हिमपुंज – बर्फ़ का समूह
• उपस्कर – आरोही की आवश्यक सामग्री
• भुरभुरी – चूरा-चूरा टूटने वाली
• शंकु – नोक
• रज्जु – रस्सी
NCERT Solutions for Class 9th: पाठ 4 - तुम कब जाओगे, अतिथि स्पर्श भाग-1 हिंदी
शरद जोशी
पृष्ठ संख्या:39
प्रश्न अभ्यास
मौखिक
निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर एक-दो-पंक्तियों में दीजिए।
1.अतिथि कितने दिनों से लेखक के घर पर रह रहा है?
उत्तर
अतिथि चार दिनों से लेखक के घर पर रह रहा है।
2. कैलेंडर की तारीखें किस तरह फड़फड़ा रही हैं?
उत्तर
कैलेंडर की तारीखें अपनी सीमा में नम्रता से फड़फड़ा रही हैं।
पृष्ठ संख्या: 40
3. पति-पत्नी ने मेहमान का स्वागत कैसे किया?
उत्तर
पति ने स्नेह-भीगी मुस्कराहट के साथ गले मिलकर तथा पत्नी ने सादर नमस्ते कहकर मेहमान का स्वागत किया।
4. दोपहर के भोजन को कौन-सी गरिमा प्रदान की गयी?
उत्तर
दोपहर के भोजन को लंच की गरिमा प्रदान की गयी।
5. तीसरे दिन सुबह अतिथि ने क्या कहा?
उत्तर
तीसरे दिन अतिथि ने धोबी से कपडे धुलवाने की बात कही।
6. सत्कार की ऊष्मा समाप्त होने पर क्या हुआ?
उत्तर
सत्कार की ऊष्मा समाप्त होने पर लेखक डिनर से खिचड़ी पर आ गए।
लिखित
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए -
1. लेखक अतिथि को कैसी विदाई देना चाहता था?
उत्तर
लेखक अतिथि को एक भावभीनी विदाई देना चाहता था। वह चाहता था कि जब अतिथि जाए तो पति-पत्नी उसे स्टेशन तक छोड़ने जाए। उन्हें सम्मानजनक विदाई देना चाहते थे।
2. पाठ में आए निम्नलिखित कथनों की व्याख्या कीजिए −
(क) अंदर ही अंदर कहीं मेरा बटुआ काँप गया।
(ख) अतिथि सदैव देवता नहीं होता, वह मानव और थोड़े अंशों में राक्षस भी हो सकता है।
(ग) लोग दूसरे के होम की स्वीटनेस को काटने न दौड़ें।
(घ) मेरी सहनशीलता की वह अंतिम सुबह होगी।
(ङ) एक देवता और एक मनुष्य अधिक देर साथ नहीं रहते।
उत्तर
(क) जब लेखक ने अतिथि को देखा था तब उन्हें लगा उनका खर्च बढ जायेगा इसलिए उनका बटुआ काँप गया यानी अत्यधिक खर्चे होने का एहसास हुआ।
(ख) हमारी संस्कृति में अतिथि को देवता समान माना गया है। परन्तु यही अतिथि जब ज्यादा दिन रह जाए तो वह बोझ लगने लगता और थोड़े अंशो में राक्षस प्रतीत होता है।
(ग) हर व्यक्ति अपने घर को सजाता है, सुख शान्ति स्थापित करता है। अपने घर को स्वीट होम बनाता है। लेकिंग जब कोई अनचाहा व्यक्ति आकर रहने लगता है तो वह स्वीटनेस को काटने दौड़ने जैसा लगता है।
(घ) अतिथि लेखक के घर पर चार दिनों से रह रहा था। कल पाँचवा दिन हो जाएगा। यदि कल भी अतिथि नहीं गया तो लेखक अपनी सहनशीलता खो बैठेगा और अतिथि सत्कार भूलकर गेट आउट बोलने में देर नही लगाएगा।
(ड़ ) हम अतिथि को देवता मानते हैं इसलिए लेखक अपने अतिथि को बताना चाह रहा कि देवता और मनुष्य कभी एक साथ हैं। आप कृपा कर हमारे कर हमारे घर से प्रस्थान करें।
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50 -60 शब्दों में) लिखिए -
1. कौन-सा आघात अप्रत्याशित था और उसका लेखक पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर
तीसरे दिन जब अतिथि ने धोबी से कपड़े धुलवाने की इच्छा प्रकट की तो लेखक के लिए ये अप्रत्याशित आघात था चूँकि उन्हें लगा था वे चले जाएंगे। धोबी को कपड़े धुलने देने का मतलब था कि अतिथि अभी जाना नहीं चाहता। इस आघात का लेखक पर यह प्रभाव पड़ा कि वह अतिथि को राक्षस समझने लगा। उनके सत्कार की ऊष्मा समाप्त हो गयी।
2.'संबंधों का संक्रमण के दौर से गुज़रना' −इस पंक्ति से आप क्या समझते हैं? विस्तार से लिखिए।
उत्तर
'संबंधों का संक्रमण के दौर से गुज़रना' − इस पंक्ति का आशय है संबंधों में परिवर्तन आना। जो संबंध आत्मीयतापूर्ण थे अब घृणा और तिरस्कार में बदलने लगे। जब लेखक के घर अतिथि आया था तो उसके संबंध सौहार्द पूर्ण थे। उसने उसका स्वागत प्रसन्नता पूर्वक किया था। लेखक ने अपनी ढ़ीली-ढ़ाली आर्थिक स्थिति के बाद भी उसे शानदार डिनर खिलाया और सिनेमा दिखाया। लेकिन अतिथि चार पाँच दिन रुक गया तो स्थिति में बदलाव आने लगा और संबंध बदलने लगे।
3. जब अतिथि चार दिन तक नहीं गया तो लेखक के व्यवहार में क्या-क्या परिवर्तन आए?
उत्तर
जब अतिथि चार दिन तक नहीं गया तो लेखक ने उसके साथ मुस्कुराकर बात करना छोड़ दिया, बातचीत के विषय समाप्त हो गए। सौहार्द व्यवहार अब बोरियत में बदल गया। लंच डिनर अब खिचड़ी पर आ गए। इसके बाद लेखक उपवास तक जाने की तैयारी करने लगा। लेखक अतिथि को 'गेट आउट' तक कहने के लिए भी तैयार हो गया।
भाषा अध्यन
1. निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्याय लिखिए −
|चाँद |ज़िक्र |आघात |ऊष्मा |अंतरंग |
उत्तर
चाँद − राकेश, शशि, रजनीश
ज़िक्र − उल्लेख, वर्णन
आघात − हमला, चोट
ऊष्मा − गर्मी, घनिष्ठता, ताप
अंतरंग − घनिष्ठ, आंतरिक
2. निम्नलिखित वाक्यों को निर्देशानुसार परिवर्तित कीजिए −
|(क) |हम तुम्हें स्टेशन तक छोड़ने जाएँगे। (नकारात्मक वाक्य) |
| |....................................................................... |
|(ख) |किसी लॉण्ड्री पर दे देते हैं, जल्दी धुल जाएँगे। (प्रश्नवाचक वाक्य) |
| |....................................................................... |
|(ग) |सत्कार की ऊष्मा समाप्त हो रही थी। (भविष्यत् काल) |
| |....................................................................... |
|(घ) |इनके कपड़े देने हैं। (स्थानसूचक प्रश्नवाची) |
| |....................................................................... |
|(ङ) |कब तक टिकेंगे ये? (नकारात्मक) |
| |....................................................................... |
उत्तर
|(क) |हम तुम्हें स्टेशन तक छोड़ने जाएँगे। (नकारात्मक वाक्य) |
| |हम तुम्हें स्टेशन तक छोड़ने नहीं जाएँगे। |
|(ख) |किसी लॉण्ड्री पर दे देते हैं, जल्दी धुल जाएँगे। (प्रश्नवाचक वाक्य) |
| |किसी लॉण्ड्री पर दे देने से क्या जल्दी धुल जाएँगे? |
|(ग) |सत्कार की ऊष्मा समाप्त हो रही थी। (भविष्यत् काल) |
| |सत्कार की ऊष्मा समाप्त हो जाएगी। (भविष्यत् काल) |
|(घ) |इनके कपड़े देने हैं। (स्थानसूचक प्रश्नवाची) |
| |इनके कपड़े यहाँ देने हैं। |
|(ङ) |कब तक टिकेंगे ये? (नकारात्मक) |
| |ये अब नहीं टिकेंगे। |
| | |
| |पाठ का सार |
| | |
| |लेखक के घर पर एक अतिथि चार दिनों से रह रहा है जिसे देखते हुए वे कहते हैं कि हे अतिथि ! तुम्हें देखते ही मेरा बटुआ काँप गया था। फिर भी हमने भरसक मुस्कान के साथ |
| |तुम्हारा स्वागत किया था। रात के भोजन को मध्यम- वर्गीय डिनर जैसा भारी-भरकम बना दिया था। सोचा था कि तुम सुबह चले जाओगे। पर ऐसा नहीं हुआ। तुम यहाँ आराम|
| |से सिगरेट के छल्ले उड़ा रहे हो। उधर मैं तुम्हारे सामने कैलेण्डर की तारीखें बदल-बदलकर तुम्हें जाने का संकेत दे रहा हूँ। तीसरे दिन तुमने कपड़े धुलवाने की फ़रमाइश की। कपड़े |
| |धुलकर आ गए लेकिन तुम नहीं गए। पत्नी ने सुना तो वह भी आँखें तरेरने लगी। चौथे दिन कपड़े धुलकर आ गए , फिर भी तुम डटे हुए हो। बातचीत के सभी विषय समाप्त हो गए |
| |हैं। दोनों अपने अपने में मग्न होकर पढ़ रहे हैं, सौहार्द समाप्त हो चला है। भावनाएँ गालियाँ बनती जा रही हैं। सत्कार की ऊष्मा समाप्त हो चुकी है, अब भोजन में खिचड़ी|
| |बनने लगी है। घर को स्वीट होम कहा गया है , पर तुम्हारे होने से घर का स्वीटनेस खत्म हो गया है। अब तुम चले जाओ वर्ना मुझे ‘ गेट आउट ’ कहना पड़ेगा।यदि तुम अपने |
| |आप कल सुबह चले न गए तो मेरी सहनशीलता जवाब दे जाएगी। माना तुम देवता हो किंतु मैं तो आदमी हूँ। मनुष्य और देवता ज़्यादा देर साथ नहीं रह सकते। इसलिए अपना |
| |देवत्व सुरक्षित रखना चाहते हो तो अपने आप विदा हो जाओ। तुम कब जाओगे , अतिथि ? |
| | |
| |लेखक परिचय |
| | |
| |शरद जोशी |
| | |
| |इनका जन्म मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में 21 मई 1931 को हुआ। इनका बचपन कई शहरों में बिता। कुछ समय तक यह सरकारी नौकरी में रहे फिर इन्होने लेखन को ही आजीविका|
| |के रूप में अपना लिया। इन्होंने व्यंग्य लेख , व्यंग्य उपन्यास , व्यंग्य कॉलम के अतिरिक्त हास्य-व्यंग्यपूर्ण धारावाहिकों की पटकथाएँ और संवाद भी लिखे। सन 1991 में इनका|
| |देहांत हो गया। |
| | |
| |प्रमुख कार्य |
| | |
| |व्यंग्य-कृतियाँ - परिक्रमा , किसी महाने , जीप पर सवार इल्लियाँ , तिलस्म , रहा किनारे बैठ , दूसरी सतह , प्रतिदिन। |
| |व्यंग्य नाटक: अंधों का हाथी और एक था गधा। |
| |उपन्यास - मैं,मैं,केवल मैं, उर्फ़ कमलमुख बी.ए.। |
| | |
| |कठिन शब्दों के अर्थ |
| | |
| |• निस्संकोच – बिना संकोच के |
| |• सतत – लगातार |
| |• आतिथ्य – आवभगत |
| |• अंतरंग – घनिष्ठ या गहरा |
| |• छोर – किनारा |
| |• आघात – चोट |
| |• मार्मिक – हृदय को छूने वाला |
| |• भावभीनी – प्रेम से ओतप्रोत |
| |• अप्रत्याशित – आकस्मिक |
| |• सामीप्य – निकटता |
| |• कोनलों – कोनों से |
| |• ऊष्मा – गरमी |
| |• संक्रमण – एक स्थिति या अवस्था से दूसरी में प्रवेश |
| |• निर्मूल – मूल रहित |
| |• सौहार्द – मैत्री |
| |• गुँजायमान – गूँजता हुआ |
| |• एस्ट्रॉनाट्स – अंतरिक्ष यात्री |
NCERT Solutions for Class 9th: पाठ 5 - वैज्ञानिक चेतना के वाहक : चन्द्र शेखर वेंकट रामन् स्पर्श भाग-1 हिंदी
धीरंजन मालवे
पृष्ठ संख्या: 49
प्रश्न अभ्यास
मौखिक
निम्नलिखित प्रश्न के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए -
1. रामन् भावुक प्रकृति प्रेमी के अलावा और क्या थे?
उत्तर
रामन् भावुक प्रकृति प्रेमी के अलावा एक वैज्ञानिक की भी जिज्ञासा रखते थे।
2. समुद्र को देखकर रामन् के मन में कौन-सी दो जिज्ञासाएँ उठीं?
उत्तर
समुद्र को देखकर रामन् के मन में दो जिज्ञासाएँ उठीं कि समुद्र के पानी का रंग नीला ही क्यों होता है? कोई और क्यों नहीं होता है?
3. रामन् के पिता ने उनमें किन विषयों की सशक्त नींव डाली?
उत्तर
रामन् के पिता ने उनमें गणित और भौतिकी की सशक्त नींव डाली।
पृष्ठ संख्या: 50
4. वाद्ययंत्रों की ध्वनियों के अध्ययन के द्वारा रामन् क्या करना चाहते थे?
उत्तर
रामन् वाद्ययंत्रों की ध्वनियों के द्वारा उनके कंपन के पीछे छिपे रहस्य की परतें खोलना चाहते थे।
5. सरकारी नौकरी छोड़ने के पीछे रामन् की क्या भावना थी?
उत्तर
सरकारी नौकरी छोड़ने के पीछे रामन् की भावना थी कि वह पढ़ाई करके विश्वविद्यालय के शिक्षक बनकर, अध्ययन अध्यापन और शोध कार्यों में अपना पूरा समय लगाए।
6. 'रामन् प्रभाव' की खोज के पीछे कौन-सा सवाल हिलोरें ले रहा था?
उत्तर
रामन् की खोज के पीछे का सवाल 'आखिर समुद्र के पानी का रंग नीला ही क्यों है?' हिलोरें ले रहा था।
7. प्रकाश तरंगों के बारे में आइंस्टाइन ने क्या बताया?
उत्तर
प्रकाश तरंगों के बारे में आइंस्टाइन ने बताया कि प्रकाश अति सूक्ष्म कणों की तीव्र धारा के समान है। उन्होंने इन कणों की तुलना बुलेट से की और इन्हें फोटॉन नाम दिया।
8. रामन् की खोज ने किन अध्ययनों को सहज बनाया?
उत्तर
रामन् की खोज ने पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं के बारे में खोज के अध्ययन को सहज बनाया।
लिखित
(क) निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए -
1. कॉलेज के दिनों में रामन् की दिली इच्छा क्या थी?
उत्तर
कॉलेज के दिनों में रामन् की दिली इच्छा थी कि वे नए-नए वैज्ञानिक प्रयोग करें, पूरा जीवन शोधकार्यों में लगा दें। उनका मन और दिमाग विज्ञान के रहस्यों को सुलझाने के लिए बैचेन रहता था। उनका पहला शोधपत्र फिलॉसॉफिकल मैग़जीन में प्रकाशित हुआ।
2. वाद्ययंत्रों पर की गई खोजों से रामन् ने कौन-सी भ्रांति तोड़ने की कोशिश की?
उत्तर
रामन् ने देशी और विदेशी दोनों प्रकार के वाद्ययंत्रों का अध्ययन कर इस भ्रान्ति को तोड़ने की कोशिश की कि भारतीय वाद्ययंत्र विदेशी वाद्ययंत्रों की तुलना में घटिया हैं।
3. रामन् के लिए नौकरी संबंधी कौन-सा निर्णय कठिन था?
उत्तर
रामन् भारत सरकार के वित्त विभाग में अफसर थे। एक दिन प्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री सर आशुतोष मुखर्जी ने रामन् से नौकरी छोड़कर कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रोफेसर का पद लेने के लिए आग्रह किया। इस बारे में निर्णय लेना उनके लिए अत्यंत कठिन था।सरकारी नौकरी की बहुत अच्छी तनख्वाह अनेकों सुविधाएँ छोड़कर कम वेतन, कम सुविधाओं वाली नौकरी का फैसला मुश्किल था।
4. सर चंद्रशेखर वेंकट रामन् को समय-समय पर किन-किन पुरस्कारों से सम्मानित किया गया?
उत्तर
सर चंद्रशेखर वेंकट रामन् को समय-समय पर अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। 1924 में 'रॉयल सोसायटी' की सदस्यता प्रदान की गई। 1929 में उन्हें 'सर' की उपाधि दी गई। 1930 में विश्व का सर्वोच्च पुरस्कार 'नोबल पुरस्कार' प्रदान किया गया। रॉयल सोसायटी का ह्यूज पदक प्रदान किया गया। फ़िलोडेल्फ़िया इंस्टीट्यूट का 'फ्रेंकलिन पदक' मिला। सोवियत संघ का अंतर्राष्ट्रीय 'लेनिऩ पुरस्कार मिला। 1954 में उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित किया गया।
5. रामन् को मिलनेवाले पुरस्कारों ने भारतीय-चेतना को जाग्रत किया। ऐसा क्यों कहा गया है?
उत्तर
रामन् को समय-समय पर मिलने वाले पुरस्कारों ने भारतीय-चेतना को जाग्रत किया। इनमें से अधिकांश पुरस्कार विदेशी थे और प्रतिष्ठित भी। अंग्रेज़ों की गुलामी के दौर में एक भारतीय वैज्ञानिक को इतना सम्मान दिए जाने से भारत को आत्मविश्वास और आत्मसम्मान मिला और लोगों को प्रेरणा भी।
(ख) निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर (50 -60 शब्दों में) लिखिए -
1. रामन् के प्रारंभिक शोधकार्य को आधुनिक हठयोग क्यों कहा गया है?
उत्तर
रामन् के समय में शोधकार्य करने के लिए परिस्थितियाँ बिल्कुल विपरीत थीं। वे सरकारी नौकरी भी करते थे जिस कारण समय का अभाव रहता था। परन्तु फिर भी रामन् फुर्सत पाते ही 'बहू बाज़ार' चले जाते। वहाँ'इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस' की प्रयोगशाला में काम करते। इस प्रयोगशाला में साधनों का अभाव था लेकिन रामन् काम चलाऊ उपकरणों से भी शोध कार्य करते थे। ऐसे में अपनी इच्छाशक्ति के बलबूते पर अपना शोधकार्य करना आधुनिक हठयोग कहा गया है।
2. रामन् की खोज 'रामन् प्रभाव' क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
जब एक वर्णीय प्रकाश की किरण किसी तरल या ठोस रवेदार पदार्थ से गुजरती है तो उसके वर्ण में परिवर्तन आ जाता है। एक वर्णीय प्रकाश की किरण के फोटॉन जब तरल ठोस रवे से टकराते हैं तो उर्जा का कुछ अंश खो देते हैं या पा लेते हैं दोनों स्थितियों में रंग में बदलाव आता है। इसी को 'रामन् प्रभाव' कहा गया है।
3. 'रामन् प्रभाव' की खोज से विज्ञान के क्षेत्र में कौन-कौन से कार्य संभव हो सके?
उत्तर
'रामन् प्रभाव' की खोज से विज्ञान के क्षेत्र में अनेक कार्य संभव हो सके। विभिन्न पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की आंतरिक संरचना का अध्ययन सहज हो गया। रामन् की खोज के बाद पदार्थों की आणविक और परमाणविक संरचना के अध्ययन के लिए रामन् स्पेक्ट्रोस्कोपी का सहारा लिया जाने लगा।रामन् की तकनीक एकवर्णीय प्रकाश के वर्ण में परिवर्तन के आधार पर पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की संरचना की सटीक जानकारी देने लगी। अब पदार्थों का संश्लेषण प्रयोगशाला में करना तथा अनेक उपयोगी पदार्थों का कृत्रिम रुप में निर्माण संभव हो गया।
4. देश को वैज्ञानिक दृष्टि और चिंतन प्रदान करने में सर चंद्रशेखर वेंकट रामन् के महत्वपूर्ण योगदान पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
सर चंद्रशेखर वेंकट रामन् ने देश को वैज्ञानिक दृष्टि और चिंतन प्रदान करने में अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़कर वैज्ञानिक कार्यों के लिए जीवन समर्पित कर दिया। उन्होंने रामन् प्रभाव की खोज कर नोबल पुरस्कार प्राप्त किया। बंगलोर में शोध संस्थान की स्थापना की, इसे रामन् रिसर्च इंस्टीट्यूट के नाम से जाना जाता है। भौतिक शास्त्र में अनुसंधान के लिए इंडियन जनरल ऑफ फिजिक्स नामक शोध पत्रिका आरंभ की, करेंट साइंस नामक पत्रिका भी शुरु की, प्रकृति में छिपे रहस्यों का पता लगाया।
5. सर चंद्रशेखर वेंकट रामन् के जीवन से प्राप्त होने वाले संदेश को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
सर चंद्रशेखर वेंकट रामन् के जीवन से हमें सदैव आगे बढ़ते रहने का संदेश देता है। रामन् ने संदेश दिया है कि हमें अपने आसपास घट रही विभिन्न प्राकृतिक घटनाओं की छानबीन वैज्ञानिक दृष्टि से करनी चाहिए।व्यक्ति को अपनी प्रतिभा का सदुपयोग करना चाहिए। भले ही इसके लिए सुख-सुविधाओं को त्यागना पड़े। इच्छा शक्ति से राह सदैव निकल आती है।
(ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए।
(क) उनके लिए सरस्वती की साधना सरकारी सुख-सुविधाओं से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण थी।
उत्तर
जब सर आशुतोष मुखर्जी ने रामन् से नौकरी छोड़कर कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रोफेसर का पद लेने के लिए आग्रह किया तब उन्होंने यह सहर्ष स्वीकार किया जबकि वे तनख्वाह और सुख सुविधाओं वाले पद पर कार्यरत थे जो की उन्हें प्रोफेसर रहते नही मिलने वाला था। इससे पता चलता है कि उनके लिए सरस्वती की साधना सरकारी सुख-सुविधाओं से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण थी।
(ख) हमारे पास ऐसी न जाने कितनी ही चीज़ें बिखरी पड़ी हैं, जो अपने पात्र की तलाश में हैं।
उत्तर
हमारे आस-पास के वातावरण में अनेक प्रकार की चीज़ें मौजूद हैं जिनके रहस्य अभी तक अनसुलझे हैं। वो भी किसी ऐसे व्यक्ति की तालाश जो उनको वैज्ञानिक दृष्टि से देख सके, अध्यन कर सके और उनके पहलुओं को सुलझा सके।
(ग) यह अपने आपमें एक आधुनिक हठयोग का उदाहरण था।
उत्तर
डॉ. रामन् सरकारी नौकरी करते हुए भी बहू बाजार स्थित प्रयोगशाला जाते थे। उस प्रयोगशाला में कामचलाऊ उपकरणों तथा इच्छाशक्ति द्वारा अपने शोध कार्यो को संपन्न करते थे। इससे लेखक ने अपने आपमें एक आधुनिक हठयोग का उदाहरण बताया है।
(घ) उपयुक्त शब्द का चयन करते हुए रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए −
इंफ्रा रेड स्पेक्ट्रोस्कोपी, इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टिवेशन ऑफ़ साइंस, फिलॉसॉफिकल मैगज़ीन, भौतिकी, रामन् रिसर्च इंस्टीट्यूट
1. रामन् का पहला शोध पत्र ............ में प्रकाशित हुआ था।
2. रामन् की खोज ............... के क्षेत्र में एक क्रांति के समान थी।
3. कलकत्ता की मामूली-सी प्रयोगशाला का नाम ................. था।
4. रामन् द्वारा स्थापित शोध संस्थान ......... नाम से जानी जाती है।
5. पहले पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की आंतरिक संरचना का अध्ययन करने के लिए .......... का सहारा लिया जाता था।
उत्तर
1. रामन् का पहला शोध पत्र फिलॉसॉफिकल मैगज़ीन में प्रकाशित हुआ था।
2. रामन् की खोज भौतिकी के क्षेत्र में एक क्रांति के समान थी।
3. कलकत्ता की मामूली-सी प्रयोगशाला का नाम इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टिवेशन ऑफ़ साइंस था।
4. रामन् द्वारा स्थापित शोध संस्थान रामन् रिसर्च इंस्टीट्यूट नाम से जानी जाती है।
5. पहले पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की आंतरिक संरचना का अध्ययन करने के लिए इंफ्रा रेड स्पेक्ट्रोस्कोपी का सहारा लिया जाता था।
पृष्ठ संख्या: 51
भाषा अध्यन
1.नीचे कुछ समानदर्शी शब्द दिए जा रहे हैं जिनका अपने वाक्य में इस प्रकार प्रयोग करें कि उनके अर्थ का अंतर स्पष्ट हो सके।
|(क) |प्रमाण |.........................|
| | |. |
|(ख) |प्रणाम |.........................|
|(ग) |धारणा |.........................|
| | |. |
|(घ) |धारण |.........................|
|(ङ) |पूर्ववर्ती |.........................|
|(च) |परवर्ती |.........................|
| | |. |
|(छ) |परिवर्तन |.........................|
|(ज) |प्रवर्तन |.........................|
उत्तर
|(क) |प्रमाण |− |मैं यह बात प्रमाण सहित कह सकता हूँ। |
|(ख) |प्रणाम |− |अपने से बड़ों को प्रणाम करना चाहिए। |
|(ग) |धारणा |− |धर्म के प्रति हमारी धारणा बदलनी चाहिए। |
|(घ) |धारण |− |सदा स्वच्छ वस्त्र धारण करो। |
|(ङ) |पूर्ववर्ती |− |कई किले पूर्ववर्ती राजाओं ने बनाए। |
|(च) |परवर्ती |− |अब परवर्ती पीढ़ी ही देश की रक्षा करेगी। |
|(छ) |परिवर्तन |− |अब सृष्टि में भी अनेकों परिवर्तन हो रहे हैं। |
|(ज) |प्रवर्तन |− |प्रवर्तन कार्यालय में जाना है। |
2. रेखांकित शब्द के विलोम शब्द का प्रयोग करते हुए रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए −
(क) मोहन के पिता मन से सशक्त होते हुए भी तन से .............. हैं।
(ख) अस्पताल के अस्थायी कर्मचारियों को .............. रुप से नौकरी दे दी गई है।
(ग) रामन् ने अनेक ठोस रवों और ............... पदार्थों पर प्रकाश की किरण के प्रभाव का अध्ययन किया।
(घ) आज बाज़ार में देशी और ................... दोनों प्रकार के खिलौने उपलब्ध हैं।
(ङ) सागर की लहरों का आकर्षण उसके विनाशकारी रुप को देखने के बाद ...........में परिवर्तित हो जाता है।
उत्तर
(क) मोहन के पिता मन से सशक्त होते हुए भी तन से अशक्त हैं।
(ख) अस्पताल के अस्थायी कर्मचारियों को स्थायी रुप से नौकरी दे दी गई है।
(ग) रामन् ने अनेक ठोस रवों और तरल पदार्थों पर प्रकाश की किरण के प्रभाव का अध्ययन किया।
(घ) आज बाज़ार में देशी और विदेशी दोनों प्रकार के खिलौने उपलब्ध हैं।
(ङ) सागर की लहरों का आकर्षण उसके विनाशकारी रुप को देखने के बाद विकर्षण में परिवर्तित हो जाता है।
3. नीचे दिए उदाहरण में रेखांकित अंश में शब्द-युग्म का प्रयोग हुआ है −
उदाहरण : चाऊतान को गाने-बजानेमें आनंद आता है।
उदाहरण के अनुसार निम्नलिखित शब्द-युग्मों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए −
सुख-सुविधा .............................
अच्छा-खासा .............................
प्रचार-प्रसार ............................
आस-पास ............................
उत्तर
सुख-सुविधा- रोहन को सुख-सविधा में रहने की आदत है।
अच्छा-खासा- माँ ने अच्छा-खासा खाना बनाया था।
प्रचार-प्रसार- नेताजी प्रचार-प्रसार में लगे हैं।
आस-पास- हमारे आस-पास हरियाली है।
पृष्ठ संख्या: 52
4. प्रस्तुत पाठ में आए अनुस्वार और अनुनासिक शब्दों को निम्न तालिका में लिखिए −
| |अनुस्वार | |अनुनासिक |
|(क) |अंदर |(क) |ढूँढ़ते |
|(ख) |......................|(ख) |......................|
|(ग) |......................|(ग) |......................|
|(घ) |......................|(घ) |......................|
|(ङ) |......................|(ङ) |......................|
उत्तर
| |अनुस्वार | |अनुनासिक |
|(क) |अंदर |(क) |ढूँढ़ते |
|(ख) |सदियों |(ख) |पहुँचता |
|(ग) |असंख्य |(ग) |सुविधाएँ |
|(घ) |रंग |(घ) |स्थितियाँ |
|(ङ) |नींव |(ङ) |वहाँ |
5. पाठ में निम्नलिखित विशिष्ट भाषा प्रयोग आए हैं। सामान्य शब्दों में इनका आशय स्पष्ट कीजिए −
घंटों खोए रहते, स्वाभाविक रुझान बनाए रखना, अच्छा-खासा काम किया, हिम्मत का काम था, सटीक जानकारी, काफ़ी ऊँचे अंक हासिल किए, कड़ी मेहनत के बाद खड़ा किया था, मोटी तनख्वाह
उत्तर
1. घंटो खोए रहना − वैज्ञानिक अपने प्रयोगों में घंटो खोए रहते हैं।
2. स्वाभाविक रुझान बनाए रखना − लोग अपनी रुचि के अनुसार कार्यों में स्वाभाविक रूझान बनाए रखते हैं।
3. अच्छा खासा काम किया − इस भवन पर अच्छा खासा काम किया गया है।
4. हिम्मत का काम था − उसने बच्चे को बाढ़ में से बचा कर हिम्मत का काम किया।
5. सटीक जानकारी − हमारी अध्यापिका को अपने विषय में सटीक जानकारी है।
6. काफ़ी ऊँचे अंक हासिल किए − आजकल बच्चे बहुत ऊँचे अंक हासिल करते हैं।
7. कड़ी मेहनत के बाद खड़ा किया − आज वह यह मुकाम कड़ी मेहनत के बाद खड़ा कर पाया है।
8. मोटी तनख्वाह − यह अफसर मोटी तनख्वाह पाता है।
6. पाठ के आधार पर मिलान कीजिए −
|नीला |कामचलाऊ |
|पिता |रव |
|तैनाती |भारतीय वाद्ययंत्र |
|उपकरण |वैज्ञानिक रहस्य |
|घटिया |समुद्र |
|फोटॉन |नींव |
|भेदन |कलकत्ता |
उत्तर
|नीला |समुद्र |
|पिता |नींव |
|तैनाती |कलकत्ता |
|उपकरण |कामचलाऊ |
|घटिया |भारतीय वाद्ययंत्र |
|फोटॉन |रव |
|भेदन |वैज्ञानिक |
7. पाठ में आए रंगों की सूची बनाइए। इनके अतिरिक्त दस रंगों के नाम और लिखिए।
उत्तर
रंगों की सूची − बैंगनी, नीले, आसमानी, हरे, पीले, नारंगी, लाल
दस रंगों के नाम − आडू़-नारंगी, गहरा आडू़, उज्ज्वल हरा, एलिस नीला, सलेटी, ओलीवाइन, काँस्य, गुलाबी, किरमिज
8. नीचे दिए गए उदाहरण 'ही' का प्रयोग करते हुए पाँच वाक्य बनाइए।
उदाहरण : उनके ज्ञान की सशक्त नींव उनके पिता ने ही तैयार की थी।
उत्तर
1. राम के कारण ही यह कार्य संभव हो सका।
2. तुम ही जाकर ले आओ।
3. उस छात्र ने ही मोहन को मारा।
4. गीता ही अकेली जा रही है।
5. केवल वह ही जाएगा।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए -
1. बात सन् 1921 की है, जब रामन् समुद्री यात्रा पर थे। जहाज के डेक पर खड़े होकर नीले समुद्र को निहारना, प्रकृत-प्रेमी रामन् को अच्छा लगता था। वे समुद्र की नीली आभा में घंटों खोये रहते। लेकिन रामन् केवल भावुक प्रकृति-प्रेमी ही नहीं थे। उनके अंदर एक वैज्ञानिक की जिज्ञासा भी उतनी ही सशक्त थी। यही जिज्ञासा उनसे सवाल कर बैठी- 'आखिर समुद्र का रंग नीला ही क्यों होता है? कुछ और क्यों नहीं?' रामन् सवाल का जवाब ढूँढने में लग गए। जवाब ढूँढ़ते ही वे विश्वविख्यात बन गए।
(क) रामन् समुद्री यात्रा पर कब गए थे? (1)
(ख) रामन् को जहाज के डेक से किसे निहारना अच्छा लगता था और क्यों? (2)
(ग) रामन् के अंदर की वैज्ञानिक जिज्ञासा क्या प्रश्न कर बैठी? (2)
उत्तर
(क) रामन् सन् 1921 में समुद्री यात्रा पर गए थे।
(ख) रामन् को जहाज के डेक से नील समुद्र को घंटों निहारना अच्छा लगता था क्योंकि वे भावुक प्रकृति प्रेमी थे।
(ग) समुद्र के पानी का रंग नीला ही क्यों होता है? कोई और क्यों नहीं होता है? रामन् के अंदर की वैज्ञानिक जिज्ञासा इन प्रश्नों को कर बैठी।
2. रामन् का मस्तिष्क विज्ञान के रहस्यों को सुलझाने के लिए बचपन से ही बैचैन रहता था। अपने कॉलेज के ज़माने से ही उन्होने शोधकार्यों में दिलचस्पी लेना शुरू कर दिया था। उनका पहला शोधपत्र फिलॉसॉफिकल मैगज़ीन में प्रकाशित हुआ था। उनकी दिली इच्छा तो यही थी कि वे अपना सारा जीवन शोधकार्यों को समर्पित कर दें, मगर उन दिनों शोधकार्यों को पूरे समय के कैरियर के रूप में अपनाने की कोई ख़ास व्यवस्था नहीं थी। प्रतिभावान छात्र सरकारी नौकरी की ओर आकर्षित होते थे। रामन् भी अपने समय के सुयोग्य छात्रों की भाँति भारत सरकार के वित्त विभाग में अफसर बन गए। उनकी तैनाती कलकत्ता में हुई।
(क) किन रहस्यों को सुलझाने में रामन् का मस्तिष्क बैचैन रहता था? (1)
(ख) रामन् की दिली इच्छा क्या था? (1)
(ग) वे सरकारी नौकरी की ओर क्यों आकर्षित हुए और उनकी तैनाती कहाँ हुई? (2)
उत्तर
(क) विज्ञान के रहस्यों को सुलझाने में रामन् का मस्तिष्क बैचैन रहता था।
(ख) रामन् की दिली इच्छा अपना सारा जीवन शोधकार्य को समर्पित कर देने की थी।
(ग) वे सरकारी नौकरी की ओर इसलिए आकर्षित हुए क्योंकि उन दिनों शोधकार्य को पूरे समय के कैरियर के रूप में अपनाने की कोई ख़ास व्यवस्था नहीं थी। अन्य प्रतिभावान छात्र सरकारी नौकरी की ओर आकर्षित होते थे। उनकी तैनाती कलकत्ता में हुई।
3. वाद्ययंत्रों पर किए जा रहे शोधकार्यों के दौरान उनके अध्यन के दायरे में जहाँ वायलिन, चैलो या पियानो जैसे विदेशी वाद्य आए, वहीँ वीना, तानपुरा और मृदंगम पर भी उन्होंने काम किया। उन्होंने वैज्ञानिक सिद्धांतों के आधार पर पश्चिमी देशों की इस भ्रान्ति को तोड़ने की कोशिश की कि भारतीय वाद्ययंत्र विदेशी वाद्ययंत्रों की तुलना में घटिया हैं। वाद्ययंत्रों के कंपन के पीछे छिपे गणित पर उन्होंने अच्छा-खासा काम किया और अनेक शोधपत्र भी प्रकाशित किए।
(क) रामन् ने किन भारतीय वाद्ययंत्रों पर काम किया? (1)
(ख) रामन् ने पश्चिमी देशों की किस भ्रान्ति को तोड़ा? (2)
(ग) उन्होंने वाद्ययंत्रों के किस विषय पर काम किया? (2)
उत्तर
(क) रामन् ने वीना, तानपुरा, मृदंगम् जैसे वाद्ययंत्रों पर काम किया।
(ख) रामन् ने पश्चिमी देशों की इस भ्रान्ति को तोड़ने की कोशिश की कि भारतीय वाद्ययंत्र विदेशी वाद्ययंत्रों की तुलना में घटिया हैं।
(ग) उन्होंने वाद्ययंत्रों के कंपन के पीछे छिपे गणित पर अच्छा-खासा काम किया और अनेक शोधपत्र भी प्रकाशित किए।
4. रामन् सरकारी नौकरी की सुख-सुविधाओं को छोड़ सन् 1917 में कलकत्ता विश्वविद्यालय की नौकरी में आ गए। उनके लिए सरस्वती की साधना सरकारी सुख-सुविधाओं से कहीं अधिक महत्वपूर्ण थी। कलकत्ता विश्विद्यालय की शैक्षणिक माहौल में वे अपना पूरा समय अध्यन, अध्यापन और शोध में बिताने लगे। चार साल बाद यानी सन् 1921 में समुद्र-यात्रा के दौरान जब रामन् के मस्तिष्क में समुद्र के नीले रंग की वजह का सवाल हिलोरें लेने लगा, तो उन्होंने आगे इस दिशा में प्रयोग किए, जिसकी परिणति रामन् प्रभाव के की खोज के रूप में हुई।
(क) रामन् कब कलकत्ता विश्वविद्यालय की नौकरी में आ गए? (1)
(ख) वे कलकत्ता विश्वविद्यालय में किस तरह समय बिताने लगे? (1)
(ग) कौन-सी बात रामन् प्रभाव के की खोज के रूप में सामने आई? (2)
उत्तर
(क) रामन् सन् 1917 में कलकत्ता विश्वविद्यालय की नौकरी में आ गए।
(ख) वे कलकत्ता विश्वविद्यालय में अपना पूरा समय अध्यन, अध्यापन और शोध में बिताने लगे।
(ग) सन् 1921 में जब रामन् समुद्री यात्रा पर थे उस समय समुद्र के नीले रंग होने की वजह का सवाल रामन् प्रभाव की खोज के रूप में सामने आई।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिये-
1. रामन् ने किस रहस्य से पर्दा हटाया?
उत्तर
रामन् ने समुद्र की नील वर्णीय आभा से पर्दा हटाया।
2. किन प्रश्नों के उत्तर खोजने के बाद रामन् विश्वविख्यात बन गए?
उत्तर
'समुद्र के पानी का रंग नीला ही क्यों होता है? कोई और क्यों नहीं होता है?' इन प्रश्नों के उत्तर खोजने के बाद रामन् विश्वविख्यात बन गए।
3. रामन् के कॉलेज की पढाई कहाँ पूरी हुई?
उत्तर
रामन् ने कॉलेज की पढाई ए.बी.एन. कॉलेज तिरुचिरापल्ली से और फिर प्रेसीडेंसी कॉलेज मद्रास से की।
4. रामन् ने शोधकार्यों को छोड़कर सरकारी नौकरी क्यों अपनाया?
उत्तर
रामन् ने शोधकार्यों को छोड़कर सरकारी नौकरी इसलिए अपनाया क्योंकि उन दिनों शोधकार्य को पूरे समय के कैरियर के रूप में अपनाने की कोई ख़ास व्यवस्था नहीं थी। प्रतिभावान छात्र सरकारी नौकरी की ओर आकर्षित होते थे।
5. 'इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ़ साइंस' एक अनूठी प्रयोगशाला क्यों थी?
उत्तर
इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ़ साइंस' प्रयोगशाला का मुख्य उद्देश्य देश में वैज्ञानिक चेतना का विकास करना था। उस समय देश में ऐसे उद्देश्य के लिए समर्पित यह एकमात्र प्रयोगशाला थी इसलिए यह एक अनूठी प्रयोगशाला थी।
6. सर आशुतोष मुखर्जी ने रामन् के सामने क्या प्रस्ताव रखा?
उत्तर
सर आशुतोष मुख़र्जी ने रामन् के सामने सरकारी नौकरी छोड़कर कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर का पद स्वीकार करने का प्रस्ताव रखा।
7. रामन् की खोज से पहले अणुओं और परमाणुओं की आंतरिक संरचना के अध्यन के लिए किसका उपयोग किया जाता था?
उत्तर
रामन् की खोज से पहले अणुओं और परमाणुओं की आंतरिक संरचना के अध्यन के लिए इंफ्रा रेड स्पेक्ट्रोस्कोपी का उपयोग किया जाता था। यह तकनीक बेहद मुश्किल थी और गलतियों की संभावना भी अधिक रहती थी।
8. रामन् ने विदेशों में भी अपनी भारतीय पहचान को अक्षुण्ण रखा। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
अंतरराष्ट्रीय प्रसिद्धि के बाद भी रामन् ने अपने दक्षिण भारतीय पहनावे को नहीं छोड़ा। वे शुद्ध शाकाहारी थे और मदिरा से सख्त परहेज करते।
पाठ का सार
यह लेख वैज्ञानिक चन्द्रशेखर वेंकट रामन की संघर्षमय जीवन यात्रा तथा उनकी उपलब्धियों की जानकारी बखूबी कराता है। रामन ग्यारह साल की उम्र में मैट्रिक, विशेष योग्यता की साथ इंटरमीडिएट, भौतिकी और अंग्रेज़ी में स्वर्ण पदक के साथ बी. ए. और प्रथम श्रेणी में एम. ए. करके मात्र अठारह साल की उम्र में कोलकाता में भारत सरकार के फाइंनेस डिपार्टमेंट में सहायक जनरल एकाउटेंट नियुक्त कर लिए गए थे। इनकी प्रतिभा से इनके अध्यापक तक अभिभूत थे। इस दौरान वे बहूबाज़ार स्थित प्रयोगशाला में कामचलाऊ उपकरणों का इस्तेमाल करके शोध कार्य करते थे। फिर उन्होंने अनेक भारतीय वाद्ययंत्रों का अध्ययन किया और वैज्ञानिक सिद्धांतों के आधार पर पश्चिम देशों की इस भ्रांति को तोड़ने का प्रयास किया कि भारतीय वाद्ययंत्र विदेशी वाद्यों की तुलना में घटिया हैं। बाद में वे सरकारी नौकरी छोड़कर कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के पद को स्वीकार किया । यहां वे अपना सारा समय अध्ययन, अध्यापन और शोध में बिताने लगे। सन 1921 में जब रामन समुद्री यात्रा पर थे तो समुद्र के नीले रंग को देखकर उसके वज़ह का सवाल हिलोरें मारने लगा। उन्होंने इस दिशा में आगे प्रयोग किए तथा इसका परिणाम ‘रामन प्रभाव’ की खोज के रूप में सामने लाया। रामन की खोज की वजह से पदार्थों मे अणुओं और परमाणुओं की आंतरिक संरचना का अध्ययन सहज हो गया। उन्हें ‘भारत रत्न' तथा 'नोबल पुरस्कारों' सहित कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाज़ा गया। भारतीय संस्कृति से रामन को हमेशा ही लगाव रहा। उन्होंने अपनी भारतीय पहचान को हमेशा बनाए रखा। वे देश में वैज्ञानिक दृष्टि और चिंतन के विकास के प्रति समर्पित थे। उन्होंने बैंगलोर में एक अत्यंत उन्नत प्रयोगशाला और शोध-संस्थान ‘रामन रिसर्च इंस्टीट्यूट’ की स्थापना की। रामन वैज्ञानिक चेतना और दृष्टि की साक्षात प्रतिमुर्त्ति थे।उन्होंने हमेशा प्राकृतिक घटनाओं की छानबीन वैज्ञानिक दृष्टि से करने का संदेश दिया।
लेखक परिचय
धीरंजन मालवे
इनका जन्म बिहार के नालंदा जिले के डुंवरावाँ गाँव में 9 मार्च 1952 को हुआ। ये एम.एससी (सांख्यिकी), एम. बी.ए और एल.एल.बी हैं। वे आज भी वैज्ञानिक जानकारी को आकाशवाणी और दूरदर्शन के माध्यम से लोगों तक पहुंचाने में लगे हुए हैं। मालवे ने कई भरतीय वैज्ञानिकों की संक्षिप्त जीवनियाँ लिखी हैं, जो इनकी पुस्तक ‘विश्व-विख्यात भारतीय वैज्ञानिक’ पुस्तक में समाहित हैं।
कठिन शब्दों के अर्थ
• आभा – चमक
• जिज्ञासा – जानने के इच्छा
• हासिल – प्राप्त
• अयिशयोक्ति – किसी बात को बढ़ा-चढ़ा कर कहना
• रूझान – झुकाव
• असंख्य - अनगिनत
• उपकरण – साधन
• सृजित – रचा हुआ
• समक्ष – सामने
• अध्यापन – पढ़ाना
• परिणति – परिणाम
• ऊर्जा – शक्ति
• फोटॉन – प्रकाश का अंश
• नील वर्णीय - नीले रंग का
• ठोस रवे - बिल्लौर
• एकवर्णीय - एक रंग का
• समृद्ध – उन्नतशील
• भ्रांति - संदेह
NCERT Solutions for Class 9th: पाठ 6 - कीचड़ का काव्य स्पर्श भाग-1 हिंदी
काका कालेलकर
पृष्ठ संख्या: 58
प्रश्न अभ्यास
मौखिक
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो-पंक्तियों में दीजिये -
1. रंग की शोभा ने क्या कर दिया है?
उत्तर
रंग की शोभा ने उतर दिशा में जमकर कमाल ही कर दिया है।
2. बादल किसकी तरह हो गए थे?
उत्तर
बादल स्वेत पूनी की तरह हो गए थे।
3. लोग किन-किन चीज़ो का वर्णन करते हैं?
उत्तर
लोग आकाश, पृथ्वी, जलाशयों का वर्णन करते हैं।
4. कीचड़ से क्या होता है?
उत्तर
कीचड़ से शरीर गन्दा होता है और कपडे मैले होते हैं।
5. कीचड़ जैसा रंग कौन लोग पसंद करते हैं?
उत्तर
कीचड़ जैसा रंग कलाभिज्ञ लोग पसंद करते हैं।
6. नदी के किनारे कीचड़ कब सुंदर दिखता है?
उत्तर
नदी के किनारे जब कीचड़ के सूखकर टुकड़े हो जाते हैं तब वे सुंदर दिखते हैं।
7. कीचड़ कहाँ सुन्दर लगता है?
उत्तर
नदी के किनारे मिलों तक फैला समतल और चिकना कीचड़ सुन्दर लगता है।
8. 'पंक' और 'पंकज' शब्द में क्या अंतर है?
उत्तर
'पंक' शब्द का अर्थ कीचड़ तथा 'पंकज' का अर्थ कमल होता है।
लिखित
(क) निम्नलिखित शब्द का उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए -
1. कीचड़ के प्रति किसी को सहानभूति क्यों नही होती?
उत्तर
कीचड़ से शरीर गन्दा होता है। कपडे मैले हो जाते हैं। लोग कीचड़ को गंदगी का प्रतीक मानते हैं। अपने शरीर पर कीचड़ उड़े यह किसी को अच्छा नही लगता इसीलिए कीचड़ के प्रति किसी को सहानभूति नही होती।
2. जमीन ठोस होने पर उस पर किनके पदचिह्न अंकित होते हैं?
उत्तर
जमीन ठोस हो जाने पर उस पर गाय, बैल, पाड़े, भैंस, बकरे इत्यादि के पदचिन्ह अंकित होते हैं।
3. मनुष्य को क्या भान होता जिससे वो कीचड़ का तिरस्कार न करता?
उत्तर
मनुष्य को अगर यह भान होता की उसका अन्न कीचड़ में ही उत्पन्न होता है तो वो कीचड़ का तिरस्कार न करता।
4. पहाड़ लुप्त कर देने वाले कीचड़ की क्या विशेषता होती है?
उत्तर
गंगा के किनारे या सिंधु के किनारे और खम्भात में महि नदी के मुख के आगे जहां तक नजर पहुंचे वहां तक सर्वत्र सनातन कीचड़ देखने मिलेगा जिसमें हाथ डूब जाने वाली बात कहना अल्पोक्ति के समान होगा। यह पहाड़ लुप्त कर देने वाले कीचड़ की विशेषता होती है।
(ख) निम्नलिखित शब्द का उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए -
1. कीचड़ का रंग किन-किन लोगों को खुश करता है?
उत्तर
पुस्तकों के गत्तों पर, दिवारों पर, कच्चे मकानों पर सब लोग इस रंग को पंसद करते हैं। कलाभिज्ञ लोगों को भट्टी में पकाये गए मिटटी के बर्तनों के लिए यही रंग पसंद है। फोटो लेते समय उस पर कीचड़ का एकाध ठीकरे का रंग आ जाए तो उसे वार्मटोन कहकर विज्ञ लोग खुश होते हैं।
2. कीचड़ सूखकर किस प्रकार के दृश्य उपस्थित करता है?
उत्तर
कीचड़ सूखकर टुकड़ो में बंट जाता है, उसमे दरारें पर जाती हैं और वे टेढ़े हो जाते हैं तब वे सुखाये हुए खोपरे जैसे दिखते हैं। नदी के किनारे कीचड़ सूखकर जब ठोस हो जाता है तब उसपर गाय, बैल, भैंस, पाड़े के निशाँ अंकित हो जाते हैं जिसकी शोभा अलग प्रकार की होती है।
3. सूखे हुए कीचड़ का सौंदर्य किन स्थानों पर दिखाई देता है?
उत्तर
सूखे हुए कीचड़ का सौंदर्य नदियों के किनारे दिखाई देता है। कीचड़ जब थोड़ा सूख जाता है तो उस पर छोटे-छोटे पक्षी बगुले आदि घूमने लगते हैं। कुछ अधिक सूखने पर गाय, भैंस पांडे, भेड़, बकरियाँ के पदचिन्ह अंकित हो जाते हैं। जब दो मदमस्त पाड़े अपने सींगो से कीचड़ को रौंदते हैं तो चिन्हों से ज्ञात होता है महिषकुल के युद्ध के वर्णन हो।
4. कवियों की धारणा को लेखक ने युक्तिशून्य क्यों कहा है?
उत्तर
कवियों की धारणा केवल बाहरी सौंदर्य पर ध्यान देते हैं आंतरिक सौंदर्य की ओर उनका ध्यान नहीं जाता। पंकज शब्द बहुत अच्छा लगता है और पंक कहते ही बुरा सा लगता है। वे कमल को अपनी रचना में रखते हैं परन्तु पंक को अपनी रचना में नहीं लाते हैं। वे इसका तिरस्कार करते हैं। वे प्रत्यक्ष सौंदर्य की प्रशंसा करते हैं परन्तु उसको उत्पन्न करने वाले कारकों का सम्मान नहीं करते। कवियों का इस धारणा को लेखक ने युक्तिशून्य कहा है।
पृष्ठ संख्या: 59
(ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिये -
1. नदी किनारे अंकित पदचिह्न और सींगों के चिह्नों से मानो महिषकुल के भारतीय युद्ध का पूरा इतिहास ही इस कर्दम लेख में लिखा हो ऐसा भास होता है।
उत्तर
इस वाक्य का आशय यह है कि नदी के किनारे जब दो मदमस्त पाड़े अपने सींगों से कीचड़ को रौंदकर आपस में लड़ते हैं तो उनके पैरों तथा सींगों के चिह्न अंकित हो जाते हैं जिसे देखने से ऐसा लगता है मानो महिषकुल के भारतीय युद्ध का इतिहास का वर्णन हो।
2. "आप वासुदेव की पूजा करते हैं इसलिए वसुदेव को तो नहीं पूजते, हीरे का भारी मूल्य देते हैं किन्तु कोयले या पत्थर का नहीं देते और मोती को कठ में बाँधकर फिरते हैं किंतु उसकी मातुश्री को गले में नहीं बाँधते।" कस-से-कम इस विषय पर कवियों के साथ चर्चा न करना ही उत्तम !
उत्तर
कवियों का कहना है कि एक अच्छी और सुंदर वस्तु को स्वीकार करते हैं तो उससे जुड़ी चीज़ों को भी स्वीकार करना चाहिए। हीरा कीमती होता है परन्तु उसके उत्पादक कार्बन को ज़्यादा नहीं पूछा जाता। श्री कृष्ण को वासुदेव कहते हैं लोग उन्हें पूजते भी हैं परन्तु उनके पिता वसुदेव को भी पूजे यह ज़रूरी नहीं है। इसी तरह मोती इतना कीमती होता है लोग इसे गले में पहनते हैं पर सीप जिसमें मोती होता है इसे गले में बाँधे यह ज़रूरी नहीं है। अत: कवियों के अपने तर्क होते हैं। उनसे इस विषय पर बहस करना बेकार है।
भाषा अध्यन
1. निम्नलिखित शब्दों के तीन-तीन पर्यायवाची शब्द लिखिए −
|1. |जलाशय |- |........................|
|2. |सिंधु |- |........................|
|3. |पंकज |- |........................|
|4. |पृथ्वी |- |........................|
|5. |आकाश |- |........................|
उत्तर
|1. |जलाशय |- |ताल, सरोवर, सर |
|2. |सिंधु |- |जलधि, सागर, रत्नाकर |
|3. |पंकज |- |कमल, जलज, अंबुज, राजीव |
|4. |पृथ्वी |- |भू, भूमि, धरा, वसुधा |
|5. |आकाश |- |नभ, गगन, व्योम, अंबर |
2. निम्नलिखित वाक्यों में कारकों को रेखांकित कर उनके नाम भी लिखिए −
|(क) |कीचड़ का नाम लेते ही सब बिगड़ जाता है। |........................|
|(ख) |क्या कीचड़ का वर्णन कभी किसी ने किया है? |........................|
|(ग) |हमारा अन्न कीचड़ से ही पैदा होता है। |........................|
|(घ) |पदचिह्न उसपर अंकित होते हैं। |........................|
|(ङ) |आप वासुदेव की पूजा करते हैं। |........................|
उत्तर
|(क) |कीचड़ का नाम लेते सब बिगड़ जाता है। |का सबंध कारक |
|(ख) |क्या कीचड़ का वर्णन कभी किसी ने किया है? |ने कर्ता कारक |
|(ग) |हमारा अन्न कीचड़ से ही पैदा होता है। |हमारा संबध कारक, से करण कारक |
|(घ) |पदचिह्न उसपर अंकित होते हैं। |उस पर अधिकरण कारक |
|(ङ) |आप वासुदेव की पूजा करते हैं। |की सबंध कारक |
3. निम्नलिखित शब्दों की बनावट को ध्यान से देखिए और इनका पाठ भिन्न किसी नए प्रसंग में वाक्य प्रयोग कीजिए −
|आकर्षक |यथार्थ |तटस्थता |कलाभिज्ञ |पदचिह्न |
|अंकित |तृप्ति |सनातन |लुप्त |जाग्रत |
|घृणास्पद |युक्तिशून्य |वृत्ति | | |
उत्तर
|1. |आकर्षक |− |यह गमला बहुत आकर्षक है। |
|2. |अंकित |− |हमें वस्तु पर अंकित मूल्य पर ही वस्तु नहीं खरीदना चाहिए। |
|3. |घृणास्पद |− |वह बहुत ही घृणास्पद बातें करता है। |
|4. |यथार्थ |− |यथार्थ से हमेशा जुड़े रहना चाहिए। |
|5. |तृप्ति |− |मुख से पीड़ित व्यक्ति को भोजन दिया तो उसे तृप्ति हो गई। |
|6. |युक्तिशून्य |− |उसने बहुत ही युक्तिशून्य बातें की। |
|7. |तटस्थता |− |हमारा देश अक्सर बाह्रय युद्धों में तटस्थता की नीति बनाए रखता है। |
|8. |सनातन |− |भारत में बहुत लोग सनातन धर्म को मानते हैं। |
|9. |वृत्ति |− |वह बहुत अच्छी वृत्ति का व्यक्ति है। |
|10. |कलाभिज्ञ |− |कलाभिज्ञ गन्दगी में भी सुन्दरता देखते हैं। |
|11. |लुप्त |− |आजकल भारतीय संस्कृति और परम्पराएं लुप्त सी हो रही हैं। |
|12. |पदचिह्न |− |लोगों ने गाँधी जी के पदचिह्नों पर चलकर भारत माता की सेवा की। |
|13. |जाग्रत |− |आजकल टेलीवीजन पर लोगों को जाग्रत करने का प्रयास किया जा रहा है। |
4. नीचे दी गई संयुक्त क्रियाओं का प्रयोग करते हुए कोई अन्य वाक्य बनाइए −
(क) देखते-देखते वहाँ के बादल श्वेत पूनी जैसे हो गए।
....................................................................
(ख) कीचड़ देखना हो तो सीधे खंभात पहुँचना चाहिए।
.....................................................................
उत्तर
(ग) हमारा अन्न कीचड़ में से ही पैदा होता है।
(क) मेरे देखते-देखते ही वहाँ भीड़ जमा हो गई।
(ख) थोड़ी भी तबीयत खराब हो तो सीधे डाक्टर के पास पहुँचना चाहिए।
(ग) कमल कीचड़ में ही पैदा होता है।
पृष्ठ संख्या: 60
6. न, नहीं, मत का सही प्रयोग रिक्त स्थानों पर कीजिए −
(क) तुम घर ........... जाओ।
(ख) मोहन कल ............ आएगा।
(ग) उसे ......... जाने क्या हो गया है?
(घ) डाँटो .......... प्यार से कहो।
(ङ) मैं वहाँ कभी ........... जाऊँगा।
(च) ........... वह बोला ......... मैं।
उत्तर
(क) तुम घर ...मत... जाओ।
(ख) मोहन कल ..नहीं.... आएगा।
(ग) उसे ..न.. जाने क्या हो गया है?
(घ) डाँटो ..मत.... प्यार से कहो।
(ङ) मैं वहाँ कभी ..नहीं..... जाऊँगा।
(च) ..न... वह बोला ..न.. मैं।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए -
1. हम आकाश का वर्णन करते हैं, पृथ्वी का वर्णन करते हैं, जलाशयों का वर्णन करते हैं, पर कीचड़ का वर्णन कभी किसी ने किया है? कीचड़ में पैर डालना कोई पसंद नहीं करता है, कीचड़ से शरीर गन्दा होता है, कपडे मैले हो जाते हैं। अपने शरीर पर कीचड़ उड़े यह किसी को अच्छा नहीं लगता और इसलिए कीचड़ किसी को सहानुभूति नहीं होती। यह सब यथार्थ है किन्तु तटस्थ्ता से सोचें तो हम देखेंगे कि कीचड़ में कुछ कम सौंदर्य नहीं है। पहले तो यह की कीचड़ का रंग बहुत सुन्दर है। पुस्तकों के गत्तों पर, घरों की दीवालों पर अथवा शरीर के कीमती कपड़ों के लिए हम सब कीचड़ के जैसे रंग पसंद करते हैं। कलाभिज्ञ लोगों की भट्टी में पकाये हुए मिट्टी के बर्तनों के लिए यही रंग बहुत पसंद है। फोटो लेते समय भी यदि उसमें कीचड़ का, एकाध ठीकरे का रंग आ जाए तो उसे वार्मटोन कहकर विज्ञ लोग खुश हो जाते हैं। पर लो, कीचड़ का नाम लेते ही सब बिगड़ जाता है।
(क) हम प्रकृति के किन रूपों का प्रायः वर्णन करते हैं? (1)
(ख) लोग कीचड़ को पसंद क्यों नहीं करते? (2)
(ग) कीचड़ का रंग कहाँ-कहाँ पसंद किया जाता है? (2)
उत्तर
(क) हम प्रकृति के सुंदर रूपों आकाश, पृथ्वी, जालशयों आदि का प्रायः वर्णन करते हैं।
(ख) लोग कीचड़ को पसंद इसलिए नहीं करते क्योंकि इससे शरीर गन्दा होता है, कपडे मैले हो जाते हैं।
(ग) कीचड़ का रंग पुस्तकों के गत्तों पर, घरों की दीवालों पर और शरीर के कीमती कपड़ों के लिए पसंद किया जाता है। कलाभिज्ञ लोगों की भट्टी में पकाये हुए मिट्टी के बर्तनों के लिए कीचड़ का रंग बहुत पसंद है।
2. कीचड़ देखना है तो गंगा किनारे या सिंधु के किनारे और इतने से तृप्ति ना हो तो सीधे खंभात पहुँचना चाहिए। वहाँ मही नदी के मुख से आगे जहाँ तक नज़र पहुँचे वहाँ तक सर्वत्र सनातन कीचड़ ही देखने को मिलेगा। इस कीचड़ में हाथी डूब जाएँगे ऐसा कहना, न शोभा दे ऐसी अलोपक्ति करने जैसा है। पहाड़ के पहाड़ उसमें लुप्त हो जाएँगे, ऐसा कहना चाहिए।
हमारा अन्न कीचड़ में से ही पैदा होता है इसका जाग्रत भान हर एक मनुष्य को होता तो वह कभी कीचड़ का तिरस्कार न करता।
(क) इस कीचड़ में हाथी भी डूब जाएँ -का क्या आशय है? इस कीचड़ में क्या-क्या डूब सकते हैं? (2)
(ख) मही नदी के मुख के आगे स्थित कीचड़ की क्या विशेषता है? (1)
(ग) मनुष्य कीचड़ का तिरस्कार करना कब छोड़ेगा? (1)
उत्तर
(क) इस कथन का आशय है कि कीचड़ बहुत जयादा तथा गहरा होता है। इस कीचड़ में पहाड़ के पहाड़ डूब सकते हैं।
(ख) मही नदी के मुख के आगे से जहाँ तक नजर पहुँचे वहाँ तक सर्वत्र सनातन कीचड़ ही देखने को मिलता है।
(ग) मनुष्य को जब यह जाग्रत भान हो जाएगा कि उसका अन्न कीचड़ से ही पैदा होता है तब वह इसका तिरस्कार करना छोड़ेगा।
3.नदी के किनारे जब कीचड़ सुखकर उसके टुकड़े हो जाते हैं, तब वे कितने सुन्दर दिखते हैं। ज्यादा गर्मी से जब उन्हीं टुकड़ों में दरारें पड़ती हैं और वे टेढ़े हो जाते हैं, तब वे सुखाये हुए खोपरे जैसे दीख पड़ते हैं। नदी किनारे मीलों तक जब समतल और चिकना कीचड़ एक-सा फैला हुआ होता है, तब वह दृश्य कुछ कम खूबसूरत नहीं होता। इस कीचड़ का पृष्ठ भाग कुछ सुख जाने पर उस पर बगुले और अन्य छोटे-बड़े पक्षी चलते हैं, तब तीन नाख़ून आगे और अँगूठा पीछे ऐसे अनेक पदचिह्न, मध्य एशिया के रास्ते की तरह दूर-दूर तक अंकित देख इसी रास्ते अपना कारवाँ ले जाने की इच्छा हमें होती है।
(क) नदी के किनारे कीचड़ कब सुखाये हुए खोपडे जैसे दिखाई देते हैं? (1)
(ख) नदी के किनारे कौन सा दृश्य खूबसूरत होता है? (1)
(ग) लेखक को क्या देख अपना कारवाँ उस रास्ते ले जाने की इच्छा होती है? (2)
उत्तर
(क) जब ज्यादा गर्मी पड़ती है तब नदी के किनारे सूखे पड़े कीचड़ कर टुकड़ों में दरारें पड़ जाती हैं तब वे सुखाये हुए खोपडे जैसे दिखाई देते हैं।
(ख) नदी के किनारे मीलों तक जब समतल और चिकना कीचड़ एक-सा फैला हुआ होता है, तब वह दृश्य खूबसूरत होता है।
(ग) कीचड़ का पृष्ठ भाग कुछ सूख जाने पर उस पर बगुले और अन्य छोटे-बड़े पक्षी चलते हैं, तब तीन नाख़ून आगे और अँगूठा पीछे ऐसे अनेक पदचिह्न, मध्य एशिया के रास्ते की तरह दूर-दूर तक अंकित देख लेखक को अपना कारवाँ इस रास्ते ले जाने की इच्छा होती है।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिये-
1. रंग की सारी शोभा कहाँ जमी थी?
उत्तर
रंग की सारी शोभा उत्तर में जमी थी।
2. कवि कीचड़ का वर्णन क्यों नहीं करते?
उत्तर
कवि बाहरी सौंदर्य को ज्यादा महत्व देते हैं, उनकी उपयोगिता को महत्व नहीं देते इसलिए कवि कीचड़ का वर्णन नहीं करते।
3. कीचड़ कब सुन्दर दिखते हैं?
उत्तर
नदी के किनारे जब कीचड़ सुखकर उसके टुकड़े हो जाते हैं तब कीचड़ सुन्दर दिखते हैं।
4. लेखक के अनुसार हमें कीचड़ देखने के लिए कहाँ जाना चाहिए?
उत्तर
लेखक के अनुसार हमें कीचड़ देखने के लिए गंगा के किनारे या सिंधु के किनारे जाना चाहिए। अगर इतने से भी संतुष्टि ना मिले तो खंभात जाना चाहिए।
5. आशय सपष्ट कीजिये "नदी के किनारे अंकित पद चिह्न और सींगों के चिह्नों से मानो महिषकुल के भारतीय युद्ध का पूरा इतिहास ही इस कर्दम लेख में लिखा हो भास होता है।"
उत्तर
इस कथन का आशय है कि नदी के किनारे कीचड़ सूखी कीचड़ में जब दो भैंस के बच्चे मस्त होकर अपने सींगों को उस कीचड़ में धँसाकर रौंदते और लड़ते हैं तो उनके लड़ने से कीचड़ में उनके पद चिह्न और सींगों के चिह्न अंकित हो जाते हैं जिसे देखकर ऐसा लगता है मानो महिषकुल के सभी भारतीय युद्ध का पूरा इतिहास कीचड़ में लेख के रूप लिख दिया गया हो।
पाठ का सार
प्रस्तुत लेख 'कीचड़ का काव्य' में लेखक ने कीचड़ का महिमामंडन किया है। उन्होंने बताया है की कोई भी कवि या लेखक अपने कृतियों में कीचड़ का वर्णन नही करते हैं, जबकि लेखक को कीचड़ में कम सौंदर्य नजर नही आता। कीचड़ का रंग बहुत व्यक्तियों को पसंद आता है जैसे पुस्तक के गत्तों पर, घरों की दीवालों पर, मिटटी के बर्तनो के लिए तथा फोटो लेते समय।
कीचड के सौंदर्य का वर्णन करते हुए लेखक ने कहा है की जब ये नदी के किनारे सुख कर टूट जाते हैं, उनमे दरारे पड़ जाती हैं तब वे सुखाये खोपड़े जैसे दिखाई पड़ते हैं। जब उसपर छोटे-बड़े पक्षी के पदचिन्ह अंकित हो जाते हैं तो हमें उस रास्ते कारवां ले जाने की इच्छा होती है। फिर जब कीचड़ ज्यादा सुखकर जमीन ठोस हो जाती है तथा गाय, भैंस, बैल, बकरे आदि के पदचिन्ह अंकित हो जाते हैं है जिसकी शोभा कुछ और ही है। जब दो पांडे अपने सींगो द्वारा कीचड़ को रौंदकर आपस में लड़ते हैं तो उनके अंकित चिन्ह महिषकुल के युद्ध का वर्णन करते हैं।
अगर हमें कीचड़ के विशाल रूप को देखना है तो गंगा किनारे या सिंधु के किनारे जाना चाहये या फिर सीधे खम्भात पहुंचना चाहिए जहाँ हमारी नजर जहाँ तक जायेगी वहां सर्वत्र कीचड़ ही मिलेगा। लेखक के अनुसार अगर मनुष्य को ये याद रहे की उनका अन्न कीचड़ की ही दें है तो वह इसका तिरस्कार न करे। हमारे कवि मल के द्वारा उत्पन्न शब्द का उपयोग शान से करते हैं परन्तु मल को स्थान नही देते। इस विषय पर चर्चा कवियों से चर्चा न करना ही उत्तम है।
लेखक परिचय
काका कालेलकर
इनका जन्म महराष्ट्र के सतारा नगर में सन 1885 में हुआ। काका की मातृभाषा मराठी थी, उन्हें गुजराती, हिंदी, बांग्ला और अंग्रेजी का भी अच्छा ज्ञान था। गांधीजी के साथ राष्ट्रभाषा प्रचार में जुड़ने के बाद काका हिंदी में लेखन करने लगे। आजादी के बाद काका जिंदगी भर गांधीजी के विचार और साहित्य के प्रचार-प्रसार में जुटे रहे।
प्रमुख कार्य
कृतियाँ - हिमालयोन प्रवास, लोकमाता (यात्रा वृत्तांत), स्मरण यात्रा (संस्मरण), धर्मोदय (आत्मचरित), जीवननो आनंद, अवारनवार (निबंध संग्रह)।
कठिन शब्दों के अर्थ
• आकर्षक - सुन्दर
• शोभा -सुंदरता
• उत्तर - उत्तर दिशा
• कमाल - अद्भुत चमत्कारिक क्रिया
• पुनि - धूनी हुई रुई की बड़ी बत्ती जो सूत काटने के लिए बनाई जाती है।
• जलाशय - तालाब
• तठस्था - निष्पक्षता
• कलाभिज्ञ - कला का जानकार
• ठीकरा - खोपडे का टुकड़ा
• विज्ञ - जानकार
• अंकित - चिन्हित
• कारवां - देशान्तर जाने वाले यात्रियों का झुण्ड
• मदमस्त - मस्त
• पाड़े - भैंस के नर बच्चे
• महिषकुल - भैंसो का परिवार
• कर्दम - कीचड़
• भास - प्रतीत
• अलोपक्ति - थोड़ा कहना
• तिरस्कार - उपेक्षा
• युक्तिशून्य - विचारहीन
• वृति - तरीका
NCERT Solutions for Class 9th: पाठ 7 - धर्म की आड़ स्पर्श भाग-1 हिंदी
गणेशशंकर विद्यार्थी
पृष्ठ संख्या: 66
प्रश्न अभ्यास
मौखिक
निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए -
1. आज धर्म के नाम पर क्या-क्या हो रहा है?
उत्तर
आज धर्म के नाम पर उत्पात, ज़िद, दंगे-फ़साद हो रहे है।
2. धर्म के व्यापार को रोकने के लिए क्या उद्योग होना चाहिए?
उत्तर
धर्म के व्यापार को रोकने के लिए साहस और दृढ़ता के साथ उद्योग होना चाहिए।
3. लेखक के अनुसार स्वाधीनता आंदोलन का कौन सा दिन बुरा था?
उत्तर
लेखक के अनुसार स्वाधीनता आंदोलन का वह दिन सबसे बुरा था जिस दिन स्वाधीनता के क्षेत्र में खिलाफत, मुल्ला मौलवियों और धर्माचार्यों को स्थान दिया जाना आवश्यक समझा गया।
4. साधारण से साधारण आदमी तक के दिल में क्या बात अच्छी तरह घर कर बैठी है?
उत्तर
साधारण से साधारण आदमी तक के दिल में यह बात अच्छी तरह घर कर बैठी है कि धर्म और ईमान के रक्षा के लिए जान तक दे देना वाजिब है।
5. धर्म के स्पष्ट चिह्न क्या हैं?
उत्तर
शुद्ध आचरण और सदाचार धर्म के स्पष्ट चिह्न हैं।
लिखित
(क) निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर (25-30 शब्दों में) उत्तर दीजिए -
1. चलते-पुरज़े लोग धर्म के नाम पर क्या करते हैं?
उत्तर
चलते-पुरज़े लोग धर्म के नाम पर लोगों को मूर्ख बनाते हैं और अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं, लोगों की शक्तियों और उनके उत्साह का दुरूपयोग करते हैं। वे इन जाहिलों के बल आधार पर अपना नेतृत्व और बड़प्पन कायम रखते हैं।
2. चालाक लोग साधारण आदमी की किस अवस्था का लाभ उठाते हैं?
उत्तर
चालाक लोग साधारण आदमी की धर्म की रक्षा के लिए जान लेने और देने वाले विचार और अज्ञानता का लाभ उठाते हैं। पहले वो अपना प्रभुत्व स्थापित करते हैं उसके बाद स्वार्थ सिद्धि के लिए जिधर चाहे मोड़ देते हैं।
3. आनेवाल समय किस प्रकार के धर्म को नही टिकने देगा?
उत्तर
दो घंटे तक बैठकर पूजा कीजिये और पंच-वक्ता नमाज़ भी अदा कीजिए, परन्तु ईश्वर को इस प्रकार के रिश्वत दे चुकने के पश्चात, यदि आप दिन-भर बेईमानी करने और दूसरों को तकलीफ पहुंचाने के लिए आजाद हैं तो इस धर्म को आनेवाल समय नही टिकने देगा।
4. कौन सा कार्य देश की स्वाधीनता के विरूद्ध समझा जायेगा?
उत्तर
आपका जो मंन चाहे वो माने और दूसरे का जो मन चाहे वो माने। यदि किसी धर्म के मानने वाले कहीं दुसरो के धर्म में जबरदस्ती टांग अड़ाते हैं तो यह कार्य देश की स्वाधीनता के विरूद्ध समझा जायेगा।
5. पाश्चात्य देशो में धनी और निर्धन लोगों में क्या अंतर है?
उत्तर
पाश्चात्य देशो में धनी और निर्धन लोगों के बीच एक गहरी खाई है। गरीबों के कमाई से वे और अमीर बनते जा रहे हैं और उसी के बल से यह प्रयत्न करते हैं कि गरीब और चूसा जाता रहे। वे गरीबों को धन दिखाकर अपने वश में करते हैं और फिर मनमांना धन पैदा करने के लिए जोत देते हैं।
6. कौन-से लोग धार्मिक लोगों से ज्यादा अच्छे हैं?
उत्तर
धार्मिक लोगों से वे ला-मज़हबी और नास्तिक लोग ज्यादा अच्छे हैं जिनका आचरण अच्छा है, जो दूसरों के सुख-दुख का ख्याल रखते हैं और जो मूर्खों को किसी स्वार्थ-सिद्धि के लिए उकसाना बहुत बुरा समझते हैं।
(ख) निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर (50-60 शब्दों में) उत्तर दीजिए -
1. धर्म और ईमान के नाम पर किए जाने वाले भीषण व्यापार को कैसे रोका जा सकता है?
उत्तर
चालाक लोग धर्म और ईमान के नाम पर सामान्य लोगों को बहला फुसला कर उनका शोषण करते हैं तथा अपने स्वार्थ की पूर्ति करते हैं। मूर्ख लोग धर्म की दुहाई देकर अपने जान की बाजियाँ लगते हैं और धूर्त लोगों का बल बढ़ाते हैन। इस प्रकार धर्म की आड़ में एक व्यापार जैसा चल रहा है। इसे रोकने के लिए साहस और दृढ़ता के साथ मजबूत उद्योग होना चाहिए।
2. 'बुद्धि पर मार' के संबंध में लेखक के क्या विचार हैं?
उत्तर
'बुद्धि पर मार' का आशय है की बुद्धि पर पर्दा डालकर पहले आत्मा और ईश्वर का स्थान अपने लिए लेना और फ़िर धर्म, ईमान ईश्वर और आत्मा के नाम पर अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए लोगों को लड़ना भिड़ाना। यह साधारण लोगो नही समझ पाते हैं और धर्म के नाम पर जान लेने और देने को भी वाजिब मानते हैं।
3. लेखक की दृष्टि में धर्म की भावना कैसी होनी चाहिए?
उत्तर
लेखक की दृष्टि में धर्म किसी दूसरे व्यक्ति की स्वाधीनता को छीनने का साधन ना बने। जिसका मन जो धर्म चाहे वो माने और दूसरे को जो चाहे वो माने। दो भिन्न धर्मों मानने वालो के लिए टकरा जाने का कोई स्थान ना रहे। अगर कोई व्यक्ति दूसरे के धर्म में दखल दे तो इस कार्य को स्वाधीनता के विरुद्ध समझा जाये।
4. महात्मा गांधी के धर्म सम्बन्धी विचारो पर प्रकाश डालिये।
उत्तर
महात्मा गाँधी अपने जीवन में धर्म को महत्वपूर्ण स्थान देते थे। वे सर्वत्र धर्म का पालन करते थे। धर्म के बिना एक पग भी चलने को तैयार नहीं होते थे। उनके धर्म के स्वरूप को समझना आवश्यक है। धर्म से महात्मा गांधी का मतलब, धर्म ऊँचे और उदार तत्वों का ही हुआ करता है। वे धर्म की कट्टरता के विरोधी थे। प्रत्येक व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि वह धर्म के स्वरूप को भलि-भाँति समझ ले।
5. सबके कल्याण हेतु अपने आचरण को सुधारना क्यों आवश्यक है?
उत्तर
सबके कल्याण हेतु अपने आचरण को सुधारना इसलिए आवश्यक है क्योंकि जब हम खुद को ही नहीं सुधारेंगे, दूसरों के साथ अपना व्यवहार सही नहीं रख सकेंगे। दिन भर के नमाज़, रोजे और गायत्री किसी व्यक्ति को अन्य व्यक्ति की स्वाधीनता रौंदने और उत्पात फैलाने के लिए आजाद नही छोड़ सकेगा।
पृष्ठ संख्या: 67
(ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए।
1. उबल पड़ने वाले साधारण आदमी का इसमें केवल इतना ही दोष है कि वह कुछ भी नहीं समझता-बूझता और दूसरे लोग उसे जिधर जोत देते हैं, उधर जुत जाता है।
उत्तर
यहाँ लेखक का आशय इस बात से है कि साधारण लोग जो की धर्म को ठीक से जानते तक नहीं, परन्तु धर्म के खिलाफ कुछ भी हो तो उबाल पड़ते हैं। चालाक लोग उनकी इस मूर्खता का फायदा उठाकर अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए उनसे अपने ढंग से काम करवाते हैं।
2. यहाँ है बुद्धि पर परदा डालकर पहले ईश्वर और आत्मा का स्थान अपने लिए लेना, और फिर धर्म, ईमान, ईश्वर और आत्मा के नाम पर अपनी स्वार्थ-सिद्धि के लिए लोगों को लड़ाना-भिड़ाना।
उत्तर
धर्म ईमान के नाम पर कोई भी साधारण आदमी आराम से चालाक व्यक्तियों की कठपुतली बन जाता है। वे पहले उनके बुद्धि पर परदा दाल देता है तथा उनकी ईश्वर और आत्मा का स्थान खुद ले लेता है। उसके बाद अपने कार्यसिद्धि के लिए उन्हें लड़ता भिड़ाता रहता है।
3. अब तो, आपका पूजा-पाठ न देखा जाएगा, आपकी भलमनसाहत की कसौटी केवल आपका आचरण होगी।
उत्तर
आप चाहे दिन भर नमाज अदा और गायत्री पढ़ लें तभी आप उत्पात फैलाने के लिए आजाद नही कर सकेंगे। आने वाले समय में केवल पूजा-पाठ को ही महत्व नहीं दिया जाएगा बल्कि आपके अच्छे व्यवहार को परखा जाएगा और उसे महत्व दिया जाएगा।
4. तुम्हारे मानने ही से मेरा ईश्वरत्व कायम नहीं रहेगा, दया करके, मनुष्यत्व को मानो, पशु बनना छोड़ो और आदमी बनो !
उत्तर
ईश्वर द्वारा कथित इस वाक्य से लेखक कहना चाहा रहा है की जिस तरह से धर्म के नाम पर अत्याचार हो रहे हैं उसे देखकर ईश्वर को यह बतलाना पड़ेगा की पूजा-पाठ छोड़कर अच्छे कर्मा की ओर ध्यान दो। तुम्हारे मानने या ना मानने से मेरा ईश्वरत्व कायम नहीं रहेगा। इंसान बनो और दूसरों की सेवा करो।
भाषा अध्यन
1. उदाहरण के अनुसार शब्दों के विपरीतार्थक लिखिए −
|1. |सुगम |- |दुर्गम |
|2. |धर्म |- |............. |
|3. |ईमान |- |............. |
|4. |साधारण |- |............. |
|5. |स्वार्थ |- |............. |
|6. |दुरूपयोग |- |............. |
|7. |नियंत्रित |- |............. |
|8. |स्वाधीनता |- |............. |
उत्तर
|1. |सुगम |- |दुर्गम |
|2. |धर्म |- |अधर्म |
|3. |ईमान |- |बेईमान |
|4. |साधारण |- |असाधारण |
|5. |स्वार्थ |- |निस्वार्थ |
|6. |दुरूपयोग |- |सदुपयोग |
|7. |नियंत्रित |- |अनियंत्रित |
|8. |स्वाधीनता |- |पराधीनता |
2. निम्नलिखित उपसर्गों का प्रयोग करके दो-दो शब्द बनाइए −
ला, बिला, बे, बद, ना, खुश, हर, गैर
उत्तर
|ला - |लाइलाज, लापरवाह |
|बिला - |बिला वजह |
|बे - |बेजान, बेकार |
|बद - |बददिमाग, बदमिज़ाज़ |
|ना - |नाकाम, नाहक |
|खुश - |खुशनसीब, खुशगवार |
|हर - |हरएक, हरदम |
|गैर - |गैरज़िम्मेदार, गैर कानूनी |
3. उदाहरण के अनुसार 'त्व' प्रत्यय लगाकर पाँच शब्द बनाइए −
उदाहरण : देव + त्व =देवत्व
उत्तर
|1. |उत्तरदायी |+ |त्व |= |उत्तरदायित्व |
|2. |महा |+ |त्व |= |महत्व |
|3. |पशु |+ |त्व |= |पशुत्व |
|4 |लघु |+ |त्व |= |लघुत्व |
|5. |व्यक्ति |+ |त्व |= |व्यक्तित्व |
|6. |मनुष्य |+ |त्व |= |मनुष्यत्व |
4. निम्नलिखित उदाहरण को पढ़कर पाठ में आए संयुक्त शब्दों को छाँटकर लिखिए −
उदाहरण − चलते-पुरज़े
उत्तर
|समझता - |बूझना |छोटे - |बड़े |
|पूजा - |पाठ |कटे - |फटे |
|ठीक - |ठाक |खट्टे - |मीठे |
|गिने - |चुने |लाल - |पीले |
|जले - |भुने |ईमान - |धर्म |
|स्वार्थ - |सिद्धी |नित्य - |प्रति |
5. 'भी' का प्रयोग करते हुए पाँच वाक्य बनाइए −
उदाहरण − आज मुझे बाजार होते हुए अस्पताल भी जाना है।
उत्तर
1. मुझे भी पुस्तक पढ़नी है।
2. राम को खाना भी खाना है।
3. सीता को भी नाचना है।
4. तुम्हें भी आना है।
5. इन लोगों को भी खाना खिलाइए।
पाठ का सार
प्रस्तुत पाठ ‘ धर्म की आड़ ’ में विद्यार्थी जी ने उन लोगों के इरादों और कुटिल चालों को बेनकाब किया है जो धर्म की आड़ लेकर जनसामान्य को आपस में लड़ाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करने की फ़िराक में रहते हैं। उन्होंने बताया है की कुछ चालाक व्यक्ति साधारण आदमी को अपने स्वार्थ हेतु धर्म के नाम पर लड़ते रहते हैं। साधारण आदमी हमेशा ये सोचता है की धर्म के नाम पर जान तक दे देना वाजिब है।
पाश्चत्य देशों में धन के द्वारा लोगों को वश में किया जाता है, मनमुताबिक काम करवाया जाता है। हमारे देश में बुद्धि पर परदा डालकर कुटिल लोग ईश्वर और आत्मा का स्थान अपने लिए ले लेते हैं और फिर धर्म, ईमान के नाम पर लोगों को आपस में भिड़ाते रहते हैं और अपना व्यापार चलते रहते हैं। इस भीषण व्यापार को रोकने के लिए हमें साहस और दृढ़ता के साथ उद्योग करना चाहिए। यदि किसी धर्म के मनाने वाले जबरदस्ती किसी के धर्म में टांग अड़ाते हैं तो यह कार्य स्वाधीनता के विरुद्ध समझा जाए।
देश की स्वाधीनता आंदोलन में जिस दिन खिलाफत, मुल्ला तथा धर्माचार्यों को स्थान दिया गया वह दिन सबसे बुरा था जिसके पाप का फल हमे आज भी भोगना पड़ रहा है। लेखक के अनुसार शंख बजाना, नाक दबाना और नमाज पढ़ना धर्म नही है। शुद्धाचरण और सदाचरण धर्म के चिन्ह हैं। आप ईश्वर को रिश्वत दे देने के बाद दिन भर बेईमानी करने के लिए स्वतंत्र नही हैं। ऐसे धर्म को कभी माफ़ नही किया जा सकता। इनसे अच्छे वे लोग हैं जो नास्तिक हैं।
लेखक परिचय
गणेशशंकर विद्यार्थी
इनका जन्म सन 1891 में मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर में हुआ था। एंट्रेंस पास करने के बाद कानपूर दफ्तर में मुलाजिम हो गए। फिर 1921 में 'प्रताप' साप्ताहिक अखबार निकालना शुरू किया। ये आचार्य महावीर प्रसाद दिवेदी को साहित्यिक गुरु मानते थे। इनका ज्यादा समय जेल में बिता। कानपुर में 1931 में मचे सांप्रदायिक दंगों को शांत करवाने के प्रयास में इनकी मृत्यु हो गयी।
कठिन शब्दों के अर्थ
• उत्पात – उपद्रव
• ईमान – नीयत
• ज़ाहिलों – मूर्ख या गँवार
• वाज़िब – उचित
• बेज़ा – अनुचित
• अट्टालिकाएँ – ऊँचे मकान
• साम्यवाद - कार्ल-मार्क्स द्वारा प्रतिपादित राजनितिक सिद्धांत जिसका उद्देश्य विश्व में वर्गहीन समाज की स्थापना करना है।
• बोलेश्विज्म - सोवियत क्रान्ति के बाद लेनिन के नेतृत्व में स्थापित व्यवस्था
• धूर्त – छली
• खिलाफ़़त – खलीफ़ा का पद
• प्रपंच – छल
• कसौटी – परख
• ला-मज़हब – जिसका कोई धर्म , मज़हब न हो या नास्तिक।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए -
1. देश के सभी शहरों का यही हाल है। उबल पड़ने वाले साधारण आदमी का इसमें केवल इतना ही दोष है कि वह कुछ भी नहीं समझता-बुझता, और दूसरे लोग उसे जिधर जोत देते हैं, उधर जुट जाता है। यथार्थ दोष है, कुछ चलते-पुरज़े, पढ़े लिखे लोगों का, जो मूर्ख लोगों की शक्तियों का और उत्साह का दुरूपयोग इसलिए कर रहे हैं कि इस प्रकार, जाहिलों के आधार पर उनका नेतृत्व और बड़प्पन कायम रहे। इसके लिए धर्म और ईमान की बुराइयों से काम लेना उन्हें सबसे सुगम मालुम पड़ता है। सुगम है भी।
(क) कौन किसका दुरूपयोग कर रहा है और क्यों? (2)
(ख) साधारण आदमी का क्या दोष है? (1)
(ग) चलते-पुरज़े किन्हें कहा गया है और वे क्या करते हैं? (2)
उत्तर
(क) कुछ चालाक और पढ़े-लिखे लोग मूर्ख लोगों की शक्तियों और उत्साह का दुरूपयोग धर्म के नाम पर अपना नेतृत्व और बड़प्पन कायम रखने के लिए कर रहे हैं।
(ख) साधारण आदमी का दोष यह है की वह कुछ समझता-बुझता नहीं है, केवल उबल पड़ता है। दूसरे लोग जिधर जोत देते हैं उधर जुत जाता है।
(ग) चलते-पुरज़े कुछ पढ़े-लिखे लोगों को कहा गया है। वे लोग धर्म और ईमान की बुराइयों से लाभ उठाकर मूर्ख लोगों की शक्तियों का दुरुपयोग अपने फायदे के लिए करते हैं।
2. हमारे देश में धनपतियों का इतना ज़ोर नहीं है। यहाँ धर्म में नाम पर कुछ इन-गिने आदमी अपने हैं स्वार्थों की सिद्धि के लिए करोड़ों आदमियों की शक्ति का दुरूपयोग किया करते हैं। गरीबों का धनाढ्यों द्वारा चूसा इतना बुरा नहीं है, जितना बुरा यह है कि वहाँ है धन की मार, यहाँ पर है बुद्धि की मार। वहाँ धन दिखाकर करोड़ो को वश में किया जाता है और फिर मनमाना धन पैदा करने के लिए जोत दिया जाता है। यहाँ है बुद्धि पर परदा डालकर पहले ईश्वर और आत्मा का स्थान अपने लिए लेना और फिर धर्म, ईमान, ईश्वर और आत्मा के नाम पर अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए लोगों को लड़ाना-भिड़ाना।
(क) पाश्चात्य देशों और भारत में क्या अंतर है? (2)
(ख) आज धर्म के नाम पर क्या होता है? (1)
(ग) 'बुद्धि पर परदा डालना' का क्या अर्थ है? (1)
उत्तर
(क) पाश्चात्य देशों में धन दिखाकर लोगों को वश में करते हैं और भारत में धर्म के नाम पर लोगों की शक्ति को दुरूपयोग किया जा रहा है।
(ख) आज धर्म के नाम पर कुछ गिने-चुने लोग अपने स्वार्थ सिद्धि क लिए करोड़ों लोगों की शक्तियों करते हैं।
(ग) 'बुद्धि पर परदा डालना' का अर्थ है कुछ सोचने-समझने की ताकत को खत्म करना जैसा आज के समय में धर्म के नाम पर किया जा रहा है।
3. धर्म की उपासना के मार्ग में कोई रुकावट न हो। जिसका मन जिस प्रकार चाहे, उसी प्रकार धर्म की भावना को अपने मन में जगावे। धर्म और ईमान, मन का सौदा हो, ईश्वर और आत्मा के बीच का संबंध हो, आत्मा को शुद्ध करने और ऊँचा उठाने का साधन हो। वह किसी दशा में भी, किसी दूसरे व्यक्ति की स्वाधीनता को छीनने या कुचलने का साधन न बने। आपका मन चाहे, उस तरह का धर्म आप मानें और दूसरों का मन चाहे, उस प्रकार का धर्म वह माने। दोनों भिन्न धर्मों को मानने वालों को टकरा जाने के लिए कोई भी स्थान न हो। यदि किसी धर्म के मानने वाले कहीं जबरदस्ती टाँग अड़ाते हों, तो उनका इस प्रकार का कार्य देश की स्वाधीनता के विरुद्ध समझा जाए।
(क) धर्म किस बात का साधन है? (1)
(ख) विभिन्न धर्मों का संबंध कैसा होना चाहिए? (2)
(ग) कौन सा कार्य देश की स्वाधीनता के विरुद्ध समझा जाए? (2)
उत्तर
(क) धर्म आत्मा को शुद्ध करने और ऊँचा उठाने का साधन है।
(ख) विभिन्न धर्मों का संबंध ऐसा होना चाहिए कि उनके मानने वालों के टकरा जाने के लिए कोई भी स्थान ना हो।
(ग) यदि किसी धर्म के मानने वाले कहीं जबरदस्ती टाँग अड़ाते हों तो उनका यह कार्य देश की स्वाधीनता के विरुद्ध समझा जाए।
4. देश की स्वाधीनता के लिए जो उद्योग किया जा रहा था, उसका वह दिन निःसंदेह, बुरा था, जिस दिन स्वाधीनता के क्षेत्र में ख़िलाफ़त, मुल्ला, मौलवियों और धर्माचार्यों को स्थान दिया जाना आवश्यक समझा गया। एक प्रकार से उस दिन हमने स्वाधीनता के क्षेत्र में, एक कदम पीछे हटकर रखा था। अपने उसी पाप का फल आज हमें भोगना पड़ रहा है। देश को स्वाधीनता के संग्राम ही ने मौलना अब्दुल बारी और शंकराचार्य को देश के सामने दूसरे रूप में पेश किया, उन्हें अधिक शक्तिशाली बना दिया और हमारे इस काम का फल यह हुआ कि इस समय, हमारे हाथों से ही बढ़ाई इनकी और इनके से लोगों की शक्तियाँ हमारी जड़ उखाड़ने और देश में मज़हबी पागलपन, प्रपंच और उत्पात का राज्य स्थापित कर रही हैं।
(क) देश की स्वाधीनता का कौन सा दिन सबसे बुरा था? (1)
(ख) हमने कब स्वाधीनता के क्षेत्र में एक कदम पीछे हटकर रखा और क्यों? (2)
(ग) हमारे मज़हबी कार्य का फल क्या हुआ? (2)
उत्तर
(क) देश की स्वाधीनता का वह दिन सबसे बुरा था जिस दिन स्वाधीनता के क्षेत्र में ख़िलाफ़त, मुल्ला, मौलवियों और धर्माचार्यों को स्थान दिया गया।
(ख) स्वाधीनता के क्षेत्र में हमने धर्म को स्थान देकर एक कदम पीछे हटकर रखा क्योंकि हमने मज़हब को स्थान दिया जिससे टकराव की स्थिति और बढ़ गयी।
(ग) हमारे मज़हबी कार्यों का फल यह हुआ कि हमारे द्वारा बढ़ाई गई मुल्ला-मौलवियों और धर्माचार्यों की शक्ति हमारी जड़ें उखाड़ने, मज़हबी पागलपन, प्रपंच और उत्पात का राज्य स्थापित कर रही हैं।
5. ऐसे धार्मिक और दीनदार आदमियों से तो वे ला-मज़हब और नास्तिक आदमी कहीं अधिक अच्छे और ऊँचे हैं, जिनका आचरण अच्छा है, जो दूसरों के सुख-दुःख का ख्याल रखते हैं और जो मूर्खों को किसी स्वार्थ सिद्धि के लिए उकसाना बहुत बुरा समझते हैं। ईश्वर इन नास्तिक और ला-मज़हब लोगों को अधिक प्यार करेगा और वह अपने पवित्र नाम पर अपवित्र काम करने वालों से यही कहना पसंद करेगा, मुझे मानो या ना मानो, तुम्हारे मानने से ही मेरा ईश्वरत्व कायम नहीं रहेगा, दया करके मनुष्यत्व को मानो, पशु बनना छोडो और आदमी बनो।
(क) कौन लोग किससे अधिक अच्छे हैं? (2)
(ख) ईश्वर किन लोगों से प्यार करेगा? (1)
(ग) 'दया करके मनुष्यत्व को मानो, पशु बनना छोडो और आदमी बनो।' इस पंक्ति का क्या अर्थ है? (2)
उत्तर
(क) ला-मज़हबी और नास्तिक लोग जिनका आचरण अच्छा है, धार्मिक और ईमानदार लोगों से अच्छे हैं।
(ख) ईश्वर उनलोगो से अधिक प्यार करेगा जिनका आचरण अच्छा है, जो दूसरों लोगों के सुख-दुःख का ख्याल करते हैं और जो मूर्खों को किसी स्वार्थ सिद्धि के लिए उकसाना बहुत बुरा समझते हैं।
(ग) इस पंक्ति का अर्थ है कि हमें ईश्वर को मानने या ना मानने से पहले मनुष्यता को मानना चाहिए। अपने स्वार्थ के लिए धर्म के नाम पर उत्पात नहीं मचाना चाहिए। हिंसा रूपी पशु को त्यागकर दूसरों की भलाई का काम करना चाहिए।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिये-
1. आज धर्म और ईमान के नाम पर कौन-कौन से ढोंग किये जाते हैं?
उत्तर
आज धर्म और ईमान के नाम पर उत्पात, जिद और झगडे करवाये जाते हैं। अपने स्वार्थ को पूरा करने लिए धर्म को साधन बनाया जाता है और दंगे कराये जाते हैं। आम आदमी धर्म को जाने या ना जाने परन्तु धर्म के नाम पर जान देने और लेने के लिए तैयार हो जाता है।
2. पाश्चात्य देशों और हमारे देश में क्या अंतर है? पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर
पाश्चात्य देशों में धन का बोलबाला है। वहाँ धनी लोग गरीब लोगों को धन दिखाकर उनका शोषण करते हैं। हमारे देश में धन का उतना ज़ोर नहीं है। यहाँ कुछ लोग बुद्धि पर पर्दा डाल धर्म के नाम पर स्वार्थ सिद्धि के लिए लोगों को आपस में भिड़ाते हैं।
3. लेखक के अनुसार धर्म की भावना कैसी होनी चाहिए?
उत्तर
लेखक के अनुसार धर्म का विषय व्यक्ति के मन के ऊपर हो। जिसका मन जिस प्रकार चाहे उसी प्रकार का धर्म माने। यह आत्मा को शुद्ध करने और ऊँचा उठाने का साधन है। यह किसी दूसरे व्यक्ति की स्वाधीनता को छीनने या कुचलने का साधन ना बने।
4. अजाँ देने, शंख बजाने, नाक दबाने और नमाज़ पढ़ने का नाम धर्म नहीं है। पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
घंटों पूजा कर, शंख बजाकर और पंच-वक्ता नमाज़ अदा कर कोई सच्चा धार्मिक नहीं हो जाता। ऐसा करने के बाद अगर व्यक्ति बुरे काम में लिप्त है तो यह धर्म का पालन नहीं हुआ। शुद्धाचरण और सदाचरण ही सच्चा धर्म है। अगर आपका आचरण अच्छा नहीं है तो पूजा-पाठ और नमाज़ अदायगी व्यर्थ के कार्य हैं।
NCERT Solutions for Class 9th: पाठ 8 - शुक्र तारे के समान स्पर्श भाग-1 हिंदी
स्वामी आनंद
पृष्ठ संख्या: 76
प्रश्न अभ्यास
मौखिक
निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए -
1. महादेव भाई अपना परिचय किस रूप में देते थे?
उत्तर
महादेव भाई अपना परिचय गांधीजी के 'हम्माल' तथा 'पीर-बावर्ची-खर' के रूप में देते थे।
2. 'यंग इंडिया' साप्ताहिक में लेखों की कमी क्यों रहने लगी थी?
उत्तर
'यंग इंडिया' साप्ताहिक के मुख्य लेखक हार्नीमैन को अंग्रेज़ सरकार ने देश निकाला इंग्लैंड भेज दिया इसलिए लेखों की कमी रहने लगी थी।
3.गांधीजी ने 'यंग इंडिया' प्रकाशित करने के विषय में क्या निश्चय किया?
उत्तर
गांधीजी ने 'यंग इंडिया' प्रकाशित करने के विषय में यह निश्चय किया कि यह हफ्ते में दो बार छपेगी।
4. गांधीजी से मिलने से पहले महादेव भाई कहाँ नौकरी करते थे?
उत्तर
गांधीजी से मिलने से पहले महादेव भाई सरकार के अनुवाद विभाग में नौकरी करते थे।
5. महादेव भाई के झोलों में क्या भरा रहता था?
उत्तर
महादेव भाई के झोलों में समाचार पत्र, मासिक पत्रिकाएँ पत्र और पुस्तकें भरी रहती थीं।
6. महादेव भाई ने गांधीजी की कौन-सी प्रसिद्ध पुस्तक का अनुवाद किया था?
उत्तर
महादेव जी ने गांधीजी द्वारा लिखित 'सत्य के प्रयोग' का अंग्रेजी में अनुवाद किया था।
7. अहमदाबाद से कौन-से दो साप्ताहिक निकलते थे?
उत्तर
अहमदाबाद से यंग इंडिया और नवजीवन नामक दो साप्ताहिक निकलते थे।
8. महादेव भाई दिन में कितनी देर काम करते थे?
उत्तर
महादेव भाई दिन में 17-18 घंटे काम करते थे।
9. महादेव भाई से गांधीजी की निकटता किस वाक्य से सिद्ध होती है?
उत्तर
महादेव भाई से गांधीजी की निकटता निम्न वाक्य से सिद्ध होती है −'ए रे जख्म जोगे नहि जशे' − यह घाव कभी योग से भरेगा नहीं।
लिखित
निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर (25-30) शब्दों लिखिए -
1. गांधीजी ने महादेव को अपना वारिस कब कहा था?
उत्तर
गांधीजी जब 1919 में जलियाँ वाल बाग हत्याकांड के बाद पंजाब जा रहे थे तो पलवल रेलवे स्टेशन पर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। तभी गांधीजी ने महादेव भाई को अपना वारिस कहा था।
2. गाँधीजी से मिलने आनेवालों के लिए महादेव भाई क्या करते थे?
उत्तर
गाँधीजी से मिलने आनेवालों से महादेव जी खुद मिलते थे, उनकी समस्याएँ सुनते, उनकी संक्षिप्त टिप्पणी तैयार करते और गांधीजी को बताते। इसके बाद वे आने वालों को गांधीजी से मिलवाते थे।
3. महादेव भाई की साहित्यिक देन क्या है?
उत्तर
महादेव भाई ने 'सत्य का प्रयोग' का अंग्रेज़ी अनुवाद किया जो कि गांधीजी की आत्मकथा थी। वे प्रतिदिन डायरी लिखते थे। शरद बाबू, टैगोर आदि की कहानियों का भी अनुवाद किया, 'यंग इंडिया' में लेख लिखे।
4. महादेव भाई की अकाल मृत्यु का कारण क्या था?
उत्तर
महादेव भाई भरी गर्मी में वर्घा से पैदल चलकर सेवाग्राम आते थे और जाते थे। 11 मील रोज़ गर्मी में पैदल चलने से स्वास्थय पर बुरा प्रभाव पड़ा और उनकी अकाल मृत्यु हो गई।
5. महादेव भाई के लिखे नोट के विषय में गांधीजी क्या कहते थे?
उत्तर
महादेव भाई के लिखे नोट के विषय में गांधीजी कहते थे कि वे सटीक होते हैं। उनमें कभी कोमा तक की गलती भी नहीं होती है। अगर किसी की टाइप करवाई हुई बातचीत में खामियां निकल जाती तो गांधीजी उन्हें कहते महादेव के लिखे नोट से मिलान कर लेना चाहिए था ना।
पृष्ठ संख्या: 77
(ख) निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर (50-60) शब्दों लिखिए -
1. पंजाब में फ़ौजी शासन ने क्या कहर बरसाया?
उत्तर
पंजाब में फ़ौजी शासन ने अधिकतर नेताओं को गिरफ्तार करके, जन्म-क़ैद की सजाएँ देकर कालापानी भेज दिया। राष्ट्रीय दैनिक पत्र 'ट्रिब्यून' के संपादक को 10 साल की सज़ा मिली।
2. महादेव जी के किन गुणों ने उन्हें सबका लाड़ला बना दिया था?
उत्तर
महादेव जी प्रतिभा संपन्न व्यक्ति थे। वे कर्तव्यनिष्ठ थे, विन्रम स्वभाव के थे, आने वालों के साथ सहयोग करते थे। उनकी लेखन शैली का सभी लोहा मानते थे। वे कट्टर विरोधियों के साथ भी सत्यनिष्ठता और विवेक युक्त बात करते थे। देश में ही नहीं विदेश में भी लोकप्रिय थे। इन्हीं सब करणों से वे सबके लाडले थे।
3. महादेव जी की लिखावट की क्या विशेषताएँ थीं ?
उत्तर
महादेव जी की लिखावट बहुत सुंदर थी। उनके अक्षरों का कोई सानी नहीं था। उनके लिखे नोटों में कॉमा- हलंत तक की गलती नही होती थी। वाइसराय को जाने वाले पत्र गांधीजी हमेशा महादेव जी से ही लिखाते थे। उनका लेखन सबको मंत्रमुग्ध कर देता था। बड़े-बड़े सिविलियन और गवर्नर कहा करते थे कि सारी ब्रिटिश सर्विसों में उनके समान अक्षर लिखने वाला कोई नहीं था।
(ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए −
1. 'अपना परिचय उनके 'पीर-बावर्ची-भिश्ती-खर' के रूप में देने में वे गौरवान्वित महसूस करते थे।'
उत्तर
महादेव जी गांधीजी के मंत्री थे। वे गांधीजी के छोटे-बड़े सभी कार्य कुशलता पूर्वक करते थे। इसी कारण वे स्वयं को गांधीजी के 'पीर-बावर्ची-भिश्ती-खर' कहते थे और उसमें गौरव का अनुभव करते थे।
2. इस पेशे में आमतौर पर स्याह को सफ़ेद और सफ़ेद को स्याह करना होता था।
उत्तर
वकालत पेशे का काम झूठ को सच और सच को झूठ सिद्ध करना होता है। इसमें पूरी सच्चाई से काम नहीं होता था ।
3. देश और दुनिया को मुग्ध करके शुक्रतारे की तरह ही अचानक अस्त हो गए।
उत्तर
जिस तरह शुक्रतारा थोड़े समय में ही अपनी छटा से मोहित कर देता है और फिर छिप जाता है उसी प्रकार महादेव जी भी थोड़े ही समय में अपनी कार्यकुशलता से सबके लाडले बन गए परन्तु अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए।
4. उन पत्रों को देख देखकर दिल्ली और शिमला में बैठे वाइसराय लंबी साँस उसाँस लेते रहते थे।
उत्तर
गांधीजी के पत्र हमेशा महादेव जी की लिखावट में लिखे जाते थे। जिन पत्रों को गांधीजी दिल्ली और शिमला में बैठे वाइसराय को भेजते उन पत्रों की लिखावट की सुन्दरता देखकर वे भी दांग रह जाते।
भाषा अध्यन
1. 'इक' प्रत्यय लगाकर शब्दों का निर्माण कीजिए −
| |सप्ताह |- |साप्ताहिक |
| |साहित्य |- |.............. |
| |व्यक्ति |- |.............. |
| |राजनीति |- |.............. |
| |अर्थ |- |.............. |
| |धर्म |- |.............. |
| |मास |- |.............. |
| |वर्ष |- |.............. |
उत्तर
|1. |सप्ताह |- |साप्ताहिक |
|2. |साहित्य |- |साहित्यिक |
|3. |व्यक्ति |- |वैयक्तिक |
|4. |राजनीति |- |राजनीतिक |
|5. |अर्थ |- |आर्थिक |
|6. |धर्म |- |धार्मिक |
|7. |मास |- |मासिक |
|8. |वर्ष |- |वार्षिक |
2. नीचे दिए गए उपसर्गों का उपयुक्त प्रयोग करते हुए शब्द बनाइए − अ, नि, अन, दुर, वि, कु, पर, सु, अधि
|आर्य |- |.............. |आगत |- |.............. |
|डर |- |.............. |आकर्षण |- |.............. |
|क्रय |- |.............. |मार्ग |- |.............. |
|उपस्थित |- |.............. |लोक |- |.............. |
|नायक |- |.............. |भाग्य |- |.............. |
उत्तर
|आर्य |- |अनार्य | |
|डर |- |निडर | |
|क्रय |- |विक्रय | |
|उपस्थित |- |अनुपस्थित | |
|नायक |- |अधिनायक | |
|आगत |- |स्वागत | |
|आकर्षण |- |अनाकर्षण | |
|मार्ग |- |कुमार्ग | |
|लोक |- |परलोक | |
|भाग्य |- |सौभाग्य | |
| | |
पृष्ठ संख्या: 78
3.निम्नलिखित मुहावरों का अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए −
|आड़े हाथों लेना |अस्त हो जाना |
|दाँतों तले अँगुली दबाना |मंत्र मुग्ध करना |
|लोहे के चने चबाना | |
उत्तर
1. आड़े हाथों लेना - पुलिस ने चोर को आड़े हाथों ले लिया।
2. दाँतों तले अँगुली दबाना − पाँच वर्ष के बालक को कम्प्यूटर पर काम करते देखा तो सबने दाँतों तले अँगुली दबा ली।
3. लोहे के चने चबाना − आतंकवादियों ने अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश को भी लोहे के चने चबवा दिए।
4. अस्त हो जाना − बहुत मेहनत के बाद भारतीय अंग्रेजी राज्य के सूर्य को अस्त करने में सफल रहे।
5. मंत्र-मुग्ध करना − उसने अपने भाषण से सबको मंत्रमुग्ध कर दिया।
4. निम्नलिखित शब्दों के पर्याय लिखिए −
|वारिस |- |.............. |जिगरी |- |.............. |कहर |- |.............. |
|मुकाम |- |.............. |रूबरू |- |.............. |फ़र्क |- |.............. |
|तालीम |- |.............. |गिरफ़्तार |- |.............. | | | |
उत्तर
|वारिस |- |वंश, उत्तराधिकारी |
|मुकाम |- |लक्ष्य, मंज़िल |
|तालीम |- |शिक्षा, ज्ञान, सीख |
|जिगरी |- |पक्का, घनिष्ठ |
|फ़र्क |- |अंतर, भेद |
|गिरफ़्तार |- |कैद, बंदी |
5. उदाहरण के अनुसार वाक्य बदलिए − उदाहरण : गाँधीजी ने महादेव भाई को अपना वारिस कहा था।
गाँधीजी महादेव भाई को अपना वारिस कहा करते थे।
1. महादेव भाई अपना परिचय 'पीर-बावर्ची-भिश्ती-खर' के रूप में देते थे।
2. पीड़ितों के दल-के-दल ग्रामदेवी के मणिभवन पर उमड़ते रहते थे।
3. दोनों साप्ताहिक अहमदाबाद से निकलते थे।
4. देश-विदेश के समाचार-पत्र गांधीजी की गतिविधियों पर टीका-टिप्पणी करते थे।
5. गांधीजी के पत्र हमेशा महादेव की लिखावट में जाते थे।
उत्तर
1. महादेव भाई अपना परिचय 'पीर-बावर्ची-भिश्ती-खर' के रूप में दिया करते थे।
2. पीड़ितों के दल-के-दल ग्रामदेवी के मणिभवन पर उमड़ा करते थे।
3. दोनों साप्ताहिक अहमदाबाद से निकला करते थे।
4. देश-विदेश के समाचार-पत्र गांधीजी की गतिविधियों पर टीका-टिप्पणी किया करते थे।
5. गांधीजी के पत्र हमेशा महादेव की लिखावट में जाया करते थे।
पाठ का सार
प्रस्तुत पाठ ‘शुक्र तारे के समान’ में लेखक ने गाँधी जी के निजी सचिव महादेव भाई देसाई की बेजोड़ प्रतिभा और व्यस्ततम दिनचर्या को उकेरा है। उन्होंने महादेव भाई की तुलना शुक्र तारे से की है जो सारे आकाश को जगमगा कर, दुनिया को मुग्ध करके अस्त हो जाता है। सन 1917 में में वे गांधीजी से मिले तब गांधीजी ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी का पद सौंप दिया। सन 1919 में जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड के दिनों में गांधीजी ने गिरफ्तार होते समय महादेव जी को अपना वारिस कहा था। उन दिनों गांधीजी के सामने अंग्रेज़ों द्वारा अत्याचारों और जुल्मो की जो दल कहानियाँ सुनाने आते थे, महादेव भाई उनकी संक्ष्पित टिप्पणियाँ बनाकर उन्हें रु-बू-रु मिलवाते थे।
'क्रॉनिकल' के संपादक हार्नीमैन को देश निकाले की सजा मिलने पर 'यंग इंडिया' साप्ताहिक में लेखों की कमी पड़ने लगी चूँकि हार्नीमैन ही मुख्य रूप से लेख लिखते थे। इसीलिए ये जिमेदारी गांधीजी ने ले ली, बाद में उनका काम बढ़ने के कारण इस अखबार को सप्ताह में दो बार निकालना पड़ा। कुछ दिन बाद अखबार की जिमेवारी लेखक के हाथों में आ गयी। महादेव भाई और गांधीजी का सारा समय देश-भम्रण में बीतने लगा, परन्तु महादेव जी जहाँ भी होते समय निकालकर लेख लिखते और भेजते। महादेव भाई गांधीजी के यात्राओं और दिन प्रतिदिन की गतिविधियों के बारे में लिखते, साथ ही देश-विदेश के समाचारों को पढ़कर उसपर टिका-टिप्पणियाँ भी लिखते।अपने तीर्व बुद्धि के कारण देसी-विदेशी समाचार पत्र वालों के ये लाड़ले बन गए। गांधीजी के पास आने से पहले ये सरकार के अनुवाद विभाग में नौकरी करते थे। इन्होने कई साहित्यों का अनुवाद किया था।
गांधीजी के पत्रों में महादेव भाई की लिखावट होती थी। उनकी लिखावट लम्बी सी जेट की गति सी लिखी जाती थी, वे शॉर्टहैंड नही जानते थे, परन्तु उनकी लेखनी में कॉमा मात्र की भी गलती नही होती थी इसलिए गांधीजी भी अपने मिलने वालों से बातचीत को उनकी नोटबुक से मिलान करने को कहते थे। वे अपने बड़े-बड़े झोलों में ताजे समाचार पात्र और पुस्तकें रखा करते जिसे वे रेलगाड़ी, रैलियों तथा सभाओं में पढ़ते थे या फिर 'नवजीवन' या 'यंग इंडिया' के लिए लेख लिखते रहते। वे इतने वयस्थ समय में अपने लिए कब वक्त निकालते पता नही चलता, एक घंटे में चार घंटो का काम निपटा देते। महादेव भाई गांधीजी के जीवन में इतने रच-बस-गए थे की उनके बिना महदेव भाई की अकेले कल्पना नही की जा सकती।
उन्होंने गांधीजी की पुस्तक 'सत्य का प्रयोग' का अंग्रेजी अनुवाद भी किया। सन 1934-35 में गांधीजी मगनवाड़ी से चलकर सेगांव चले गए परन्तु महादेव जी मगंवादी में ही रहे। वे रोज वहां से पैदल चलकर सेगांव जाते तथा शाम को काम निपटाकर वापस आते, जो की कुल 11 मिल था। इस कारण उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा और वे अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए। इनके मृत्यु का दुःख गांधीजी को आजीवन रहा।
लेखक परिचय
स्वामी आनंद
इनका जन्म गुजरात के कठियावाड़ जिले के किमड़ी गाँव में सन 1887 को हुआ। इनका मूल नाम हिम्मतलाल था। जब ये दस साल के थे तभी कुछ साधु इन्हें अपने साथ हिमालय की ओर ले गए और इनका नामकरण किया – स्वामी आनंद। १९०७ में स्वामी आनंद स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ गए। 1917 में गाँधे जी के संसर्ग में आने के बाद उन्हीं के निदेशन में ‘ नवजीवन’ और ‘ यंग इंडिया ’ के प्रसार व्यवस्था संभाल ली। इसी बहाने उन्हें गाँधी जी और उनके निजी सहयोगी महादेव भाई देसाई और बाद में प्यारेलाल जी को निकट से जानने का अवसर मिला।
कठिन शब्दों के अर्थ
• नक्षत्र-मंडल – तारा समूह
• कलगी रूप – तेज़ चमकने वाला तारा
• हम्माल – कुली
• पीर – महात्मा
• बावर्ची – रसोइया
• भिश्ती – मसक से पानी ढोने वाला व्यक्ति
• खर – गधा
• आसेतुहिमाचल - सेतुबंध रामेश्वर से हिमाचल तक विस्तीर्ण
• ब्योरा – विवरण
• रूबरू – आमने-सामने
• धुरंधर - प्रवीण
• कट्टर – दॄढ़
• चौकसाई - नजर रखना
• पेशा – व्यवसाय
• स्याह – काला
• सल्तनत – राज्य
• अद्यतन – अब तक का
• गाद – तलछट
• सानी – उसी जोड़ का दूसरा
• अनायास – बिना किसी प्रयास के
NCERT Solutions for Class 9th: पाठ 9 - अब कैसे छूटे राम नाम ... ऐसी लाल तुझ बिनु ... स्पर्श भाग-1 हिंदी
रैदास
पृष्ठ संख्या: 89
प्रश्न अभ्यास
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए −
(क) पहले पद में भगवान और भक्त की जिन-जिन चीज़ों से तुलना की गई है, उनका उल्लेख कीजिए।
(ख) पहले पद की प्रत्येक पंक्ति के अंत में तुकांत शब्दों के प्रयोग से नाद-सौंदर्य आ गया है, जैसे- पानी, समानी आदि। इस पद में से अन्य तुकांत शब्द छाँटकर लिखिए।
(ग) पहले पद में कुछ शब्द अर्थ की दृष्टि से परस्पर संबद्ध हैं। ऐसे शब्दों को छाँटकर लिखिए −
|उदाहरण : |दीपक |बाती |
| |................ |............. |
| |................ |.............. |
| |.................|.............. |
| |.................|.............. |
(घ) दूसरे पद में कवि ने 'गरीब निवाजु' किसे कहा है? स्पष्ट कीजिए।
(ङ) दूसरे पद की 'जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै' इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
(च) 'रैदास' ने अपने स्वामी को किन-किन नामों से पुकारा है?
(छ) निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप लिखिए −
मोरा, चंद, बाती, जोति, बरै, राती, छत्रु, धरै, छोति, तुहीं, गुसइआ
उत्तर
(क) पहले पद में भगवान और भक्त की तुलना निम्नलिखित चीज़ों से की गई हैं−
(1) भगवान की घन बन से, भक्त की मोर से
(2) भगवान की चंद्र से, भक्त की चकोर से
(3) भगवान की दीपक से, भक्त की बाती से
(4) भगवान की मोती से, भक्त की धागे से
(5) भगवान की सुहागे से, भक्त की सोने से
(6) भगवान की चंदन से, भक्त की पानी से
(ख)
|मोरा |चकोरा |
|दासा |रैदासा |
|बाती |राती |
|धागा |सुहागा |
(ग)
|मोती |धागा |
|घन बन |मोर |
|सुहागा |सोना |
|चंदन |पानी |
|दासा |स्वामी |
(घ) 'गरीब निवाजु' का अर्थ है, गरीबों पर दया करने वाला। कवि ने भगवान को 'गरीब निवाजु' कहा है क्योंकि ईश्वर ही गरीबों का उद्धार करते हैं, सम्मान दिलाते हैं, सबके कष्ट हरते हैं और भवसागर से पार उतारते हैं।
(ङ) 'जाकी छोति जगत कउ लागै' का अर्थ है जिसकी छूत संसार के लोगों को लगती है और 'ता पर तुहीं ढरै' का अर्थ है उन पर तू ही (दयालु) द्रवित होता है। पूरी पंक्ति का अर्थ है गरीब और निम्नवर्ग के लोगों को समाज सम्मान नहीं देता। उनसे दूर रहता है। परन्तु ईश्वर कोई भेदभाव न करके उन पर दया करते हैं, उनकी मद्द करते हैं, उनकी पीड़ा हरते हैं।
(च) रैदास ने अपने स्वामी को गुसईया, गरीब निवाज़, गरीब निवाज़ लाला प्रभु आदि नामों से पुकारा है।
(छ)
|मोरा |- |मोर |
|चंद |- |चन्द्रमा |
|बाती |- |बत्ती |
|बरै |- |जले |
|राती |- |रात |
|छत्रु |- |छत्र |
|धरै |- |रखे |
|छोति |- |छुआछूत |
|तुहीं |- |तुम्हीं |
|राती |- |रात |
|गुसइआ |- |गौसाई |
2. नीचे लिखी पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए −
(क)जाकी अँग-अँग बास समानी
(ख)जैसे चितवत चंद चकोरा
(ग)जाकी जोति बरै दिन राती
(घ)ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै
(ङ)नीचहु ऊच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै
उत्तर
(क) कवि के अंग-अंग मे राम-नाम की सुगंध व्याप्त हो गई है। जैसे चंदन के पानी में रहने से पानी में उसकी सुगंध फैल जाती है, उसी प्रकार राम नाम के लेप की सुगन्धि उसके अंग-अंग में समा गयी है।
(ख) चकोर पक्षी अपने प्रिय चाँद को एकटक निहारता रहता है, उसी तरह कवि अपने प्रभु राम को भी एकटक निहारता रहता है। इसीलिए कवि ने अपने को चकोर कहा है।
(ग) ईश्वर दीपक के समान है जिसकी ज्योति हमेशा जलती रहती है। उसका प्रकाश सर्वत्र सभी समय रहता है।
(घ) भगवान को लाल कहा है कि भगवान ही सबका कल्याण करता है इसके अतिरिक्त कोई ऐसा नहीं है जो गरीबों को ऊपर उठाने का काम करता हो।
(ङ) कवि का कहना है कि ईश्वर हर कार्य को करने में समर्थ हैं। वे नीच को भी ऊँचा बना लेता है। उनकी कृपा से निम्न जाति में जन्म लेने के उपरांत भी उच्च जाति जैसा सम्मान मिल जाता है।
3. रैदास के इन पदों का केंद्रीय भाव अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
पहले पद का केंद्रिय भाव − जब भक्त के ह्रदय में एक बार प्रभु नाम की रट लग जाए तब वह छूट नहीं सकती। कवि ने भी प्रभु के नाम को अपने अंग-अंग में समा लिया है। वह उनका अनन्य भक्त बन चुका है। भक्त और भगवान दो होते हुए भी मूलत: एक ही हैं। उनमें आत्मा परमात्मा का अटूट संबंध है।
दूसरे पद में − प्रभु सर्वगुण सम्पन्न सर्वशक्तिमान हैं। वे निडर है तथा गरीबों के रखवाले हैं। ईश्वर अछूतों के उद्धारक हैं तथा नीच को भी ऊँचा बनाने वाले हैं।
व्याख्या
(1)
अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी।
प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी , जाकी अँग-अँग बास समानी।
प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा , जैसे चितवत चंद चकोरा।
प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती , जाकी जोति बरै दिन राती।
प्रभु जी, तुम मोती हम धागा , जैसे सोनहिं मिलत सुहागा।
प्रभु जी, तुम तुम स्वामी हम दासा , ऐसी भक्ति करै रैदासा।
प्रभु! हमारे मन में जो आपके नाम की रट लग गई है, वह कैसे छूट सकती है? अब मै आपका परम भक्त हो गया हूँ। जिस तरह चंदन के संपर्क में रहने से पानी में उसकी सुगंध फैल जाती है, उसी प्रकार मेरे तन मन में आपके प्रेम की सुगंध व्याप्त हो गई है । आप आकाश में छाए काले बादल के समान हो, मैं जंगल में नाचने वाला मोर हूँ। जैसे बरसात में घुमडते बादलों को देखकर मोर खुशी से नाचता है, उसी भाँति मैं आपके दर्शन् को पा कर खुशी से भावमुग्ध हो जाता हूँ। जैसे चकोर पक्षी सदा अपने चंद्रामा की ओर ताकता रहता है उसी भाँति मैं भी सदा आपका प्रेम पाने के लिए तरसता रहता हूँ।
हे प्रभु ! आप दीपक हो और मैं उस दिए की बाती जो सदा आपके प्रेम में जलता है। प्रभु आप मोती के समान उज्ज्वल, पवित्र और सुंदर हो और मैं उसमें पिरोया हुआ धागा हूँ। आपका और मेरा मिलन सोने और सुहागे के मिलन के समान पवित्र है । जैसे सुहागे के संपर्क से सोना खरा हो जाता है, उसी तरह मैं आपके संपर्क से शुद्ध हो जाता हूँ। हे प्रभु! आप स्वामी हो मैं आपका दास हूँ।
(2)
ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै।
गरीब निवाजु गुसाईआ मेरा माथै छत्रु धरै॥
जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै।
नीचउ ऊच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै॥
नामदेव कबीरू तिलोचनु सधना सैनु तरै।
कहि रविदासु सुनहु रे संतहु हरिजीउ ते सभै सरै॥
हे प्रभु ! आपके बिना कौन कृपालु है। आप गरीब तथा दिन – दुखियों पर दया करने वाले हैं। आप ही ऐसे कृपालु स्वामी हैं जो मुझ जैसे अछूत और नीच के माथे पर राजाओं जैसा छत्र रख दिया। आपने मुझे राजाओं जैसा सम्मान प्रदान किया। मैं अभागा हूँ। मुझ पर आपकी असीम कृपा है। आप मुझ पर द्रवित हो गए । हे स्वामी आपने मुझ जैसे नीच प्राणी को इतना उच्च सम्मान प्रदान किया। आपकी दया से नामदेव , कबीर जैसे जुलाहे , त्रिलोचन जैसे सामान्य , सधना जैसे कसाई और सैन जैसे नाई संसार से तर गए। उन्हें ज्ञान प्राप्त हो गया। अंतिम पंक्ति में रैदास कहते हैं – हे संतों, सुनो ! हरि जी सब कुछ करने में समर्थ हैं। वे कुछ भी सकते हैं।
कवि परिचय
रैदास
इनका जन्म सन 1388 और देहावसान सन 1518 में बनारस में ही हुआ, ऐसा माना जाता है। मध्ययुगीन साधकों में इनका विशिष्ट स्थान है। कबीर की तरह रैदास भी संत कोटि के कवियों में गिने जाते हैं। मूर्तिपूजा, तीर्थयात्रा जैसे दिखावों में रैदास का ज़रा भी विश्वास न था। वह व्यक्ति की आंतरिक भावनाओं और आपसी भाईचारे को ही सच्चा धर्म मानते थे।
कठिन शब्दों के अर्थ
• बास – गंध
• घन – बादल
• चितवत – देखना
• चकोर – तीतर की जाति का एक पक्षी जो चंद्रमा का परम प्रेमी माना जाता है।
• बरै – बढ़ाना या जलना
• सुहागा – सोने को शुद्ध करने के लिए प्रयोग में आने वाला क्षार द्रव्य
• लाल – स्वामी
• ग़रीब निवाजु – दीन-दुखियों पर दया करने वाला
• माथै छत्रु धरै – मस्तक पर स्वामी होने का मुकुट धारन करता है
• छोति – छुआछूत
• जगत कौ लागै – संसार के लोगों को लगती है
• हरिजीऊ – हरि जी से
• नामदेव – महाराष्ट्र के एक प्रसिद्ध संत
• तिलोचनु – एक प्रसिद्ध वैष्णव आचार्य जो ज्ञानदेव और नामदेव के गुरु थे।
• सधना – एक उच्च कोटि के संत जो नामदेव के समकालीन माने जाते हैं।
• सैनु – रामानंद का समकालीन संत।
• हरिजीउ - हरि जी से
• सभै सरै - सबकुछ संभव हो जाता है
NCERT Solutions for Class 9th: पाठ 10 - दोहे स्पर्श स्पर्श भाग-1 हिंदी
रहीम
पृष्ठ संख्या: 94
प्रश्न अभ्यास
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिये -
(क) प्रेम का धागा टूटने पर पहले की भांति क्यों नही हो पाता?
उत्तर
प्रेम का धागा एक बार टूटने के बाद उसे दुबारा जोड़ा जाए तो उसमे गाँठ पड़ जाती है। वह पहले की भाँती नही जुड़ पाती, इसमें अविश्वास और संदेह की दरार पड़ जाती है।
(ख) हमें अपना दुख दूसरों पर क्यों नहीं प्रकट करना चाहिए? अपने मन की व्यथा दूसरों से कहने पर उनका व्यवहार कैसा हो जाता है?
उत्तर
हमें अपना दुख दूसरों पर इसलिए प्रकट नही करना चाहिए क्योंकि इससे कोई लाभ नही है। अपने मन की व्यथा दूसरों से कहने पर वे उसका मजाक उड़ाते हैं।
(ग) रहीम ने सागर की अपेक्षा पंक जल को धन्य क्यों कहा है?
उत्तर
रहीम ने सागर की अपेक्षा पंक जल को धन्य इसलिए कहा है क्योंकि छोटा होने के वावजूद भी वो लोगों और जीव-जंतुओं की प्यास को तृप्त करता है। सागर विशाल होने के बाद भी किसी की प्यास नही बुझा पाता।
(घ) एक को साधने से सब कैसे सध जाता है?
उत्तर
कवि की मान्यता है कि ईश्वर एक है। उसकी ही साधना करनी चाहिए। वह मूल है। उसे ही सींचना चाहिए। जैसे जड़ को सीचने से फल फूल मिल जाते हैं उसी तरह एक ईश्वर को पूजने से सभी काम सफल हो जाते हैं। केवल एक ईश्वर की साधना पर ध्यान लगाना चाहिए।
(ड़) जलहीन कमल की रक्षा सूर्य भी क्यों नही कर पाता?
उत्तर
जलहीन कमल की रक्षा सूर्य भी इसलिए नही कर पाता क्योंकि उसके पास अपना कोई सामर्थ्य नही होता। कोई भी उसी की मदद करता है जिसके पास आंतरिक बल होता है नही तो कोई मदद करने नही आता।
(च) अवध नरेश को चित्रकूट क्यों जाना पड़ा?
उत्तर
अपने पिता के वचन को निभाने के लिए अवध नरेश को चित्रकूट जाना पड़ा।
(छ) 'नट' किस कला में सिद्ध होने के कारण ऊपर चढ़ जाता है?
उत्तर
'नट' कुंडली मारने की कला में सिद्ध कारण ऊपर चढ़ जाता है।
(ज)'मोती, मानुष, चून' के संदर्भ में पानी के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
मोती' के संदर्भ में अर्थ है चमक या आब इसके बिना मोती का कोई मूल्य नहीं है। 'मानुष' के संदर्भ में पानी का अर्थ मान सम्मान है मनुष्य का पानी अर्थात सम्मान समाप्त हो जाए तो उसका जीवन व्यर्थ है। 'चून' के संदर्भ में पानी का अर्थ अस्तित्व से है। पानी के बिना आटा नहीं गूँथा जा सकता। आटे और चूना दोनों में पानी की आवश्यकता होती है।
2. निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए −
(क) टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय।
उत्तर
कवि इस पंक्ति द्वारा बता रहा है की प्रेम का धागा एक बार टूट जाने पर फिर से जुड़ना कठिन होता है। अगर जुड़ भी जाए तो पहले जैसा प्रेम नही रह जाता। एक-दूसरे के प्रति अविश्वास और शंका होती रहती है।
(ख) सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय।
उत्तर
कवि का कहना है कि अपने दुखों को किसी को बताना नही चाहिए। दूसरे लोग सहायता नही करेंगे और उसका मजाक भी उड़ायेंगे।
(ग) रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय।
उत्तर
इन पंक्तियों द्वारा कवि एक ईश्वर की आराधना पर ज़ोर देते हैं। इसके समर्थन में कवि वृक्ष की जड़ का उदाहरण देते हैं कि जड़ को सींचने से पूरे पेड़ पर पर्याप्त प्रभाव हो जाता है। अलग-अलग फल, फूल, पत्ते सींचने की आवश्यकता नहीं होती।
(घ) दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं।
उत्तर
दोहा एक ऐसा छंद है जिसमें अक्षर कम होते हैं पर उनमें बहुत गहरा अर्थ छिपा होता है।
(ङ) नाद रीझि तन देत मृग, नर धन हेत समेत।
उत्तर
जिस तरह संगीत की मोहनी तान पर रीझकर हिरण अपने प्राण तक त्याग देता है। इसी प्रकार मनुष्य धन कला पर मुग्ध होकर धन अर्जित करने को अपना उद्देश्य बना लेता है और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए वो सब कुछ त्यागने को भी तैयार हो जाता है।
(च) जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तरवारि।
उत्तर
हरेक छोटी वस्तु का अपना अलग महत्व होता है। कपडा सिलने का कार्य तलवार नही कर सकता वहां सुई ही काम आती है। इसलिए छोटी वस्तु की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए।
(च) पानी गए न उबरै, मोती, मानुष, चून।
उत्तर
जीवन में पानी के बिना सब कुछ बेकार है। इसे बनाकर रखना चाहिए, जैसे चमक या आब के बिना मोती बेकार है, पानी अर्थात सम्मान के बिना मनुष्य का जीवन बेकार है और बिना पानी के आटा या चूना को गुंथा नही जा सकता। इस पंक्ति में पानी की महत्ता को स्पष्ट किया गया है।
पृष्ठ संख्या: 95
3. निम्नलिखित भाव को पाठ में किन पंक्तियों द्वारा अभिव्यक्त किया गया है −
(क) जिस पर विपदा पड़ती है वही इस देश में आता है।
− ''जा पर बिपदा पड़त है, सो आवत यह देस।''
(ख) कोई लाख कोशिश करे पर बिगड़ी बात फिर बन नहीं सकती।
− ''बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय।''
(ग) पानी के बिना सब सूना है अत: पानी अवश्य रखना चाहिए।
− ''रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून।''
4. उदाहरण के आधार पर पाठ में आए निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप लिखिए −
उदाहण : कोय − कोई , जे - जो
|ज्यों |---------------- |कछु |---------------- |
|नहिं |---------------- |कोय |---------------- |
|धनि |---------------- |आखर |---------------- |
|जिय |---------------- |थोरे |---------------- |
|होय |---------------- |माखन |---------------- |
|तरवारि |---------------- |सींचिबो |---------------- |
|मूलहिं |---------------- |पिअत |---------------- |
|पिआसो |---------------- |बिगरी |---------------- |
|आवे |---------------- |सहाय |---------------- |
|ऊबरै |---------------- |बिनु |---------------- |
|बिथा |---------------- |अठिलैहैं |---------------- |
|परिजाय |---------------- | |---------------- |
उत्तर
|ज्यों |- |जैसे |कछु |- |कुछ |
|नहि |- |नहीं |कोय |- |कोई |
|धनि |- |धन्य |आखर |- |अक्षर |
|जिय |- |जी |थोरे |- |थोड़े |
|होय |- |होना |माखन |- |मक्खन |
|तरवारि |- |तलवार |सींचिबो |- |सींचना |
|मूलहिं |- |मूल को |पिअत |- |पीना |
|पिआसो |- |प्यासा |बिगरी |- |बिगड़ी |
|आवे |- |आए |सहाय |- |सहायक |
|ऊबरै |- |उबरना |बिनु |- |बिना |
|बिथा |- |व्यथा |अठिलैहैं |- |हँसी उड़ाना |
|परिजाए |- |पड़ जाए | | | |
भावार्थ
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय।
टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय।।
अर्थ - रहीम के अनुसार प्रेम रूपी धागा अगर एक बार टूट जाता है तो दोबारा नहीं जुड़ता। अगर इसे जबरदस्ती जोड़ भी दिया जाए तो पहले की तरह सामान्य नही रह जाता, इसमें गांठ पड़ जाती है।
रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनी इठलैहैं लोग सब, बांटी न लेंहैं कोय।।
अर्थ - रहीम कहते हैं कि अपने दुःख को मन के भीतर ही रखना चाहिए क्योंकि उस दुःख को कोई बाँटता नही है बल्कि लोग उसका मजाक ही उड़ाते हैं।
एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अगाय।।
अर्थ - रहीम के अनुसार अगर हम एक-एक कर कार्यों को पूरा करने का प्रयास करें तो हमारे सारे कार्य पूरे हो जाएंगे, सभी काम एक साथ शुरू कर दियें तो तो कोई भी कार्य पूरा नही हो पायेगा। वैसे ही जैसे सिर्फ जड़ को सींचने से ही पूरा वृक्ष हरा-भरा, फूल-फलों से लदा रहता है।
चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध नरेस।
जा पर बिपदा परत है, सो आवत यह देश।।
अर्थ - रहीम कहते हैं कि चित्रकूट में अयोध्या के राजा राम आकर रहे थे जब उन्हें 14 वर्षों के वनवास प्राप्त हुआ था। इस स्थान की याद दुःख में ही आती है, जिस पर भी विपत्ति आती है वह शांति पाने के लिए इसी प्रदेश में खिंचा चला आता है।
दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं।
ज्यों रहीम नट कुंडली, सिमिट कूदि चढिं जाहिं॥
अर्थ - रहीम कहते हैं कि दोहा छंद ऐसा है जिसमें अक्षर थोड़े होते हैं किंतु उनमें बहुत गहरा और दीर्घ अर्थ छिपा रहता है। जिस प्रकार कोई कुशल बाजीगर अपने शरीर को सिकोड़कर तंग मुँह वाली कुंडली के बीच में से कुशलतापूर्वक निकल जाता है उसी प्रकार कुशल दोहाकार दोहे के सीमित शब्दों में बहुत बड़ी और गहरी बातें कह देते हैं ।
धनि रहीम जल पंक को,लघु जिय पिअत अघाय।
उदधि बड़ाई कौन है,जगत पिआसो जाय।।
अर्थ- रहीम कहते हैं कि कीचड़ का जल सागर के जल से महान है क्योंकि कीचड़ के जल से कितने ही लघु जीव प्यास बुझा लेते हैं। सागर का जल अधिक होने पर भी पीने योग्य नहीं है। संसार के लोग उसके किनारे आकर भी प्यासे के प्यासे रह जाते हैं। मतलब यह कि महान वही है जो किसी के काम आए।
नाद रीझि तन देत मृग, नर धन हेत समेत।
ते रहीम पशु से अधिक, रीझेहु कछु न दे।।
अर्थ - रहीम कहते हैं कि संगीत की तान पर रीझकर हिरन शिकार हो जाता है। उसी तरह मनुष्य भी प्रेम के वशीभूत होकर अपना तन, मन और धन न्यौछावर कर देता है लेकिन वह लोग पशु से भी बदतर हैं जो किसी से खुशी तो पाते हैं पर उसे देते कुछ नहीं है।
बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय।।
अर्थ - रहीम कहते हैं कि मनुष्य को सोच समझ कर व्यवहार करना चाहिए क्योंकि किसी कारणवश यदि बात बिगड़ जाती है तो फिर उसे बनाना कठिन होता है, जैसे यदि एक बार दूध फट गया तो लाख कोशिश करने पर भी उसे मथकर मक्खन नहीं निकाला जा सकेगा।
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।
जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तरवारि।।
अर्थ - रहीम के अनुसार हमें बड़ी वस्तु को देख कर छोटी वस्तु अनादर नहीं करना चाहिए, उनकी भी अपना महत्व होता। जैसे छोटी सी सुई का काम बड़ा तलवार नही कर सकता।
रहिमन निज संपति बिना, कोउ न बिपति सहाय।
बिनु पानी ज्यों जलज को, नहिं रवि सकै बचाय।।
अर्थ - रहीम कहते हैं कि संकट की स्थिति में मनुष्य की निजी धन-दौलत ही उसकी सहायता करती है।जिस प्रकार पानी का अभाव होने पर सूर्य कमल की कितनी ही रक्षा करने की कोशिश करे, फिर भी उसे बचाया नहीं जा सकता, उसी प्रकार मनुष्य को बाहरी सहायता कितनी ही क्यों न मिले, किंतु उसकी वास्तविक रक्षक तो निजी संपत्ति ही होती है।
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून।।
अर्थ - रहीम कहते हैं कि पानी का बहुत महत्त्व है। इसे बनाए रखो। यदि पानी समाप्त हो गया तो न तो मोती का कोई महत्त्व है, न मनुष्य का और न आटे का। पानी अर्थात चमक के बिना मोती बेकार है। पानी अर्थात सम्मान के बिना मनुष्य का जीवन व्यर्थ है और जल के बिना रोटी नहीं बन सकती, इसलिए आटा बेकार है।
कवि परिचय
रहीम
इनका जन्म लाहौर में सन 1556 में हुआ। इनका पूरा नाम अब्दुर्रहीम खानखाना था। रहीम अरबी, फारसी, संस्कृत और अच्छे जानकार थे। अकबर के दरबार में हिंदी कवियों में इनका महत्वपूर्ण स्थान था। रहीम अकबर के नवरत्नों में से एक थे।
कठिन शब्दों के अर्थ
• चटकाय - चटका कर
• बिथा - व्यथा
• गोय - छिपाकर
• अठिलैहैं - मजाक उड़ाना
• सींचिबो - सिंचाई करना
• अघाय - तृप्त
• अरथ - मायने
• थोरे - थोड़ा
• पंक - कीचड़
• उदधि - सागर
• नाद- ध्वनि
• रीझि - मोहित होकर
• मथे - मथना
• निज - अपना
• बिपति - मुसीबत
• पिआसो - प्यासा
• चित्रकूट - वनवास के समय श्री रामचन्द्र जी सीता और लक्ष्मण के साथ कुछ समय तक चित्रकूट में रहे थे।
NCERT Solutions for Class 9th: पाठ 11 - आदमी नामा स्पर्श भाग-1 हिंदी
नज़ीर अकबराबादी
पृष्ठ संख्या: 99
प्रश्न अभ्यास
(क) पहले छंद में कवि की दृष्टि आदमी के किन-किन रूपों का बख़ान करती है? क्रम से लिखिए।
उत्तर
(क) पहले छंद में कवि की दृष्टि आदमी में निम्नलिखित रूपों का बखान करती है−
1. आदमी का बादशाही रूप
2. आदमी का मालदारी रूप
3. आदमी का कमजोरी वाला रूप
4. आदमी का स्वादिष्ट भोजन करने वाला रूप
5. आदमी का सूखी रोटियाँ चबाने वाला रूप
(ख) चारों छंदों में कवि ने आदमी के सकारात्मक और नकारात्मक रूपों को परस्पर किन-किन रूपों में रखा है? अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
चारों छंदो में कवि ने आदमी के सकारात्मक और नकारात्मक रूपों का तुलनात्मक रूप प्रस्तुत किया है −
|सकारात्मक रूप |नकारात्कम रूप |
|1. एक आदमी शाही किस्म के ठाट-बाट भोगता है। |1. दूसरे आदमी को गरीबी में दिन बिताने पड़ते हैं। |
|2. एक आदमी मालामाल होता है |2. दूसरा आदमी कमज़ोर होता जाता है। |
|3. एक स्वादिष्ट भोजन खाता है। |3. दूसरा सूखी रोटियाँ चबाता है। |
|4. एक धर्मस्थलों में धार्मिक पुस्तकें पढ़ता है |4. दूसरा धर्मस्थलों पर जूतियाँ चुराता है। |
|5. एक आदमी जानन्योछावर करता है |5. दूसरा जान से मार डालता है। |
|6. एक शरीफ सम्मानित है |6. दूसरा दुराचारी दुरव्यवहार करने वाला |
(ग) 'आदमी नामा' शीर्षक कविता के इन अंशो को पढ़कर आपके मन में मनुष्य के प्रति क्या धारणा बनती है?
उत्तर
'आदमी नामा' शीर्षक कविता के अंशों को पढ़कर हमारे मन में यह धारणा बनती है कि मुनष्य की अनेक प्रवृतियां है। कोई व्यक्ति धनवान है तो किसी के पास खाने को कुछ नहीं है। कुछ लोग दूसरों की मदद करके खुश होते हैं तो कुछ दूसरों को अपमानित करके। कोई व्यक्ति शरीफ है तो कोई दुष्ट। अतः मनुष्य भाग्य और परिस्थतियों का दास होता है।
(घ) इस कविता का कौन-सा भाग आपको सबसे अच्छा लगा और क्यों?
उत्तर
कविता का यह भाग बहुत अच्छा है −
दुनिया में बादशाह है सो है वह भी आदमी
और मुफ़लिस-ओ-गदा है सो है वो भी आदमी
ज़रदार बेनवा है सो है वो भी आदमी
निअमत जो खा रहा है वो भी आदमी
टुकड़े चबा रहा है सो है वो भी आदमी
इस भाग में कवि ने मनुष्य के विभिन्न रूपों की व्याख्या की है। उन्होंने यह बतलाया है की धनवान और निर्धन दोनों आदमी ही हैं फिर भी उन दोनों में बहुत बड़ा अंतर है। इसी प्रकार पहलवान और कमजोर व्यक्ति भी आदमी ही हैं। सब आदमी होने के वाबजूद कोई रोज़ खाता है तो किसी को भूखा रहना पड़ता है।
(ङ) आदमी की प्रवृतियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
'आदमी नामा' कविता के आधार पर आदमी की प्रवृतियाँ विभिन्न हैं। कुछ लोग बहुत अच्छे होते हैं कुछ लोग बहुत बुरे होते हैं। कुछ मस्ज़िद बनाते हैं, कुरान शरीफ़ का अर्थ बताते हैं तो कुछ वहीं जूतियाँ चुराते हैं। कुछ जान न्योछावर करते हैं, कुछ जान ले लेते हैं। कुछ दूसरों को सम्मान देकर खुश होते हैं तो कुछ अपमानित करके खुशी महसूस करते हैं।
2. निम्नलिखित अंशों को व्याख्या कीजिए −
(क) दुनिया में बादशाह है सो है वह भी आदमी
और मुफ़लिस-ओ-गदा है सो है वो भी आदमी
उत्तर
यही दुनिया कई तरह के लोगों से भड़ी पड़ी है। यहाँ कोई ठाठ -बाट से जी रहा है तो किसी के पास कुछ भी नही है। दोनों की स्थितियों में बहुत बड़ा अंतर है।
(ख) अशराफ़ और कमीने से ले शाह ता वज़ीर
ये आदमी ही करते हैं सब कारे दिलपज़ीर
उत्तर
इस दुनिया में कुछ लोग बहुत ही शरीफ़ होते हैं तो कुछ लोग दुष्ट स्वभाव के। कुछ वजीर, कुछ बादशाह होते हैं। कुछ स्वामी तो कुछ सेवक होते हैं, कुछ लोगों के दिल के बहुत छोटे होते हैं।
3. निम्नलिखित में अभिव्यक्त व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए −
(क) पढ़ते हैं आदमी ही कुरआन और नमाज़ यां
और आदमी ही उनकी चुराते हैं जूतियाँ
जो उनको ताड़ता है सो है वो भी आदमी
उत्तर
इन पंक्तियों में व्यक्ति-व्यक्ति की रूचि और कार्यों में अंतर पर व्यंग्य किया गया है। कोई व्यक्ति मस्जिद में जाकर नमाज अदा करता है तो कोई वहीं पर जूतियाँ चुराता है। कुछ लोग बुराई पर नज़र रखने वाले भी होते हैं। इन सभी कामों को करने वाले आदमी ही करते हैं। मनुष्य के स्वभाव में अच्छाई बुराई दोनों होते हैं परन्तु वह किधर चले यह उस पर ही निर्भर करता है।
(ख) पगड़ी भी आदमी की उतारे है आदमी
चिल्ला के आदमी को पुकारे है आदमी
और सुन के दौड़ता है सो है वो भी आदमी
उत्तर
इन पंक्तियों में मनुष्यों के भिन्न रूपों पर व्यंग्य किया गया है। कोई आदमी दूसरों का अपमानित कर खुशी महसूस करता है तो मदद को पुकारने वाला भी आदमी ही होता है। उसकी पुकार को सुनकर मदद करने वाला भी आदमी होता है। यानी परिस्थति बदलने पर आदमी का स्वरुप भी बदल जाता है।
पृष्ठ संख्या: 100
4. नीचे लिखे शब्दों का उच्चारण कीजिए और समझिए कि किस प्रकार नुक्ते के कारण उनमें अर्थ परिवर्तन आ गया है।
|राज़ (रहस्य) |फ़न (कौशल) |
|राज (शासन) |फन (साँप का मुहँ) |
|ज़रा (थोड़ा) |फ़लक (आकाश) |
|जरा (बुढ़ापा) |फलक (लकड़ी का तख्ता) |
ज़ फ़ से युक्त दो-दो शब्दों को और लिखिए।
उत्तर
|बाज़ |बाज |
|नाज़ |नाज |
|कफ़ |कफ |
|फ़क्र |फक्र |
5. निम्नलिखित मुहावरों का प्रयोग वाक्यों में कीजिए −
(क) टुकड़े चबाना
(ख) पगड़ी उतारना
(ग) मुरीद होना
(घ) जान वारना
(ङ) तेग मारना
उत्तर
(क) टुकड़े चबाना − कुछ व्यक्ति मेहनत करके भी सूखे टूकड़े चबाता है।
(ख) पगड़ी उतारना − मोहन श्याम की भरी सभा में पगड़ी उतारी।
(ग) मुरीद होना − उसकी बातें सुनकर मैं तो उसका मुरीद बन गया।
(घ) जान वारना − गणेश अपने भाई पर जान वारता है।
(ङ) तेग मारना − दुष्ट स्वभाव के लोग ही दूसरों को तेग मारते हैं।
व्याख्या
'आदमानामा' कविता में मानव के विविध रूपों पर प्रकाश डाला गया है। कवि के अनुसार मानव में अनेक संभावनाएँ छिपी हुई हैं। उसकी परिस्थियाँ और भाग्य भी भिन्न हैं जिसके कारण उसे भिन्न-भिन्न रूपों में जीवन जीना पड़ता है।
(1)
इन पंक्तियों में में नजीर ने कहा है कि इस दुनिया में सभी आदमी हैं। बादशाह भी आदमी है तथा गरीब भी आदमी ही है। मालदार भी आदमी ही है और कमजोर भी आदमी है। जिसे खाने की कमी नही है वो भी आदमी है और जिसे मुश्किल से रोटी मिलती है वो भी आदमी ही है।
(2)
इस भाग में नजीर ने आदमी के विभिन्न कामों के बारे में बतलाया है। मस्जिद का भी निर्माण आदमी ने किया है और उसके अंदर उपदेश देने का काम भी आदमी ही करते हैं साथ ही वहां जाकर कुरान-नमाज़ भी आदमी ही अदा करते हैं। मस्जिद के बाहर जूतियाँ चुराने का काम आदमी ही करता है तथा उनको भगाने के लिए भी आदमी ही रहता है।
(3)
इस भाग में नजीर ने बताया है की एक आदमी दूसरे की जान लेने में लगा रहता है तो दूसरा आदमी किसी की जान बचाने में लगा रहता है। कोई आदमी किसी की इज्जत उतारता है तो मदद की पुकार सुनकर भी उसे बचाने कोई आदमी ही आता है।
(4)
इन पंक्तियों द्वारा स्पष्ट किया है की इस दुनिया सब कुछ आदमी ही करते हैं। आदमी ही आदमी का मुरीद है तथा आदमी ही आदमी का दुश्मन। बुरे और अच्छे दोनों आदमी ही कहलाते हैं।
कवि परिचय
नजीर अकबराबादी
इनका जन्म आगरा शहर में सन 1735 में हुआ। इन्होने आगरा के अरबी-फ़ारसी के मशहूर अदीबों से तालीम हासिल की। नजीर हिन्दू त्योहारों में बहुत दिलचस्पी लेते थे और शामिल होकर दिलोजान से लुत्फ़ उठाते थे। नजीर दुनिया के रंग में रंगे हुए महाकवि थे।
कठिन शब्दों के अर्थ
• बादशाह - राजा
• मुफ़लिस - गरीब
• गदा - भिखारी
• जरदार - मालदार
• बेनवा - कमजोर
• निअमत - स्वादिष्ट भोजन
• इममम - नमाज पढ़नेवाले
• ताड़ता - भांप लेना
• खुतबाख्वां - कुरान शरीफ का अर्थ बतानेवाला
• अशराफ़ - शरीफ
• दिल-पजीर - दिल पसंद
NCERT Solutions for Class 9th: पाठ 12 - एक फूल की चाह स्पर्श भाग-1 हिंदी
सियारामशरण गुप्त
पृष्ठ संख्या: 109
प्रश्न अभ्यास
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
1. सुखिया के बाहर जाने पर पिता का हृ्दय काँप उठता था।
उत्तर
मेरा हृदय काँप उठता था
बाहर गई निहार उसे
यही मनाता था कि बचा लूँ
किसी भाँति इस बार उसे।
2. पर्वत की चोटी पर स्थित मंदिर की अनुपम शोभा।
उत्तर
ऊँचे शैल-शिखर के ऊपर
मंदिर था विस्तीर्ण विशाल
स्वर्ण कलश सरसिज विहसित थे
पाकर समुदित रवि कर जाल।
3. पुजारी से प्रसाद फूल पाने पर सुखिया के पिता की मन स्थिति।
उत्तर
भूल गया उसका लेना झट
परम लाभ-सा पाकर मैं।
सोचा- बेटी को माँ के ये
पुण्य-पुष्प दूँ जाकर मैं।
4. पिता की वेदना और उसका पश्चाताप।
उत्तर
अंतिम बार गोद में बेटी
तुझको ले न सका मैं हा
एक फूल माँ का प्रसाद भी
तुझको दे न सका मैं हा
(ख) बीमार बच्ची ने क्या इच्छा प्रकट की?
उत्तर
बीमार बच्ची ने देवी माँ के प्रसाद का एक फूल की इच्छा प्रकट की।
(ग) सुखिया के पिता पर कौन-सा आरोप लगाकर उसे दंडित किया गया?
उत्तर
सुखिया के पिता पर मंदिर की पवित्रता भंग करने का आरोप लगाकर दंडित किया गया।
(घ) जेल से छूटने के बाद सुखिया के पिता ने अपनी बच्ची को किस रूप में पाया?
उत्तर
जेल से छूटने के बाद सुखिया के पिता ने अपनी बच्ची को राख की ढेरी के रूप में पाया।
(ङ) इस कविता का केन्द्रिय भाव अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
इस कविता का केन्द्रिय भाव छुआछूत है। यह मानवता के नाम पर कलंक है। जन्म के आधार पर किसी को अछूत मानना एक अपराध है। मंदिर जैसे पवित्र स्थानों पर अछूत होने पर किसी के प्रवेश पर रोक लगाना सर्वथा अनुचित है। कवि चाहता है कि इस प्रकार की सामाजिक विषमता का शीघ्र अंत हो। सभी को सामाजिक एवं धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त हो।
(च) इस कविता में से कुछ भाषिक प्रतीकों बिंबों को छाँटकर लिखिए −
उदाहरण : अंधकार की छाया
(i) ............................. (ii) .................................
(iii) ........................... (iv) .................................
(v) .............................
उत्तर
(च) (i) निज कृश रव में
(ii) स्वर्ण-घनों में कब रवि डूबा
(iii) जलते से अंगारे
(iv) विस्तीर्ण विशाल
(v) पतित-तारिणी पाप हारिणी
पृष्ठ संख्या: 110
2. निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट करते हुए उनका अर्थ-सौंदर्य बताइए −
(क) अविश्रांत बरसा करके भी
आँखे तनिक नहीं रीतीं
(ख) बुझी पड़ी थी चिता वहाँ पर
छाती धधक उठी मेरी
(ग) हाय! वही चुपचाप पड़ी थी
अटल शांति-सी धारण कर
(घ) पापी ने मंदिर में घुसकर
किया अनर्थ बड़ा भारी
उत्तर
(क) आँखें हमेशा रोती रहती हैं। उनसे आँसू रूपी पानी बरसता रहता है। आँसू कभी समाप्त नहीं होते हैं। इन पंक्तियों में पिता के लगातार निरंतर रोने की दशा का वर्णन किया गया है।
(ख) सुखिया की चिता की आग अब बुझ गई थी। लेकिन उसे देखकर पिता के दिल में दुख से उपजी वेदना की चिता जलने लगी। अर्थ की सुंदरता यह है कि एक चिता बाहर जलकर अभी बुझी है और दूसरी चिता दिल के अंदर जलनी आरंभ हो गई है। इसमें पिता के दुख और उससे उत्पन्न वेदना का वर्णन किया गया है।
(ग) चंचल सुखिया बीमारी से पीड़ित होकर ऐसे चुपचाप लेटी हुई थी मानो उसने अटल शांति धारण कर ली हो। यहाँ नटखट बालिका का शांत भाव से पड़े रहने की दशा का वर्णन है।
(घ) मंदिर में आए लोगों ने जब सुखिया के पिता को मंदिर में देखा, तो उन्हें बड़ा गुस्सा आया। लोगों को मंदिर में एक अछूत का आना पसंद नहीं आया। वे एक अछूत का मंदिर में इस प्रकार चले आने को अनर्थ मानने लगे।
पाठ का सार
प्रस्तुत पाठ ‘एक फूल की चाह’ छुआछूत की समस्या से संबंधित कविता है। महामारी के दौरान एक अछूत बालिका उसकी चपेट में आ जाती है। वह अपने जीवन की अंतिम साँसे ले रही है। वह अपने माता- पिता से कहती है कि वे उसे देवी के प्रसाद का एक फूल लाकर दें । पिता असमंजस में है कि वह मंदिर में कैसे जाए। मंदिर के पुजारी उसे अछूत समझते हैं और मंदिर में प्रवेश के योग्य नहीं समझते। फिर भी बच्ची का पिता अपनी बच्ची की अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए मंदिर में जाता है। वह दीप और पुष्प अर्पित करता है और फूल लेकर लौटने लगता है। बच्ची के पास जाने की जल्दी में वह पुजारी से प्रसाद लेना भूल जाता है। इससे लोग उसे पहचान जाते हैं। वे उस पर आरोप लगाते हैं कि उसने वर्षों से बनाई हुई मंदिर की पवित्रता नष्ट कर दी। वह कहता है कि उनकी देवी की महिमा के सामने उनका कलुष कुछ भी नहीं है। परंतु मंदिर के पुजारी तथा अन्य लोग उसे थप्पड़-मुक्कों से पीट-पीटकर बाहर कर देते हैं। इसी मार-पीट में देवी का फूल भी उसके हाथों से छूट जाता है। भक्तजन उसे न्यायालय ले जाते हैं। न्यायालय उसे सात दिन की सज़ा सुनाता है। सात दिन के बाद वह बाहर आता है , तब उसे अपनी बेटी की ज़गह उसकी राख मिलती है।
इस प्रकार वह बेचारा अछूत होने के कारण अपनी मरणासन्न बेटी की अंतिम इच्छा पूरी नहीं कर पाता। इस मार्मिक प्रसंग को उठाकर कवि पाठकों को यह कहना चाहता है कि छुआछूत की कुप्रथा मानव-जाति पर कलंक है। यह मानवता के प्रति अपराध है।
कवि परिचय
सियारामशरण गुप्त
इनका जन्म झांसी के निकट चिरगांव में सन 1895 में हुआ था। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त इनके बड़े भाई थे तथा पिता भी कविताएं लिखते थे। ये महत्मा गांधी और विनोबा भावे के अनुयायी थे जिसका संकेत इनकी रचनाओं में मिलता है। गुप्त जी की रचनाओं का प्रमुख गुण है कथात्मकता। इन्होंने सामाजिक कुरुतियों पर करारी चोट की है। इनके काव्य की पृष्ठभूमि अतीत हो या वर्तमान , उनमें आधुनिक मानवता की करुणा , यातना और द्वंद्व समन्वित रूप में उभरा है।
प्रमुख कार्य
प्रमुख कृतियाँ - मौर्य विजय , आर्द्रा , पाथेय , मृण्मयी , उन्मुक्त , आत्मोत्सर्ग , दूर्वादल और नकुल।
कठिन शब्दों के अर्थ
• उद्वेलित – भाव–विह्वल
• अश्रु- राशियाँ – आँसुओं की झड़ी
• प्रचंड – तीव्र
• क्षीण – दबी आवाज़
• मृतवत्सा – जिस माँ की संतान मर गई हो
• रुदन – रोना
• दुर्दांत – जिसे दबाना या वश में करना करना हो
• कॄश – कमज़ोर
• रव – शोर
• तनु - शरीर
• शिथिल – कमज़ोर
• अवयव - अंग
• विह्वल – बेचैन
• स्वर्ण घन - सुनहले बादल
• ग्रसना - निगलना
• तिमिर – अंधकार
• विस्तीर्ण – फैला हुआ
• रविकर जाल - सूर्य किरणों का समूह
• अमोदित - आनंदपूर्ण
• ढिकला - ठेला गया
• सिंह पौर - मंदिर का मुख्या द्वार
• परिधान - वस्त्र
• शुचिता – पवित्रता
• सरसिज – कमल
• अविश्रांत – बिना थके हुए
• कंठ क्षीण होना - रोने के कारण स्वर का क्षीण या कमजोर होना।
• प्रभात सजग - हलचल भरी सुबह।
NCERT Solutions for Class 9th: पाठ 13 - गीत - अगीत स्पर्श भाग-1 हिंदी
रामधारी सिंह दिनकर
पृष्ठ संख्या: 115
प्रश्न अभ्यास
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिये -
(क) नदी का किनारों से कुछ कहते हुए बह जाने पर गुलाब क्या सोच रहा है? इससे संबंधित पंक्तियों को लिखिए।
उत्तर
"देते स्वर यदि मुझे विधाता,
अपने पतझर के सपनों का
मैं भी जग को गीत सुनाता।"
(ख) जब शुक गाता है, तो शुकी के हृदय पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर
जब शुक गाता है तो शुकी का ह्रदय प्रसन्नता से फूल जाता है। वह उसके प्रेम में मग्न हो जाती है। शुकी के ह्रदय में भी गीत उमड़ता है, पर वह स्नेह में सनकर ही रह जाता है। शुकी अपने गीत को अभिव्यक्त नहीं कर पाती वह शुक के प्रेम में डूब जाती है पर गीत गाकर उत्तर नहीं दे पाती है।
(ग) प्रेमी जब गीत गाता है, तब प्रेमिका की क्या इच्छा होती है?
उत्तर
प्रेमी प्रेमभरा गीत गाता है तब उसकी प्रेमिका की यह इच्छा होती है कि वह भी उस प्रेमगीत का एक हिस्सा बन जाए।वह गीत की कड़ी बनना चाहतीहै।
(घ) प्रथम छंद में वर्णित प्रकृति-चित्रण को लिखिए।
उत्तर
'गीत अगीत' कविता के प्रथम छंद में प्रकृति का मनोहारी चित्रण है। सामने नदी बह रही है माने वह अपने कल-कल स्वर में वेदना प्रकट करती है। वह तटों को अपनी विरह व्यथा सुनाती है। उसके किनारे उगा गुलाब का पौधा हिलता रहता है मानो कह रहा हो विधाता ने मुझे भी स्वर दिया होता तो मैं भी अपनी व्यथा कह पाता। नदी गा-गाकर बह रही है और गुलाब चुपचाप खड़ा है।
(ङ) प्रकृति के साथ पशु-पक्षियों के संबंध की व्याख्या कीजिए।
उत्तर
प्रकृति के साथ पशु-पक्षियों का अनन्य सम्बन्ध है। दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे हैं। पशु-पक्षी अपने भोजन और आवास के लिए प्रकृति पर ही निर्भर करते हैं, प्रकृति पर उनका जीवन निर्भर है। कई मायनों में पशु-पक्षी प्रकृति को शुद्ध भी रखते हैं।
(च) मनुष्य को प्रकृति किस रूप में आंदोलित करती है? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
मनुष्य को प्रकृति अनेक रूपों में आंदोलित करती है। मनुष्य को प्रकृति का शांत वातावरण लुभाता है। संध्या उसके मन में प्रेम जगाता है। प्रकृति में व्याप्त संगीत मनुष्य के हृदय को आनंदित करता है। प्रकृति मनुष्य के सुख-दुःख में उसका साथ निभाती लगती है।
(छ) सभी कुछ गीत है, अगीत कुछ नहीं होता। कुछ अगीत भी होता है क्या? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
गीत, अगीत में बस मामूली सा अतंर है। जब मन के भाव प्रकट होते हैं, तब वे 'गीत' का रूप ले लेते हैं। जब हम उन भावों को मन ही मन अनुभव करते हैं, पर कह नहीं पाते, तब वह 'अगीत' बन जाता है। वैसे अगीत का कोई अस्तित्व नहीं होता, क्योंकि कभी न कभी उन्हें गाया भी जा सकता है। दोनों में देखने में अंतर है। जिस भावना या मनोदशा में गीत बनता है वह ही अगीत होता है।
(ज) 'गीत-अगीत' के केंद्रीय भाव को लिखिए।
उत्तर
गीत-अगीत कविता का केन्दिय भाव यह है कि गीत रचने की मनोदशा ज्य़ादा महत्व रखती है, उसको महसूस करना आवश्यक है। जैसे कवि को नदी के बहने में भी गीत का होना जान पड़ता है। उसे शुक, शुकी के क्रिया कलापों में भी गीत नज़र आता है। कवि प्रकृति की हर वस्तु में गीत गाता महसूस करता है। उनका कहना है जो गाया जा सके वह गीत है और जो न गाया जासके वह अगीत है।
2. संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए -
(क) अपने पतझर के सपनों का
मैं भी जग को गीत सुनाता
उत्तर
प्रस्तुत पंद्याश 'रामधारी सिंह दिनकर' द्वारा रचित 'गीत-अगीत' से लिया गया है। इसमें कवि एक गुलाब के पौधे की व्यथा का वर्णन करता है। इन पंक्तियों में कवि यह कहना चाहते हैं कि नदी के किनारे उगा गुलाब का पौधा उसके कल-कल बहने के स्वर को समझता है कि वह अपनी बात तटों से कह रही है। अगर उसे भी स्वर मिला होता तो वह भी पतझड़ की व्यथा को सुना पाता। उसके भाव गीत न होकर अगीत ही रह जाते हैं।
(ख) गाता शुक जब किरण बसंत
छूती अंग पर्ण से छनकर
उत्तर
प्रस्तुत पंद्याश 'रामधारी सिंह दिनकर' द्वारा रचित 'गीत अगीत' से लिया गया है। यहाँ कवि शुक तथा शुकी के प्रसंग के माध्यम से गीतों के महत्व को प्रस्तुत किया है। कवि के अनुसार शुक जब डाल पर बैठकर किरण बंसती का गीत गाता है तो शुकी पर उसकी स्वर लहरी का प्रभाव पड़ता है और उसमें सिरहन होने लगती। उसकी स्वर लहरी पत्तों से छन छन कर शुकी के अंगों में समा जाती है। अर्थात शुक का गीत शुकी को इतना आकर्षक लगता कि वह उसी में खो जाती थी।
(ग) हुई न क्यों में कडी गीत की
विधना यों मन में गुनती है
उत्तर
प्रस्तुत काव्यांश 'रामधारी सिंह दिनकर' द्वारा रचित 'गीत अगीत' कविता से लिया गया है। इसमें कवि ने बताया कि एक प्रेमी जब संध्या के समय गीत गाता है तो उसका प्रभाव उसकी प्रेमिका पर पड़ता है। प्रेमी प्रेमिका के माध्यम से कवि ने गीतों के महत्व को स्पष्ट किया है। जब संध्या के समय प्रेमी गीत गाता है तो उसके गीत से मंत्रमुग्ध सी उसकी प्रेमिका उसकी ओर खिचीं चली आती है और उसके मन में एक इच्छा जन्म लेने लगती है कि काश वह उस गीत को गा सकती वह भी उसकी कड़ी बन पाती।
3. निम्नलिखित उदाहरण में 'वाक्य-विचलन'को समझने का प्रयास कीजिए। इसी आधार पर प्रचलित वाक्य-विन्यास लिखिए −
(क) देते स्वर यदि मुझे विधाता
यदि विधावा मुझे स्वर देते।
ख) बैठा शुक उस घनी डाल पर
उस धनी डाल पर शुक बैठा है।
(ग) गूँज रहा शुक का स्वर वन में
शुक का स्वर वन में गूँज रहा है।
(घ) हुई न क्यों मैं कड़ी गीत की
मैं गीत की कड़ी क्यों न हो सकी।
(ङ) शुकी बैठ अंडे है सेती
शुकी बैठ कर अंडे सेती है।
पाठ का सार
'गीत-अगीत' कविता में कवि ने प्रकृति के सौंदर्य के अतिरिक्त जीव-जतुंओं के ममत्व, मानवीय राग और प्रेमभाव का भी सजीव चित्रण है। कवि को नदी के प्रवाह में थट के विरह का गीत का सॄजन होता जान पड़ता है। उन्हें शुक-शुकी के क्रिया-कलापों में भी गीत सुनाई देता है। कहीं एक प्रेमी अपनी प्रेमिका को बुलाने के लिए गीत गा रहा है जिसे सुनकर प्रेमिका आंनदित होती है। कवि का मानना है कि नदी और शुक गीत सृजन या गीत-गान भले ही न कर रहे हों, पर दरअसल वहाँ गीत का सृजन और गान भी हो रहा है। वे यह नही समझ पा रहे हैं कौन ज्यादा सुन्दर है - प्रकृति के द्वारा किए जा रहे क्रियाकलाप या फिर मनुष्य द्वारा गाया जाने वाला गीत।
कवि परिचय
रामधारी सिंह दिनकर
इनका जन्म बिहार के मुंगेर जिले के सिमरिया गाँव में 30 सितम्बर 1908 को हुआ। वे सन 1952 में राज्यसभा के सदस्य मनोनीत किये गए। भारत सरकार ने इन्हें ‘ पद्मभूषण ’ अलंकरण से अलंकॄत किया। दिनकर जी को ‘ संस्कृति के चार अध्याय ’ पुस्तक पर साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला।अपनी काव्यकृति ‘ उर्वशी ’ पर ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। दिनकर ओज के कवि माने जाते हैं। दिनकर की सबसे बड़ी विशेषता है अपने देश और युग के प्रति सजगता।
प्रमुख कार्य
कृतियाँ - हुँकार, कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी परशुराम की प्रतीक्षा, उर्वशी,और संस्कॄति के चार अध्याय।
कठिन शब्दों के अर्थ
• तटिनी – नदी
• वेगवती – तेज़ गति से
• उपलों – किनारों
• विधाता – ईश्वर
• निर्झरी – झरना
• पाटल – गुलाब
• शुक – तोता
• खोंते – घोंसला
• पर्ण – पत्ता
• बिधना - भाग्य
• आल्हा – एक लोक काव्य का नाम
• कड़ी – वे छंद जो गीत को जोड़ते हैं
• गुनती – विचार करती है।
NCERT Solutions for Class 9th: पाठ 14 - अग्नि पथ स्पर्श भाग-1 हिंदी
हरिवंशराय बच्चन
पृष्ठ संख्या: 119
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
(क) कवि ने 'अग्नि पथ' किसके प्रतीक स्वरूप प्रयोग किया है?
उत्तर
कवि ने 'अग्नि पथ' का प्रयोग मानव जीवन में आने वाली कठिनाइयों के प्रतीक स्वरूप किया है। यह जीवन संघर्षमय है फिर भी इस पर सबको चलना ही पड़ता है और कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। कवि का मानना है कि यह जीवन कठिनाइयों, चुनौतियों और संकटों से भरा है।
(ख) 'माँग मत', 'कर शपथ', इन शब्दों का बार-बार प्रयोग कर कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर
कवि ने इन शब्दों का बार-बार प्रयोग करके जीवन की कठिनाइयों को सहते हुए आगे बढ़ने की प्रेरणा दी है। कवि का कहना है कि इस मुश्किल भरे रास्ते से घबराकर रास्ता नहीं छोड़ना चाहिए, घबराकर हार नहीं माननी चाहिए। इसी प्रेरणा को देने के लिए कवि ने इस शब्द का बार-बार प्रयोग किया है।
(ग) 'एक पत्र-छाँह भी माँग मत' पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
'एक पत्र छाह भी माँग मत' − पंक्ति का आशय है कि मनुष्य अपनी प्रकृति के अनुसार माँगने लगता है और अपनी परिस्थितियों से घबराकर दूसरों की सहायता माँगने लगता है। इससे उसका आत्मविश्वास कम होने लगता है। इसलिए अपनी कठिनाइयों का सामना स्वयं ही करना चाहिए। यदि थोड़ा भी आश्रय मिल जाए तो उसकी अवहेलना न करके धन्य मानना चाहिए।
2. निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए −
(क) तू न थमेगा कभी
तू न मुड़ेगा कभी
उत्तर
इन पंक्तियों के द्वारा कवि कहना चाहता है की जीवन कष्टों से भरा पड़ा है परन्तु व्यक्ति को इन कष्टों से जूझकर सदा आगे बढ़ते रहना चाहिए। उन्हें थक हार कर बीच में रुकना नही चाहिए।
(ख) चल रहा मनुष्य है
अश्रु-स्वेद-रक्त से लथपथ, लथपथ,लथपथ
उत्तर
कवि हरिवंश राय बच्चन जी ने मनुष्य को आगे चलते रहने की प्रेरणा दी है क्योंकि संघर्षमय जीवन में कई बार व्यक्ति को आँसू भी बहाने पड़ते हैं, थकने पर पसीने से तर भी हो जाता है। इससे शक्ति भी क्षीण हो जाती है परन्तु मनुष्य को किसी भी स्थिति में घबराकर अपने लक्ष्य से नहीं हटना चाहिए, लक्ष्य की ओर बढ़ते जाना चाहिए।
3. इस कविता का मूलभाव क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
इस कविता का मूलभाव है कि जीवन संघर्षों से भरा रहता है। इसमें कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। हर पल, हर पग पर चुनौतियाँ मिलती हैं परन्तु इन्हें स्वीकार करना चाहिए, इनसे घबरा कर पीछे नहीं हटना चाहिए, ना ही मुड़ कर देखना या किसी का सहारा लेना चाहिए। संकटों का सामना स्वयं ही करना चाहिए। बिना थके, बिना रूके, बिना हार माने इस जीवन पथ पर निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए।
पाठ का सार
प्रस्तुत कविता में कवि ने संघर्षमय जीवन को 'अग्नि पथ' कहते हुए मनुष्य को यह संदेश दिया है कि राह में सुख रूपी छाँह की चाह न कर अपनी मंजिल की ओर कर्मठतापूर्वक बिना थकान महसूस किए बढते ही जाना चाहिए। कवि कहते हैं कि जीवन संघर्षपूर्ण है। जीवन का रास्ता कठिनाइयों से भरा हुआ है। परन्तु हमें अपना रास्ता खुद तय करना है। किसी भी परिस्थिति में हमें दूसरों का सहारा नही लेना है। हमें कष्ट-मुसीबतों पर जीत पाकर अपने लक्ष्य को प्राप्त करना है।
कवि परिचय
हरिवंश राय बच्चन
इनका जन्म उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद शहर में 27 नवंबर 1907 को हुआ। बच्चन कुछ समय तक विश्वविधालय में प्राध्यापक रहने के बाद भारतीय विदेश सेवा में चले गए थे। इस दौरान इन्होने कई देशों का भम्रण किया और मंच पर ओजस्वी वाणी में काव्यपाठ के लिए विख्यात हुए। बच्चन की कविताएँ सहज और संवेदनशील हैं। इनकी रचनाओं में व्यक्ति-वेदना, राष्ट्र-चेतना और जीवन दर्शन के स्वर मिलते हैं।
प्रमुख कार्य
कविता संग्रह - मधुशाला, निशा-निमंत्रण, एकांत संगीत, मिलन यामिनी, आरती और अंगारे, टूटती चटानें, रूप तरंगिणी।
आत्मकथा के चार खंड - क्या भूलूँ क्या याद करूँ, नीड़ का निर्माण फिर, बसेरे से दूर और दशद्वार से सोपान तक।
कठिन शब्दों के अर्थ
अग्निपथ - कठिनाइयों से भरा हुआ मार्ग।
पत्र - पत्ता
शपथ - कसम
अश्रु - आंसू
स्वेद - पसीना
रक्त - खून
लथपथ - सना हुआ।
NCERT Solutions for Class 9th: पाठ 15 - नए इलाके में ... खुशबू रचते हैं हाथ स्पर्श भाग-1 हिंदी
अरुण कमल
नए इलाके में
पृष्ठ संख्या: 124
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
(क) नए बसते इलाके में कवि रास्ता क्यों भूल जाता है?
उत्तर
नए बसते इलाके में प्रतिदिन नए मकान बनते चले जा रहे हैं। इन मकानों के बनने से पुराने पेड़, खाली ज़मीन, टूटे-फूटे घर सब कुछ खत्म हो गए हैं। कवि अपने ठिकाने पर पहुँचने के लिए निशानियाँ बनाता है, वे जल्दी मिट जाती हैं। इसीलिए कवि रास्ता भूल जाता है।
(ख) कविता में कौन-कौन से पुराने निशानों का उल्लेख किया गया है?
उत्तर
इस कविता में पीपल का पेड़, ढहा हुआ घर, ज़मीन का खाली टुकड़ा, बिना रंग वाले लोहे के फाटक वाला मकान आदि पुराने निशानों का उल्लेख है।
(ग) कवि एक घर पीछे या दो घर आगे क्यों चल देता है?
उत्तर
कवि एक घर पीछे या दो घर आगे इसलिए चल देता है क्योंकि नए इलाके में प्रतिदिन परिवर्तन आ रहे हैं। उसकी पुरानी पहचान करने की निशानियाँ मिट जाती हैं।
(घ) 'वसंत का गया पतझड़' और 'बैसाख का गया भादों को लौटा' से क्या अभिप्राय है?
उत्तर
कवि ने इस पंक्तियों में तेजी से बदलते दुनिया की ओर इशारा किया है। वे बताते हैं कि जब वो नए बसते इलाके में कुछ दिनों बाद आते हैं तो उन्हें हर चीज़ नयी मालूम पड़ती है। उन्हें लगता है वो सालों बाद आये हैं।
(ड़) कवि ने इस कविता में 'समय की कमी' ओर क्यों इशारा किया है?
उत्तर
कवि ने समय की कमी की ओर इशारा किया है क्योंकि उसने अपना काफी समय अपने घर को ढूँढने में बर्बाद कर दिया। प्रगति के इस दौर में लोग हरदम कुछ करने और बनाने में लगे हैं। इस दौर में कवि की पहचान की खो गयी है। समय के इस अभाव के कारण वह किसी के भी साथ आत्मीय सम्बंध नहीं बना पाता है।
पृष्ठ संख्या: 125
(च) इस कविता में कवि ने शहरों को किस विडंबना की ओर संकेत किया है?
उत्तर
इस कविता में कवि ने शहरों की इस विडंबना की ओर संकेत किया है कि जीवन की सहजता समाप्त होती जा रही है, बनावटी चीज़ों के प्रति लोगों का लगाव बढ़ता जा रहा है। सब आगे निकलना चाहते हैं, आपसी प्रेम, आत्मियता घटती जा रही है। लोगों की और रहने के स्थान की पहचान खोती जा रही है। स्वार्थ केन्द्रित लोगों के पास दूसरे के लिए समय ही नहीं है। आज की चीज़ कल पुरानी पड़ जाती है, कुछ भी स्थाई नहीं है।
2. व्याख्या कीजिए −
(क) यहाँ स्मृति का भरोसा नहीं
एक ही दिन में पुरानी पड़ जाती है दुनिया
उत्तर
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि यह कहना चाहते हैं कि नए इलाके में उसकी स्मृति भी उसका साथ छोड़ देती है। यहाँ नित नई-नई इमारतें बन रही हैं। इस कारण से वह इस नए इलाके का जो रेखाचित्र बनाकर उसे याद रखता है, वह हर रोज़ बदल जाता है। इसलिए कवि को अब अपनी स्मृति पर भी भरोसा नहीं है।
(ख) समय बहुत कम है तुम्हारे पास
आ चला पानी ढहा आ रहा अकास
शायद पुकार ले कोई पहचाना ऊपर से देखकर
उत्तर
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने समय की कमी की ओर इशारा किया है क्योंकि उसने अपना काफी समय अपने घर को ढूँढने में बर्बाद कर दिया। आज के इस प्रगतिशील समय में हर इंसान प्रगति की सीढ़ियों को पार करने में लगा हुआ है परन्तु कवि अपनी पहचान भी भूल गया है। समय के इस अभाव के कारण वह किसी के भी साथ आत्मीय सम्बंध नहीं बना पाता है।
योग्यता विस्तार
3. पाठ में हिंदी महीनों के कुछ नाम आए हैं। आप सभी हिंदी महीनों के नाम क्रम से लिखिए।
उत्तर
चैत्र, बैशाख, जेठ, अषाढ़, सावन, भादो, क्वार, कार्तिक, अगहन, पूस, माघ, फागुन।
खुशबु रचते हैं हाथ
(क) 'खुशबु रचनेवाले हाथ' कैसी परिस्थितियों में तथा कहाँ-कहाँ रहते हैं?
उत्तर
खुशबु रचने वाले हाथ दूर दराज के सबसे गंदे और बदबूदार इलाकों में रहते हैं। इनके घर नालों के पास और गलियों के बीच होते हैं। इनके घरों के आस-पास कूड़े-करकट का ढेर होता है। यहाँ इतनी बदबू होती है कि सिर फट जाता है। ये सारी दुनिया की गंदगी के बीच रहते हैं जो अत्यन्त दयनीय है।
(ख) कविता में कितने तरह के हाथों की चर्चा हुई है?
उत्तर
कविता में उभरी नसों वाले हाथ, पीपल के पत्ते से नए-नए हाथ, गंदे कटे-पिटे हाथ, घिसे नाखुनों वाले हाथ, जूही की डाल से खूशबूदार हाथ, जख्म से फटे हाथ जैसे हाथों की चर्चा हुई है।
(ग) कवि ने यह क्यों कहा है कि 'खुशबू रचते हैं हाथ'?
उत्तर
कवि ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि अगरबत्ती जिसका प्रयोग सुंगध फैलाने के लिए किया जाता है का निर्माण हाथों द्वारा किया जाता है।
(घ) जहाँ अगरबत्तियाँ बनती हैं, वहाँ का माहौल कैसा होता है?
उत्तर
जहाँ अगरबत्तियाँ बनती है, वहाँ का माहौल बड़ा ही गन्दा होता है। अगरबत्तियाँ गंदी बस्तियों में बनाई जाती हैं। ये बस्तियाँ अधिकतर गंदे नालों के किनारे पर स्थित होती हैं। यहाँ जगह-जगह कूड़े के ढेर व गन्दगी का राज होता है। चारों तरफ़ बदबू फैली होती है।
(ङ) इस कविता को लिखने का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर
इस कविता को लिखने का मुख्य उद्देश्य गरीब मज़दूरों की दयनीय दशा की ओर ध्यान आकर्षित करना है। इस प्रकार कवि उनके उद्धार के प्रति चेतना जाग्रत करना चाहता है। वह चाहता है कि इन श्रमिकों की दयनीय दशा को सुधारा जाए, इनके रहने की दशा को स्वास्थ्यप्रद बनाया जाए।
2. व्याख्या कीजिए −
(क) (i) पीपल के पत्ते-से नए-नए हाथ
जूही की डाल से खुशबूदार हाथ
उत्तर
इन पंक्तियों में बच्चों की ओर कि इशारा किया गया है जिनके हाथ पीपल के पत्तों की तरह कोमल, नए हैं, जिनमें जूही की डाल जैसी खुशबू आती है परन्तु अगरबत्ती बनाते बनाते उनके कोमल हाथ खुरदरे हो गए हैं। उनकी कोमलता और सुगंध गायब हो जाती है।
(ii) दुनिया की सारी गंदगी के बीच
दुनिया की सारी खुशबू
रचते रहते हैं हाथ
उत्तर
कवि कहता है कि खुशबु रहने वाले हाथ अर्थात अगरबत्ती बनाने वाले लोग स्वयं कितने गंदे वातावरण में रहते हैं, इसकी कल्पना करना भी कठिन है। इस गंदगी में रहकर भी इनके हाथ में कमाल का जादू है ये खुशबूदार अगरबत्तियों को बनाते हैं।
(ख) कवि ने इस कविता में 'बहुवचन' का प्रयोग अधिक किया है। इसका क्या कारण है?
उत्तर
कवि ने इस कविता में किसी ख़ास एक व्यक्ति का वर्णन नही किया है बल्कि एक समाज का वर्णन किया है इस कारण इस कविता में 'बहुवचन' का प्रयोग अधिक किया है।
(ग) कवि ने हाथों के लिए कौन-कौन से विशेषणों का प्रोयग किया है।
उत्तर
कवि ने हाथों के लिए निम्नलिखित विशेषणों का प्रोयग किया है −
1. उभरी नसों वाले हाथ
2. गंदे नाखूनों वाले हाथ
3. पत्तों से नए हाथ
4. खुशबूदार हाथ
5. गंदे कटे पिटे हाथ
6. फटे हुए हाथ
7. खुशबू रचते हाथ
पाठ का सार
(1) नए इलाके में
इस कविता में एक ऐसे दुनिया में प्रवेश का आमंत्रण है, जो एक ही दिन में पुरानी पड़ जाती है। यह इस बात का बोध कराती है कि जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं होता। इस पल-पल बनती-बिगड़ती दुनिया में स्मृतियों के भरोसे नहीं जिया जा सकता। कवि कहता है कि वह नए बसते इलाकों तथा नए-नए बनते मकानों के कारण रोज अपने घर का रास्ता भूल जाता है। वह अपने घर तक पहुँचने रास्ते में पड़ने वाले निशानों को याद रखता हुआ आगे बढ़ता है लेकिन उसे वे निशान नहीं मिलते। वह हर बार एक या दो घर आगे चला जाता है। इसलिए वह कहता है कि यहाँ स्मॄतियों का कोई भरोसा नहीं । यह दुनिया एक दिन में ही पुरानी पड़ जाती है। अब घर ढूँढने का एक ही रास्ता है कि वह हर एक घर का दरवाजा खटखटाकर पूछे कि क्या उसका घर यही है? पर इसके लिए भी समय बहुत कम है। कहीं इतने समय में ही फिर कोई बदलाव न हो जाए। फिर उसके मन में एक आशा जगती है कि शायद उसका कोई जाना-पहचाना उसे भटकते हुए देखकर ऊपरी मंजिल से उसे पुकार कर कह दे कि वह रहा तुम्हारा घर।
(2) खुशबू रचते हैं हाथ
प्रस्तुत कविता 'खुशबू रचते हैं हाथ' में कवि ने हमारा ध्यान समाज के उपेक्षित वर्ग की ओर खींचने का प्रयास किया है। ये अगरबत्ती बनाने वाले लोग हैं जो की हमारी जिंदगी को खुश्बुदार बनाकर खुद गंदगी में जीवन बसर कर रहे हैं। वे नालियों के बीच, कूड़े-करकट के ढेरों में रहकर अगरबत्ती बनाने का काम अपने हाथों से करते हैं। यहां कवि ने कई प्रकार की हाथों का जिक्र किया है जो की मूलतः बनाने वालों की उम्र को दिखाने के लिए किया गया है। लोगों के जीवन में सुगंध बिखरने वाले हाथ भयावह स्थितियों में अपना जीवन बिताने पर मज़बूर हैं। क्या विडंबना है कि खुशबू रचने वाले ये हाथ दूरदराज़ के सबसे गंदे और बदबूदार इलाकों में जीवन बिता रहे हैं।
कवि परिचय
अरुण कमल
इनका जन्म बिहार के रोहतास जिले के नासरीगंज में 15 फ़रवरी 1954 को हुआ। ये पटना विश्वविद्यालय में प्राध्यापक भी रह चुके हैं। इन्हें अपनी कविताओं के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार सहित कई अन्य पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया है।
प्रमुख कार्य
कविता संग्रह – अपनी केवल धार, सबूत नए इलाके में,पुतली में संसार।
आलोचना - कविता और समय।
कठिन शब्दों के अर्थ
• इलाका- क्षेत्र
• अकसर – प्रायः
• ताकता – देखता
• ढहा – गिरा हुआ
• ठकमकाता – डगमगाते हुए
• स्मॄति – याद
• वसंत – एक ऋतु
• पतझड – एक ऋतु जिसमें पेड़ों के पत्ते झड़ते हैं
• वैसाख – चैत के बाद आने वाला महीना
• भादों – सावन के बाद आने वाला महीना
• अकास - गगन
• कूड़ा-करकट – रद्दी या कचरा
• टोले – छोटी बस्ती
• जख्म – घाव
• मुल्क – देश
• खस – पोस्ता
• रातरानी – एक सुगंधित फूल
• मशहूर - प्रसिद्ध
................
................
In order to avoid copyright disputes, this page is only a partial summary.
To fulfill the demand for quickly locating and searching documents.
It is intelligent file search solution for home and business.