हिन्दी साहित्य- सीमांचल | कल्पना की उड़ान



NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 1- साखी स्पर्श भाग-2 हिंदी 

कबीर

पृष्ठ संख्या: 6

प्रश्न अभ्यास 

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए −

1. मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने तन को शीतलता कैसे प्राप्त होती है?

उत्तर

मीठी वाणी बोलने से सुनने वाले के मन से क्रोध और घृणा के भाव नष्ट हो जाते हैं। इसके साथ ही हमारा अंतःकरण भी प्रसन्न जाता है। प्रभावस्वरूप औरों को सुख और तन को शीतलता प्राप्त होती है।

2. दीपक दिखाई देने पर अँधियारा कैसे मिट जाता है? साखी के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

यहाँ दीपक का मतलब भक्तिरूपी ज्ञान तथा अन्धकार का मतलब अज्ञानता से है। जिस प्रकार दीपक के जलने अन्धकार समाप्त हो जाता है ठीक उसी प्रकार जब ज्ञान का प्रकाश हृदय में जलता है तब मन के सारे विकार अर्थात भ्रम, संशय का नाश हो जाता है।

3. ईश्वर कण-कण में व्याप्त है, पर हम उसे क्यों नहीं देख पाते?

उत्तर

हमारा मन अज्ञानता, अहंकार, विलासिताओं में डूबा है। हम उसे मंदिर, मस्जिदों में  ढूंढ़ते हैं जबकि वह सब ओर व्याप्त है। इस कारण हम ईश्वर को नहीं देख पाते हैं।

4. संसार में सुखी व्यक्ति कौन है और दुखी कौन? यहाँ 'सोना' और 'जागना' किसके प्रतीक हैं? इसका प्रयोग यहाँ क्यों किया गया है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

कवि के अनुसार संसार में वो लोग सुखी हैं, जो संसार में व्याप्त सुख-सुविधाओं का भोग करते हैं और दुखी वे हैं, जो ईश्वर और संसार के बारे में सोच रहे हैं। 'सोना' अज्ञानता का प्रतीक है और 'जागना' ज्ञान का प्रतीक है। जो लोग सांसारिक सुखों में खोए रहते हैं, जीवन के भौतिक सुखों में लिप्त रहते हैं वे सोए हुए हैं और जो सांसारिक सुखों को व्यर्थ समझते हैं, अपने को ईश्वर के प्रति समर्पित करते हैं वे ही जागते हैं। वे संसार की दुर्दशा को दूर करने के लिए चिंतित रहते हैं।

5. अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने क्या उपाय सुझाया है?

उत्तर

अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने बताया है कि हमें अपने आसपास निंदक रखने चाहिए ताकि वे हमारी त्रुटियों को बता सके। निंदक हमारे सबसे अच्छे हितैषी होते हैं। उनके द्वारा बताए गए त्रुटियों को दूर करके हम अपने स्वभाव को निर्मल बना सकते हैं।

6. 'ऐकै अषिर पीव का, पढ़ै सु पंडित होई' −इस पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहता है?

उत्तर

इन पंक्तियों द्वारा कवि ने प्रेम की महत्ता को बताया है। ईश्वर को पाने के लिए एक अक्षर प्रेम का अर्थात ईश्वर को पढ़ लेना ही पर्याप्त है। बड़े-बड़े पोथे या ग्रन्थ पढ़ कर कोई पंडित नहीं बन जाता। केवल परमात्मा का नाम स्मरण करने से ही सच्चा ज्ञानी बना जा सकता है।

7. कबीर की उद्धृत साखियों की भाषा की विशेषता स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

कबीर ने अपनी साखियाँ सधुक्कड़ी भाषा में लिखी है। इनकी भाषा मिलीजुली है। इनकी साखियाँ संदेश देने वाली होती हैं। वे जैसा बोलते थे वैसा ही लिखा है। लोकभाषा का भी प्रयोग हुआ है;जैसे- खायै, नेग, मुवा, जाल्या, आँगणि आदि भाषा में लयबद्धता, उपदेशात्मकता, प्रवाह, सहजता, सरलता शैली है।

(ख) भाव स्पष्ट कीजिए -

1. बिरह भुवंगम तन बसै, मंत्र न लागै कोइ।

उत्तर 

इस पंक्ति का भाव है कि जिस व्यक्ति के हृदय में ईश्वर के प्रति प्रेम रुपी विरह का सर्प बस जाता है, उस पर कोई मंत्र असर नहीं करता है। अर्थात भगवान के विरह में कोई भी जीव सामान्य नहीं रहता है। उस पर किसी बात का कोई असर नहीं होता है।

2. कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूँढै बन माँहि।

उत्तर

इस पंक्ति में कबीर कहते हैं कि जिस प्रकार हिरण अपनी नाभि से आती सुगंध पर मोहित रहता है परन्तु वह यह नहीं जानता कि यह सुगंध उसकी नाभि में से आ रही है। वह उसे इधर-उधर ढूँढता रहता है। उसी प्रकार अज्ञानी भी वास्तविकता से अनजान रहता है। वे आनंदस्वरूप ईश्वर को प्राप्त करने के लिए विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों में लिप्त रहता है। वह आत्मा में विद्यमान ईश्वर की सत्ता को पहचान नही पाता।

3. जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहि।

उत्तर

इस पंक्ति द्वारा कबीर का कहना है कि जब तक मनुष्य में अज्ञान रुपी अंधकार छाया है वह ईश्वर को नहीं पा सकता। अर्थात अहंकार और ईश्वर का साथ-साथ रहना नामुमकिन है। जब ईश्वर की प्राप्ति हो जाती है तब अहंकार दूर हो जाता है।

4. पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ।

उत्तर

कबीर के अनुसार बड़े ग्रंथ, शास्त्र पढ़ने भर से कोई ज्ञानी नहीं होता। अर्थात ईश्वर की प्राप्ति नहीं कर पाता। प्रेम से इश्वर का स्मरण करने से ही उसे प्राप्त किया जा सकता है। प्रेम में बहुत शक्ति होती है।

भाषा अध्यन

1. पाठ में आए निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रुप उदाहरण के अनुसार लिखिए।

उदाहरण − जिवै - जीना

औरन, माँहि, देख्या, भुवंगम, नेड़ा, आँगणि, साबण, मुवा, पीव, जालौं, तास।

उत्तर

जिवै - जीना

औरन - औरों को

माँहि - के अंदर (में)

देख्या - देखा

भुवंगम - साँप

नेड़ा - निकट

आँगणि - आँगन

साबण - साबुन

मुवा - मुआ

पीव - प्रेम

जालौं - जलना

तास – उसका

भावार्थ

ऐसी बाँणी बोलिये, मन का आपा खोइ।

अपना तन सीतल करै, औरन कौ सुख होइ।।

भावार्थ - कबीर कहते हैं की हमें ऐसी बातें करनी चाहिए जिसमें हमारा अहं ना झलकता हो। इससे हमारा मन शांत रहेगा तथा सुनने वाले को भी सुख और शान्ति प्राप्त होगी।

कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूंढै वन माँहि। 

ऐसैं घटि-घटि राँम है, दुनियाँ देखै नाँहि।।

भावार्थ - यहाँ कबीर ईश्वर की महत्ता को स्पष्ट करते हुए कहते हैं की कस्तूरी की हिरन की नाभि में होती है लेकिन इससे अनजान हिरन उसके सुगंध के कारण उसे पूरे जंगल में ढूंढ़ता फिरता है ठीक उसी प्रकार ईश्वर भी प्रत्येक मनुष्य के हृदय में निवास करते हैं परन्तु मनुष्य इसे वहाँ नही देख पाता। वह ईश्वर को मंदिर-मस्जिद और तीर्थ स्थानों में ढूंढ़ता रहता है।

जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहि।

सब अँधियारा मिटि गया, जब दीपक देख्या माँहि।।

भावार्थ - यहाँ कबीर कह रहे हैं की जब तक मनुष्य के मन में अहंकार होता है तब तक उसे ईश्वर की प्राप्ति नही होती। जब उसके अंदर का अंहकार मिट जाता है तब ईश्वर की प्राप्ति होती है। ठीक उसी प्रकार जैसे दीपक के जलने पर उसके प्रकाश से आँधियारा मिट जाता है। यहाँ अहं का प्रयोग अन्धकार के लिए तथा दीपक का प्रयोग ईश्वर के लिए किया गया है।

सुखिया सब संसार है, खायै अरु सोवै।

दुखिया दास कबीर है, जागै अरु रोवै।।

भावार्थ - कबीरदास के अनुसार ये सारी दुनिया सुखी है क्योंकि ये केवल खाने और सोने का काम करता है। इसे किसी भी प्रकार की चिंता है। उनके अनुसार सबसे दुखी व्यक्ति वो हैं जो प्रभु के वियोग में जागते रहते हैं। उन्हें कहीं भी चैन नही मिलता, वे प्रभु को पाने की आशा में हमेशा चिंता में रहते हैं।

बिरह भुवंगम तन बसै, मन्त्र ना लागै कोइ।

राम बियोगी ना जिवै, जिवै तो बौरा होइ।।

भावार्थ - जब किसी मनुष्य के शरीर के अंदर अपने प्रिय से बिछड़ने का साँप बसता है तो उसपर कोई मन्त्र या दवा का असर नही होता ठीक उसी प्रकार राम यानी ईश्वर के वियोग में मनुष्य भी जीवित नही रहता। अगर जीवित रह भी जाता है तो उसकी स्थिति पागलों जैसी हो जाती है।

निंदक नेडा राखिये, आँगणि कुटी बँधाइ।

बिन साबण पाँणी बिना, निरमल करै सुभाइ।।

भावार्थ - संत कबीर कहते हैं की निंदा करने वाले व्यक्ति को सदा अपने पास रखना चाहिए, हो सके तो उसके लिए अपने पास रखने का प्रबंध करना चाहिए ताकि हमें उसके द्वारा अपनी त्रुटियों को सुन सकें और उसे दूर कर सकें। इससे हमारा स्वभाव साबुन और पानी की मदद के बिना निर्मल हो जाएगा।

पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुवा, पंडित भया ना कोइ।

ऐकै अषिर पीव का, पढ़ै सु पंडित होई।।

भावार्थ - कबीर कहते हैं की इस संसार में मोटी-मोटी पुस्तकें पढ़-पढ़ कर कई मनुष्य मर गए परन्तु कोई भी पंडित ना बन पाया। यदि किसी मनुष्य ने ईश्वर-भक्ति का एक अक्षर भी पढ़ लिया होता तो वह पंडित बन जाता यानी ईश्वर ही एकमात्र सत्य है, इसे जानेवाला ही ज्ञानी है।

हम घर जाल्या आपणाँ, लिया मुराडा हाथि। 

अब घर जालौं तास का, जे चले हमारे साथि।।

भावार्थ - कबीर कहते हैं की उन्होंने अपने हाथों से अपना घर जला लिया है यानी उन्होंने मोह-माया रूपी घर को जलाकर ज्ञान प्राप्त कर लिया है। अब उनके हाथों में जलती हुई मशाल है यानी ज्ञान है। अब वो उसका घर जालयेंगे जो उनके साथ जाना चाहता है यानी उसे भी मोह-माया के बंधन से आजाद होना होगा जो ज्ञान प्राप्त करना चाहता है।

कवि परिचय

कबीर

इनका जन्म 1398 में काशी में हुआ ऐसा माना जाता है। इनके गुरु रामानंद थे। ये क्रांतदर्शी के कवि थे जिनके कविता से गहरी सामाजिक चेतना प्रकट होती है। इन्होने 120 वर्ष की लम्बी उम्र पायी। इन्होने आने जीवन के कुछ अंतिम वर्ष मगहर में बिताये और वहीँ चिर्निद्रा में लीन हो गए।

कठिन शब्दों के अर्थ

• बाँणी - वाणी

• आपा - अहंकार

• सीतल - ठंडा

• कस्तूरी - एक सुगन्धित पदार्थ

• कुंडलि - नाभि

• माँहि - भीतर

• मैं - अंहकार

• हरि - भगवान

• मिटि - मिटना

• सुखिया - सुखी

• अरु - और

• बिरह - वियोग

• भुवंगम - साँप

• बौरा - पागल

• निंदक - बुराई करने वाला

• नेड़ा - निकट

• आँगणि - आँगन

• साबण - साबुन

• पाँणी - पानी

• निरमल - पवित्र

• सुभाइ - स्वभाव

• पोथी - ग्रन्थ

• मुवा - मर गया

• भया - हुआ

• अषिर - अक्षर

• पीव - प्रियतम या ईश्वर

• जाल्या - जलाया

• आपणाँ - अपना

• मुराडा - जलती हुई लकड़ी

• जालौं - जलाऊँ

• तास का - उसका

NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 2- पद स्पर्श भाग-2 हिंदी 

मीरा

पृष्ठ संख्या: 11

प्रश्न अभ्यास 

(क) निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर दीजिए-

1. पहले पद में मीरा ने हरि से अपनी पीड़ा हरने की विनती किस प्रकार की है?

उत्तर

मीरा ने हरि से अपनी पीड़ा हरने की विनती की है − प्रभु जिस प्रकार आपने द्रोपदी का वस्त्र बढ़ाकर भरी सभा में उसकी लाज रखी, नरसिंह का रुप धारण करके हिरण्यकश्यप को मार कर प्रह्लाद को बचाया, मगरमच्छ ने जब हाथी को अपने मुँह में ले लिया तो उसे बचाया और पीड़ा भी हरी। हे प्रभु! इसी तरह मुझे भी हर संकट से बचाकर पीड़ा मुक्त करो।

2. दूसरे पद में मीराबाई श्याम की चाकरी क्यों करना चाहती हैं? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

मीरा का हृदय कृष्ण के पास रहना चाहता है। उसे पाने के लिए इतना अधीर है कि वह उनकी सेविका बनना चाहती हैं। वह बाग-बगीचे लगाना चाहती हैं जिसमें श्री कृष्ण घूमें, कुंज गलियों में कृष्ण की लीला के गीत गाएँ ताकि उनके नाम के स्मरण का लाभ उठा सके। इस प्रकार वह कृष्ण का नाम, भावभक्ति और स्मरण की जागीर अपने पास रखना चाहती हैं।

3.मीराबाई ने श्रीकृष्ण के रुप-सौंदर्य का वर्णन कैसे किया है?

उत्तर

मीरा ने कृष्ण के रुप-सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहा है कि उनके सिर पर मोर के पंखों का मुकुट है, वे पीले वस्त्र पहने हैं और गले में वैजंती फूलों की माला पहनी है, वे बाँसुरी बजाते हुए गायें चराते हैं और बहुत सुंदर लगते हैं।

4. मीराबाई की भाषा शैली पर प्रकाश डालिए।

उत्तर

मीराबाई की भाषा सरल, सहज और आम बोलचाल की भाषा है, जो राजस्थानी,  ब्रज और गुजराती का मिश्रण है। पदावली कोमल, भावानुकूल व प्रवाहमयी है, पदों में भक्तिरस है तथा अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश, रुपक आदि अलंकार का भी प्रयोग किया गया है।

5. वे श्रीकृष्ण को पाने के लिए क्या-क्या कार्य करने को तैयार हैं?

उत्तर

मीरा कृष्ण को पाने के लिए अनेकों कार्य करने को तैयार हैं। वह सेवक बन कर उनकी सेवा कर उनके साथ रहना चाहती हैं, उनके विहार करने के लिए बाग बगीचे लगाना चाहती है। वृंदावन की गलियों में उनकी लीलाओं का गुणगान करना चाहती हैं, ऊँचे-ऊँचे महलों में खिड़कियाँ बनवाना चाहती हैं ताकि आसानी से कृष्ण के दर्शन कर सकें। कुसुम्बी रंग की साड़ी पहनकर आधी रात को कृष्ण से मिलकर उनके दर्शन करना चाहती हैं।

(ख) काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-

1. हरि आप हरो जन री भीर।

द्रोपदी री लाज राखी, आप बढ़ायो चीर।

भगत कारण रुप नरहरि, धर्यो आप सरीर।

उत्तर

इस पद में मीरा ने कृष्ण के भक्तों पर कृपा दृष्टि रखने वाले रुप का वर्णन किया है। वे कहती हैं - "हे हरि ! जिस प्रकार आपने अपने भक्तजनों की पीड़ा हरी है, मेरी भी पीड़ा उसी प्रकार दूर करो। जिस प्रकार द्रोपदी का चीर बढ़ाकर, प्रह्लाद के लिए नरसिंह रुप धारण कर आपने रक्षा की, उसी प्रकार मेरी भी रक्षा करो।" इसकी भाषा ब्रज मिश्रित राजस्थानी है। 'र' ध्वनि का बारबार प्रयोग हुआ है तथा 'हरि' शब्द में श्लेष अलंकार है।

2. बूढ़तो गजराज राख्यो, काटी कुण्जर पीर।

दासी मीराँ लाल गिरधर, हरो म्हारी भीर।

उत्तर

इन पंक्तियों में मीरा ने कृष्ण से अपने दुख दूर करने की प्रार्थना की है। हे भक्त वत्सल जैसे - डूबते गजराज को बचाया और उसकी रक्षा की वैसे ही आपकी दासी मीरा प्रार्थना करती है कि उसकी पीड़ा दूर करो। इसमें दास्य भक्तिरस है। भाषा ब्रज मिश्रित राजस्थानी है। अनुप्रास अलंकार है, भाषा सरल तथा सहज है।

3. चाकरी में दरसण पास्यूँ, सुमरण पास्यूँ खरची।

भाव भगती जागीरी पास्यूँ, तीनूं बाताँ सरसी।

उत्तर

इसमें मीरा कृष्ण की चाकरी करने के लिए तैयार है क्योंकि इससे वह उनके दर्शन, नाम, स्मरण और भावभक्ति पा सकती है। इसमें दास्य भाव दर्शाया गया है। भाषा ब्रज मिश्रित राजस्थानी है। अनुप्रास अलंकार, रुपक अलंकार और कुछ तुकांत शब्दों का प्रयोग भी किया गया है।

भाषा अध्यन 

1. उदाहरण के आधार पर पाठ में आए निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रुप लिखिए-

उदाहरण − भीर − पीड़ा/कष्ट/दुख; री − की

चीर ............... बूढ़ता ...............

धर्यो ............... लगास्यूँ ...............

कुण्जर ............... घणा ...............

बिन्दरावन ............... सरसी ...............

रहस्यूँ ............... हिवड़ा ...............

राखो ............... कुसुम्बी ...............

उत्तर

|चीर |- |वस्त्र |बूढ़ता |- |डूबना |

|धर्यो |- |रखना |लगास्यूँ |- |लगाना |

|कुण्जर |- |हाथी |घणा |- |बहुत |

|बिन्दरावन |- |वृंदावन |सरसी |- |अच्छी |

|रहस्यूँ |- |रहना |हिवड़ा |- |हृदय |

|राखो |- |रखना |कुसुम्बी |- |लाल (केसरिया) |

NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 3- दोहे स्पर्श भाग-2 हिंदी 

बिहारी

पृष्ठ संख्या: 16

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए -

1. छाया भी कब छाया ढूंढने लगती है? 

उत्तर 

जेठ के महीने की दोपहर की प्रचंड गर्मी में छाया भी छाया ढूंढने लगती है।  धूप इतनी तेज होती है की सर पर आने लगती जिससे छाया छोटी होती जाती है। 

2. बिहारी की नायिका यह क्यों कहती है 'कहिहै सबु तेरौ हियौ, मेरे हिय की बात' - स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

बिहारी की नायिका अपने प्रिय को संदेश देना चाहती है पर कागज पर लिखते समय कँपकपी और आँसू आ जाते हैं। किसी के साथ संदेश भेजेगी तो कहते लज्जा आएगी। इसलिए वह सोचती है कि जो विरह अवस्था उसकी है, वही उसके प्रिय की भी होगी। अत: वह कहती है कि अपने हृदय की वेदना से मेरी वेदना को समझ जाएँगे।

3. सच्चे मन में राम बसते हैं−दोहे के संदर्भानुसार स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

बिहारी जी ईश्वर प्राप्ति के लिए धर्म कर्मकांड को दिखावा समझते हैं। माला जपने, छापे लगवाना, माथे पर तिलक लगवाने से प्रभु नहीं मिलते। भगवान राम तो सच्चे मन की भक्ति से ही प्रसन्न होते हैं।

4. गोपियाँ श्रीकृष्ण की बाँसुरी क्यों छिपा लेती हैं?

उत्तर

गोपियाँ श्रीकृष्ण से बातें करना चाहती हैं। वे कृष्ण को रिझाना चाहती हैं। परन्तु कृष्ण जी को अपनी बाँसुरी बेहद प्रिय है वे सदैव उसे ही बजाते रहते हैं। इसलिए उनका ध्यान अपनी और आकर्षित करने के लिए बाँसुरी छिपा देती हैं।

5. बिहारी कवि ने सभी की उपस्थिति में भी कैसे बात की जा सकती है, इसका वर्णन किस प्रकार किया है? अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर

बिहारी ने बताया है कि नायक और नायिका सबकी उपस्थिति में इशारों में अपने मन की बात करते हैं। नायक ने सबकी उपस्थिति में नायिका को इशारा किया। नायिका ने इशारे से मना किया। इस पर नायक रीझ गया। इस रीझ पर नायिका खीज उठी। दोनों के नेत्र मिले, नायक प्रसन्न था और नायिका की आँखों में लज्जा थी।

(ख) भाव स्पष्ट कीजिए-

1. मनौ नीलमनी-सैल पर आतपु पर्यौ प्रभात।

उत्तर 

इस पंक्ति में श्रीकृष्ण की तुलना नीलमणि पर्वत से की गयी है। उनके अलौकिक सौंदर्य को देखकर ऐसा प्रतीत होता है, मनो नीलमणि पर्वत पर प्रातः कालीन सूर्य की धूप फैली हो। 

2. जगतु तपोबन सौ कियौ दीरघ-दाघ निदाघ।

उत्तर

बिहारी जी ने इस पंक्ति द्वारा यह बताया है कि ग्रीष्म ऋतु की भीषण गर्मी से पूरा जंगल तपोवन बन गया है। सबकी आपसी दुश्मनी समाप्त हो गई है। साँप, हिरण और सिंह सभी गर्मी से बचने के लिए साथ रह रहे हैं।

3. जपमाला, छापैं, तिलक सरै न एकौ कामु।

मन-काँचै नाचै बृथा, साँचै राँचै रामु।।

उत्तर

बिहारी का मानना है कि बाहरी आडम्बरों से ईश्वर नहीं मिलते। माला फेरने, हल्दी चंदन का तिलक लगाने या छापै लगाने से एक भी काम नहीं बनता। कच्चे मन वालों का हृदय डोलता रहता है। वे ही ऐसा करते हैं लेकिन राम तो सच्चे मन से याद करने वाले के हृदय में रहते हैं।

भावार्थ

सोहत ओढैं पीतु पटु स्याम, सलौनैं गात।

मनौ नीलमनि-सैल पर आतपु परयौ प्रभात।।

भावार्थ - इन पंक्तियों में बिहारी ने श्रीकृष्ण के सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहते हैं पीले वस्त्र पहने श्रीकृष्ण ऐसे सुशोभित हो रहे हैं मानो नीलमणि पर्वत पर प्रातःकालीन सूर्य की किरण पड़ रही हो।

कहलाने एकत बसत अहि मयूर , मृग बाघ।

जगतु तपोबन सौ कियौ दीरघ–दाघ निदाघ।।

भावार्थ - ग्रीष्म ऋतू की भयानक ताप ने इस संसार को जैसे तपोवन बना दिया है। इस भयंकर गर्मी से बचने के लिए एक-दूसरे के शत्रु साँप, मोर और सिंह साथ-साथ रहने लगे हैं। विपत्ति की इस घडी में सभी द्वेषों को भुलाकर जानवर भी तपस्वियों जैसा व्यवहार कर रहे हैं।

बतरस-लालच लाल की मुरली धरी लुकाइ।

सौंह करैं भौंहनु हँसै, दैन कहैं नटि जाइ।।

भावार्थ - गोपियों ने श्रीकृष्ण से बात करने की लालसा के कारण उनकी बाँसुरी छुपा दी हैं। वे भौंहों से मुरली ना चुराने का कसम खातीं हैं। वे कृष्ण को उनकी बाँसुरी देने से इनकार करती हैं।

कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत,खिलत, लजियात।

भरे भौन मैं करत हैं नैननु हीं सब बात।।

भावार्थ - इन पंक्तियों में बिहारी ने लोगों बीच में भी दो प्रेमी किस तरह अपने प्रेम को जताते हैं इसे दिखया है। भरे भवन में नायक अपनी नैनों से नायिका से मिलने को कहता है, जिसे नायिका मना कर देती है। उसके मना करने के इशारे पर नायक मोहित हो जाता है जिससे नायिका खीज जाती है। बाद में दोनों मिलते हैं और उनके चेहरे खिल जाते हैं तथा नायिका शरमा उठती है। ये सारी बातें वे दोनों भौंहों के इशारों और नैन द्वारा करते हैं।

बैठि रही अति सघन बन , पैठि सदन–तन माँह।

देखि दुपहरी जेठ की छाँहौं चाहति छाँह।।

भावार्थ - इन पंक्तियों में बिहारी ने जेठ मास की दोपहरी का चित्रण किया है। इस समय धूप इतनी अधिक होती है कि आराम के लिए कहीं छाया भी नहीं मिलती। ऐसा लगता है मानो छाया भी छाँव को ढूँढने चली गई हो। गर्मी से बचकर विश्राम करने के लिए वह भी अपने घने भवन में चली गयी है।

कागद पर लिखत न बनत , कहत सँदेसु लजात।

कहिहै सबु तेरौ हियौ, मेरे हिय की बात।।

भावार्थ - इन पंक्तियों में बिहारी उस नायिका के मनोदशा को दिखा रहे हैं जिसका प्रियतम उससे दूर है। नायिका कहती है कि उसे कागज़ पे अपना सन्देश लिखा नहीं जा रहा है। किसी संदेशवाहक के द्वारा सन्देश नही भिजवा सकती क्योंकि उसे कहने में लज्जा आ रही है। इसलिए वह कहती है कि अब तुम्हीं अपने हृदय पर हाथ रख महसूस करो की मेरा हृदय में क्या है।

प्रगट भए द्विजराज – कुल सुबस बसे ब्रज आइ ।

मेरे हरौ कलेस सब , केसव केसवराइ।।

भावार्थ - इन पंक्तियों में बिहारी श्रीकृष्ण से कह रहे हैं कि आप चन्द्रवंश में पैदा हुए तथा अपनी इच्छा से ब्रज आये। आप मेरे पिता के समान हैं। आप मेरे सारे कष्टों को दूर करें।

जपमाला , छापैं , तिलक सरै न एकौ कामु।

मन–काँचै नाचै बृथा, साँचै राँचै रामु ।।

भावार्थ - बिहारी कहते हैं कि हाथ में जपमाला थाम, तिलक लगा कर आडम्बर करने से कोई काम नही होता। मन काँच की तरह क्षणभंगुर होता है जो व्यर्थ में नाचता रहता है। इन सब दिखावा को छोड़ अगर भगवान की सच्चे मन से आराधना की जाए तभी काम बनता है।

कवि परिचय

बिहारी

इनका जन्म 1595 में ग्वालियर में हुआ था। सात-आठ वर्ष की उम्र में ही इनके पिता ओरछा चले गए जहाँ इन्होंने आचार्य केशवदास से काव्य शिक्षा पायी। यहीं बिहारी रहीम के संपर्क में आये। बिहारी ने अपने जीवन के कुछ वर्ष जयपुर में भी बिताये। ये रसिक जीव थे पर इनकी रसिकता नागरिक जीवन की रसिकता थी। इनका स्वभाव विनोदी और व्यंग्यप्रिय था। इनकी एक रचना 'सतसई' उपलब्ध है जिसमे करीब 700 दोहे संगृहीत हैं। 1663 में इनका देहावसान हुआ।

कठिन शब्दों के अर्थ

• सोहत - अच्छा लगना

• पीतु - पिला

• पटु - वस्त्र

• नीलमनि सैल - नीलमणि का पर्वत

• आतपु - धुप

• बसत - बसना

• अहि - साँप

• तपोबन - वह वन जहाँ तपस्वी रहते हैं

• दीरघ–दाघ - भयंकर गर्मी 

• निदाघ - ग्रीष्म ऋतू

• बतरस - बातचीत का आनंद

• मुरली - बाँसुरी

• लुकाइ - छुपाना

• सौंह - शपथ

• भौंहनु - भौंह से

• नटि - मना करना

• रीझत - मोहित होना

• खिझत - बनावटी गुस्सा दिखाना

• मिलत - मिलना

• खिलत - खिलना

• लजियात - लज्जा आना

• भौन - भवन

• सघन - घना

• पैठि - घुसना

• सदन–तन - भवन में

• कागद - कागज़

• सँदेसु - सन्देश

• हिय - हृदय

• द्विजराज - चन्द्रमा, ब्राह्मण

• सुबस - अपनी इच्छा से

• केसव - श्री कृष्ण

• केसवराइ - बिहारी कवि के पिता

• जपमाला - जपने की माला

• छापैं - छापा

• मन–काँचै - कच्चा मन

• साँचै - सच्ची भक्ति वाला

NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 4- मनुष्यता स्पर्श भाग-2 हिंदी 

मैथिलीशरण गुप्त

पृष्ठ संख्या: 22

प्रश्न अभ्यास 

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए -

1. कवि ने कैसी मृत्यु को सुमृत्यु कहा है?

उत्तर

कवि ने ऐसी मृत्यु को सुमृत्यु कहा है जो मानवता की राह मे परोपकार करते हुए आती है जिसके बाद मनुष्य को मरने के बाद भी याद रखा जाता है।

2. उदार व्यक्ति की पहचान कैसे हो सकती है?

उत्तर

उदार व्यक्ति परोपकारी होता है। अपना पूरा जीवन पुण्य व लोकहित कार्यो में बिता देता है। किसी से भेदभाव नहीं रखता, आत्मीय भाव रखता है। कवि और लेखक भी उसके गुणों की चर्चा अपने लेखों में करते हैं। वह निज स्वार्थों का त्याग कर जीवन का मोह भी नहीं रखता।

3. कवि ने दधीचि कर्ण, आदि महान व्यक्तियों का उदाहरण देकर मनुष्यता के लिए क्या संदेश दिया है?

उत्तर 

कवि ने दधीचि ,कर्ण आदि महान व्यक्तियों के उदाहरण देकर ‘मनुष्यता’के लिए यह संदेश दिया है कि परोपकार के लिए अपना सर्वस्व यहॉ तक कि अपने प्राण तक न्योंछावर तक करने को तैयार रहना चाहिए।यहॉ तक कि परहित के लिए अपने शरीर तक का दान करने को तैयार रहना चाहिए।दधीचि ने मानवता की रक्षा के लिए अपनी अस्थियॉ तथा कर्ण ने खाल तक दान कर दी।हमारा शरीर तो नश्वर हैं उसका मोह रखना व्यर्थ है।परोपकार करना ही सच्ची मनुष्यता है। हमें यही करना चाहिए।

4. कवि ने किन पंक्तियों में यह व्यक्त है कि हमें गर्व रहित जीवन व्यतीत करना चाहिए?

उत्तर 

निम्नलिखित पंक्तियों में गर्व रहित जीवन व्यतीत करने की बात कही गई है-

रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में।

सनाथ जान आपको करो न गर्व चित्त में॥

5. 'मनुष्य मात्र बंधु है' से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

मनुष्य मात्र बंधु है से तात्पर्य है कि सभी मनुष्य आपस में भाई बंधु हैं क्योंकि सभी का पिता एक ईश्वर है। इसलिए सभी को प्रेम भाव से रहना चाहिए, सहायता करनी चाहिए। कोई पराया नहीं है। सभी एक दूसरे के काम आएँ।

6. कवि ने सबको एक होकर चलने की प्रेरणा क्यों दी है?

उत्तर

कवि ने सबको एक साथ चलने की प्रेरणा इसलिए दी है क्योंकि सभी मनुष्य उस एक ही परमपिता परमेश्वर की संतान हैं इसलिए बंधुत्व के नाते हमें सभी को साथ लेकर चलना चाहिए क्योंकि समर्थ भाव भी यही है कि हम सबका कल्याण करते हुए अपना कल्याण करें।

7. व्यक्ति को किस प्रकार का जीवन व्यतीत करना चाहिए? इस कविता के आधार पर लिखिए।

उत्तर

व्यक्ति को परोपकार का जीवन व्यतीत करना चाहिए।साथ ही अपने अभीष्ट मार्ग पर एकता के साथ बढ़ना चाहिए। इस दौरान जो भी विपत्तियॉ आऍं,उन्हें ढकेलते हुए आगे बढ़ते जाना चाहिए।उदार ह्रदय बनकर अहंकार रहित मानवतावादी जीवन व्यतीत करना चाहिए।

8. 'मनुष्यता' कविता के माध्यम से कवि क्या संदेश देना चाहता है?

उत्तर

'मनुष्यता' कविता के माध्यम से कवि यह संदेश देना चाहता है कि हमें अपना जीवन परोपकार में व्यतीत करना चाहिए। सच्चा मनुष्य दूसरों की भलाई के काम को सर्वोपरि मानता है।हमें मनुष्य मनुष्य के बीच कोई अंतर नहीं करना चाहिए। हमें उदार ह्रदय बनना चाहिए । हमें धन के मद में अंधा नहीं बनना चाहिए। मानवता वाद को अपनाना चाहिए।

(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए। 

1. सहानुभूति चाहिए, महाविभूति है यही

वशीकृता सदैव है बनी हुई स्वयं मही।

विरुद्धवाद बुद्ध का दया-प्रवाह में बहा,

विनीत लोकवर्ग क्या न सामने झुका रहा?

उत्तर

इन पंक्तियों द्वारा कवि ने एक दूसरे के प्रति सहानुभूति की भावना को उभारा है। इससे बढ़कर कोई पूँजी नहीं है। यदि प्रेम, सहानुभूति, करुणा के भाव हो तो वह जग को जीत सकता है। वह सम्मानित भी रहता है। महात्मा बुद्ध के विचारों का भी विरोध हुआ था परन्तु जब बुद्ध ने अपनी करुणा, प्रेम व दया का प्रवाह किया तो उनके सामने सब नतमस्तक हो गए।

2. रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में,

सनाथ जान आपको करो न गर्व चित्त में।

अनाथ कौन है यहाँ? त्रिलोकनाथ साथ हैं,

दयालु दीनबंधु के बड़े विशाल हाथ हैं।

उत्तर

कवि कहता है कि कभी भूलकर भी अपने थोड़े से धन के अहंकार में अंधे होकर स्वयं को सनाथ अर्थात् सक्षम मानकर गर्व मत करो क्योंकि अनाथ तो कोई नहीं है।इस संसार का स्वामी ईश्वर तो सबके साथ है और ईश्वर तो बहुत दयालु ,दीनों और असहायों का सहारा है और उनके हाथ बहुत विशाल है अर्थात् वह सबकी सहायता करने में सक्षम है।प्रभु के रहते भी जो व्याकुल रहता है वह बहुत ही भाग्यहीन है।सच्चा मनुष्य वह है जो मनुष्य के लिए मरता है।

3. चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए,

विपत्ति, विघ्न जो पड़ें उन्हें ढकेलते हुए।

घटे न हेलमेल हाँ, बढ़े न भिन्नता कभी,

अतर्क एक पंथ के सतर्क पंथ हों सभी।

उत्तर

कवि कहता है कि अपने इच्छित मार्ग पर प्रसन्नतापूर्वक हंसते खेलते चलो और रास्ते पर जो कठिनाई या बाधा पड़े उन्हें ढकेलते हुए आगे बढ़ जाओ। परंतु यह ध्यान रखना चाहिए कि हमारा आपसी सामंजस्य न घटे और हमारे बीच भेदभाव न बढ़े।हम तर्क रहित होकर एक मार्ग पर सावधानीपूर्वक चलें।एक दूसरे को तारते हुए अर्थात् उद्धार करते हुए आगे बढ़े तभी हमारी समर्थता सिद्ध होगी अर्थात् हम तभी समर्थ माने जाएंगे जब हम केवल अपनी ही नहीं समस्त समाज की भी उन्नति करेंगे।सच्चा मनुष्य वही है जो दूसरों के लिए मरता है।

व्याख्या

प्रस्तुत पाठ में कवि मैथलीशरण गुप्त ने सही अर्थों में मनुष्य किसे कहते हैं उसे बताया है। कविता परोपकार की भावना का बखान करती है तथा मनुष्य को भलाई और भाईचारे के पथ पर चलने का सलाह देती है।

विचार लो कि मर्त्य हो न मृत्यु से डरो कभी,

मरो परन्तु यों मरो कि याद जो करे सभी।

हुई न यों सु-मृत्यु तो वृथा मरे, वृथा जिए,

मरा नहीं वहीं कि जो जिया न आपके लिए।

वही पशु-प्रवृत्ति है कि आप आप ही चरे,

वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

कवि कहते हैं मनुष्य को ज्ञान होना चाहिए की वह मरणशील है इसलिए उसे मृत्यु से डरना नहीं चाहिए परन्तु उसे ऐसी सुमृत्यु को प्राप्त होना चाहिए जिससे सभी लोग मृत्यु के बाद भी याद करें। कवि के अनुसार ऐसे व्यक्ति का जीना या मरना व्यर्थ है जो खुद के लिए जीता हो। ऐसे व्यक्ति पशु के समान है असल मनुष्य वह है जो दूसरों की भलाई करे, उनके लिए जिए। ऐसे व्यक्ति को लोग मृत्यु के बाद भी याद रखते हैं।

उसी उदार की कथा सरस्वती बखानती,

उसी उदार से धरा कृतार्थ भाव मानती।

उसी उदार की सदा सजीव कीर्ति कूजती,

तथा उसी उदार को समस्त सृष्टि पूजती।

अखंड आत्म भाव जो असीम विश्व में भरे,

वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

कवि के अनुसार उदार व्यक्तियों की उदारशीलता को पुस्तकों, इतिहासों में स्थान देकर उनका बखान किया जाता है, उनका समस्त लोग आभार मानते हैं तथा पूजते हैं। जो व्यक्ति विश्व में एकता और अखंडता को फैलता है उसकी कीर्ति का सारे संसार में गुणगान होता है। असल मनुष्य वह है जो दूसरों के लिए जिए मरे।

क्षुदार्त रंतिदेव ने दिया करस्थ थाल भी,

तथा दधीचि ने दिया परार्थ अस्थिजाल भी।

उशीनर क्षितीश ने स्वमांस दान भी किया,

सहर्ष वीर कर्ण ने शरीर-चर्म भी दिया।

अनित्य देह के लिए अनादि जीव क्या डरे,

वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

इन पंक्तियों में कवि ने पौरणिक कथाओं का उदारहण दिया है। भूख से व्याकुल रंतिदेव ने माँगने पर अपना भोजन का थाल भी दे दिया तथा देवताओं को बचाने के लिए दधीचि ने अपनी हड्डियों को व्रज बनाने के लिए दिया। राजा उशीनर ने कबूतर की जान बचाने के लिए अपने शरीर का मांस बहेलिए को दे दिया और वीर कर्ण ने अपना शारीरिक रक्षा कवच दान कर दिया। नश्वर शरीर के लिए मनुष्य को भयभीत नही होना चाहिए।

सहानुभूति चाहिए, महाविभूति है वही,

वशीकृता सदैव है बनी हुई स्वयं मही।

विरुद्धवाद बुद्ध का दया-प्रवाह में बहा,

विनीत लोक वर्ग क्या न सामने झुका रहे?

अहा! वही उदार है परोपकार जो करे,

वहीं मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

कवि ने सहानुभूति, उपकार और करुणा की भावना को सबसे बड़ी पूंजी बताया है और कहा है की इससे ईश्वर भी वश में हो जाते हैं। बुद्ध ने करुणावश पुरानी परम्पराओं को तोड़ा जो कि दुनिया की भलाई के लिए था इसलिए लोग आज भी उन्हें पूजते हैं। उदार व्यक्ति वह है जो दूसरों की भलाई करे।

रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में

सन्त जन आपको करो न गर्व चित्त में

अन्त को हैं यहाँ त्रिलोकनाथ साथ में

दयालु दीन बन्धु के बडे विशाल हाथ हैं

अतीव भाग्यहीन हैं अंधेर भाव जो भरे

वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

कवि कहते हैं की अगर किसी मनुष्य के पास यश, धन-दौलत है तो उसे इस बात के गर्व में अँधा होकर दूसरों की उपेक्षा नही करनी नहीं चाहिए क्योंकि इस संसार में कोई अनाथ नहीं है। ईश्वर का हाथ सभी के सर पर है। प्रभु के रहते भी जो व्याकुल है वह बड़ा भाग्यहीन है।

अनंत अंतरिक्ष में अनंत देव हैं खड़े¸

समक्ष ही स्वबाहु जो बढ़ा रहे बड़े–बड़े।

परस्परावलम्ब से उठो तथा बढ़ो सभी¸

अभी अमत्र्य–अंक में अपंक हो चढ़ो सभी।

रहो न यों कि एक से न काम और का सरे¸

वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

कवि के अनुसार अनंत आकाश में असंख्य देवता मौजूद हैं जो अपने हाथ बढ़ाकर परोपकारी और दयालु मनुष्यों के स्वागत के लिए खड़े हैं। इसलिए हमें परस्पर सहयोग बनाकर उन ऊचाइयों को प्राप्त करना चाहिए जहाँ देवता स्वयं हमें अपने गोद में बिठायें। इस मरणशील संसार में हमें एक-दूसरे के कल्याण के कामों को करते रहें और स्वयं का उद्धार करें।

'मनुष्य मात्र बन्धु है' यही बड़ा विवेक है¸

पुराणपुरूष स्वयंभू पिता प्रसिद्ध एक है।

फलानुसार कर्म के अवश्य बाह्य भेद है¸

परंतु अंतरैक्य में प्रमाणभूत वेद हैं।

अनर्थ है कि बंधु हो न बंधु की व्यथा हरे¸

वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

सभी मनुष्य एक दूसरे के भाई-बंधू है यह बहुत बड़ी समझ है सबके पिता ईश्वर हैं। भले ही मनुष्य के कर्म अनेक हैं परन्तु उनकी आत्मा में एकता है। कवि कहते हैं कि अगर भाई ही भाई की मदद नही करेगा तो उसका जीवन व्यर्थ है यानी हर मनुष्य को दूसरे की मदद को तत्पर रहना चाहिए।

चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए¸

विपत्ति विप्र जो पड़ें उन्हें ढकेलते हुए।

घटे न हेल मेल हाँ¸ बढ़े न भिन्नता कभी¸

अतर्क एक पंथ के सतर्क पंथ हों सभी।

तभी समर्थ भाव है कि तारता हुआ तरे¸

वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

अंतिम पंक्तियों में कवि मनुष्य को कहता है कि अपने इच्छित मार्ग पर प्रसन्नतापूर्वक हंसते खेलते चलो और रास्ते पर जो बाधा पड़े उन्हें हटाते हुए आगे बढ़ो। परन्तु इसमें मनुष्य को यह ध्यान रखना चाहिए कि उनका आपसी सामंजस्य न घटे और भेदभाव न बढ़े। जब हम एक दूसरे के दुखों को दूर करते हुए आगे बढ़ेंगे तभी हमारी समर्थता सिद्ध होगी और समस्त समाज की भी उन्नति होगी।

कवि परिचय

मैथिलीशरण गुप्त

इनका जन्म 1886 में झाँसी के करीब चिरगाँव में हुआ था। अपने जीवन काल में ही ये राष्ट्रकवि के रूप में विख्यात हुए। इनकी शिक्षा-दीक्षा घर पर ही हुई। संस्कृत, बांग्ला, मराठी और अंग्रेजी पर इनका सामान अधिकार था। ये रामभक्त कवि हैं। इन्होने भारतीय जीवन को समग्रता और प्रस्तुत करने का प्रयास किया।

प्रमुख कार्य

कृतियाँ - साकेत, यशोधरा जयद्रथ वध।

कठिन शब्दों के अर्थ

• मृत्य - मरणशील

• वृथा - व्यर्थ

• पशु–प्रवृत्ति - पशु जैसा स्वभाव

• उदार - दानशील

• कृतार्थ - आभारी

• कीर्ति - यश

• क्षुधार्थ - भूख से व्याकुल

• रंतिदेव -एक परम दानी राजा

• करस्थ - हाथ में पकड़ा हुआ

• दधीची - एक प्रसिद्ध ऋषि जिनकी हड्डियों से इंद्र का व्रज बना था

• परार्थ - जो दूसरे के लिए हो

• अस्थिजाल - हड्डियों का समूह

• उशीनर - गंधार देश का राजा

• क्षितीश - राजा

• स्वमांस - शरीर का मांस

• कर्ण - दान देने के लिए प्रसिद्ध कुंती पुत्र

• अनित्य - नश्वर 

• अनादि - जिसका आरम्भ ना हो

• सहानुभूति - हमदर्दी

• महाविभूति - बड़ी भारी पूँजी

• वशीकृता - वश में की हुई

• विरूद्धवाद बुद्ध का दया–प्रवाह में बहा - बुद्ध ने करुणावश उस समय की पारम्परिक मान्यताओं का विरोध किया था।

• विनीत - विनय से युक्त

• मदांध - जो गर्व से अँधा हो।

• वित्त - धन-संपत्ति

• अतीव - बहुत ज्यादा

• अनंत - जिसका कोई अंत ना हो

• परस्परावलम्ब - एक-दूसरे का सहारा

• अमृत्य–अंक - देवता की गोद

• अपंक - कलंक रहित

• स्वयंभू - स्वंय से उत्पन्न होने वाला

• अंतरैक्य - आत्मा की एकता

• प्रमाणभूत - साक्षी

• अभीष्ट - इक्षित

• अतर्क - तर्क से परे

• सतर्क पंथ - सावधानी यात्रा

NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 5- पर्वत प्रदेश में पावस स्पर्श भाग-2 हिंदी

सुमित्रानंदन पंत

पृष्ठ संख्या: 28

प्रश्न अभ्यास

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए -

1. पावस ऋतु में प्रकृति में कौन-कौन से परिवर्तन आते हैं? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए?

उत्तर

वर्षा ऋतु में मौसम बदलता रहता है। तेज़ वर्षा होती है। जल पहाड़ों के नीचे इकट्ठा होता है तो दर्पण जैसा लगता है। पर्वत मालाओं पर अनगिनत फूल खिल जाते हैं। ऐसा लगता है कि अनेकों नेत्र खोलकर पर्वत देख रहा है। पर्वतों पर बहते झरने मानो उनका गौरव गान गा रहे हैं। लंबे-लंबे वृक्ष आसमान को निहारते चिंतामग्न दिखाई दे रहे हैं। अचानक काले काले बादल घिर आते हैं। ऐसा लगता है मानो बादल रुपी पंख लगाकर पर्वत उड़ना चाहते हैं। कोहरा धुएँ जैसा लगता है। इंद्र देवता बादलों के यान पर बैठकर नए-नए जादू दिखाना चाहते हैं।

2. 'मेखलाकार' शब्द का क्या अर्थ है? कवि ने इस शब्द का प्रयोग यहाँ क्यों किया है?

उत्तर 

मेखलाकार का अर्थ है करघनी के आकार का। यहाँ इस शब्द का प्रयोग पर्वतों की श्रृंखला के लिए किया गया है। ये पावस ऋतु में दूर-दूर तक करघनी की आकृति में फैले हुए हैं।

3. 'सहस्र दृग-सुमन' से क्या तात्पर्य है? कवि ने इस पद का प्रयोग किसके लिए किया होगा?

उत्तर

'सहस्र दृग-सुमन' कवि का तात्पर्य पहाड़ों पर खिले हजारों फूलों से है। कवि को फूल पहाड़ों की आँखों के सामान लग रहे हैं इसीलिए कवि ने इस पद का प्रयोग किया है।

4. कवि ने तालाब की समानता किसके साथ दिखाई है और क्यों?

उत्तर

कवि ने तालाब की समानता दर्पण से की है क्योंकि तालाब भी दर्पण की तरह स्वच्छ और निर्मल प्रतिबिम्ब दिखा रहा है।

5. पर्वत के हृदय से उठकर ऊँचे-ऊँचे वृक्ष आकाश की और क्यों देख रहे थे और वे किस बात को प्रतिबिंबित करते हैं?

उत्तर 

ऊँचे-ऊँचे पर्वत पर उगे वृक्ष आकाश की ओर देखते चिंतामग्न प्रतीत हो रहे हैं। जैसे वे आसमान की ऊचाइयों को छूना चाहते हैं। इससे मानवीय भावनाओं को बताया गया है कि मनुष्य सदा आगे बढ़ने का भाव अपने मन में रखता है।

6. शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में क्यों धँस गए?

उत्तर

वर्षा की भयानकता और धुंध से शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में धँस गए प्रतीत होते हैं।

7. झरने किसके गौरव का गान कर रहे हैं? बहते हुए झरने की तुलना किससे की गई है?

उत्तर

झरने पर्वतों की गाथा का गान कर रहे हैं। बहते हुए झरने की तुलना मोती की लड़ियों से की गयी है।

(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए -

1. है टूट पड़ा भू पर अंबर।

उत्तर

सुमित्रानंदन पंत जी ने इस पंक्ति में पर्वत प्रदेश के मूसलाधार वर्षा का वर्णन किया है। पर्वत प्रदेश में पावस ऋतु में प्रकृति की छटा निराली हो जाती है। कभी-कभी इतनी धुआँधार वर्षा होती है मानो आकाश टूट पड़ेगा।

2. −यों जलद-यान में विचर-विचर

था इंद्र खेलता इंद्रजाल।

उत्तर

कभी गहरे बादल, कभी तेज़ वर्षा और तालाबों से उठता धुआँ − यहाँ वर्षा ऋतु में पल-पल प्रकृति वेश बदल जाता है। यह सब दृश्य देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे बादलों के विमान में विराजमान राजा इन्द्र विभिन्न प्रकार के जादुई खेल-खेल रहे हों।

3. गिरिवर के उर से उठ-उठ कर

उच्चाकांक्षाओं से तरुवर

हैं झांक रहे नीरव नभ पर

अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।

उत्तर

इन पंक्तियों का भाव यह है कि पर्वत पर उगे विशाल वृक्ष ऐसे लगते हैं मानो इनके हृदय में अनेकों महत्वकांक्षाएँ हैं और ये चिंतातुर आसमान को देख रहे हैं।

पृष्ठ संख्या: 29

कविता का सौंदर्य 

1. इस कविता में मानवीकरण अलंकार का प्रयोग किया गया है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

प्रस्तुत कविता में जगह-जगह पर मानवीकरण अलंकार का प्रयोग करके प्रकृति में जान डाल दी गई है जिससे प्रकृति सजीव प्रतीत हो रही है; जैसे − पर्वत पर उगे फूल को आँखों के द्वारा मानवकृत कर उसे सजीव प्राणी की तरह प्रस्तुत किया गया है।

"उच्चाकांक्षाओं से तरूवर

हैं झाँक रहे नीरव नभ पर"

इन पंक्तियों में तरूवर के झाँकने में मानवीकरण अलंकार है, मानो कोई व्यक्ति झाँक रहा हो।

2. आपकी दृष्टि में इस कविता का सौंदर्य इनमें से किस पर निर्भर करता है −

(क) अनेकशब्दों की आवृति पर

(ख) शब्दों की चित्रमयी भाषा पर

(ग) कविता की संगीतात्मकता पर

उत्तर

(ख) शब्दों की चित्रमयी भाषा पर 

इस कविता का सौंदर्य शब्दों की चित्रमयी भाषा पर निर्भर करता है। कवि ने कविता में चित्रात्मक शैली का प्रयोग करते हुए प्रकृति का सुन्दर रुप प्रस्तुत किया गया है।

3. कवि ने चित्रात्मक शैली का प्रयोग करते हुए पावस ऋतु का सजीव चित्र अंकित किया है। ऐसे स्थलों को छाँटकर लिखिए।

उत्तर

कवि ने चित्रात्मक शैली का प्रयोग करते हुए पावस ऋतु का सजीव चित्र अंकित किया है। कविता में इन स्थलों पर चित्रात्मक शैली की छटा बिखरी हुई है-

1. मेखलाकार पर्वत अपार

अपने सहस्र दृग-सुमन फाड़,

अवलोक रहा है बार-बार

नीचे जल में निज महाकार

जिसके चरणों में पला ताल

दर्पण फैला है विशाल!

2. गिरिवर के उर से उठ-उठ कर

उच्चाकांक्षाओं से तरुवर

हैं झाँक रहे नीरव नभ पर

अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।

व्याख्या

पावस ऋतु थी, पर्वत प्रदेश,

पल-पल परिवर्तित प्रकृति-वेश।

इस कविता में कवि सुमित्रानंदन पंत जी ने पर्वतीय इलाके में वर्षा ऋतु का सजीव चित्रण किया है। पर्वतीय प्रदेश में वर्षा ऋतु होने से वहाँ प्रकृति में पल-पल बदलाव हो रहे हैं। कभी बादल छा जाने से मूसलधार बारिश हो रही थी तो कभी धूप निकल जाती है।

मेखलाकर पर्वत अपार

अपने सहस्‍त्र दृग-सुमन फाड़,

अवलोक रहा है बार-बार

नीचे जल में निज महाकार,

         -जिसके चरणों में पला ताल

          दर्पण सा फैला है विशाल!

पर्वतों की श्रृंखला मंडप का आकार लिए अपने पुष्प रूपी नेत्रों को फाड़े अपने नीचे देख रहा है। कवि को ऐसा लग रहा है मानो तालाब पर्वत के चरणों में पला हुआ है जो की दर्पण जैसा विशाल दिख रहा है। पर्वतों में उगे हुए फूल कवि को पर्वत के नेत्र जैसे लग रहे हैं जिनसे पर्वत दर्पण समान तालाब में अपनी विशालता और सौंदर्य का अवलोकन कर रहा है।

गिरि का गौरव गाकर झर-झर

मद में नस-नस उत्‍तेजित कर

मोती की लडि़यों सी सुन्‍दर

झरते हैं झाग भरे निर्झर!

गिरिवर के उर से उठ-उठ कर

उच्‍चाकांक्षायों से तरूवर

है झांक रहे नीरव नभ पर

अनिमेष, अटल, कुछ चिंता पर।

झरने पर्वत के गौरव का गुणगान करते हुए झर-झर बह रहे हैं। इन झरनों की करतल ध्वनि कवि के नस-नस में उत्साह का संचार करती है। पर्वतों पर बहने वाले झाग भरे झरने कवि को मोती की लड़ियों के समान लग रहे हैं जिससे पर्वत की सुंदरता में और निखार आ रहा है।

पर्वत के खड़े अनेक वृक्ष कवि को ऐसे लग रहे हैं मानो वे पर्वत के हृदय से उठकर उँची आकांक्षायें लिए अपलक और स्थिर होकर शांत आकाश को देख रहे हैं तथा थोड़े चिंतित मालुम हो रहे हैं।

उड़ गया, अचानक लो, भूधर

फड़का अपार वारिद के पर!

रव-शेष रह गए हैं निर्झर!

है टूट पड़ा भू पर अंबर!

धँस गए धरा में सभय शाल!

उठ रहा धुऑं, जल गया ताल!

-यों जलद-यान में विचर-विचर

था इंद्र खेलता इंद्रजाल।

पल-पल बदलते इस मौसम में अचानक बादलों के आकाश में छाने से कवि को लगता है की पर्वत जैसे गायब हो गए हों। ऐसा लग रहा है मानो आकाश धरती पर टूटकर आ गिरा हो। केवल झरनों का शोर ही सुनाई दे रहा है।

तेज बारिश के कारण धुंध सा उठता दिखाई दे रहा है जिससे ऐसा लग रहा है मानो तालाब में आग लगी हो। मौसम के ऐसे रौद्र रूप को देखकर शाल के वृक्ष डरकर धरती में धँस गए हैं ऐसे प्रतीत होते हैं। इंद्र भी अपने बादलरूपी विमान में सवार होकर इधर-उधर अपना खेल दिखाते घूम रहे हैं।

कवि परिचय

सुमित्रानंदन पंत

इनका जन्म सन 20 मई 1900 को उत्तराखंड के कौसानी-अल्मोड़ा में हुआ था। इन्होनें बचपन से ही कविता लिखना आरम्भ कर दिया था। सात साल की उम्र में इन्हें स्कूल में काव्य-पाठ के लिए पुरस्कृत किया गया। 1915 में स्थायी रूप से साहित्य सृजन किया और छायावाद के प्रमुख स्तम्भ के रूप में जाने गए। इनकी प्रारम्भिक कविताओं में प्रकृति प्रेम और रहस्यवाद झलकता है। इसके बाद वे मार्क्स और महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित हुए।

प्रमुख कार्य

कविता संग्रह - कला और बूढ़ा चाँद, चिदंबरा

कृतियाँ - वीणा, पल्लव, युगवाणी, ग्राम्या, स्वर्णकिरण और लोकायतन।

पुरस्कार - पद्मभूषण, ज्ञानपीठ, साहित्य अकादमी पुरस्कार।

कठिन शब्दों के अर्थ

• पावस ऋतू - वर्षा ऋतू

• वेश - रूप

• मेघलाकार - करघनी के आकार की पहाड़ की ढाल

• अपार - जिसकी कोई सीमा ना हो

• सहस्त्र - हजारों

• दृग-सुमन - फूल रूपी आँखें

• अवलोक - देख रहा

• महाकार - विशाल आकार

• ताल - तालाब

• दर्पण - शीशा

• गिरि - पर्वत

• मद - मस्ती

• उत्तेजित करना - भड़काना

• निर्झर - झरना

• उर - हृदय

• उच्‍चाकांक्षायों - उँची आकांक्षा

• तरुवर - वृक्ष

• नीरव - शांत

• अनिमेष - अपलक

• अटल - स्थिर

• भूधर - पर्वत

• वारिद - बादल

• रव-शेष - केवल शोर बाकी रह जाना

• सभय - डरकर

• जलद - बादल रूपी वाहन

• विचर-विचर - घूम-घूम कर

• इंद्रजाल - इन्द्रधनुष

NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 6- मधुर-मधुर मेरे दीपक जल स्पर्श भाग-2 हिंदी 

महादेवी वर्मा

पृष्ठ संख्या: 34

प्रश्न अभ्यास

(क) निम्नलिखित प्रश्नों क उत्तर दीजिए -

1. प्रस्तुत कविता में 'दीपक' और 'प्रियतम' किसके प्रतीक हैं?

उत्तर

प्रस्तुत कविता में दीपक ईश्वर के प्रति आस्था एवं आत्मा का और प्रियतम उसके आराध्य ईश्वर का प्रतीक है।

2. दीपक से किस बात का आग्रह किया जा रहा है और क्यों?

उत्तर

महादेवी वर्मा ने दीपक से यह आग्रह किया है कि वह निरंतर जलता रहे। अर्थात इसकी आस्था बनी रहे। वह आग्रह इसलिए करती हैं क्योंकि वे अपने जीवन में ईश्वर का स्थान सबसे बड़ा मानती हैं। ईश्वर को पाना ही उनका लक्ष्य है।

3. विश्व-शलभ दीपक के साथ क्यों जल जाना चाहता है?

उत्तर

विश्व-शलभ दीपक के साथ जलकर अपने अस्तित्व को विलीन करके प्रकाशमय होना चाहता है। जिस प्रकार दीपक ने स्वयं को जलाकर, संसार को ज्वाला के कण दिए हैं, उसी प्रकार विश्व-शलभ भी जनहित के लिए  करना चाहता है।

4. आपकी दृष्टि में मधुर मधुर मेरे दीपक जल कविता का सौंदर्य इनमें से किस पर निर्भर है

(क) शब्दों की आवृति पर।

(ख) सफल बिंब अंकन पर।

उत्तर

इस कविता की सुंदरता दोनों पर निर्भर है। पुनरुक्ति रुप में शब्द का प्रयोग है − मधुर-मधुर, युग-युग, सिहर-सिहर, विहँस-विहँसआदि कविता को लयबद्ध बनाते हुए प्रभावी बनाने में सक्षम हैं। दूसरी ओर बिंब योजना भी सफल है। विश्व-शलभ सिर धुन कहता, मृदुल मोम सा घुल रे मृदु तन जैसे बिंब हैं।

5. कवयित्री किसका पथ आलोकित करना चाह रही हैं?

उत्तर

कवयित्री अपने प्रियतम का पथ आलोकित करना चाहती हैं। उनका प्रियतम ईश्वर है।

6. कवयित्री को आकाश के तारे स्नेहहीन से क्यों प्रतीत हो रहे हैं?

उत्तर

कवयित्री को आकाश के तारे स्नेहहीन से प्रतीत हो रहे हैं क्योंकि इनका तेज समाप्त हो चुका है। उनमें आपस में कोई स्नेह नहीं है।

7. पतंगा अपने क्षोभ को किस प्रकार व्यक्त कर रहा है?

उत्तर

पतंगा अपना सिर धुनकर अपने क्षोभ को व्यक्त कर रहा है। वह सोच रहा है कि  वह इस आस्था रूपी दीपक की लौ के साथ जलकर उस ईश्वर में विलीन क्यों नही हो गया।

8. कवयित्री ने दीपक को हर बार अलग-अलग तरह से 'मधुर-मधुर, पुलक-पुलक, सिहर-सिहर और विहँस-विहँस' जलने को क्यों कहा है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

कवयित्री अपने आत्मदीपक को तरह-तरह से जलने के लिए कहती हैं मीठी, प्रेममयी, खुशी के साथ, काँपते हुए, उत्साह और प्रसन्नता से। कवयित्री चाहती है कि हर परिस्थितियों में यह दीपक जलता रहे और प्रभु का पथ आलोकित करता रहे। इसलिए कवयित्री ने दीपक को हर बार अलग-अलग तरह से जलने को कहा है।

9. नीचे दी गई काव्य-पंक्तियों को पढ़िए और प्रश्नों के उत्तर दीजिए −

जलते नभ में देख असंख्यक,

स्नेहहीन नित कितने दीपक;

जलमय सागर का उर जलता,

विद्युत ले घिरता है बादल!

विहँस विहँस मेरे दीपक जल!

(क) स्नेहहीन दीपक से क्या तात्पर्य है?

(ख) सागर को जलमय कहने का क्या अभिप्राय है और उसका हृदय क्यों जलता है?

(ग) बादलों की क्या विशेषता बताई गई है?

(घ) कवयित्री दीपक को विहँस विहँस जलने के लिए क्यों कह रही हैं?

उत्तर

(क) स्नेहहीन दीपक से तात्पर्य बिना तेल का दीपक अर्थात प्रभु भक्ति से शून्य व्यक्ति।

(ख) कवयित्री ने सागर को संसार कहा है और जलमय का अर्थ है सांसारिकता में लिप्त। अतः सागर को जलमय कहने से तात्पर्य है सांसारिकता से भरपूर संसार। सागर में अथाह पानी है परन्तु किसी के उपयोग में नहीं आता। इसी तरह बिना ईश्वर भक्ति के व्यक्ति बेकार है। बादल में परोपकार की भावना होती है। वे वर्षा करके संसार को हराभरा बनाते हैं तथा बिजली की चमक से संसार को आलोकित करते हैं, जिसे देखकर सागर का हृदय जलता है।

(ग) बादलों में जल भरा रहता है और वे वर्षा करके संसार को हराभरा बनाते हैं। बिजली की चमक से संसार को आलोकित करते हैं। इस प्रकार वह परोपकारी स्वभाव का होता है।

(घ) कवयित्री दीपक को उत्साह से तथा प्रसन्नता से जलने के लिए कहती हैं क्योंकि वे अपने आस्था रुपी दीपक की लौ से सभी के मन में आस्था जगाना चाहती हैं।

10. क्या मीराबाई और आधुनिक मीरा महादेवी वर्मा इन दोनों ने अपने-अपने आराध्य देव से मिलने के लिए जो युक्तियाँ अपनाई हैं,उनमें आपको कुछ समानता या अतंर प्रतीत होता है? अपने विचार प्रकट कीजिए?

उत्तर

महादेवी वर्मा ने ईश्वर को निराकार ब्रह्म माना है। वे उसे प्रियतम मानती हैं। सर्वस्व समर्पण की चाह भी की है लेकिन उसके स्वरुप की चर्चा नहीं की। मीराबाई श्री कृष्ण को आराध्य, प्रियतम मानती हैं और उनकी सेविका बनकर रहना चाहती हैं। उनके स्वरुप और सौंदर्य की रचना भी की है। दोनों में केवल यही अंतर है कि महादेवी अपने आराध्य को निर्गुण मानती हैं और मीरा उनकी सगुण उपासक हैं।

(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए -

1. दे प्रकाश का सिंधु अपरिमित,

तेरे जीवन का अणु गल गल!

उत्तर 

कवयित्री का मानना है कि मेरे आस्था के दीपक तू जल-जलकर अपने जीवन के एक-एक कण को गला दे और उस प्रकाश को सागर की भाँति विस्तृत रुप में फैला दे ताकि दूसरे लोग भी उसका लाभ उठा सके।

पृष्ठ संख्या: 35

2. युग-युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल,

प्रियतम का पथ आलोकित कर!

उत्तर

इन पंक्तियों में कवयित्री का यह भाव है कि आस्था रुपी दीपक हमेशा जलता रहे। युगों-युगों तक प्रकाश फैलाता रहे। प्रियतम रुपी ईश्वर का मार्ग प्रकाशित करता रहे अर्थात ईश्वर में आस्था बनी रहे।

3. मृदुल मोम सा घुल रे मृदु तन!

उत्तर

इस पंक्ति में कवयित्री का मानना है कि इस कोमल तन को मोम की भाँति घुलना होगा तभी तो प्रियतम तक पहुँचना संभव हो पाएगा। अर्थात ईश्वर की प्राप्ति के लिए कठिन साधना की आवश्यकता है।

व्याख्या

मधुर-मधुर मेरे दीपक जल!

युग-युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल

प्रियतम का पथ आलोकित कर!

कवियित्री महादेवी वर्मा को अपने ईश्वर पर अपार विश्वास और श्रद्धा है। इसी विश्वास के सहारे वह अपने प्रियतम के भक्ति में लीन हो जाना चाहती हैं। वह अपने हृदय में स्थित आस्था रूपी दीपक को सम्बोधित करते हुए कहती हैं कि तुम लगातार हर पल, हर दिन युग-युगांतर तक जलते रहो ताकि मेरे परमात्मा रूपी प्रियतम का पथ सदा प्रकाशित रहे यानी ईश्वर के प्रति उनका विश्वास कभी ना टूटे।

सौरभ फैला विपुल धूप बन

मृदुल मोम-सा घुल रे, मृदु-तन!

दे प्रकाश का सिन्धु अपरिमित,

तेरे जीवन का अणु गल-गल

पुलक-पुलक मेरे दीपक जल!

कवियित्री अपने तन को कहती हैं कि जिस प्रकार धूप या अगरबत्ती खुद जलकर सारे संसार को सुंगंधित करते हैं उसी तरह तुम अपने अच्छे कर्मों इस जग को सुगंधित करो। जिस तरह मोम जलकर सारे वातावरण को प्रकाशित करता है उसी तरह वह शरीर रूपी मोम को जलकर अपने अहंकार को नष्ट करने, पिघलने का अनुरोध करती हैं। शरीर रूपी मोम के जलने और अहंकार के पिघलने से असीमित समुद्र की भांति ऐसा प्रकाश आलोकित हो जो चारों ओर फ़ैल जाए चाहे इसके लिए शरीर रूपी मोम का हर कण गल जाए। वह अपने आस्था रूपी दीपक को प्रसन्नतापूर्वक जलते रहने को कहती हैं।

सारे शीतल कोमल नूतन

माँग रहे तुझसे ज्वाला कण;

विश्व-शलभ सिर धुन कहता 'मैं

हाय, न जल पाया तुझमें मिल!

सिहर-सिहर मेरे दीपक जल!

कवियित्री कहती हैं आज सारे संसार में परमात्मा के प्रति आस्था का अभाव है इसलिए सारे नए कोमल प्राणी यानी मन प्रभु भक्ति से विरक्त है वे आस्था की ज्योति को संसार में ढूंढ रहे हैं  पर उन्हें कहीं कुछ प्राप्त नही हो रहा है। इसलिए वह अपने आस्था रूपी दीपक से कह रही हैं कि तुम्हें आस्था के प्रति विश्वास की ज्योत देनी होगी ताकि उनके दीप प्रज्वल्लित हो जाएँ। संसार रूपी पतंगा पश्चाताप कर रहा है और अपने दुर्भाग्य पर रो रहा है कि प्रभु भक्ति की ज्योत में मैं अपने अहंकार को क्यों नही नष्ट कर पाया। यदि मैं ऐसा कर पाता तो शायद अब तक परमात्मा से मिलन हो जाता। अतः पतंगे को मुक्ति देने के लिए वह आस्था रूपी दीपक को काँप-काँपकर जलने को कहती हैं।

जलते नभ में देख असंख्यक

स्नेह-हीन नित कितने दीपक

जलमय सागर का उर जलता;

विद्युत ले घिरता है बादल!

विहँस-विहँस मेरे दीपक जल!

कवियित्री को आकाश में अनगनित तारे दिख रहे हैं परन्तु वे सभी स्नेहरहित लग रहे हैं। इन सबके हृदय में ईश्वर की भक्ति और आस्था रूपी तेल नही है इसलिए ये भक्ति रूपी रोशनी नही दे पा रहे हैं। जिस प्रकार सागर का अपार जल जब गर्म होता है तब भाप बनकर आकाश में बिजली से घिरा हुआ बादल में परिवर्तित हो जाता है। ठीक उसी भांति इस संसार में भी चारों ओर लोग ईर्ष्या-द्वेष से जलते रहते हैं। जिन लोगों में आस्था रूपी दीपक होता है वे उन बादलों की भांति शांत होकर ठंडा जल बरसाते हैं मगर ईर्ष्या-द्वेष वाले लोग क्षण भर में बिजली की तरह नष्ट हो जाते हैं। इसलिए कवियित्री दीपक को हँस-हँसकर लगातार जलने को कह रही हैं ताकि प्रभु का पथ आलोकित रहे और लोग उसपर चलें।

कवि-परिचय

महादेवी वर्मा

इनका जन्म 1907 को होली के दिन उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में हुआ तथा प्रारंभिक शिक्षा इंदौर में हुई।विवाह के कुछ अंतराल के बाद पढ़ाई फिर शुरू की। ये मिडिल में पूरे प्रांत में प्रथम आईं और छात्रवृत्ति भी पाईं। यह सिलसिला कई सालों तक चला। बाद में इन्होने बौद्ध भिक्षुणी बनना चाहा परन्तु गांधीजी के आह्वान पर सामाजिक कार्यों में जुट गयीं। उच्च शिक्षा के लिए विदेश ना जाकर नारी शिक्षा प्रसार में जुट गयीं। इन्होनें छायावाद के अन्य चार रचनाकारों में औरों से भिन्न अपना एक  विशिष्ट स्थान बनाया। 11 सितम्बर 1987 को इनका देहावसान हो गया।

प्रमुख कार्य

काव्य कृतियाँ - बारहमासा, नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्यगीत, दीपशिखा, प्रथम आयाम, अग्नि रेखा, यामा।

गद्य रचनाएं - अतीत के चलचित्र, श्रृंखला की कड़ियाँ, स्मृति की रेखाएँ, पथ के साथी, मेरा परिवार और चिंतन के क्षण।

पुरस्कार - पद्मभूषण, ज्ञानपीठ सहित अन्य प्रतिष्ठित पुरस्कार।

कठिन शब्दों के अर्थ

• प्रियतम - सबसे अधिक प्रिय, परमात्मा

• आलोकित - प्रकाशित

• सौरभ - सुगंध

• विपुल - विशाल

• मृदुल - कोमल

• सिंधु - सागर

• अपरिमित - असीमित

• पुलक - रोमांच

• नूतन - नए

• ज्वाला-कण - आग के कण

• शलभ - पतंगा

• सिहर - कांपना

• असंख्यक - अनेक

• स्नेहहीन - प्रेम रहित

• नित - नित्य

• उर - हृदय

• विद्युत – बिजली

NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 7- तोप स्पर्श भाग-2 हिंदी

वीरेन डंगवाल

पृष्ठ संख्या: 39

प्रश्न अभ्यास 

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए -

1. विरासत में मिली चीज़ों की बड़ी सँभाल क्यों होती है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

विरासत में मिली चीज़ों की बड़ी सँभाल इसलिए होती है क्योंकि ये वस्तुएँ हमें अपने पूर्वजों की, अपने इतिहास की याद दिलाती हैं। इनसे हमारा भावनात्मक संबंध होता है। इसलिए इन्हें अमूल्य माना जाता है। ये तात्कालिक परिस्थितियों की जानकारी के साथ दिशानिर्देश भी देती हैं।

2. इस कविता से तोप के विषय में क्या जानकारी मिलती है?

उत्तर

इस कविता में तोप के विषय में जानकारी मिलती है कि यह अंग्रेज़ों के समय की तोप है। 1857 में इसका प्रयोग शक्तिशाली हथियार के रुप में किया गया था। इसने अनगिनत शूरवीरों, स्वतंत्रता सेनानियों के धज्जे उड़ा दिए थे। लेकिंग आज यह तोप शांत है और एक बाग़ में निष्क्रिय खड़ी है। अब यह केवल दर्शनीय वस्तु है। चिड़िया इस पर अपना घोंसला बना रही है तथा बच्चे खेल रहे हैं।

3. कंपनी बाग में रखी तोप क्या सीख देती है?

उत्तर

 कंपनी बाग में रखी तोप हमें सिख देती है की कोई भी कितना ही ताकतवर क्यों न हो लेकिन एक दिन उसे शांत होना पड़ता है। इसके अलावा यह हमें अंग्रेज़ों के शोषण और अत्याचारों की याद दिलाती है और बतलाती है की सुरक्षा और हितों के प्रति सचेत रहें। यह हमारे उन तमाम शहीद स्वतंत्रता सेनानियों को याद करने तथा उनके उनके बताए मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।

4.कविता में तोप को दो बार चमकाने की बात की गई है। ये दो अवसर कौन-से होंगे?

उत्तर

भारत की स्वतंत्रता के प्रतीक चिह्न दो बड़े त्योहार 15 अगस्त और 26 जनवरी गणतंत्र दिवस है। इन दोनों अवसरों पर तोप को चमकाकर कंपनी बाग को सजाया जाता है।

(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए -

1. अब तो बहरहाल

छोटे लड़कों की घुड़सवारी से अगर यह फ़ारिग हो

तो उसके ऊपर बैठकर

चिड़ियाँ ही अकसर करती हैं गपशप।

उत्तर

इन पंक्तियों में कवि ने तोप की वर्तमान स्थिति को बताया है। 1857 की क्रांति में जिस तोप ने आतंक मचा रखा था वो आज बेबस थी। छोटे-छोटे बच्चे इसकी नाल पर बैठकर घुड़सवारी करते हैं। चिड़ियाँ भी इसपर बैठकर आपस में बातचीत करती हैं।

2. वे बताती हैं कि दरअसल कितनी भी बड़ी हो तोप

एक दिन तो होना ही है उसका मुँह बंद।

उत्तर

आज कंपनी बाग़ का तोप विनाश करने लायक नही है। चिड़ियाँ और गौरये उसपर बैठकर फुदकती रहती हैं। इससे यह पता चलता है कि कोई भी कितना भी मजबूत और क्रूर क्यों न हो एक दिन उसे झुकना पड़ता है।

3. उड़ा दिए थे मैंने

अच्छे-अच्छे सूरमाओं के धज्जे।

उत्तर

इन पंक्तियों में तोप ने अपनी गाथा को सुनाया है। वह बता रहा है की 1857 की क्रांति की सामने उसने अपने आगे किसी की नही सुनी थी। उसने कई वीरों  की नींद सुला दिया था।

व्याख्या

कम्पनी बाग़ के मुहाने पर

धर रखी गई है यह 1857 की तोप

इसकी होती है बड़ी सम्हाल

विरासत में मिले

कम्पनी बाग की तरह

साल में चमकायी जाती है दो बार

प्रस्तुत कविता में कवि वीरेन डंगवाल ने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के युद्ध में अंग्रेज़ों द्वारा इस्तेमाल की हुई तोप का वर्णन किया है। कवि कहते हैं कि यह तोप आज कम्पनी बाग़ के प्रवेश द्वार रखी हुई है। जिस तरह कम्पनी बाग़ हमें अंग्रेज़ों द्वारा विरासत में मिली थी उसी तरह यह तोप भी हमें अंग्रेज़ो से ही प्राप्त हुआ जिसे आजकल बहुत देखभाल से रखा जाता है। कम्पनी बाग़ की तरह इसे भी साल में दो बार चमकाया जाता है।

सुबह-शाम कम्पनी बाग में आते हैं बहुत से सैलानी

उन्हें बताती है यह तोप

कि मैं बड़ी जबर

उड़ा दिये थे मैंने

अच्छे-अच्छे सूरमाओं के छज्जे

अपने ज़माने में

सुबह-शाम को बहुत सारे यात्री कम्पनी बाग़ में घूमने आते हैं तब यह तोप अपने बारे में बताती है की मैं बड़ी ताकतवर थी। उस समय मैंने बहुत सारे वीरों के मारा था। बहुत अत्याचार किये थे।

अब तो बहरहाल

छोटे लड़कों की घुड़सवारी से अगर यह फारिग हो

तो उसके ऊपर बैठकर

चिड़ियाँ ही अकसर करती हैं गपशप

कभी-कभी शैतानी में वे इसके भीतर भी घुस जाती हैं

ख़ासकर गौरैयें

वे बताती हैं कि दरअसल कितनी भी बड़ी हो तोप

एक दिन तो होना ही है उनका मुँह बन्द !

परन्तु अब तोप की स्थिति बहुत बुरी है छोटे बच्चे इसपर बैठकर घुड़सवारी का खेल खेलते हैं। जब तोप बच्चों से मुक्त हो जाती है तब चिड़ियाँ इसपर बैठकर आपस में गप्प करती हैं। कभी-कभी चिड़ियाँ ख़ास तौर पर गौरेये तोप के भीतर घुस जाती हैं। इस दृश्य से कवि को ऐसा महसूस होता है मानो वह कह रही हों कोई कितना भी अत्याचारी और क्रूर हो उसका अंत एक न एक दिन जरूर होना है।

कवि परिचय

वीरेन डंगवाल

इनका जन्म 5 अगस्त 1947 को उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले के कृतिनगर में हुआ। इनकी प्रारंभिक शिक्षा नैनीताल में और उच्च शिक्षा इलाहाबाद में हुई। इन्होने ऐसी बहुत सी चीज़ों और जीव-जंतुओं को अपनी कविता को आधार बनाया।

प्रमुख कार्य

कविता संग्रह - इसी दुनिया में और दुष्चक्र में स्रष्टा।

पुरस्कार - श्रीकांत वर्मा पुरस्कार, साहित्य अकादेमी पुरस्कार।

कठिन शब्दों के अर्थ

• मुहाने पर - प्रवेश द्वार पर

• सम्हाल - देखभाल

• विरासत - पूर्वजों से प्राप्त सम्पत्ति

• सैलानी - यात्री

• जबर - शक्तिशाली

• सूरमाओं - वीरों

• फ़ारिग - मुक्त

• धज्जे - नष्ट-भ्रष्ट करना

• कंपनी बाग़ - गुलाम भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी द्वारा जगह-जगह बनवाए गए बाग़-बगीचों में से कानपुर में बनवाया गया एक बाग़

NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 8- कर चले हम फ़िदा स्पर्श भाग-2 हिंदी  

कैफ़ी आज़मी

पृष्ठ संख्या: 44

प्रश्न अभ्यास 

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए -

1. क्या इस गीत की कोई ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है?

उत्तर

यह गीत सन् 1962 के भारत-चीन युद्ध की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर लिखा गया है। चीन ने तिब्बत की ओर से आक्रमण किया और भारतीय वीरों ने इस आक्रमण का मुकाबला वीरता से किया।

2. 'सर हिमालय का हमने न झुकने दिया', इस पंक्ति में हिमालय किस बात का प्रतीक है?

उत्तर

हिमालय भारत के मान सम्मान का प्रतीक है। भारतीय सैनिकों ने अपने प्राणों का बलिदान देकर भी देश के मान-सम्मान को सुरक्षित रखा।

3. इस गीत में धरती को दुल्हन क्यों कहा गया है?

उत्तर

जिस तरह दुल्हन को लाल जोड़े में सजाया जाता है उसी तरह भारतीय सैनिकों ने अपने प्राणो की आहुति देकर धरती को खून के लाल रंग से सजा दिया इसीलिए इस गीत में धरती को दुल्हन कहा गया है।

4. गीत में ऐसी क्या खास बात होती है कि व जीवन भर याद रह जाते हैं?

उत्तर

गीतों में भावनात्मकता,मार्मिकता, सच्चाई, गेयता, संगीतात्मकता, लयबद्धता आदि गुण होते हैं'जिससे वे जीवन भर याद रह जाते हैं। कर चले हम फ़िदा' गीत में बलिदान की भावना स्पष्ट रुप से झलकती है जो हर हिन्दुस्तानी की दिमाग में रच-बस जाते हैं।

5. कवि ने 'साथियों' संबोधन का प्रयोग किसके लिए किया है?

उत्तर

कवि ने 'साथियों' शब्द का प्रयोग सैनिक साथियों व देशवासियों के लिए किया है। सैनिकों का मानना है कि इस देश की रक्षा हेतु हम बलिदान की राह पर बढ़ रहे हैं। हमारे बाद यह राह सूनी न हो जाए। आने वाले भी देश की मान-सम्मान की रक्षा के लिए प्राणों का बलिदान देने को तैयार रहें।

6. कवि ने इस कविता में किस काफ़िले को आगे बढ़ाते रहने की बात कही है?

उत्तर

कवि चाहता है कि यदि सैनिकों की टोली शहीद हो जाए, तो अन्य सैनिक युद्ध की राह पर बढ़ जाएँ। यहाँ देश की रक्षा करने वाले सैनिकों के समूह के लिए 'काफ़िले' शब्द का प्रयोग किया गया है।

7. इस गीत में 'सर पर कफ़न बाँधना' किस ओर संकेत करता है?

उत्तर

'सर पर कफ़न बाँधना' का अर्थ होता है मौत के लिए तैयार हो जाना। इस गीत यह शत्रुओं से रणभूमि में लड़ने की और संकेत करता है। सैनिक जब युद्धक्षेत्र में उतरते हैं तो वे देश की मान-सम्मान की रक्षा के लिए प्राण तक देने को तैयार रहते हैं।

8. इस कविता का प्रतिपाद्य अपने शब्दों में लिखिए?

उत्तर 

प्रस्तुत कविता देश के सैनिकों की भाषा में लिखा गया है जो की उनके देशभक्ति की भावना को दर्शाता है। ये कभी अपने देश की मान-सम्मान की रक्षा के लिए पीछे नही हटेंगे चाहे इन्हे अपने प्राणों को ही अर्पित क्यों न करना पड़े। साथ ही इन्हे आने वाली पीढ़ियों से अपेक्षाएं हैं की वे भी उनके शहीद होने के बाद इस देश के दुश्मनों डट कर मुकाबला करें। वे कह रहे हैं कि उन्होंने अंतिम क्षण तक रक्षा की अब ये जिमेवारी आप पर है। देश पर जान देने के मौके बहुत कम आते हैं। ये क्रम टूटना नही चाहिए। 

(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिये। 

1. साँस थमती गई, नब्ज़ जमती गई

फिर भी बढ़ते कदम को न रुकने दिया

उत्तर

इन पंक्तियों में कवि कैफ़ी आज़मी ने भारतीय जवानों के साहस की सराहना की है। चीनी आक्रमण के समय भारतीय जवानों ने हिमालय की बर्फ़ीली चोटियों पर लड़ाई लड़ी। इस बर्फ़ीली ठंड में उनकी साँस घुटने लगी, साथ ही तापमान कम होने से नब्ज़ भी जमने लगी परन्तु वे किसी भी बात की परवाह किए बिना आगे बढ़ते रहे और हर मुश्किल का सामना किया।

2. खींच दो अपने खूँ से ज़मीं पर लकीर

इस तरफ़ आने पाए न रावन कोई

उत्तर

यह गीत की प्रेरणा देने वाली पंक्तियाँ हैं। कवि का भाव है कि भारतभूमि सीता की तरह पवित्र है। शत्रु रुपी रावण हरण करने के लिए उसकी तरफ़ बढ़ रहा है इसलिए उनका आग्रह है की हम आगे बढ़कर उनकी रक्षा करें तथा ऐसी लक्ष्मण रेखा खीचें की शत्रु बढ़ न पाये यानी उसे रोकने का प्रयास करें।

3. छू न पाए सीता का दामन कोई

राम भी तुम, तुम्हीं लक्ष्मण साथियों

उत्तर

कवि सैनिकों को कहना चाहता है कि भारत का सम्मान सीता की पवित्रता के समान में है। देश की रक्षा करना तुम्हारा कर्त्तव्य है। देश की पवित्रता की रक्षा राम और लक्ष्मण की तरह करना है। अत: राम तथा लक्ष्मण का कर्त्तव्य भी हमें ही निभाना है।

भाषा अध्यन

1. इस गीत में कुछ विशिष्ट प्रयोग हुए हैं। गीत संदर्भ में उनका आशय स्पष्ट करते हुए अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए।

कट गए सर, नब्ज़ जमती गई, जान देने की रुत, हाथ उठने लगे

उत्तर

1. युद्ध क्षेत्र में शत्रुओं के कट जाए सर।

2. डर के मारे सबकी नब्ज़ जम गई।

3. शत्रु के हमले की जानकारी मिलते ही सब जान गए कि यह जान देने की रुत है।

4. स्टेज पर मंत्री के आते ही जयकारे के साथ हाथ उठने लगे।

व्याख्या

कर चले हम फ़िदा जानो-तन साथियो

अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो

साँस थमती गई, नब्ज़ जमती गई

फिर भी बढ़ते क़दम को न रुकने दिया

कट गए सर हमारे तो कुछ ग़म नहीं

सर हिमालय का हमने न झुकने दिया

मरते-मरते रहा बाँकपन साथियो

अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो

प्रस्तुत गीत कैफ़ी आजमी द्वारा भारत-चीन युद्ध की पृष्ठभूमि पर बनी फ़िल्म 'हकीकत' से लिया गया है। इस गीत में कवि ने खुद को भारत माता के सैनिक के रूप में अंकित किया है। कवि कहते हैं कि युद्धभूमि में सैनिक शहीद होते हुए अपने दूसरे साथियों से कहते हैं कि हमने अपने जान और तन को देश सेवा में समर्पित कर दिया, हम जा रहे हैं, अब देश की रक्षा करने का भार तुम्हारे हाथों में है। हमारी साँस थम रही थीं, ठंड से नसें जम रही थीं, हम मृत्यु की गोद में जा रहे थे फिर भी हमने पीछे हटकर उन्हें आगे बढ़ने का मौका नही दिया। हमारे कटे सिरों यानी शहीद हुए जवानों का हमें ग़म नहीं है, हमारे लिये ये प्रसन्नता की बात है की हमने अपने जीते जी हिमालय का सिर झुकने नहीं दिया यानी दुश्मनों को देश में प्रवेश नही करने दिया। मरते दम तक हमारे अंदर बलिदान और संघर्ष का जोश बना रहा। हम बलिदानी देकर जाकर रहे हैं, अब देश की रक्षा करने का भार तुम्हारे हाथों में है।

ज़िंदा रहने के मौसम बहुत हैं मगर

जान देने के रुत रोज़ आती नहीं

हुस्न और इश्क दोनों को रुस्वा करे

वह जवानी जो खूँ में नहाती नहीं

आज धरती बनी है दुलहन साथियो

अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो

कवि एक सैनिक के रूप में कहते हैं कि व्यक्ति को जिन्दा रहने के लिए बहुत समय मिलते हैं परन्तु देश के लिए जान देने के मौके कभी-कभी ही मिलते हैं। जो जवानी खून में सराबोर नही होती वही प्यार और सौंदर्य को बदनाम करती है। सैनिक अपने साथियों की सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि आज धरती दुल्हन बनी हुई है यानी हमारी आन, बान और शान का प्रतीक है, इसलिए इसकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य है। हमारे जाने के बाद इसकी रक्षा की जिमेवारी अब आपके हाथों में है।

राह कुर्बानियों की न वीरान हो

तुम सजाते ही रहना नए काफ़िले

फतह का जश्न इस जश्न‍ के बाद है

ज़िंदगी मौत से मिल रही है गले

बांध लो अपने सर से कफ़न साथियो

अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो

शहीद होते हुए सैनिक कहते हैं कि बलिदानों का जो सिलसिला चल पड़ा है वो कभी रुक ना पाये यानी अपने देश की दुश्मनों से रक्षा के लिए सैनिक हमेशा आगे बढ़ते रहे। इन कुर्बानियों के बाद ही हमें जश्न मनाने के अवसर मिलेंगे। आज हम मृत्यु को प्राप्त होने वाले हैं इसलिए हमें अपने सिर पर कफ़न बाँध लेना चाहिए यानी मृत्यु का चिंता ना करते हुए शत्रु से लोहा लेने के लिए तैयार रहना चाहिए। अब हमारे जाने के बाद देश की रक्षा की जिमेवारी तुम्हारी है।

खींच दो अपने खूँ से ज़मी पर लकीर

इस तरफ आने पाए न रावण कोई

तोड़ दो हाथ अगर हाथ उठने लगे

छू न पाए सीता का दामन कोई

राम भी तुम, तुम्हीं लक्ष्मण साथियो

अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो

सैनिक अपनी बलिदानी से पहले अपने साथियों से कहता है कि आओ हम अपने खून से धरती पर लकीर खीच दें जिसके पार जाने की कोई भी रावण रूपी शत्रु हिम्मत ना कर पाए। भारत माता को सीता समान बताते हुए कहता है अगर कोई भी हाथ भारत माता की आँचल छूने का दुस्साहस करे उसे तोड़ दो। भारत माता के सम्मान को किसी भी तरह ठेस ना पहुँचे। जिस तरह राम और लक्ष्मण ने सीता की रक्षा के लिए पापी रावण का नाश किया उसी तरह तुम भी शत्रु को पराजित कर भारत माता को सुरक्षित करो। अब ये वतन की जिमेवारी तुम्हारे हाथों में है।

कवि परिचय

कैफ़ी आज़मी

अतहर हुसैन रिज़वी का जन्म 19 जनवरी 1919 को आज़मगढ़ जिले में मजमां गाँव में हुआ। ये आगे चलकर कैफ़ी आज़मी के रूप में मशहूर हुए। कैफ़ी आज़मी की गणना प्रगतिशील उर्दू कवियों की पहली पंक्ति में की जाती है। इनकी कविताओं में एक ओर सामाजिक और राजनितिक जागरूकता का समावेश है तो दूसरी ओर हृदय कोमलता भी है। इन्होने 10 मई 2002 को इस दुनिया को अलविदा कहा।

प्रमुख कार्य

कविता संग्रह - झंकार, आखिर-ए-शब, आवारा सज़दे, सरमाया

गीत संग्रह - मेरी आवाज़ सुनो

पुरस्कार - साहित्य अकादमी सहित अन्य पुरस्कार।

कठिन शब्दों के अर्थ

• फ़िदा - न्योछावर

• हवाले - सौंपना

• जानो-तन - जान और शरीर

• वतन - देश

• नब्ज़ - नाड़ी

• रुत - मौसम

• हुस्न - सौंदर्य

• इश्क़ - प्यार

• रुस्वा - बदनाम

• खुँ - खून

• वीरान - सुनसान

• काफिले - यात्रियों का समूह

• फतह - जीत

• जश्न - ख़ुशी

• दामन – आँचल

NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 9- आत्मत्राण स्पर्श भाग-2 हिंदी 

रविंद्रनाथ ठाकुर

पृष्ठ संख्या: 49

प्रश्न अभ्यास 

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिये -

1. कवि किससे और क्या प्रार्थना कर रहा है?

उत्तर

कवि करुणामय ईश्वर से प्रार्थना कर रहा है कि उसे जीवन में विपदा दें साथ ही उन विपदाओं से लड़ने की शक्ति भी दें ताकि वह इन मुश्किलों पर विजय पा सके। उसका विश्वास अटल रहे।

2. 'विपदाओं से मुझे बचाओं, यह मेरी प्रार्थना नहीं' − कवि इस पंक्ति के द्वारा क्या कहना चाहता है?

उत्तर

कवि का कहना है कि हे ईश्वर मैं यह नहीं कहता कि मुझ पर कोई विपदा न आए, मेरे जीवन में कोई दुख न आए बल्कि मैं यह चाहता हूँ कि मुझ इन विपदाओं को सहने की शक्ति दें।

3. कवि सहायक के न मिलने पर क्या प्रार्थना करता है?

उत्तर

कवि सहायक के न मिलने पर प्रार्थना करता है कि उसका बल पौरुष न हिले, वह सदा बना रहे और कोई भी कष्ट वह धैर्य से सह ले।

4. अंत में कवि क्या अनुनय करता है?

उत्तर

अंत में कवि अनुनय करता है कि चाहे सब लोग उसे धोखा दे, सब दुख उसे घेर ले पर ईश्वर के प्रति उसकी आस्था कम न हो, उसका विश्वास बना रहे। उसका ईश्वर के प्रति विश्वास कभी न डगमगाए।

5. 'आत्मत्राण' शीर्षक की सार्थकता कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

आत्मत्राण का अर्थ है आत्मा का त्राण अर्थात आत्मा या मन के भय का निवारण, उससे मुक्ति। कवि चाहता है कि जीवन में आने वाले दुखों को वह निर्भय होकर सहन करे। दुख न मिले ऐसी प्रार्थना वह नहीं करता बल्कि मिले हुए दुखों को सहने, उसे झेलने की शाक्ति के लिए प्रार्थना करता है। इसलिए यह शीर्षक पूर्णतया सार्थक है।

6. अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए आप प्रार्थना के अतिरिक्त और क्या-क्या प्रयास करते हैं? लिखिए।

उत्तर

अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना के अतिरिक्त परिश्रम और संघर्ष, सहनशीलता, कठिनाईयों का सामना करना और सतत प्रयत्न जैसे प्रयास आवश्यक हैं। धैर्यपूर्वक यह प्रयास करके इच्छापूर्ण करने की कोशिश करते हैं।

7. क्या कवि की यह प्रार्थना आपको अन्य प्रार्थना गीतों से अलग लगती है? यदि हाँ, तो कैसे?

उत्तर

यह प्रार्थना अन्य प्रार्थना गीतों से भिन्न है क्योंकि अन्य प्रार्थना गीतों में दास्य भाव, आत्म समर्पण, समस्त दुखों को दूर करके सुखशांति की प्रार्थना, कल्याण, मानवता का विकास, ईश्वर सभी कार्य पूरे करें ऐसी प्रार्थनाएँ होती हैं परन्तु इस कविता में कष्टों से छुटकारा नहीं कष्टों को सहने की शक्ति के लिए प्रार्थना की गई है। यहाँ ईश्वर में आस्था बनी रहे, कर्मशील बने रहने की प्रार्थना की गई है।

(ख) निम्नलिखित अंशों का भाव स्पष्ट कीजिए -

1. नत शिर होकर सुख के दिन में

तव मुख पहचानूँ छिन-छिन में।

उत्तर

इन पंक्तियों में कवि कहना चाहता है कि वह सुख के दिनों में भी सिर झुकाकर ईश्वर को याद रखना चाहता है, वह एक पल भी ईश्वर को भुलाना नहीं चाहता।

2. हानि उठानी पड़े जगत्में लाभ अगर वंचना रही

तो भी मन में ना मानूँ क्षय।

उत्तर

कवि ईश्वर से प्रार्थना करता है कि जीवन में उसे लाभ मिले या हानि ही उठानी पड़े तब भी वह अपना मनोबल न खोए। वह उस स्थिति का सामना भी साहसपूर्वक करे।

3. तरने की हो शक्ति अनामय

मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नहीं सही।

उत्तर

कवि कामना करता है कि यदि प्रभु दुख दे तो उसे सहने की शक्ति भी दे। वह यह नहीं चाहता कि ईश्वर उसे इस दुख के भार को कम कर दे या सांत्वना दे। वह अपने जीवन की ज़िम्मेदारियों को कम करने के लिए नहीं कहता बल्कि उससे संघर्ष करने, उसे सहने की शक्ति के लिए प्रार्थना करता है।

व्याख्या

विपदाओं से मुझे बचाओ ,यह मेरी प्रार्थना नहीं

केवल इतना हो (करुणामय)

कभी न विपदा में पाऊँ भय।

दुःख ताप से व्यथित चित को न दो सांत्वना नहीं सहीं

पर इतना होवे (करुणामय)

दुःख को मैं कर सकूँ सदा जय।

कोई कहीं सहायक न मिले,

तो अपना बल पौरुष न हिले,

हानि उठानी पड़े जगत में लाभ वंचना रही

तो भी मन में न मानूँ क्षय।।

इन पंक्तियों में कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर ईश्वर से कह रहे हैं कि दुखों से मुझे दूर रखें ऐसी आपसे में प्रार्थना नही कर रहा हूँ बल्कि मैं चाहता हूँ आप मुझे उन दुखों को झेलने की शक्ति दें। उन कष्ट के समय में मैं भयभीत ना हूँ। वे दुःख के समय में ईश्वर से सांत्वना बल्कि उन दुखों पर विजय पाने की आत्मविश्वास और हौंसला चाहते हैं। कोई कहीं कष्ट में सहायता करने वाला भी नही मिले फिर भी उनका पुरुषार्थ ना डगमगाए। अगर मुझे इस संसार में हानि भी उठानी पड़े, कोई लाभ प्राप्त ना हो या धोखा ही खाना पड़े तब भी मेरा मन दुखी ना हो। कभी भी मेरे मन की शक्ति का नाश ना हो।

मेरा त्राण करो अनुहदन तुम यह मेरी प्रार्थना नही

बस इतना होवे (करुणामय)

तरने की हो शक्ति अनामय।

मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नही सही।

केवल इतना रखना अनुनय -

वहन कर सकूँ इसको निर्भय।

नत शिर होकर सुख के दिन में

तव मुख पहचानूँ छीन-छीन में।

दुख रात्रि मे करे वंचना मेरी जिस दिन निखिल मही

उस दिन ऎसा हो करुणामय ,

तुम पर करूँ नहीं कुछ संशय।।

कवि कहते हैं कि हे भगवन्! मेरी यह प्रार्थना नहीं है आप प्रतिदिन मुझे भय से छुटकारा दिलाएँ। आप मुझे केवल रोग रहित यानी स्वस्थ रखें ताकि मैं अपने बल और शक्ति के सहारे इस संसार रूपी भवसागर को पार कर सकूँ। मैं यह नहीं चाहता की आप मेरे कष्टों का भार कम करें और ढाँढस बँधायें। आप मुझे निर्भयता सिखायें ताकि मैं सभी मुसीबतों से डटकर सामना कर सकूँ। सुख के दिनों में भी मैं आपको एक क्षण के लिए भी आपको ना भूलूँ। दुःखों से भरी रात में जब सारा संसार मुझे धोखा दे यानी मदद ना करें फिर भी फिर भी मेरे मन में आपके प्रति संदेह ना हो ऐसी शक्ति मुझमें भरें।

कवि परिचय

रवीन्द्रनाथ ठाकुर

इनका जन्म 6 मई 1861 को धनि परिवार में हुआ है तथा शिक्षा-दीक्षा घर पर ही हुई। ये नोबेल पुरस्कार करने वाले प्रथम भारतीय हैं। छोटी उम्र में ही स्वाध्याय से अनेक विषयों का ज्ञान इन्होने अर्जित किया। बैरिरस्ट्री पढ़ने के लिए विदेश भेजे गए लेकिन बिना परीक्षा दिए ही लौट आये। इनकी रचनाओं में लोक-संस्कृति का स्वर प्रमुख रूप से मुखरित होता है। प्रकृति से इनका गहरा लगाव था।

प्रमुख कार्य

काव्य -  गीतांजलि

कृतियाँ - नैवेद्य, पूरबी, बलाका, क्षणिका, चित्र और साध्यसंगीत, काबुलीवाला और सैकड़ों अन्य कहानियाँ।

उपन्यास - गोरा, घरे बाइरे, रवींद्र के निबंध।

कठिन शब्दों के अर्थ

• विपदा - कष्ट

• करुणामय - दूसरों पर दया करने वाला

• दुःख-ताप - कष्ट की पीड़ा

• व्यथित - दुखी

• चित्त - हृदय

• सांत्वना - तसल्ली

• पौरुष - पराक्रम

• त्राण - भय से छुटकारा

• अनुदिन - प्रतिदिन

• तरने - पार लगने

• अनामय - स्वस्थ

• अनुनय - प्रार्थना

• वहन - भार उठाना

• नत शिर - सिर झुकाकर

• छीन-छीन - क्षण-क्षण

• दुःख-रात्रि - कष्ट से भरी हुई रात

• वंचना - धोखा

• निखिल - सम्पूर्ण

• महि - धरती

• संशय – शक

NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 10- बड़े भाई साहब स्पर्श भाग-2 हिंदी  

प्रेमचंद

पृष्ठ संख्या: 63

प्रश्न अभ्यास 

मौखिक 

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए -

1. कथा नायक की रूचि किन कार्यों में थी?

उत्तर 

कथा नायक की रूचि खेल कूद, कँकरियाँ उछालने, गप्पबाजी करने, कागज़ की तितलियाँ बनाने, उड़ाने, उछलकूद करने, चार दीवारी पर चढ़कर नीचे कूदने, फाटक पर सवार होकर उसे मोटर कार बना कर मस्ती करने में थी।

2. बड़े भाई छोटे भाई से हर समय पहला सवाल क्या पूछते थे?

उत्तर

बड़े भाई साहब छोटे भाई से, हर समय यही सावल पूछते "कहाँ थे"?

3. दूसरी बार पास होने पर छोटे भाई के व्यवहार में क्या परिवर्तन आया?

उत्तर

दूसरी बार पास होने पर छोटे भाई की स्वछन्दता और मनमानी बढ़ गई। उसने ज्यादा समय मौज-मस्ती में व्यतीत करना शुरू कर दिया। उसे लगने लगा की वह पढ़े  ना पढ़े अच्छे नम्बरों से पास हो जाएगा। उसे कनकौए उड़ाने का नया शौक पैदा हो गया।

4. बड़े भाई साहब छोटे भाई से उम्र में कितने बड़े थे और वे कौन-सी कक्षा में पढ़ते थे?

उत्तर

बड़े भाई साहब छोटे भाई से उम्र में पाँच साल बड़े थे और वे नवीं कक्षा में पढ़ते थे।

5. बड़े भाई साहब दिमाग को आराम देने के लिए क्या करते थे?

उत्तर

बड़े भाई साहब दिमाग को आराम देने के लिए कभी किताब के हाशियों पर चिड़ियों, कुत्तों, बिल्लियों आदि की तस्वीर बनाते, कभी एक ही शब्द कई बार लिखते तो कभी एक शेर को बार-बार सुन्दर अक्षरों में नक़ल करते। कई बार ऐसी शब्द रचना करते जिनका कोई अर्थ नही होता था।

लिखित

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए -

1. छोटे भाई ने अपनी पढ़ाई का टाइम-टेबिल बनाते समय क्या-क्या सोचा और फिर उसका पालन क्यों नहीं कर पाया?

उत्तर

छोटे भाई ने अपनी पढ़ाई का टाइम-टेबिल बनाते समय  की वह अब मन लगाकर पढाई करेगा और बड़े भाई को कभी शिकायत का मौका नही देगा। रात ग्यारह बजे तक हर विषय का कार्यक्रम बनाया गया परन्तु पढ़ाई करते समय खेल के मैदान, उसकी हरियाली हवा के हलके-हलके झोंके, फुटबॉल की उछलकूद, कबड्डी बालीबॉल की तेज़ी सब चीज़े उसे अपनी ओर खींचती थी इसलिए वह टाइम-टेबिल का पालन नहीं कर पाया।

2. एक दिन जब गुल्ली-डंडा खेलने के बाद छोटे भाई बड़े भाई साहब के सामने पहुँचा तो उनकी क्या प्रतिक्रिया हुई?

उत्तर

एक दिन जब गुल्ली-डंडा खेलने के बाद छोटे भाई बड़े भाई साहब के सामने पहुँचे तो उनकी प्रतिक्रिया बहुत भयानक थी। वह बहुत क्रोधित थे। उन्होंने छोटे भाई को बहुत डाँटा। उन्होंने उसे पढ़ाई पर ध्यान देने को कहा। गुल्ली-डंडा खेल की उन्होंने बहुत बुराई की। उनके अनुसार यह खेल भविष्य के लिए लाभकारी नहीं है। अतः इसे खेलकर उन्हें कुछ हासिल नहीं होने वाला है। उन्होंने यह भी कहा कि अव्वल आने पर उसे घंमड हो गया है। उनके अनुसार घमंड तो रावण तक का भी नहीं रहा। अभिमान का एक-न-एक दिन अंत होता है। अतः छोटे भाई को चाहिए कि घमंड छोड़कर पढ़ाई की ओर ध्यान दे।

3. बड़े भाई को अपने मन की इच्छाएँ क्यों दबानी पड़ती थीं?

उत्तर

बड़े भाई की उम्र छोटे भाई से पाँच वर्ष अधिक थी। वे होस्टल में छोटे भाई के अभिभावक के रूप में थे। उन्हें भी खेलने पंतग उड़ाने तमाशे देखने का शौक था परन्तु अगर वे ठीक रास्ते पर न चलते तो भाई के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी नही निभा पाते। अपने नैतिक कर्त्तव्य का बोध होने के कारण उन्हें अपने मन की इच्छाएँ दबानी पड़ती थीं।

4. बड़े भाई साहब छोटे भाई को क्या सलाह देते थे और क्यों?

उत्तर

बड़े भाई साहब चाहते थे कि छोटा भाई हरदम पढ़ता रहे और अच्छे अंकों से पास होता रहे। इसलिए वे उसे हमेशा सलाह देते कि ज़्यादा समय खेलकूद में न बिताए, अपना ध्यान पढ़ाई में लगाए। वे कहते थे कि अंग्रेजी विषय को पढ़ने के लिए दिनरात मेहनत करनी पड़ती है। यदि मेहनत नहीं करोगे तो उसी दरजे में पड़े रहोगे।

5. छोटे भाई ने बड़े भाई साहब के नरम व्यवहार का क्या फ़ायदा उठाया?

उत्तर

छोटे भाई ने बड़े भाई की नरमी का अनुचित लाभ उठाया। उसपर बड़े भाई का डर नहीं रहा, वह आज़ादी से खेलकूद में जाने लगा, वह अपना सारा समय मौज-मस्ती में बिताने लगा। उसे विश्वास हो गया कि वह पढ़े न पढ़े पास हो जाएगा।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए -

1. बड़े भाई की डाँट-फटकार अगर न मिलती, तो क्या छोटा भाई कक्षा में अव्वल आता? अपने विचार प्रकट कीजिए।

उत्तर

छोटा भाई अभी अनुभवहीन था। वह अपना भला बुरा नहीं समझ पाता था। यदि बड़े भाई साहब उसे डाँटते फटकारते नहीं तो वह जितना पढ़ता था उतना भी नहीं पढ़ पाता और अपना समय खेलकूद में ही गँवा देता। उसे बड़े भाई की डाँट का डर था। इसी कारण उसे शिक्षा की अहमियत समझ में आई, विषयों की कठिनाइयों का पता लगा, अनुशासित होने के लाभ समझ में आए और वह अव्वल आया।

पृष्ठ संख्या: 64

2. बड़े भाई साहब पाठ में लेखक ने समूची शिक्षा के किन तौर-तरीकों पर व्यंग्य किया है? क्या आप उनके विचार से सहमत हैं?

उत्तर

बड़े भाई साहब ने समूची शिक्षा प्रणाली पर व्यंग्य करते हुए कहा है कि ये शिक्षा अंग्रेजी बोलने, लिखने, पढ़ने पर ज़ोर देती है। आए या न आए पर उस पर बल दिया जाता है।

रटने की प्रणाली पर भी ज़ोर है। अर्थ समझ में आए न आए पर रटकर बच्चा विषय में पास हो जाता है। साथ ही अलजबरा, ज्योमेट्री निरंतर अभ्यास के बाद भी गलत हो जाती है। अपने देश के इतिहास के साथ दूसरे देश के इतिहास को भी पढ़ना पड़ता है जो ज़रूरी नहीं है। छोटे-छोटे विषयों पर लंबे चौड़े निबंध लिखना। ऐसी शिक्षा जो लाभदायक कम और बोझ ज़्यादा हो ठीक नहीं होती है।

3. बड़े भाई साहब के अनुसार जीवन की समझ कैसे आती है?

उत्तर

बड़े भाई साहब के अनुसार जीवन की समझ केवल किताबी ज्ञान से नहीं आती बल्कि अनुभव से आती है। इसके लिए उन्होंने अम्माँ, दादा व हैडमास्टर की माँ के उदाहरण भी दिए हैं किवे पढ़े लिखे न होने पर भी हर समस्याओं का समाधान आसानी से कर लेते हैं। अनुभवी व्यक्ति को जीवन की समझ होती है, वे हर परिस्थिति में अपने को ढालने की क्षमता रखते हैं।

4. छोटे भाई के मन में बड़े भाई साहब के प्रति श्रद्धा क्यों उत्पन्न हुई?

उत्तर

छोटे भाई को खेलना बहुत पसंद था। वह हर समय खेलता रहता था। बड़े भाई साहब इस बात पर उसे बहुत डांटते रहते थे। उनके डर के कारण वह थोड़ा बहुत पढ़ लेता था। परन्तु जब बहुत खेलने के बाद भी उसने अपनी कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया, तो उसे स्वयं पर अभिमान हो गया। अब उसके मन से बड़े भाई का डर भी जाता रहा। वह बेखौफ होकर खेलने लगा। एक दिन पतंग उड़ाते समय बड़े भाई साहब ने उसे पकड़ लिया। उन्होंने उसे समझाया और अगली कक्षा की पढ़ाई की कठिनाइयों का अहसास भी दिलाया। उन्होंने बताया कि वह कैसे उसके भविष्य के कारण अपने बचपन का गला घोंट रहे हैं। उनकी बातें सुनकर छोटे भाई की आँखें खुल गई। उसे समझ में आ गया कि उसके अव्वल आने के पीछे बड़े भाई की ही प्रेरणा रही है। इससे उसके मन में बड़े भाई के प्रति श्रद्धा उत्पन्न हो गई।

5. बड़े भाई की स्वभावगत विशेषताएँ बताइए?

उत्तर

बड़े भाई साहब अध्ययनशील हैं, हमेशा किताबे खोले बैठे रहते हैं, घोर परिश्रमी हैं। चाहे उन्हें समझ में न भी आए परिश्रम करते रहते हैं । वह वाकपदु भी हैं, छोटे भाई को तरह तरह से समझाते हैं। उन्हें बडप्पन का अहसास है। इसलिए वह छोटे भाई को भी समझाते हैं। अनुभवी होने से जीवन में अनुभव की महत्ता समझाते हैं।

6. बड़े भाई साहब ने ज़िंदगी के अनुभव और किताबी ज्ञान में से किसे और क्यों महत्वपूर्ण कहा है?

उत्तर

बड़े भाई साहब ने जिदंगी के अनुभव की किताबी को ज्ञान से अधिक महत्वपूर्ण माना है। जो ज्ञान बड़ों को है वह पुस्तकें पढ़ कर हासिल नहीं होता है। ज़िंदगी के अनुभव उन्हें ठोस धरातल देते हैं जिससे हर परिस्थिति का सामना किया जा सकता है। पुस्तकें व्यवहार की भूमि नहीं होती है। गलत-सही, उचित-अनुचित की जानकारी अनुभवों से ही आती है। अत: जीवन के अनुभव किताबी ज्ञान से अधिक महत्वपूर्ण हैं।

7.  बताइए पाठ के किन अंशों से पता चलता है कि −

(क) छोटा भाई अपने भाई साहब का आदर करता है।

(ख) भाई साहब को ज़िंदगी का अच्छा अनुभव है।

(ग) भाई साहब के भीतर भी एक बच्चा है।

(घ) भाई साहब छोटे भाई का भला चाहते हैं।

उत्तर

(क) पतंगबाजी के समय बड़े भाई ने समझाया कि वह बड़ा है, उसे गलत राह पर नहीं जाने देगा। वह भले ही फेल हो जाए पर छोटे भाई को फेल नहीं होने देगा। यह सुनकर छोटे भाई के मन मे बड़े भाई के लिए आदर भर आया।

(ख) बड़े भाई को ज़िंदगी का बड़ा अनुभव है। वे जानते हैं कि दादा ने अपनी मेहनत की कमाई से कुशलता से परिवार पालन किया है। वह यह भी जानते हैं कि अपनी इच्छाओं पर काबूकरके ही वह छोटे भाई को ठीक रख सकते हैं।

(ग) बड़े भाई साहब छोटे भाई को समझा रहे थे, उसी समय एक पतंग कट कर आई। छोटा भाई उसे लूटने दौड़ा परन्तु लम्बे होने के कारण बड़े भाई ने लूट ली। वे हॉस्टल की ओर दौड़े। ये उनके भीतर बच्चा होने का प्रमाण है।

(घ) बड़े भाई साहब छोटे भाई को ज़्यादा खेलने के लिए डाँटते, उसका भला बुरा समझाते, गलत-सही को समझाते। वह चाहते थे कि उनका छोटा भाई ठीक रहे और अव्वल आए।

( ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए -

1. इम्तिहान पास कर लेना कोई चीज़ नहीं, असल चीज़ है बुद्धि का विकास।

उत्तर

बड़े भाई साहब इम्तिहान पास होने को बहुत महत्व नहीं देते थे। वे कहते थे कि किताबे रट के पास हो सकते हैं परन्तु जीवन के अनुभवों और बुद्धि के विकास से इंसान बुद्धिमान बनता है।

2. फिर भी जैसे मौत और विपत्ति के बीच भी आदमी मोह और माया के बंधन में जकड़ा रहता है, मैं फटकार और घुडकियाँ खाकर भी खेल-कूद का तिरस्कार न कर सकता था।

उत्तर

लेखक हर समय अपने खेलकूद, सैरसपाटे में मस्त रहता और बड़े भाई से डाँट खाता था परन्तु फिर भी खेलकूद नहीं छोड़ता था। जैसे संकटों में फँसकर भी मनुष्य अपनी मोहमाया नहीं छोड़ता है उसी प्रकार छोटा भाई खेलकूद को नहीं छोड़ता था।

3. बुनियाद ही पुख्ता न हो तो मकान कैसे पायेदार बने?

उत्तर

बड़े भाई साहब का विचार था कि यदि मकान की नीव ही कमज़ोर हो तो उसपर मंजिले खड़ी नहीं हो सकती हैं यानी अगर पढाई का शरुआती आधार ठोस नही हो तो आदमी आगे चलकर कुछ नही कर पाता। पढाई के साथ साथ उसके लिए अनुभव भी बहुत जरुरी है।

4. आँखे आसमान की ओर थीं और मन उस आकाशगामी पथिक की ओर, जो मंद गति से झूमता पतन की ओर चला आ रहा था, मानो कोई आत्मा स्वर्ग से निकलकर विरक्त मन से नए संस्कार ग्रहण करने जा रही हो।

उत्तर

लेखक जब पंतग लूट रहा था तो उसकी आँखे आसमान की ओर थी और मन पंतग रूपी शहगीर की तरह। उसे पंतग एक दिव्य आत्मा जैसी लग रही थी जो धीरे-धीरे नीचे आ रही थी और वह उसे पाने के लिए दौड़ रहा था।

भाषा अध्यन

1.  निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए −

नसीहत, रोष, आज़ादी, राजा, ताज्जुब

उत्तर

2. निम्नलिखित मुहावरों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए −

सिर पर नंगी तलवार लटकना, आड़े हाथों लेना, अंधे के हाथ बटेर लगना, लोहे के चने चबाना, दाँतों पसीना आना, ऐरा-गैरा नत्थू खैरा।

उत्तर

सिर पर नंगी तलवार लटकना - सी.बी.आई ने जाँच शुरू करके सबके सिर पर नंगी तलवार लटका दी।

आड़े हाथों लेना - पुलिस ने चोर को आड़े हाथों ले लिया।

अंधे के हाथ बटेर लगना - कर्मचारी को जब रूपयों से भरा थैला मिला तो मानों अंधे के हाथबटेर लग गई।

लोहे के चने चबाना - मज़दूर दिन रात मेहनत करते हैं, पैसों के लिए वह लोहे के चने चबाते हैं।

दाँतों पसीना आना - राम की जिद्द् के आगे उनके पिताजी के दाँतों पसीना आ गया।

ऐरा-गैरा नत्थू खैरा - उस पार्टी में ऐरा-गैरा नत्थू खैरा भी आ गया।

3. निम्नलिखित तत्सम, तद्भव, देशी, आगत शब्दों को दिए गए उदाहरणों के आधार पर छाँटकर लिखिए।

|तत्सम |तद्भव |देशज |आगत (अंग्रेज़ी एवं उर्दू/ अरबी-फारसी) |

|जन्मसिद्ध |आँख |दाल-भात |पोज़ीशन, फ़जीहत |

तालीम, जल्दबाज़ी, पुख्ता, हाशिया, चेष्टा, जमात, हर्फ़, सूक्तिबाण, जानलेवा, आँखफोड़, घुड़कियाँ, आधिपत्य, पन्ना, मेला-तमाशा, मसलन, स्पेशल, स्कीम, फटकार, प्रात:काल, विद्वान, निपुण, भाई साहब, अवहेलना, टाइम-टेबिल

उत्तर

|तत्सम |तद्भव |देशज |आगत |अरबी-फारसी |

|जन्मसिद्ध |आँख |दाल-भात |पोज़ीशन |फ़जीहत |

|चेष्टा, निपुण |घुड़कियाँ |जानलेवा |जल्दबाज़ी |हाशिया |

|सूक्तिबाण, विद्वान |पन्ना |आँखफोड़ |पुख्ता |तालीम |

|आधिपत्य, प्रात:काल | |मेला तमाशा |मसलन |हर्फ़ |

|अवहेलना | |फटकार, भाई साहब |स्पेशल, स्कीम, टाईम-टेबिल |जमात |

4. नीचे दिये वाक्यों में कौन-सी क्रिया है − सकर्मक या अकर्मक? लिखिए −

|(क) |उन्होंने वहीं हाथ पकड़ लिया। |----------------------------- |

|(ख) |फिर चोरों−सा जीवन कटने लगा। |----------------------------- |

|(ग) |शैतान का हाल भी पढ़ा ही होगा। |----------------------------- |

|(घ) |मैं यह लताड़ सुनकर आँसू बहाने लगता। |----------------------------- |

|(ङ) |समय की पाबंदी पर एक निबंध लिखो। |----------------------------- |

|(च) |मैं पीछे-पीछे दौड़ रहा था। |----------------------------- |

उत्तर

|(क) |उन्होंने वहीं हाथ पकड़ लिया। |सकर्मक |

|(ख) |फिर चोरों−सा जीवन कटने लगा। |अकर्मक |

|(ग) |शैतान का हाल भी पढ़ा ही होगा। |सकर्मक |

|(घ) |मैं यह लताड़ सुनकर आँसू बहाने लगता। |सकर्मक |

|(ङ) |समय की पाबंदी पर एक निबंध लिखो। |सकर्मक |

|(च) |मैं पीछे-पीछे दौड़ रहा था। |अकर्मक |

5. 'इक' प्रत्यय लगाकर शब्द बनाइए −

विचार, इतिहास, संसार, दिन, नीति, प्रयोग, अधिकार

उत्तर

विचार-वैचारिक

इतिहास-ऐतिहासिक

संसार-सांसारिक

दिन-दैनिक

नीति-नैतिक

प्रयोग-प्रायोगिक

अधिकार-आधिकारिक

सारांश

(1)

लेखक प्रेमचंद ने इस पाठ में अपने बड़े भाई के बारे में बताया है जो की उम्र में उनसे पाँच साल बड़े थे परन्तु पढाई में केवल तीन कक्षा आगे। लेखक स्पष्टीकरण देते हुए कहते हैं ऐसा नहीं है की उन्होंने बाद में पढ़ाई शुरू की बल्कि वे चाहते थे की उनका बुनियाद मजबूत हो इसलिए एक साल का काम दो-तीन साल में करते यानी उनके बड़े भाई कक्षा पास नही कर पाते थे। लेखक की उम्र नौ साल थी और उनके भाई चौदह साल के थे। वे लेखक की पूरी निगरानी रखते थे जो की उनका जन्मसिद्ध अधिकार था।

बड़े भाई स्वभाव से बड़े अध्यनशील थे, हमेशा किताब खोले बैठे रहते। समय काटने के लिए वो कॉपियों पर तथा किताब के हाशियों पर चित्र बनाया करते, एक चीज़ को बार-बार लिखते। दूसरी तरफ लेखक का मन पढ़ाई में बिलकुल नहीं लगता। अवसर पाते ही वो हॉस्टल से निकलकर मैदान में खेलने आ जाते। खेलकूद कर जब वो वापस आते तो उन्हें बड़े भाई के रौद्र रूप के दर्शन होते। उनके भाई लेखक को डाँटते हुए कहते कि पढ़ाई इतनी आसान नही है, इसके लिए रात-दिन आँख फोड़नी पड़ती है खून जलाना पड़ता है तब जाकर यह समझ में आती है। अगर तुम्हें इसी तरह खेलकर अपनी समय गँवानी है तो बेहतर है की घर चले जाओ और गुल्ली-डंडा खेलो। इस तरह यहाँ रहकर दादा की गाढ़ी कमाई के रूपए क्यों बरबाद करते हो? ऐसी लताड़ सुनकर लेखक रोने लगते और उन्हें लगता की पढ़ाई का काम उनके बस का नहीं है परन्तु दो-तीन घंटे बाद निराशा हटती तो फटाफट पढाई-लिखाई की कठिन टाइम-टेबिल बना लेते जिसका वो पालन नहीं कर सकते। खेल-कूद के मैदान उन्हें बाहर खिंच ही लाते। इतने फटकार के बाद भी वो खेल में शामिल होते रहें।

(2)

सालाना परीक्षा में बड़े भाई फिर फेल हो गए और लेखक अपनी कक्षा में प्रथम आये। उन दोनों के बीच अब दो कक्षा की दूरी रह गयी। लेखक के मन में आया की वह भाई साहब को आड़े हाथों लें परन्तु उन्हें दुःखी देखकर लेखक ने इस विचार को त्याग दिया और खेल-कूद में फिर व्यस्त हो गए। अब बड़े भाई का लेखक पर ज्यादा दबाव ना था।

एक दिन लेखक भोर का सारा समय खेल में बिताकर लौटे तब भाई साहब ने उन्हें जमकर डाँटा और कहा कि अगर कक्षा में अव्वल आने पर घमंड हो गया है तो यह जान लो की बड़े-बड़े आदमी का भी घमंड नही टिक पाया, तुम्हारी क्या हस्ती है? अनेको उदाहरण देकर उन्होंने लेखक को चेताया। बड़े भाई ने  कक्षा की अलजबरा, जामेट्री और इतिहास पर अपनी टिप्पणी की और बताया की यह सब विषय बड़े कठिन हैं। निबंध लेखन को उन्होंने समय की बर्बादी बताया और कहा की परीक्षा में उत्तीर्ण करने के लिए मेहनत करनी पड़ती है। स्कूल का समय निकट था नही तो लेखक को और बहुत कुछ सुनना पड़ता। उस दिन लेखक को भोजन निःस्वाद सा लगा। इतना सुनने के बाद भी लेखक की अरुचि पढाई में बनी रही और खेल-कूद में वो शामिल होते रहे।

(3)

फिर सालाना परीक्षा में बड़े भाई फेल हो गए और लेखक पास। बड़े भाई ने अत्याधिक परिश्रम किया था और लेखक ने ज्यादा नहीं। लेखक को अपने बड़े भाई पर दया आ रही थी। जब नतीजा सुनाया गया तो वह रो पड़े  और उनके साथ लेखक भी रोने लगे। पास होने की ख़ुशी आधी हो गयी। अब उनके बीच केवल एक दर्जे का अंतर रह गया। लेखक को लगा यह उनके उपदेशों का ही असर है की वे दनादन पास हो जाते हैं। अब भाई साहब नरम पड़ गए। अब उन्होंने लेखक को डाँटना बंद कर दिया। अब लेखक में मन में यह धारणा बन गयी की वह पढ़े या ना पढ़े वे पास हो जायेंगे।

एक दिन संध्या समय लेखक होस्टल से दूर कनकौआ लूटने के लिए दौड़े जा रहे थे तभी उनकी मुठभेड़ बड़े भाई से हो गयी। वे लेखक का हाथ पकड़ लिया और गुस्सा होकर बोले कि तुम आठवीं कक्षा में भी आकर ये काम कर रहे हो। एक ज़माने में आठवीं पास कर नायाब तहसीलदार हो जाते थे, कई लीडर और समाचारपत्रों संपादक भी आठवीं पास हैं परन्तु तुम इसे महत्व नही देते हो। उन्होंने लेखक को तजुरबे का महत्व स्पष्ट करते हुए कहा कि भले ही तुम मेरे से कक्षा में कितने भी आगे निकल जाओ फिर भी मेरा तजुरबा तुमसे ज्यादा रहेगा और तुम्हें समझाने का अधिकार भी। उन्होंने लेखक को अम्माँ दादा का उदाहरण देते हुए कहा की भले ही हम बहुत पढ़-लिख जाएँ परन्तु उनके तजुरबे की बराबरी नही कर सकते। वे बिमारी से लेकर घर के काम-काज तक में हमारे से ज्यादा अनुभव रखते हैं। इन बातों को सुनकर लेखक उनके आगे नत-मस्तक हो गए और उन्हें अपनी लघुता का अनुभव हुआ। इतने में ही एक कनकौआ उनलोगों के ऊपर से गुजरा। चूँकि बड़े भाई लम्बे थे इसलिए उन्होंने पतंग की डोर पकड़ ली और होस्टल की तरफ दौड़ कर भागे। लेखक उनके पीछे-पीछे भागे जा रहे थे।

लेखक परिचय

प्रेमचंद

इनका जन्म 31 जुलाई 1880 को बनारस के लमही गाँव में हुआ। इनका मूल नाम धनपत राय था परन्तु इन्होनें उर्दू में नबाव राय और हिंदी में प्रेमचंद नाम से काम किया। निजी व्यवहार और पत्राचार ये धनपत राय से ही करते थे। आजीविका के लिए स्कूल मास्टरी, इंस्पेक्टरी, मैनेजरी करने के अलावा इन्होनें 'हंस' 'माधुरी' जैसी प्रमुख पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया। ये अपने जीवन काल में ही कथा सम्राट और उपन्यास सम्राट कहे जाने लगे थे।

प्रमुख कार्य

उपन्यास - गोदान, गबन, प्रेमाश्रम, सेवासदन, निर्मला, कर्मभूमि, रंगभूमि, कायाकल्प, प्रतिज्ञा, और मंगलसूत्र(अपूर्ण)।

कठिन शब्दों के अर्थ

• तालीम - शिक्षा

• पुख्ता - मजबूत

• तम्बीह - डाँट-डपट

• सामंजस्य - तालमेल

• मसलन - उदाहरणतः

• इबारत - लेख

• चेष्टा - कोशिश

• जमात - कक्षा

• हर्फ़ - अक्षर

• मिहनत (मेहनत) - परिश्रम

• लताड़ - डाँट-डपट

• सूक्ति-बाण - तीखी बातें

• स्कीम - योजना

• अमल करना - पालन करना

• अवहेलना - तिरस्कार

• नसीहत - सलाह

• फजीहत - अपमान

• इम्तिहान - परीक्षा

• लज्जास्पद - शर्मनाक

• शरीक - शामिल

• आतंक - भय

• अव्वल - प्रथम

• आधिपत्य - प्रभुत्व

• स्वाधीन - स्वतंत्र

• महीप - राजा

• मुमतहीन - परीक्षक

• प्रयोजन - उद्देश्य

• खुराफात - व्यर्थ की बातें

• हिमाकत - बेवकूफी

• किफ़ायत - बचत

• टास्क - कार्य

• जलील - अपमानित

• प्राणांतक - प्राण का अंत करने वाला

• कांतिहीन - चेहरे पे चमक ना होना

• सहिष्णुता - सहनशीलता

• कनकौआ - पतंग

• अदब - इज्जत

• जहीन - प्रतिभावान

• तजुरबा - अनुभव

• बदहवास - बेहाल

• मुहताज (मोहताज) -दूसरे पर आश्रित

NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 11- डायरी का एक पन्ना स्पर्श भाग-2 हिंदी 

सीताराम सेकसरिया

पृष्ठ संख्या: 73

प्रश्न अभ्यास 

मौखिक 

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए −

1. कलकत्ता वासियों के लिए 26 जनवरी 1931 का दिन क्यों महत्वपूर्ण था?

उत्तर

26 जनवरी 1930 को गुलाम भारत में पहला स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था जिसमे कलकत्ता वासियों की भागीदारी साधरण थी। 26 जनवरी 1931 को उसकी पुनरावृत्ति थी परन्तु इस बार कलकत्ता में इसकी तैयारियाँ जोरो पर थी। इसीलिए कलकत्ता वासियों के लिए यह दिन महत्वपूर्ण था।

2. सुभाष बाबू के जुलूस का भार किस पर था?

उत्तर

सुभाष बाबू के जुलूस का भार पूर्णोदास पर था।

3. विद्यार्थी संघ के मंत्री अविनाश बाबू के झंडा गाड़ने पर क्या प्रतिक्रिया हुई?

उत्तर

बंगाल प्रांतीय विद्यार्थी संघ के मंत्री अविनाश बाबू ने जैसे ही झंडा गाड़ा, पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया और लोगों पर लाठियाँ चलाई।

4. लोग अपने-अपने मकानों व सार्वजनिक स्थलों पर राष्ट्रीय झंडा फहराकर किस बात का संकेत

देना चाहते थे?

उत्तर

लोग अपने-अपने मकानों व सार्वजनिक स्थलों पर राष्ट्रीय झंडा फहराकर बताना चाहते थे कि वे अपने को आज़ाद समझ कर आज़ादी मना रहे हैं। उनमें जोश और उत्साह है।

5. पुलिस ने बड़े-बड़े पार्कों और मैदानों को क्यों घेर लिया था?

उत्तर

आज़ादी मनाने के लिए पूरे कलकत्ता शहर में जनसभाओं और झंडारोहण उत्सवों का आयोजन किया गया। इसलिए पार्कों और मैदानों को घेर लिया था।

लिखित

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) दीजिए -

1. 26 जनवरी 1931 के दिन को अमर बनाने के लिए क्या-क्या तैयारियाँ की गईं ?

उत्तर

26 जनवरी 1931 के दिन को अमर बनाने के लिए काफी तैयारियाँ की गयी थीं। केवल प्रचार पर दो हजार रूपए खर्च किये गए थे। कार्यकर्ताओं को उनका कार्य घर घर जाकर समझाया गया था। कलकत्ता शहर में जगह-जगह झंडे लगाए गए थे। कई स्थानों पर जुलूस निकाले गए तथा झंड़ा फहराया गया था। टोलियाँ बनाकर भीड़ उस स्थान पर जुटने लगी जहाँ सुभाष बाबू का जुलूस पहुँचना था।

2. 'आज जो बात थी वह निराली थी'− किस बात से पता चलरहा था कि आज का दिन अपने आप में निराला है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

आज का दिन निराला इसलिए था क्योंकि स्वतंत्रता दिवस मनाने की प्रथम पुनरावृत्ति थी। पुलिस ने सभा करने को गैरकानूनी कहा था किंतु सुभाष बाबू के आह्वान पर पूरे कलकत्ता में अनेक संगठनों के माध्यम से जुलूस व सभाओं की जोशीली तैयारी थी। पूरा शहर झंडों से सजा था तथा कौंसिल ने मोनुमेंद के नीचे झंडा फहराने और स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ने का सरकार को खुला चैलेंज दिया हुआ था। पुलिस भरपूर तैयारी के बाद भी कामयाब नहीं हो पाई।

3. पुलिस कमिश्नर के नोटिस और कौंसिल के नोटिस में क्या अंतर था?

उत्तर

पुलिस कमिश्नर ने नोटिस निकाला था कि कोई भी जनसभा करना या जुलूस निकालना कानून के खिलाफ़ होगा। सभाओं में भाग लेने वालों को दोषी माना जाएगा। कौंसिल ने नोटिस निकाला था कि मोनुमेंट के नीचे चार बजकर चौबीस मिनट पर झंडा फहराया जाएगा तथा स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ी जाएगी। इस प्रकार ये दोनों नोटिस एक दुसरे के खिलाफ़ थे।

4. धर्मतल्ले के मोड़ पर आकर जुलूस क्यों टूट गया?

उत्तर

जब सुभाष बाबू को पकड़ लिया गया तो स्त्रियाँ जुलूस बनाकर चलीं परन्तु पुलिस ने लाठी चार्ज से उन्हें रोकना चाहा जिससे कुछ लोग वहीं बैठ गए, कुछ घायल हो गए और कुछ पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिए गए इसलिए जुलूस टूट गया।

5. डा. दासगुप्ता जुलूस में घायल लोगों की देख-रेख तो कर रहे थे, उनके फ़ोटो भी उतरवा रहे थे। उन लोगों के फ़ोटो खींचने की क्या वजह हो सकती थी? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

डा. दास गुप्ता लोगों की फ़ोटो खिचवा रहे थे। इससे अंग्रेज़ों के जुल्म का पर्दाफ़ाश किया जा सकता था, दूसरा यह भी पता चल सकता था कि बंगाल में स्वतंत्रता की लड़ाई में बहुत काम हो रहा है।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) दीजिए -

1. सुभाष बाबू के जुलूस में स्त्री समाज की क्या भूमिका थी?

उत्तर

सुभाष बाबू के जुलूस में स्त्री समाज की महत्वपूर्ण भुमिका रही थी। भारी पुलिस व्यवस्था के बाद भी जगह-जगह स्त्री जुलूस के लिए टोलियाँ बन गई थीं। मोनुमेंट पर भी स्त्रियों ने निडर होकर झंडा फहराया, अपनी गिरफ्तारियाँ करवाई तथा उनपर लाठियाँ बरसाई। इसके बाद भी स्त्रियाँ लाल बाज़ार तक आगे बढ़ती गईं।

2. जुलूस के लाल बाज़ार आने पर लोगों की क्या दशा हुई?

उत्तर

जुलूस के लाल बाज़ार आने पर भीड़ बेकाबू हो गई। पुलिस डंडे बरसा रही थी, लोगों को लॉकअप में भेज रही थी। स्त्रियाँ भी अपनी गिरफ़तारी दे रही थीं। दल के दल नारे लगा रहे थे। लोगों का जोश बढ़ता ही जा रहा था। लाठी चार्ज से लोग घायल हो गए थे। खून बह रहा था। चीख पुकार मची थी फिर भी उत्साह बना हुआ था।

3. 'जब से कानून भंग का काम शुरू हुआ है तब से आज तक इतनी बड़ी सभा ऐसे मैदान में नहीं की गई थी और यह सभा तो कहना चाहिए कि ओपन लड़ाई थी।' यहाँ पर कौन से और किसके द्वारा लागू किए गए कानून को भंग करने की बात कही गई है? क्या कानून भंग करना उचित था? पाठ के संदर्भ में अपने विचार प्रकट कीजिए।

उत्तर

यहाँ पर अंग्रेजी राज्य द्वारा सभा न करने के कानून को भंग करने की बात कही गई है। वात्सव में यह कानून भारतवासियों की स्वाधीनता को दमन करने का कानून था इसलिए इसे भंग करना उचित था। इस समय देश की आज़ादी के लिए हर व्यक्ति अपना सर्वस्व लुटाने को तैयार था। अंग्रेज़ों ने कानून बनाकर आन्दोलन, जुलूसों को गैर कानूनी घोषित किया हुआ था परन्तु लोगों पर इसका कोई असर नहीं था। वे आज़ादी के लिए अपना प्रदर्शन करते रहे, गुलामी की जंजीरों को तोड़ने का प्रयास करते रहे थे।

4. बहुत से लोग घायल हुए, बहुतों को लॉकअप में रखा गया, बहुत-सी स्त्रियाँ जेल गईं, फिर भी इस दिन को अपूर्व बताया गया है। आपके विचार में यह सब अपूर्व क्यों है? अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर

सुभाष चन्द्र बोस के नेतृत्व में कलकत्ता वासियों ने स्वतंत्रता दिवस मनाने की तैयारी ज़ोर-शोर से की थी। पुलिस की सख्ती, लाठी चार्ज, गिरफ़तारियाँ, इन सब के बाद भी लोगों में जोश बना रहा। लोग झंडे फहराते, वंदे मातरम बोलते हुए, खून बहाते हुए भी जुलूस निकालने को तत्पर थे। जुलूस टूटता फिर बन जाता। कलकत्ता के इतिहास में इतने प्रचंड रूप में लोगों को पहले कभी नहीं देखा गया था।

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(ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए -

1. आज तो जो कुछ हुआ वह अपूर्व हुआ है। बंगाल के नाम या कलकत्ता के नाम पर कलंक था कि यहाँ काम नहीं हो रहा है वह आज बहुत अंश में धुल गया।

उत्तर

हजारों स्त्री पुरूषों ने जुलूस में भाग लिया, आज़ादी की सालगिरह मनाने के लिए बिना किसी डर के प्रदर्शन किया। पुलिस के बनाए कानून कि, जुलूस आदि गैर कानूनी कार्य, आदि की भी परवाह नहीं की। पुलिस की लाठी चार्ज होने पर लोग घायल हो गए। खून बहने लगे परन्तु लोगों में जोश की कोई कमी नहीं थी। बंगाल के लिए कहा जाता था कि स्वतंत्रता के लिए बहुत ज़्यादा योगदान नहीं दिया जा रहा है। आज की स्थिति को देखकर उन पर से यह कंलक मिट गया।

2. खुला चैलेंज देकर ऐसी सभा पहले नहीं की गई थी?

उत्तर

पुलिस ने कोई प्रदर्शन न हो इसके लिए कानून निकाला कि कोई जुलूस आदि आयोजित नहीं होगा परन्तु सुभाष बाबू की अध्यक्षता में कौंसिल ने नोटिस निकाला था कि मोनुमेंट के नीचे झंडा फहराया जाएगा और स्वतंत्रता की प्रतिक्षा पढ़ी जाएगी। सभी को इसके लिए आंमत्रित किया गया, खूब प्रचार भी हुआ। सारे कलकत्ते में झंडे फहराए गए थे। सरकार और आम जनता में खुली लड़ाई थी।

भाषा अध्यन

1. निम्नलिखित वाक्यों को सरल वाक्यों में बदलिए - 

I. (क) दो सौ आदमियों का जुलूस लालबाज़ार गया और वहाँ पर गिरफ़्तार हो गया।

(ख) मैदान में हज़ारों आदमियों की भीड़ होने लगी और लोग टोलियाँ बना-बनाकर मैदान में घूमने लगे।

(ग) सुभाष बाबू को पकड़ लिया गया और गाड़ी में बैठाकर लालबाज़ार लॉकअप भेज दिया गया।

II . 'बड़े भाई साहब' पाठ में से भी दो-दो सरल, संयुक्त और मिश्र वाक्य छाँटकर लिखिए।

उत्तर

I. (क) दो सौ आदमियों का जुलूस लालबाज़ार पहुँच कर गिरफ़्तार हो गया।

(ख) हज़ारों लोगों की भीड़ मैदान में टोलियाँ बनाकर घूमने लगी।

(ग) सुभाष बाबू को पकड़कर गाड़ी में लाल बाज़ार लॉकअप भेज दिया गया।

II. सरल वाक्य − (क) वह स्वभाव से बड़े अध्ययनशील थे।

(ख) उनकी रचनाओं को समझना छोटे मुँह बड़ी बात है।

संयुक्त वाक्य −(क) अभिमान किया और दीन दुनिया दोनों से गया।

(ख) मुझे अपने ऊपर कुछ अभिमान हुआ और आत्मसम्मान भी बढ़ा।

मिश्र वाक्य − (क) मैंने बहुत चेष्टा की कि इस पहेली का कोई अर्थ निकालूँ लेकिन असफल रहा।

(ख) मैं कह देता कि मुझे अपना अपराध स्वीकार है।

2. नीचे दिए गए शब्दों की संधि कीजिए −

|श्रद्धा |+ |आंनद |= |............ |

|प्रति |+ |एक |= |............ |

|पुरूष |+ |उत्तम |= |............ |

|झंडा |+ |उत्सव |= |............ |

|पुन: |+ |आवृत्ति |= |............ |

|ज्योति: |+ |मय |= |............ |

उत्तर

|श्रद्धा |+ |आंनद |= |श्रद्धानंद |

|प्रति |+ |एक |= |प्रत्येक |

|पुरूष |+ |उत्तम |= |पुरूषोत्तम |

|झंडा |+ |उत्सव |= |झंडोत्सव |

|पुन: |+ |आवृत्ति |= |पुनरावृत्ति |

|ज्योति: |+ |मय |= |ज्योतिर्मय |

सारांश

इस पाठ में लेखक सीताराम सेकसरिया ने 26 जनवरी 1931 को कोलकाता में मनाए गए स्वतंत्रता दिवस का विवरण प्रस्तुत किया है। लेखक ने बताया है की भारत में स्वतंत्रता दिवस पहली बार 26 जनवरी 1930 में मनाया गया था परन्तु उस साल कोलकाता की स्वतंत्रता दिवस में ज्यादा हिस्सेदारी नही थी परन्तु इस साल पूरी तैयारियाँ की गई थीं। केवल प्रचार में दो हजार रूपए खर्च किये गए थे। लोगों को घर-घर जाकर समझाया गया।

बड़े बाजार के प्रायः मकानों पर तिरंगा फहराया गया था। कलकत्ता के हर भाग में झंडे लगाये गए थे, ऐसी सजावट पहले कभी नही हुई थी। पुलिस भी प्रत्येक मोड़ में तैनात होकर अपनी पूरी ताकत से गश्त दे रही थी। घुड़सवारों का भी प्रबंध था।

मोनुमेंट के नीचे जहाँ सभा होने वाली थी उस जगह को पुलिस ने सुबह छः बजे ही घेर लिया फिर भी कई जगह सुबह में ही झंडा फहराया गया। श्रद्धानंद पार्क में बंगाल प्रांतीय विद्यार्थी संघ के मंत्री अविनाश बाबू ने जब झंडा गाड़ा तब उन्हें पकड़ लिया। तारा सुंदरी पार्क में बड़ा-बाजार कांग्रेस कमेटी के युद्ध मंत्री हरिश्चंद्र सिंह को झंडा फहराने से पहले ही गिरफ्तार कर लिया गया। वहाँ मारपीट भी हुई जिसमे दो-चार लोगों के सिर फट गए तथा गुजरात सेविका संघ की ओर से निकाले गए जुलुस में कई लड़कियों को गिरफ्तार किया गया।

मारवाड़ी बालिका विद्यालय की लड़कियों ने 11 बजे झंडा फहराया। जगह- जगह उत्सव और जुलुस के फोटो उतारे गए। दो-तीन कई आदमियों को पकड़ लिया गया जिनमें पूर्णोदास और परुषोत्तम राय प्रमुख थे। सुभाष चन्द्र बोस के जुलुस का भार पूर्णोदास पर था।

स्त्री समाज भी अपना जुलुस निकालने और ठीक स्थान पर पहुँचनें की कोशिश कर रहीं थीं। तीन बजे से ही मैदान में भीड़ जमा होने लगी और लोग टोलियां बनाकर घूमने लगे। इतनी बड़ी सभा कभी नही की गयी थी पुलिस कमिश्नर के नोटिस के आधार पर अमुक-अमुक धारा के अनुसार कोई सभा नहीं हो सकती थी और भाग लेने वाले व्यक्तियों को दोषी समझा जाएगा। कौंसिल के नोटिस के अनुसार चार बजकर चौबीस मिनट पर झंडा फहराया जाना था और स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ी जानी थी।

ठीक चार बजे सुभाष चन्द्र बोस जुलुस के साथ आए। भीड़ ज्यादा होने की वजह से पुलिस उन्हें रोक नही पायी। पुलिस ने लाठियां चलायीं, कई लोग घायल हुए और सुभाष बाबू पर भी लाठियां पड़ीं। वे जोर से 'वन्दे मातरम्' बोल रहे थे और आगे बढ़ते रहे। पुलिस भयानक रूप से लाठियां चला रहीं थी जिससे क्षितीश चटर्जी का सिर फैट गया था। उधर स्त्रियां मोनुमेंट की सीढियाँ चढ़कर झंडा फहरा रही थीं। सुभाष बाबू को पकड़ लिया गया और गाडी में बैठाकर लॉकअप भेज दिया गया।

कुछ देर बाद वहाँ से स्त्रियां जुलुस बनाकर चलीं और साथ में बहुत बड़ी भीड़ इकट्ठी हो गयी। पुलिस ने डंडे बरसाने शुरू कर दिए जिससे बहुत आदमी घायल हो गए। धर्मतल्ले के मोड़ के पास आकर जुलुस टूट गया और करीब 50-60 महिलाएँ वहीँ बैठ गयीं जिसे पुलिस से पकड़कर लालबाजार भेज दिया। स्त्रियों का एक भाग आगे विमला देवी के नेतृत्व में आगे बढ़ा जिसे बहू बाजार के मोड़ पर रोक गया और वे वहीँ बैठ गयीं। डेढ़ घंटे बाद एक लारी में बैठाकर लालबाजार ले जाया गया।

वृजलाल गोयनका को पकड़ा गया और मदालसा भी पकड़ी गयीं। सब मिलाकर 105 स्त्रियां पकड़ी गयीं थीं जिन्हें बाद में रात 9 बजे छोड़ दिया गया। कलकत्ता में आज तक एक साथ इतनी ज्यादा गिरफ्तारी कभी नहीं हुई थी। करीब दो सौ लोग घायल हुए थे। पकड़े गए आदमियों की संख्या का पता नही चला पर लालबाजार के लॉकअप में स्त्रियों की संख्या 105 थी। आज का दिन कलकत्तावासियों के लिए अभूतपूर्व था। आज वो कलंक धुल गया की कलकत्तावासियों की यहाँ काम नही हो सकता।

लेखक परिचय

सीताराम सेकसरिया

इनका जन्म 1892 में राजस्थान के नवलगढ़ में हुआ परन्तु अधिकांश जीवन कलकत्ता में बिता। ये व्यापार से जुड़े होने के साथ अनेक साहित्यिक, सांस्कृतिक और नारी शिक्षण संस्थाओं के प्रेरक, संस्थापक और संचालक रहे। महात्मा गांधी के आह्वाहन पर ये स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े। कुछ साल तक ये आजाद हिंद फ़ौज के मंत्री भी रहे। इन्होने स्वाध्याय से पढ़ना-लिखना सीखा।

प्रमुख कार्य

कृतियाँ - स्मृतिकण, मन की बात, बिता युग, नयी याद और दो भागों में एक कार्यकर्ता की डायरी।

पुरस्कार - पद्मश्री पुरस्कार।

कठिन शब्दों के अर्थ

• पुनरावृति - फिर से आना

• गश्त - पुलिस कर्मचारी का पहरे के लिए घूमना

• सार्जेंट - सेना में एक पद

• मोनुमेंट - स्मारक

• कौंसिल - परिषद

• चौरंगी - कलकत्ता के एक शहर का नाम

• वालेंटियर - स्वयंसेवक

• संगीन - गंभीर

• मदालसा - जानकी देवी और जमना लाल बजाज की पुत्री का नाम

NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 12- तताँरा-वामीरो कथा स्पर्श भाग-2 हिंदी 

लीलाधर मंडलोई

पृष्ठ संख्या: 83

प्रश्न अभ्यास 

मौखिक

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो-पंक्तियों में दीजिए -

1. तताँरा-वामीरो कहाँ की कथा है?

उत्तर

तताँरा-वामीरो अंदमान निकोबार द्वीप समुह की लोक कथा है।

2. वामीरो अपना गाना क्यों भूल गई?

उत्तर

अचानक समुद्र की ऊँची लहर ने वामीरो को भिगो दिया, इसी हड़बडाहट में वह गाना भूल गई।

3. तताँरा ने वामीरो से क्या याचना की?

उत्तर

तताँरा ने वामीरो से याचना की कि वह कल उसी समुद्री चट्टान पर आए।

4. तताँरा और वामीरो के गाँव की क्या रीति थी?

उत्तर

तताँरा और वामीरो के गाँव की रीति थी कि विवाह संबंध बाहर के किसी गाँव वाले से नहीं हो सकता था।

5. क्रोध में तताँरा ने क्या किया?

उत्तर

क्रोध में तताँरा का हाथ कमर पर लटकी तलवार पर चला गया और उसने तलवार निकाल कर ज़मीन में गाड़ दी।

लिखित

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) दीजिए -

1. तताँरा की तलवार के बारे में लोगों का क्या मत था?

उत्तर

तताँरा की तलवार लकड़ी की थी औऱ हर समय तताँरा की कमर पर बँधी रहती थी। वह इसका प्रयोग सबके सामने नहीं करता था। लोगों का मानना था कि उसमे अद्भुत दैवीय शक्ति थी। वास्तव में वह तलवार एक विलक्षण रहस्य थी।

2. वामीरों ने तताँरा को बेरूखी से क्या जवाब दिया?

उत्तर

वामीरों ने तताँरा को बेरूखी से जवाब दिया कि पहले वह बताए कि वह कौन है जो इस तरह प्रश्न पूछ रहा है।

पृष्ठ संख्या: 84

3. तताँरा-वामीरो की त्यागमयी मृत्यु से निकोबार में क्या परिवर्तन आया?

उत्तर

तताँरा-वामीरो की त्यागमयी मृत्यु की घटना के बाद निकोबारी दूसरे गांवों में भी आपसी वैवाहिक संबंध रखने लगे।

4. निकोबार के लोग तताँरा को क्यों पसंद करते थे?

उत्तर

निकोबार के लोग तताँरा को उसके आत्मीय स्वभाव के कारण पसन्द करते थे। वह नेक ईमानदार और साहसी था। वह मुसीबत के समय भाग भागकर सबकी मदद करता था।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) दीजिए -

1. निकोबार द्वीप समूह के विभक्त होने के बारे में निकोबारियों का क्या विश्वास है?

उत्तर

निकोबारियों का विश्वास था कि पहले अडंमान निकोबार दोनों एक ही द्वीप थे। इनके दो होने के पीछे तताँरा-वामीरो की लोक कथा प्रचलित है। ये दोनों प्रेम करते थे। दोनों एक गाँव के नहीं थे। इसलिए रीति अनुसार विवाह नहीं हो सकती थी। रूढ़ियों में जकड़ा होने के कारण वह कुछ कर भी नहीं सकता था। उसे अत्यधिक क्रोध आया और उसने क्रोध में अपनी तलवार धरती में गाड़ दी और उसे खींचते खींचते वह दूर भागता चला गया। इससे ज़मीन दो भागों में बँट गई - एक निकोबार और दूसरा अंडमान।

2. तताँरा खूब परिश्रम करने के बाद कहाँ गया? वहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

उत्तर

तताँरा दिनभर खूब परिश्रम करने के बाद समुद्र के किनारे टहलने निकल गया। शाम का समय था और समुद्र से ठंडी हवाएँ आ रही थी। पक्षियों की चहचहाट धीरे-धीरे कम हो रही थी। डुबते हुए सूरज़ की किरणें समुद्र के पानी पर पड़कर सतरंगी छटा बिखेर रही थी। समुद्र का पानी बहते हुए आवाज़ कर रहा था मानो कोई गीत गा रहा हो। पूरा वातावरण बहुत मोहक लग रहा था।

3. वामीरो से मिलने के बाद तताँरा के जीवन में क्या परिवर्तन आया?

उत्तर

वामीरो से मिलने के बाद तताँरा बहुत बैचेन रहने लगा। वह अपनी सुधबुध खो बैठा। वह शाम की प्रतिक्षा करता जब वह वामीरो से मिल सके। वह दिन ढलने से पहले ही लपाती की समुद्री चट्टान पर पहुँच गया। उसे एक-एक पल पहाड़ जैसा लग रहा था।

4. प्राचीन काल में मनोरंजन और शक्ति प्रदर्शन के लिए किस प्रकार के आयोजन किए जाते थे?

उत्तर

प्राचीन काल में हष्ट पुष्ट पशुओं के साथ शक्ति प्रदर्शन किए जाते थे। लड़ाकू साँडों, शेर, पहलवानों की कुश्ती, तलवार बाजी जैसे शक्ति प्रदर्शन के कार्यक्रम होते थे। तीतर, बटेर की लड़ाई, पंतगबाजी, पैठे लगाना जिसमें विशिष्ठ सामग्रियाँ बिकती। खाने पीने की दुकाने, जानवरों की नुमाइश, ये सभी मनोरंजन के आयोजन होते थे।

5. रूढ़ियाँ जब बंधन बन बोझ बनने लगें तब उनका टूट जाना ही अच्छा है। क्यों? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

रूढ़ियां और बंधन समाज को अनुशासित करने के लिए बनते हैं परन्तु जब इन्हीं के द्वारा मनुष्य की भावना आहत होने लगे, बंधन बनने लगे और बोझ लगने लगे तो उसका टूट जाना ही अच्छा होता है। इस कहानी के सन्दर्भ में देखा जाए तो तांतरा-वामीरो का विवाह एक रूढ़ि के कारण नही हो सकता था जिसके कारण उन्हें जान देनी पड़ती है। इस तरह की रूढ़ियाँ किसी भला करने की जगह नुकसान करती हैं। समयानुसार समाज में परिवर्तन आते रहते हैं और रूढ़ियाँ आडम्बर प्रतीत होती हैं इसलिए इनका टूट जाना बेहतर होता है।

(ग) निम्नलिखित का आशय  स्पष्ट कीजिए -

1. जब कोई राह न सूझी तो क्रोध का शमन करने के लिए उसमें शक्ति भर उसे धरती में घोंप दिया और ताकत से उसे खींचने लगा।

उत्तर

तताँरा-वामीरो को पता लग गया था कि उनका विवाह नहीं हो सकता था। फिर भी वे मिलते रहे। एक बार पशु पर्व मे वामीरो तताँरा से मिलकर रोने लगी। इस पर उसकी माँ ने क्रोध किया और तताँरा को अपमानित किया। तताँरा को भी क्रोध आने लगा। अपने गुस्से को शान्त करने के लिए अपनी तलवार को ज़मीन में गाड़ कर खींचता चला गया। इस कारण धरती दो हिस्सों में बंट गयी।

2. बस आस की एक किरण थी जो समुद्र की देह पर डूबती किरणों की तरह कभी भी डूब सकती थी।

उत्तर

तताँरा ने वामीरो से मिलने के लिए कहा और वह शाम के समय उसकी प्रतीक्षा भी कर रहा था। जैसे-जैसे सूरज डूब रहा था, उसको वामीरो के न आने की आशंका होने लगती। जिस प्रकार सूर्य की किरणें समुद्र की लहरों में कभी दिखती तो कभी छिप जाती थी, उसी तरह तताँरा के मन में भी उम्मीद बनती और डूबने लगती थी।

भाषा अध्यन

1. निम्नलिखित वाक्यों के सामने दिए कोष्ठक में (✓) का चिह्न लगाकर बताएँ कि वह वाक्य किस प्रकार का है −

(क) निकोबारी उसे बेहद प्रेम करते थे। (प्रश्नवाचक, विधानवाचक, निषेधात्मक, विस्मयादिबोधक)

(ख) तुमने एकाएक इतना मधुर गाना अधूरा क्यों छोड़ दिया? (प्रश्नवाचक, विधानवाचक, निषेधात्मक, विस्मयादिबोधक)

(ग) वामीरो की माँ क्रोध में उफन उठी। (प्रश्नवाचक, विधानवाचक, निषेधात्मक, विस्मयादिबोधक)

(घ) क्या तुम्हें गाँव का नियम नहीं मालूम? (प्रश्नवाचक, विधानवाचक, निषेधात्मक, विस्मयादिबोधक)

(ङ) वाह! कितना सुदंर नाम है। (प्रश्नवाचक, विधानवाचक, निषेधात्मक, विस्मयादिबोधक)

(च) मैं तुम्हारा रास्ता छोड़ दूँगा। (प्रश्नवाचक, विधानवाचक, निषेधात्मक, विस्मयादिबोधक)

उत्तर

|(क) |निकोबारी उसे बेहद प्रेम करते थे। |विधानवाचक |

|(ख) |तुमने एकाएक इतना मधुर गाना अधूरा क्यों छोड़ दिया? |प्रश्नवाचक |

|(ग) |वामीरो की माँ क्रोध में उफन उठी। |विधानवाचक |

|(घ) |क्या तुम्हें गाँव का नियम नहीं मालूम? |प्रश्नवाचक |

|(ङ) |वाह! कितना सुदंर नाम है। |विस्मयादिबोधक |

|(च) |मैं तुम्हारा रास्ता छोड़ दूँगा। |विधानवाचक |

2. निम्नलिखित मुहावरों का अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए −

(क) सुध-बुध खोना

(ख) बाट जोहना

(ग) खूशी का ठिकाना न रहना

(घ) आग बबूला होना

(ङ) आवाज़ उठाना

उत्तर

(क) सुध-बुध खोना - अचानक बहुत से मेहमानों को देखकर गीता ने अपनी सुधबुध खो दी।

(ख) बाट जोहना - शाम होते ही माँ सबकी बाट जोहने लगती।

(ग) खुशी का ठिकाना न रहना - आई. ए. एस. की परीक्षा में उत्तीर्ण होने पर मोहन का खुशी का ठिकाना न रहा।

(घ) आग बबूला होना - शैतान बच्चों को देखकर अध्यापक आग बबूला हो गए।

(ङ) आवाज़ उठाना - प्रगतीशील लोगों ने रूढ़ियों के खिलाफ आवाज़ उठाई।

पृष्ठ संख्या: 85

3. नीचे दिए गए शब्दों में से मूल शब्द और प्रत्यय अलग करके लिखिए −

|शब्द |मूल शब्द |प्रत्यय |

|चर्चित |------------------- |------------------- |

|साहसिक |------------------- |------------------- |

|छटपटाहट |------------------- |------------------- |

|शब्दहीन |------------------- |------------------- |

उत्तर

|शब्द |मूल शब्द |प्रत्यय |

|चर्चित |चर्चा |इत |

|साहसिक |साहस |इक |

|छटपटाहट |छटपट |आहट |

|शब्दहीन |शब्द |हीन |

4. नीचे दिए गए शब्दों में उचित उपसर्ग लगाकर शब्द बनाइए −

|------------------ |+ |आकर्षक |= |------------------ |

|------------------ |+ |ज्ञात |= |------------------ |

|------------------ |+ |कोमल |= |------------------ |

|------------------ |+ |होश |= |------------------ |

|------------------ |+ |घटना |= |------------------ |

उत्तर

|अन |+ |आकर्षक |= |अनाकर्षक |

|अ |+ |ज्ञात |= |अज्ञात |

|सु |+ |कोमल |= |सुकोमल |

|बे |+ |होश |= |बेहोश |

|दुर् |+ |घटना |= |दुर्घटना |

5. निम्नलिखित वाक्यों को निर्देशानुसार परिवर्तित कीजिए −

(क) जीवन में पहली बार मैं इस तरह विचलित हुआ हूँ। (मिश्रवाक्य)

(ख) फिर तेज़ कदमों से चलती हुई तताँरा के सामने आकर ठिठक गई। (संयुक्त वाक्य)

(ग) वामीरो कुछ सचेत हुई और घर की तरफ़ दौड़ी। (सरल वाक्य)

(घ) तताँरा को देखकर वह फूटकर रोने लगी। (संयुक्त वाक्य)

(ङ) रीति के अनुसार दोनों को एक ही गाँव का होना आवश्यक था। (मिश्रवाक्य)

उत्तर

(क) जीवन में ऐसा पहली बार हुआ है जब मैं विचलित हुआ हूँ।

(ख) फिर तेज़ कदमों से चलती हुई आई और तताँरा के सामने आकर ठिठक गई।

(ग) वामीरो कुछ सचेत होकर घर की तरफ़ दौड़ी।

(घ) उसने तताँरा को देखा और वह फूटकर रोने लगी।

(ङ) रीति के अनुसार यह आवश्यक था कि दोनों एक ही गाँव के हों।

7. नीचे दिए गए शब्दों के विलोम शब्द लिखिए −

भय, मधुर, सभ्य, मूक, तरल, उपस्थिति, सुखद।

उत्तर

|भय |अभय |

|मधुर |कर्कश |

|सभ्य |असभ्य |

|मूक |वाचाल |

|तरल |ठोस |

|उपस्थिति |अनुपस्थिति |

|दुखद |सुखद |

8. नीचे दिए गए शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए −

समुद्र, आँख, दिन, अँधेरा, मुक्त।

उत्तर

|समुद्र |- |सागर, जलधि |

|आँख |- |नेत्र, चक्षु |

|दिन |- |दिवस, वासर |

|अँधेरा |- |तम, अंधकार |

|मुक्त |- |आज़ाद, स्वतंत्र |

पृष्ठ संख्या: 86

9. नीचे दिए गए शब्दों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए −

किंकर्तव्यविमूढ़, विह्वल, भयाकुल, याचक, आकंठ।

उत्तर

किंकर्तव्यविमूढ़ − बहुत परेशानी में ठाकुर साहब से ढेरो पैसे इनाम मिलने पर वह किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया।

विह्वल − गीता बूढ़ी माँ के अंतिम क्षणों में विह्वल हो गई।

भयाकुल − वह अकेले अंधेरे घर में भयाकुल हो गया।

याचक − दरवाज़े पर एक याचक खड़ा था।

आकंठ − वह बहुत ही मधुर आकंठ से गीत गा रही थी।

10. 'किसी तरह आँचरहित एक ठंडा और ऊबाऊ दिन गुज़रने लगा' वाक्य में दिन के लिए किन-किन विशेषणों का प्रयोग किया गया है? आप दिन के लिए कोई तीन विशेषण और सुझाइए।

उत्तर

(क) ठंडा, ऊबाऊ

(ख) सुदंर, शुभ, ठंडा।

12. वाक्यों के रेखांकित पदबंधों का प्रकार बताइए −

(क) उसकी कल्पना में वह एक अद्भुत साहसी युवक था।

(ख) तताँरा को मानो कुछ होश आया।

(ग) वह भागा-भागा वहाँ पहुँच जाता।

(घ) तताँरा की तलवार एक विलक्षण रहस्य थी।

(ङ) उसकी व्याकुल आँखें वामीरों को ढूँढने में व्यस्त थीं।

उत्तर

(क) विशेषण पदबंध

(ख) क्रिया पदबंध

(ग) क्रिया विशेषण पदबंध

(घ) संज्ञा पदबंध

(ङ) संज्ञा पदबंध

सारांश

यह पाठ अंदमान निकोबार द्वीपसमूह के एक प्रचलित लोककथा पर आधरित है। अंदमान निकोबार दक्षिणी द्वीप लिटिल अंदमान है जो की पोर्ट ब्लेयर से लगभग सौ किलोमीटर दूर स्थित है। इसके बाद निकोबार द्वीपसमूह का पहला प्रमुख द्वीप कार-निकोबार है जो की लिटिल अंदमान से 96 कि.मी. दूर है। पौराणिक जनश्रुति के अनुसार ये दोनों द्वीप पहले एक ही थे। इनके अलग होने के पीछे एक लोककथा आज भी प्रचलित है।

जब दोनों द्वीप एक थे तब वहां एक सुन्दर सा गाँव था जहाँ एक सुन्दर और शक्तिशाली युवक रहा करता था जिसका नाम तताँरा था। वह एक नेक और ईमानदार व्यक्ति था और सदा दूसरों की मदद के लिए तत्पर रहता था। निकोबारी उसे बेहद प्रेम करते थे। वह अपने गाँव के लोगों के साथ सारे द्वीप की भी सेवा करता था। वह पारंपरिक पोशाक में रहने के साथ अपनी कमर में सदा एक लकड़ी की तलवार बाँधे रहता था। वह कभी तलवार का उपयोग नही करता था, लोगों का मत था की तलवार में दैवीय शक्ति थी।

एक शाम तताँरा दिनभर के अथक परिश्रम के बाद समुद्र के किनारे टहलने निकल पड़ा। सूरज डूबने को था, समुद्र से ठंडी बयारें आ रहीं थीं। पक्षियाँ अपने घरों को वापस जा रहीं थीं। तताँरा सूरज की अंतिम किरणों को समुद्र पर निहारा रहा था तभी उसे कहीं पास से एक मधुर गीत गूँजता सुनाई दिया  सुध-बुध खोने लगा। लहरों की एक प्रबल वेग ने उसे जगाया। वह जिधर से गीत के स्वर आ रहे थे उधर बढ़ता गया। उसकी नजर एक युवती पर पड़ी जो की वह श्रृंगार गीत गा रही थी। अचानक एक समुद्री लहर उठी और युवती को भिगों दिया जिसके हड़बड़ाहट में वह अपना गाना भूल गयी। तताँरा ने विनम्रतापूर्वक उसके मधुर गायन छोड़ने के पीछे वजह पूछी। युवती उसे देखकर चौंक गयी और ऐसे असंगत प्रश्न का कारण पूछने लगी। तताँरा उससे बार-बार गाने को बोल रहा था। अंत में तताँरा को अपनी भूल का अहसास हुआ और उसने क्षमा माँगकर उसका नाम पूछा। उसने अपना नाम वामीरो बताया। तताँरा ने उसे अपना नाम बताते हुए कल फिर आने का आग्रह किया।

वामीरो जब अपने घर लपाती पहुँची तो उसे भीतर से बैचैनी होने लगी। उसने तताँरा के व्यक्तित्व में वह सारा गुण पाया जो की वह अपने जीवन साथी के बारे में सोचती थी परन्तु उनका संबंध परंपरा के विरुद्ध था इसलिए उसने तताँरा को भूलना ही बेहतर समझा। किसी तरह दोनों की रात बीती। दूसरे दिन तताँरा लपाती के समुद्री चट्टान पर शाम में वामीरो की प्रतीक्षा करने लगा। सूरज ढलने को था सहसा तभी उसे नारियल के झुरमुठों के बीच एक आकृति दिखाई दी जो की वामीरो ही थी। अब दोनों रोज शाम में मिलते और एक दूसरे को एकटक निहारते खड़े रहते। लपाती के कुछ युवकों ने उन दोनों के इस मूक प्रेम को भाँप लिया और यह बात हवा की  तरह सबको मालूम हो गयी। परन्तु दोनों का विवाह संभव ना था क्योंकि दोनों अलग-अलग गाँव से थे। सबने दोनों को समझाने का पूरा प्रयास किया किन्तु दोनों अडिग रहे और हर शाम मिलते रहे।

कुछ समय बाद तताँरा के गाँव पासा में पशु-पर्व का आयोजन था जिसमें सभी गाँव हिस्सा लिया करते। पर्व में पशुओं के प्रदर्शन के के अतिरिक्त युवकों की भी शक्ति परीक्षा होती साथ ही गीत-संगीत और भोजन का भी आयोजन होता। शाम में सभी लोग पासा आने लगे और धीरे-धीरे विभिन्न कार्यक्रम होने लगे परन्तु तताँरा का मन इनमें ना होकर वामीरो को खोजने में व्यस्त था। तभी उसे नारियल के झुंड के पीछे वामीरो दिखाई दी। वह तताँरा को देखते ही रोने लगी। तताँरा विह्वल हुआ। रुदन का स्वर सुनकर वामीरो की माँ वहां पहुँच गयीं और उसने तताँरा को बुरा-भला कहकर अपमानित किया। गाँव के लोग भी तताँरा के विरोध में आवाज उठाने लगे। यह तताँरा के लिए असहनीय था। उसे परंपरा पर क्षोभ हो रहा था और अपनी असहायता पर गुस्सा। अचानक उसका हाथ तलवार की मूठ पर जा टिका और क्रोध में उसने अपनी तलवार निकालकर धरती में घोंप दिया और अपनी पूरी ताकत लगाकर खींचने लगा। जहाँ से लकीर खींची थी वहाँ से धरती में दरार आने लगी। द्वीप के दो टुकड़े हो चुके थे एक तरफ तताँरा था और दूसरी तरफ वामीरो। दूसरा द्वीप धँसने लगा। तताँरा को जैसे ही होश आया उसने दूसरे द्वीप का कूद कर सिरा पकड़ने की कोशिश की परन्तु सफल ना हो सका और नीचे की तरफ फिसलने लगा। दोनों के मुँह से एक दूसरे के  चीख निकल रही थी।

तताँरा लहूलुहान अचेत पड़ा था। बाद में उसका क्या हुआ कोई नहीं जानता। इधर वामीरो पागल हो गयी और उसने खाना-पीना छोड़ दिया। लोगों ने तताँरा को खोजने का बहुत प्रयास किया परन्तु वह नही मिला। आज ना तताँरा है ना वामीरो परन्तु उनकी प्रेमकथा घर-घर में  सुनाई जाती है। इस घटना के निकोबारी एक दूसरे गाँवों में वैवाहिक संबंध स्थापित करने लगे। तताँरा की तलवार से कार-निकोबार से जो दो टुकड़े उसमें दूसरा लिटिल अंदमान है।

लेखक परिचय

लीलाधर मंडलोई

इनका जन्म 1954 को जन्माष्टमी के दिन छिंदवाड़ा जिले के एक छोटे से गाँव गुढ़ी में हुआ। इनकी शिक्षा-दीक्षा भोपाल और रायपुर में हुई। प्रसारण की उच्च शिक्षा के लिए 1987 में कॉमनवेल्थ रिलेशंस ट्रस्ट, लंदन की ओर से आमंत्रित किये गए। इन दिनों प्रसार भारती दूरदर्शन के महानिदेशक का कार्यभार संभाल रहे हैं।

प्रमुख कार्य

कृतियाँ - घर-घर घूमा, रात-बिरात, मगर एक आवाज़, देखा-अनदेखा और काला पानी।

कठिन शब्दों के अर्थ

• श्रृंखला - कम्र

• आदिम - प्रारम्भिक

• विभक्त - बँटा हुआ

•  लोककथा - जन-समाज में प्रचलित कथा

• आत्मीय - अपना

• विलक्षण - साधारण

• बयार - शीतल मंद हवा

• तंद्रा -ऊँघ

• चैतन्य - चेतना

• विकल - बैचैन

• संचार - उत्पन्न होना

• असंगत - अनुचित

• सम्मोहित - मुग्ध

• झुंझुलाना - चिढ़ना

• अन्यमनस्कता - जिसका चित्त कहीं और हो

• निनिर्मेष - बिना पलक झपकाये

• अचम्भित - चकित

• रोमांचित - पुलकित

• निश्चल - स्थिर

• अफवाह - उड़ती खबर

• उफनना - उबलना

• शमन - शांत करना

• घोंपना – भोंकना

NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 13- तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र स्पर्श भाग-2 हिंदी

प्रह्लाद अग्रवाल

पृष्ठ संख्या: 94

प्रश्न अभ्यास 

मौखिक 

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए -

1. 'तीसरी कसम' फ़िल्म को कौन-कौन से पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है?

उत्तर

'तीसरी कसम' फिल्म को राष्ट्रपति द्वारा स्वर्णपदक मिला तथा बंगाल फ़िल्म जर्नलिस्ट एसोसिएशन ने सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का अवार्ड दिया। इस फ़िल्म को मास्को फ़िल्म फेस्टिवल में भी पुरस्कृत किया गया।

2. शैलेंद्र ने कितनी फ़िल्में बनाईं?

उत्तर

शैलेन्द्र ने मात्र एक फ़िल्म 'तीसरी कसम' बनाई।

3. राजकपूर द्वारा निर्देशित कुछ फ़िल्मों के नाम बताइए।

उत्तर

राजकपूर ने संगम, मेरा नाम जोकर, बॉबी, श्री 420, सत्यम् शिवम् सुन्दरम्, आदि फ़िल्में निर्देशित की।

4. 'तीसरी कसम' फ़िल्म के नायक व नायिकाओं के नाम बताइए और फ़िल्म में इन्होंने किन पात्रों का अभिनय किया है?

उत्तर

इस फ़िल्म में राजकपूर ने 'हीरामन' और 'वहीदा रहमान' ने हीराबाई की भूमिका निभाई है।

5. फ़िल्म 'तीसरी कसम' का निर्माण किसने किया था?

उत्तर

'तीसरी कसम' फ़िल्म का निर्माण शैलेन्द्र ने किया था?

6. राजकपूर ने 'मेरा नाम जोकर' के निर्माण के समय किस बात की कल्पना भी नहीं की थी?

उत्तर

राजकपूर ने 'मेरा नाम जोकर' बनाते समय यह सोचा भी नहीं था कि इस फ़िल्म का एक ही भाग बनाने में छह वर्षों का समय लग जाएगा।

7. राजकपूर की किस बात पर शैलेंद्र का चेहरा मुरझा गया?

उत्तर

तीसरी कसम की कहानी सुनने के बाद जब राजकपूर ने मेहनताना माँगा तो शैलेंद्र का चेहरा मुरझा गया क्योंकि उन्हें ऐसी उम्मीद न थी।

8. फ़िल्म समीक्षक राजकपूर को किस तरह का कलाकार मानते थे?

उत्तर

फ़िल्म समीक्षक राजकपूर को उत्कृष्ट कलाकार और आँखों से बात करने वाले कलाकार मानते थे।

लिखित

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में ) लिखिए -

1. 'तीसरी कसम' फ़िल्म को सेल्यूलाइट पर लिखी कविता क्यों कहा गया है?

उत्तर

'तीसरी कसम' फणीश्वरनाथ रेनू द्वारा लिखी साहित्यिक रचना है। सेल्यूलाइट का अर्थ होता है किसी दृश्य को हु-ब-हु कैमरे पर उतार देना, उसका चित्रांकन करना। यह फ़िल्म भी कविता के समान भावुकता, संवेदना, मार्मिकता से भरी हुई कैमरे की रील पर उतरी हुई फ़िल्म है। इसलिए इसे सेल्यूलाइट पर लिखी कविता कहा गया है।

2. 'तीसरी कसम' फ़िल्म को खरीददार क्यों नहीं मिल रहे थे?

उत्तर

'तीसरी कसम' एक भावना प्रधान फ़िल्म थी। इस फ़िल्म की संवेदना को एक आम आदमी नही समझ सकता था जिस कारण लाभ मिलने की उम्मीद बहुत कम थी इसलिए इसे खरीददार नहीं मिल रहे थे।

3. शैलेन्द्र के अनुसार कलाकार का कर्तव्य क्या है?

उत्तर

शैलेन्द्र के अनुसार कलाकार का उद्धेश्य दर्शकों की रूची की आड़ में उथलेपन को थोपना नहीं चाहिए बल्कि उनका परिष्कार करना चाहिए। कलाकार का दायित्व स्वस्थ एवं सुंदर समाज की रचना करना है, विकृत मानसिकता को बढ़ावा देना नहीं है।

4. फ़िल्मों में त्रासद स्थितियों का चित्रांकन ग्लोरिफ़ाई क्यों कर दिया जाता है?

उत्तर

फ़िल्मों में त्रासद को इतना ग्लोरिफ़ाई कर दिया जाता है जिससे कि दर्शकों का भावनात्मक शोषण किया जा सके। उनका उद्देश्य केवल टिकट-विंडो पर ज़्यादा से ज़्यादा टिकटें बिकवाना और अधिक से अधिक पैसा कमाना होता है। इसलिए दुख को बहुत बढ़ा-चढ़ा कर बताते हैं जो वास्तव में सच नहीं होता है। दर्शक उसे पूरा सत्य मान लेते हैं। इसलिए वे त्रासद स्थितियों को ग्लोरिफ़ाई करते हैं।

5. 'शैलेन्द्र ने राजकपूर की भावनाओं को शब्द दिए हैं' − इस कथन से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

राजकपूर अभिनय में मंझे हुए कलाकार थे और शैलेन्द्र एक अच्छे गीतकार थे। राजकपूर की छिपी हुई भावनाओं को शैलेन्द्र ने शब्द दिए। राजकूपर भावनाओं को आँखों के माध्यम से व्यक्त कर देते थे और शैलेंद्र उन भावनाओं को अपने गीतों से तथा संवाद से पूर्ण कर दिया करते थे।

6. लेखक ने राजकपूर को एशिया का सबसे बड़ा शोमैन कहा है। शोमैन से आप क्या समझते हैं?

उत्तर

शोमैन का अर्थ है अपनी कला के प्रदर्शन से ज़्यादा से ज़्यादा जन समुदाय इकट्ठा कर सके। वह दर्शकों को अंत तक बांधे रखता है तभी वह सफल होता है। राजकपूर भी महान कलाकार थे। जिस पात्र की भूमिका निभाते थे उसी में समा जाते थे। इसलिए उनका अभिनय सजीव लगता था। उन्होंने कला को ऊँचाइयों तक पहुँचाया था।

7. फ़िल्म 'श्री 420' के गीत 'रातों दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ' पर संगीतकार जयकिशन ने आपत्ति क्यों की?

उत्तर

'रातों दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ' पर संगीतकार जयकिशन को आपत्ति थी क्योंकि सामान्यत: दिशाएँ चार होती हैं। वे चार दिशाएँ शब्द का प्रयोग करना चाहते थे लेकिन शैलेन्द्र तैयार नहीं हुए। वे कलाकार का दायित्व मानते थे, उथलेपन पर विश्वास नहीं करते थे।

पृष्ठ संख्या: 95

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में ) लिखिए -

1.राजकपूर द्वारा फ़िल्म की असफलता के खतरों के आगाह करने पर भी शैलेन्द्र ने यह फ़िल्म क्यों बनाई?

उत्तर

शैलेन्द्र एक कवि थे। उन्हें फणीश्वर नाथ रेणु की मूल कथा की संवेदना गहरे तक छू गई थी। उन्हें फ़िल्म व्यवसाय और निर्माता के विषय में कुछ भी ज्ञान नहीं था। फिर भी उन्होंने इस कथावस्तु को लेकर फ़िल्म बनाने का निश्चय किया। उन्हें धन तथा लाभ का लालच नहीं था। राजकपूर द्वारा फ़िल्म की असफलता के खतरों के आगाह करने पर भी अपनी आत्मसंतुष्टि के लिए उन्होंने यह फ़िल्म बनाई थी।

2. 'तीसरी कसम' में राजकपूर का महिमामय व्यक्तित्व किस तरह हीरामन की आत्मा में उतर गया। स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

राजकपूर अभिनय में प्रवण थे वे पात्र को अपने ऊपर हावी नही होने देते थे बल्कि उसको जीवंत कर देते थे। तीसरी कसम में भी हीरामन पर राजकपूर हावी नही था बल्कि राजकपूर ने हीरामन की आत्मा दे दी थी। उसका डकडू बैठना, नौंटकी की बाई में अपनापन खोजना, गीतगाता गाडीवान, सरल देहाती मासमियत को चरम सीमा तक ले जाते हैं। इस तरह उनका महिमामय व्यक्तित्व हीरामन की आत्मा में उतर गया।

3. लेखक ने ऐसा क्यों लिखा है कि तीसरी कसम ने साहित्य-रचना के साथ शत-प्रतिशत न्याय किया है?

उत्तर

तीसरी कसम फ़िल्म फणीश्वर नाथ रेणु की पुस्तक मारे गए गुलफाम पर आधारित है। शैलेंद्र ने पात्रों के व्यक्तित्व, प्रसंग,  घटनाओं में कहीं कोई परिवर्तन नहीं किया है। कहानी में दी गई छोटी-छोटी बारीकियाँ, छोटी-छोटी बातें फ़िल्म में पूरी तरह उतर कर आईं हैं। शैलेंद्र ने धन कमाने के लिए फ़िल्म नहीं बनाई थी। उनका उद्देश्य एक सुंदर कृति बनाना था। उन्होंने मूल कहानी को यथा रूप में प्रस्तुत किया है। उऩके योगदान से एक सुंदर फ़िल्म तीसरी कसम के रूप में हमारे सामने आई है। लेखक ने इसलिए कहा है कि तीसरी कसम ने साहित्य-रचना के साथ शत-प्रतिशत का न्याय किया है।

4. शैलेन्द्र के गीतों की क्या विशेषताएँ हैं। अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर

शैलेन्द्र के गीत भावपूर्ण थे। उन्होंने धन कमाने की लालसा में गीत कभी नहीं लिखे। उनके गीतों की विशेषता थी कि उनमें घटियापन या सस्तापन नहीं था। उनके द्वारा रचित गीत उनके दिल की गहराइयों से निकले हुए थे। अतः वे दिल को छू लेने वाले गीत थे। यही कारण है कि उनके लिखे हर गीत अत्यन्त लोकप्रिय भी हुए। उनके गीतों में करूणा, संवेदना, आदि के भाव बिखरे हुए थे।

5. फ़िल्म निर्माता के रूप में शैलेन्द्र की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए?

उत्तर

फ़िल्म निर्माता के रूप में शैलेन्द्र की पहली और आखिरी फ़िल्म 'तीसरी कसम' थी। उनकी फ़िल्म यश और धन की इच्छा से नही बनाई गई थी। शैलेन्द्र ने साहित्यिक रचना को बेहद ईमानदारी के साथ पर्दे पर उतारा। शैलेन्द्र ने न केवल कहानी को पर्दे पर उकेरा बल्कि हीरामन और हीराबाई की भावनाओं को शब्द भी दिए। उनकी संवेदनशीलता पुरे फिल्मे में नज़र आती है। बेशक इस फ़िल्म को खरीददार नही मिले पर शैलेन्द्र को अपनी पहचान और फ़िल्म को अनेकों पुरस्कार मिले और लोगो ने इसे सराहा भी।

6. शैलेंद्र के निजी जीवन की छाप उनकी फ़िल्म में झलकती है−कैसे? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

शैलेंद्र के निजी जीवन की छाप उनकी फ़िल्म में झलकती है। शैलेन्द्र ने झूठे अभिजात्य को कभी नहीं अपनाया। उनके गीत भाव-प्रवण थे − दुरुह नहीं। उनका कहना था कि कलाकार का यह कर्त्तव्य है कि वह उपभोक्ता की रुचियों का परिष्कार करने का प्रयत्न करे। उनके लिखे गए गीतों में बनावटीपन नहीं था। उनके गीतों में शांत नदी का प्रवाह भी था और गीतों का भाव समुद्र की तरह गहरा था। यही विशेषता उनकी ज़िंदगी की थी और यही उन्होंने अपनी फिल्म के द्वारा भी साबित किया।

7. लेखक के इस कथन से कि 'तीसरी कसम' फ़िल्म कोई सच्चा कवि-हृदय ही बना सकता था, आप कहाँ तक सहमत हैं? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

लेखक के अनुसार 'तीसरी कसम' फ़िल्म कोई सच्चा कवि-हृदय ही बना सकता था। लेखक का यह कथन बिलकुल सही है क्योंकि इस फिल्म की कलात्मकता काबिल-ए-तारीफ़ है। शैलेन्द्र एक संवेदनशील तथा भाव-प्रवण कवि थे और उनकी संवेदनशीलता इस फ़िल्म में स्पष्ट रुप से मौजूद है। यह संवेदनशीलता किसी साधारण फ़िल्म निर्माता में नहीं होती है।

(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए -

1. ..... वह तो एक आदर्शवादी भावुक कवि था, जिसे अपार संपत्ति और यश तक की इतनी कामना नहीं थी जितनी आत्म-संतुष्टि के सुख की अभिलाषा थी।

उत्तर

इन पंक्तियों में लेखक का आशय है कि शैलेन्द्र एक ऐसे कवि थे जो जीवन में आदर्शों और भावनाओं को सर्वोपरि मानते थे। जब उन्होंने भावनाओं, संवेदनाओं व साहित्य की विधाओं के आधार पर 'तीसरी कसम' फ़िल्म का निर्माण किया तो उनका उद्देश्य केवल आत्मसंतुष्टि था न कि धन कमाना।

2. उनका यह दृढ़ मतंव्य था कि दर्शकों की रूचि की आड़ में हमें उथलेपन को उन पर नहीं थोपना चाहिए। कलाकार का यह कर्त्तव्य भी है कि वह उपभोक्ता की रूचियों का परिष्कार करने का प्रयत्न करे।

उत्तर

फ़िल्म "श्री 420" के एक गाने में शैलेंद्र ने दसों दिशाओं शब्द का प्रयोग किया तो संगीतकार जयकिशन ने उन्हें कहा कि दसों दिशाओं नहीं चारों दिशाओं होना चाहिए चूँकि लोग चार दिशाएं जानते हैं देश दिशाएं नही। लेकिन शैलेन्द्र का कहना था कि फ़िल्म निर्माताओं को चाहिए कि दर्शकों की रूचि को ठीक करें। उथलेपन उन पर थोपना नहीं चाहिए।

3. व्यथा आदमी को पराजित नहीं करती, उसे आगे बढ़ने का संदेश देती है।

उत्तर

यह पंक्ति लेखक ने शैलेन्द्र के गीतों के सन्दर्भ में लिखी है। शैलेन्द्र के गीत केवल मनोरंजन के लिए नही बल्कि जिंदगी से जूझने का संदेश भी देते हैं। अपनी गीतों द्वारा वह सन्देश देना चाहते थे की थक-हारकर बैठ जाना उचित नही होता अपितु बार-बार प्रयास करनी चाहिए। हर व्यथा और गलतियों से सबक लेनी चाहिए।

4. दरअसल इस फ़िल्म की संवेदना किसी दो से चार बनाने वाले की समझ से परे है।

उत्तर

'तीसरी कसम' फ़िल्म की संवेदना किसी आम आदमी के समझ के परे थी। अन्य फिल्मों की तरह जिनका उद्देश्य सिर्फ लाभ कमाना होता है की तरह इसमें सस्ते लोक-लुभावन मसालों को नही डाला गया था।

5. उनके गीत भाव-प्रवण थे − दुरूह नहीं।

उत्तर

शैलेन्द्र के गीत सीधी साधी भाषा में सरसता व प्रवाह लिए हुए थे। इनके गीत भावनात्मक गहन विचारों वाले तथा संवेदनशील थे।

पृष्ठ संख्या: 96

भाषा अध्यन

3. पाठ में आए निम्नलिखित मुहावरों से वाक्य बनाइए −

चेहरा मुरझाना, चक्कर खा जाना, दो से चार बनाना, आँखों से बोलना

उत्तर

चेहरा मुरझाना - अपना रिजल्ट सुनते ही उसका चेहरा मुरझा गया।

चक्कर खा जाना - बहुत तेज़ धूप में घूमकर वह चक्कर खाकर गिर गया।

दो से चार बनाना - धन के लोभी हर समय दो से चार बनाने में लगे रहते हैं।

आँखों से बोलना - उसकी आँखें बहुत सुन्दर हैं लगता है वह आँखों से बोलती है।

4. निम्नलिखित शब्दों के हिन्दी पर्याय दीजिए −

|(क) |शिद्दत |--------------- |

|(ख) |याराना |--------------- |

|(ग) |बमुश्किल |--------------- |

|(घ) |खालिस |--------------- |

|(ङ) |नावाकिफ़ |--------------- |

|(च) |यकीन |--------------- |

|(छ) |हावी |--------------- |

|(ज) |रेशा |--------------- |

उत्तर

|(क) |शिद्दत |प्रयास |

|(ख) |याराना |दोस्ती, मित्रता |

|(ग) |बमुश्किल |कठिन |

|(घ) |खालिस |मात्र |

|(ङ) |नावाकिफ़ |अनभिज्ञ |

|(च) |यकीन |विश्वास |

|(छ) |हावी |भारी पड़ना |

|(ज) |रेशा |तंतु |

5. निम्नलिखित का संधिविच्छेद कीजिए −

|(क) |चित्रांकन |- |--------------- |+ |--------------- |

|(ख) |सर्वोत्कृष्ट |- |--------------- |+ |--------------- |

|(ग) |चर्मोत्कर्ष |- |--------------- |+ |--------------- |

|(घ) |रूपांतरण |- |--------------- |+ |--------------- |

|(ङ) |घनानंद |- |--------------- |+ |--------------- |

उत्तर

|(क) |चित्रांकन |- |चित्र + अकंन |

|(ख) |सर्वोत्कृष्ट |- |सर्व + उत्कृष्ट |

|(ग) |चर्मोत्कर्ष |- |चरम + उत्कर्ष |

|(घ) |रूपांतरण |- |रूप + अतंरण |

|(ङ) |घनानंद |- |घन + आनंद |

6. निम्नलिखित का समास विग्रह कीजिए और समास का नाम लिखिए −

|(क) |कला-मर्मज्ञ |--------------- |

|(ख) |लोकप्रिय |--------------- |

|(ग) |राष्ट्रपति |--------------- |

उत्तर

|(क) |कला-मर्मज्ञ |कला का मर्मज्ञ |(तत्पुरूष समास) |

|(ख) |लोकप्रिय |लोक में प्रिय |(तत्पुरूष समास) |

|(ग) |राष्ट्रपति |राष्ट्र का पति |(तत्पुरूष समास) |

सारांश

इस पाठ में लेखक ने गीतकार शैलेन्द्र और उनके द्वारा निर्मित पहली और आखिरी फिल्म तीसरी कसम के बारे में बताया है।

जब राजकपूर की की फिल्म संगम सफल रही तो इसने उनमें गहन आत्मविश्वास भर दिया जिस कारण उन्होंने एक साथ चार फिल्मों - 'मेरा नाम जोकर' , 'अजंता' , 'मैं और मेरा दोस्त' , सत्यम शिवम सुंदरम' के निर्माण की घोषणा की। परन्तु जब 1965 में उन्होंने 'मेरा नाम जोकर' का निर्माण शुरू किया तो इसके एक भाग के निर्माण में छह वर्ष लग गए। इन छह वर्षों के बीच उनके द्वारा अभिनीत कई फ़िल्में प्रदर्शित हुईं जिनमें सन् 1966 में प्रदर्शित कवि शैलेन्द्र की 'तीसरी कसम' फिल्म भी शामिल है। इस फिल्म में हिंदी साहित्य की अत्यंत मार्मिक कथा कृति को सैल्यूलाइड पर पूरी सार्थकता से उतारा गया है। यह फिल्म नहीं बल्कि सैल्यूलाइड पर लिखी कविता थी।

इस फिल्म को 'राष्ट्रपति स्वर्णपदक' मिला, बंगाल फिल्म जर्नलिस्ट एसोसिएशन द्वारा सर्वश्रेष्ठ फिल्म और कई अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। मॉस्को फिल्म फेस्टिवल में भी यह फिल्म पुरस्कृत हुई। इस फिल्म में शैलेन्द्र ने अपनी संवेदनशीलता को अच्छी तरह से दिखाया है और राजकपूर का अभिनय भी उतना ही अच्छा है। इस फिल्म के लिए राजकपूर ने शैलेन्द्र से केवल एक रूपया लिया। राजकपूर ने यह फिल्म बनने से पहले शैलेन्द्र को फिल्म की असफलताओं से भी आगाह किया था परन्तु फिर भी शैलेन्द्र ने यह फिल्म बनायीं क्योंकि उनके लिए धन-संपत्ति से अधिक महत्वपूर्ण अपनी आत्मसंतुष्टि थी। महान फिल्म होने पर भी तीसरी कसम को प्रदर्शित करने के लिए बहुत मुश्किल से वितरक मिले। बावजूद इसके कि फिल्म में राजकपूर और वहीदा रहमान जैसे सितारें थे, शंकर जयकिशन का संगीत था। फिल्म के गाने पहले ही लोकप्रिय हो चुके थे लेकिन फिल्म को खरीदने वाला कोई नहीं था क्योंकि फिल्म की संवेदना आसानी से समझ आने वाली ना थी। इसलिए फिल्म का प्रचार भी काम हुआ और यह कब आई और गयी पता भी ना चला।

शैलेन्द्र बीस सालों से इंडस्ट्री में थे और उन्हें वहाँ के तौर-तरीके भी मालूम थे परन्तु वे इनमें उलझकर अपनी आदमियत नहीं खो सके थे। 'श्री 420' के एक लोकप्रिय गीत 'दसों दिशायें कहेंगी अपनी कहानियाँ' पर संगीतकार जयकिशन ने आपत्ति करते हुए कहा की दर्शक चार दिशायें तो समझ सकते हैं परन्तु दस नहीं। शैलेन्द्र गीत बदलने को तैयार नही थे। उनका मानना था की दर्शकों की रूचि के आड़ में हमें उनपर उथलेपन को नहीं थोपना चाहिए। शैलेन्द्र ने झूठे अभिजात्य को कभी नहीं अपनाया। वे एक शांत नदी के प्रवाह और समुद्र की गहराई लिए व्यक्ति थे।

'तीसरी कसम' फिल्म उन चुनिंदा फिल्मों में से है जिन्होनें साहित्य-रचना से शत-प्रतिशत न्याय किया है। शैलेंद्र ने राजकपूर जैसे स्टार को हीरामन बना दिया था और छींट की सस्ती साड़ी में लिपटी 'हीराबाई' ने वहीदा रहमान की प्रसिद्ध ऊचाईयों को बहुत पीछे छोड़ दिया था। यह फिल वास्तविक दुनिया का पूरा स्पर्श कराती है। इस फिल्म में दुःख का सहज चित्रण किया गया है। मुकेश की आवाज़ में शैलेन्द्र का गीत - सजनवा बैरी हो गए हमार चिठिया हो तो हर कोई बाँचै भाग ना बाँचै कोय... अदिव्तीय बन गया।

अभिनय की दृष्टि से यह राजकपूर की जिंदगी का सबसे हसीन फिल्म है। वे इस फिल्म में मासूमियत की चर्मोत्कर्ष को छूते हैं। 'तीसरी कसम' में राजकपूर ने जो अभिनय किया है वो उन्होंने 'जागते रहो' में भी नहीं किया है। इस फिल्म में ऐसा लगता है मानो राजकपूर अभिनय नही कर रहा है, वह हीरामन ही बन गया है।   राजकपूर के अभिनय-जीवन का वह मुकाम है जब वह एशिया के सबसे बड़े शोमैन के रूप में स्थापित हो चुके थे।

तीसरी कसम पटकथा मूल कहानी के लेखक फणीश्वरनाथ रेणु ने स्वयं लिखी थी। कहानी का हर अंश फिल्म में पूरी तरह स्पष्ट थीं।

लेखक परिचय

प्रहलाद अग्रवाल

इनका जन्म 1947 मध्य प्रदेश के जबलपुर शहर में हुआ। इन्होनें हिंदी से एम.ए की शिक्षा हासिल की। इन्हें किशोर वय  से ही हिंदी फिल्मों के इतिहास और फिल्मकारों के जीवन और अभिनय के बारे में विस्तार से जानने और उस पर चर्चा करने का शौक रहा। इन दिनों ये सतना के शासकीय स्वसाशी स्नातकोत्तर महाविद्यालय में प्रध्यापन कर रहे हैं और फिल्मों के विषय में बहुत कुछ लिख चुके हैं और आगे भी इसी क्षेत्र में लिखने को कृत संकल्प हैं।

प्रमुख कार्य

प्रमुख कृतियाँ - सांतवाँ दशक, तानशाह, मैं खुशबू, सुपर स्टार, राज कपूर: आधी हकीकत आधा फ़साना, कवि शैलन्द्र: जिंदगी की जीत में यकीन, पप्यासा: चिर अतृप्त गुरुदत्त, उत्ताल उमंग: सुभाष घई की फिल्मकला, ओ रे माँझी: बिमल राय का सिनेमा और महाबाजार के महानायक: इक्कीसवीं सदी का सिनेमा।

कठिन शब्दों के अर्थ

• अंतराल - के बाद

• अभिनीत - अभिनय किया गया

• सर्वोत्कृष्ट - सबसे अच्छा

• सैल्यूलाइड - कैमरे की रील में उतार चित्र पर प्रस्तुत करना

• सार्थकता - सफलता के साथ

• कलात्मकता - कला से परिपूर्ण

• संवेदनशीलता - भावुकता

• शिद्दत - तीव्रता

• अनन्य - परम

• तन्मयता - तल्लीनता

• पारिश्रमिक - मेहनताना

• याराना मस्ती -दोस्ताना अंदाज़

• आगाह - सचेत

• नामज़द - विख्यात

• नावाकिफ - अनजान

• इकरार - सहमति

• मंतव्य - इच्छा

• उथलापन - नीचा

• अभिजात्य - परिष्कृत

• भाव-प्रवण - भावों से भरा हुआ

• दूरह - कठिन

• उकडू - घुटनों से मोड़ कर पैर के तलवों के सहारे बैठना

• सूक्ष्मता - बारीकी

• स्पंदित - संचालित करना

• लालायित - इच्छुक

• टप्पर-गाडी - अर्ध गोलाकार छप्परयुक्त बैलगाड़ी

• लोक-तत्व -लोक सम्बन्धी

• त्रासद - दुःख

• ग्लोरिफाई - गुणगान

• वीभत्स - भयावह

• जीवन-सापेक्ष - जीवन के प्रति

• धन-लिप्सा - धन की अत्यधिक चाह

• प्रक्रिया - प्रणाली

• बाँचै - पढ़ना

• भाग -भाग्य

• भरमाये - भम्र होना

• समीक्षक - समीक्षा करने वाला

• कला-मर्मज्ञ - कला की परख करने वाला

• चर्मोत्कर्ष - ऊँचाई के शिखर पर

• खालिस - शुद्ध

• भुच्च - निरा

• किंवदंती - कहावत

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए -

1. "हुज़ूर! यह तो जनशांति भंग हो जाने जैसा कुछ दीख रहा है," सिपाही ने कहा।

ओचुमेलॉव मुड़ा और भीड़ की तरफ चल दिया। उसने काठगोदाम के पास बटन विहीन बास्केट धारण किये हुए उस आदमी को देखा, जो अपना दायाँ हाथ उठाये वहाँ मौजूद था तथा उपस्थित लोगों को अपना लुहलुहान ऊँगली दिखा रहा था। उसके नशीले-से हो आये चेहरे पर साफ लिखा था दिख रहा था - "शैतान की औलाद! मैं तुझे छोड़ने वाला नहीं! और उसकी ऊँगली भी जीत के झंडे की तरह गड़ी दिखाई दे रही थी। ओचुमेलॉव ने इस व्यक्ति को पहचान लिया। वह ख्यूक्रिन नामक सुनार था और इस भीड़  बीचोंबीच, अपनी अगली टाँगे पसारे, नुकीले मुँह और पीठ पर फैले पीले दागवाला, अपराधी-सा नज़र आता, सफ़ेद बारजोई पिल्ला, ऊपर से नीचे तक काँपता पसरा पड़ा था। उसकी आँसुओं से सनी आँखों में संकट आतंक की गहरी छाप थी।

(क) व्यक्ति की ऊँगली लहूलुहान कैसे हो गयी थी?  (1)

(ख) घायल व्यक्ति के चेहरे पर कैसे भाव थे?           (2)

(ग) कुत्ते की स्थिति कैसी थी?                                 (2)

उत्तर

(क) कुत्ते द्वारा काटे जाने से व्यक्ति की ऊँगली लहूलुहान हो गयी थी।

(ख) घायल व्यक्ति के चेहरे पर कुत्ते के प्रति क्रोध के भाव थे। उसके चेहरे से लग रहा था कि वह उस कुत्ते को छोड़ने वाला नहीं है।

(ग) कुत्ता ऊपर से नीचे तक काँपता पसरा पड़ा था। उसकी आँसुओं से सनी आँखों में संकट और आतंक की गहरी छाप थी।

2. "हुज़ूर! मैं तो चुपचाप चला जा रहा था, "मुँह पर हाथ रखकर खाँसते हुए ख्यूक्रिन ने कहा -"मुझे मित्री मित्रिच से लकड़ी लेकर कुछ काम निपटाना था, तब अचानक इस कमबख्त ने अकारण मेरी ऊँगली काट खाई। माफ़ करें। आप तो जानते हैं मैं ठहरा कामकाजी आदमी... मेरा काम भी एकदम पेचीदा किस्म का है। मुझे लग रहा है एक हफ्ते तक मेरी यह ऊँगली अब काम करने लायक नहीं हो पाएगी। तो हुज़ूर! मेरी गुज़ारिश है कि इसके मालिकों से मुझे हरज़ाना तो दिलवाया जाए। यह तो किसी कानून में नहीं लिखा है हुज़ूर, कि आदमखोर जानवर हमें काट खाएँ और हम उन्हें बरदाश्त करते रहे। अगर हर कोई इसी तरह काट खाना शुरू कर दे तो हमारी ज़िंदगी तो नर्क हो जाए....

(क) उपर्युक्त कथन किसके हैं?                                                  (1)

(क) ख्यूक्रिन क्या काम करता था? उसकी ऊँगली कैसे कट गई?  (2)

(ख) ख्यूक्रिन की क्या गुज़ारिश थी और क्यों?                            (2)

उत्तर

(क) उपर्युक्त कथन ख्यूक्रिन नामक व्यक्ति के हैं।

(ख) ख्यूक्रिन सुनार का काम करता था। कुत्ते द्वारा अकारण काटे जाने की वजह से उसकी ऊँगली कट गई।

(ग) ख्यूक्रिन की गुज़ारिश थी कि उसे कुत्ते के मालिक से मुआवज़ा मिलना चाहिए क्योंकि उसका काम पेचीदा है और ऊँगली काट जाने के कारण वह कई दिनों तक काम नहीं कर पाएगा।

3."मेरे ख्याल से यह जनरल झिगालॉव का है।" भीड़ में से एक आवाज़ उभरकर आई।

"जनरल झिगालॉव! हूँ येल्दीरीन मेरी कोट उतरवाने में मेरी मदद करो.... ओफ़्फ़ आज कितनी गरमी है। लग रहा है बारिश होकर रहेगी," वह ख्यूक्रिन की तरफ मुड़ा- "एक बात मेरी समझ में नहीं आती- आखिर इसने तुम्हें कैसे काट खाया? यह तुम्हारी ऊँगली तक पहुंचा कैसे? तू इतना लम्बा-तगड़ा आदमी और यह रत्ती भर का जानवर! जरूर ही तेरी ऊँगली पर कोई कील वगैरह गड़ गई होगी और तत्काल तूने सोचा होगा कि इसे कुत्ते के मत्थे मढ़कर कुछ हरज़ाना वगैरह ऐंठकर फायदा उठा लिया जाए। मैं तेरे जैसे शैतान लोगों को अच्छी तरह समझता हूँ।"

(क) किसे अचानक गर्मी लगने लगी?                                                                                  (1)

(ख) ख्यूक्रिन को कुत्ते ने नहीं काटा - इसे सिद्ध करने के लिए ओचुमेलॉव ने क्या तर्क दिए?   (2)

(ग) ओचुमेलॉव के अनुसार ख्यूक्रिन ने ऊँगली कट जाने का दोष कुत्ते के मत्थे क्यों मढ़ा?       (2)

उत्तर

(क) ओचुमेलॉव को अचानक गर्मी लगने लगी।

(ख) इसे सिद्ध करने के लिए ओचुमेलॉव ने ख्यूक्रिन से कहा कि तुम इतने लम्बे-तगड़े आदमी हो। यह छोटा जानवर तुम्हारी ऊँगली तक कैसे पहुँच सकता है।

(ग) ओचुमेलॉव के अनुसार ख्यूक्रिन ने ऊँगली कट जाने का दोष कुत्ते के मत्थे इसलिए मढ़ा क्योंकि वह कुत्ते के मालिक से हरजाना लेकर अपना फ़ायदा उठाना चाहता था।

4. "उधर देखो, जनरल साहब का बावर्ची आ रहा है। जरा उससे पता लगते हैं.... ओ प्रोखोर! इधर आना भाई। इस कुत्ते को तो पहचानो... क्या यह तुम्हारे यहाँ का है?"

"एक बार फिर से तो कहो! इस तरह का पिल्ला तो हमने कई जिंदगियों में नहीं देखा होगा।"

"अब अधिक जाँचने की जरूरत नहीं है," ओचुमेलॉव ने कहा- "यह आवारा कुत्ता है। इसके बारे में इधर खड़े होकर चर्चा करने की जरूरत नहीं है। मैं तुमसे पहले ही कह चुका हूँ कि यह आवारा है , तो है। इसे मार डालो और सारा किस्सा ख़त्म।"

"यह हमारा नहीं है," प्रोखोर ने आगे कहा- "यह तो जनरल साहब के भाई का है, जो थोड़ी देर पहले इधर पधारे हैं। अपने जनरल साहब को 'बारजोयस' नस्ल के कुत्तों में कोई दिलचस्पी नहीं है पर उनके भाई को यही नस्ल पसंद है।"

(क) ओचुमेलॉव ने किसे पुकारा?                               (1)

(ख) उसने कुत्ते की बारे में क्या बताया?                      (2)

(ग) ओचुमेलॉव ने कुत्ते को मार डालने को क्यों कहा?   (2)

उत्तर

(क) ओचुमेलॉव ने जनरल साहब के बावर्ची प्रोखोर को पुकारा।

(ख) उसने बताया कि कुत्ता जनरल साहब का नहीं है। शायद कुत्ता जनरल साहब के भाई का है चूँकि उन्हें ही 'बारजोयस' नस्ल के कुत्ते पसंद हैं।

(ग) जब प्रोखोर ने बताया की कुत्ता जनरल साहब का नहीं है तब ओचुमेलॉव ने कुत्ते को आवारा बताते हुए मार डालने को कहा।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिये-

1. ख्यूक्रिन की बात पहली बार सुनने पर ओचुमेलॉव ने क्या कहा?

उत्तर

ख्यूक्रिन की बात पहली बार सुनने पर ओचुमेलॉव ने त्योरियाँ चढ़ाते हुए कहा कि वह कुत्ते के मालिक को छोड़ने नहीं वाला है। इस तरह कुत्ते को आवारा छोड़ कर कानून तोड़ने वाले मालिक को वह मजा चखाकर रहेगा। उस बदमाश आदमी को वह इतना जुर्माना ठोकेगा कि उसे पता चल जाए की जानवरों को आवारा छोड़ने का नतीजा क्या होता है।

3. येल्दीरीन ने ख्यूक्रिन को दोषी बताने के लिए क्या-क्या तर्क दिए?

उत्तर

येल्दीरीन ने ख्यूक्रिन को दोषी बताने के लिए कहा कि इसने ही अपनी जलती सिगरेट से इस कुत्ते की नाक यूँ ही जला डाली होगी वरना यह कुत्ता बेवकूफ है क्या जो इसे काट खाता। उसने ख्यूक्रिन को शैतान बताते हुए कहा कि वह हमेशा कोई ना कोई शरारत करता रहता है।

4. ओचुमेलॉव के अनुसार काटने वाला कुत्ता जनरल साहब का क्यों नहीं हो सकता था?

उत्तर

ओचुमेलॉव के अनुसार जनरल साहब के सभी कुत्ते महँगे और अच्छी नस्ल के हैं और काटने वाला कुत्ता मरियल-सा है इसलिए वह जनरल साहब का नहीं हो सकता था।

5. ख्यूक्रिन के अनुसार कानून किस बात की इजाजत नहीं देता?

उत्तर

ख्यूक्रिन के अनुसार कानून इस बात की इजाजत नहीं देता कि आदमखोर जानवर हमें काट खाएँ और हम उन्हें बरदाश्त करते रहें।

6. प्रोखोर ने कुत्ते के विषय में क्या बताया और ओचुमेलॉव पर इसका क्या प्रभाव पड़ा?

उत्तर

प्रोखोर ने कुत्ते के विषय में बताया कि वह कुत्ता जनरल साहब के भाई का है। इससे ओचेमेलॉव का व्यवहार पूरी तरह बदल गया। वह उस मरियल कुत्ते को प्यारा और मासूम डॉगी बताने लगा। उसने ख्यूक्रिन को भी धमकाया।

7. पाठ में गिरगिट के स्वभाव का कौन सा पात्र है और क्यों?

उत्तर

पाठ में गिरगिट के स्वभाव का इंस्पेक्टर ओचुमेलॉव है क्योंकि वह समय-समय पर खुद अपनी कही बातों से ही पलट जाता है।

8. 'गिरगिट' पाठ का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

'गिरगिट' पाठ में मूल रूप से शासन में फैले चापलूसी और भाई-भतीजावाद को दिखाया गया है। पुलिस लोगों की सुरक्षा छोड़कर अपने स्वार्थ के लिए अधिकारियों की चापलूसी करने में लगी है। ऐसे में आम आदमी न्याय से वंचित है।

9. पाठ का शीर्षक 'गिरगिट' की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

गिरगिट अपना रंग क्षण-क्षण बदलने के लिए मशहूर है। उसी तरह इस पाठ में भी इंस्पेक्टर ओचुमेलॉव अपनी बात, विचार और व्यवहार को पल-पल बदलते रहता है। जब वह मरियल कुत्ते को देखता है तब वह उसके मालिक को मजा चखाने की बात करता है परन्तु जब उसे पता लगता है कि कुत्ता जनरल साहब का है तब वह ख्यूक्रिन को ही दोषी ठहराने लगता है। फिर बाद में जब उसे लगता है कि कुत्ता जनरल साहब का नहीं है तब फिर वह मजा चखाने की बात करता है। अंत में जब ओचुमेलॉव को मालूम होता है कि कुत्ता जनरल साहब के भाई का है तो वह मरियल कुत्ते को अति सुंदर 'डॉगी' बताता है। इस तरह 'गिरगिट' शीर्षक इस पाठ के लिए उपयुक्त और सार्थक है।

NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 14- गिरगिट स्पर्श भाग-2 हिंदी 

अंतोन चेखव

पृष्ठ संख्या: 105

प्रश्न अभ्यास 

मौखिक 

निम्लिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए -

1. काठगोदाम के पास भीड़ क्यों इकट्ठी हो गई थी?

उत्तर

ख्यूक्रिन नामक एक सुनार को कुत्ते ने काट लिया। उसने गिरते-पड़ते कुत्ते की टांग को पकड़ा और चीखा "मत जाने दो" उसके चीखने की आवाज़ सुनकर भीड़ इकट्ठी हो गई।

2. उँगली ठीक न होने की स्थिति में ख्यूक्रिन का नुकसान क्यों होता?

उत्तर

ख्यूक्रिन का काम पेचीदा था। बिना उँगुली के कोई काम नहीं हो पाता और इससे उसका नुकसान होता।

3. कुत्ता क्यों किकिया रहा था?

उत्तर

ख्यूक्रिन ने कुत्ते की टांग पकड़ ली थी और वह उसे घसीट रहा था इसलिए कुत्ता किकिया रहा था।

4. बाज़ार के चौराहे पर खामोशी क्यों थी?

उत्तर

बाजार के चौराहे पर ख़ामोशी इसलिए थी क्योंकि उस रास्ते एक भ्रष्ठ पुलिस इंस्पेक्टर ओचुमेलॉव गुजर रहा था जो की जबरन वसूली करने के लिए प्रसिद्ध था।

5. जनरल साहब के बावर्ची ने कुत्ते के बारे में क्या बताया?

उत्तर

बावर्ची ने कुत्ते के बारे में बताया कि कुत्ता जनरल साहब के भाई का है।

लिखित

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए -

1. ख्यूक्रिन ने मुआवज़ा पाने की क्या दलील दी?

उत्तर

ख्यूक्रिन ने मुआवज़ा पाने के लिए स्वयं को कामकाज़ी बताते हुए दलील दी कि उसका काम पेचीदा है। हफ़्ते भर तक वह काम नहीं कर पाएगा, उसका नुकसान होगा। इसलिए कुत्ते के मालिक से उसे हरज़ाना दिलवाया जाए।

2. ख्यूक्रिन ने ओचुमेलॉव को उँगली ऊपर उठाने का क्या कारण बताया?

उत्तर

ख्यूक्रिन ने ओचुमेलॉव को उँगली उठाने का कारण बताया कि वह लकड़ी लेकर अपना कुछ काम निपटाने जा रहा था तब अचानक एक पिल्ले ने आकर उसकी उँगली काट ली।

3. येल्दीरीन ने ख्यूक्रिन को दोषी ठहराते हुए क्या कहा?

उत्तर

येल्दीरीन ने ख्यूक्रिन को दोषी ठहराते हुए कहा कि यह शैतान किस्म का व्यक्ति है। जरूर इसी ने जलती सिगरेट कुत्ते की नाक में  डाली होगी, बिना कारण कुत्ता किसी को काटता नहीं है।

4. ओचुमेलॉव ने जनरल साहब के पास यह संदेश क्यों भिजवाया होगा कि 'उनसे कहना कि यह मुझे मिला और मैंने इसे वापस उनके पास भेजा है'?

उत्तर

ओचुमेलॉव एक चापलूस किस्म का सिपाही था। उसने यह संदेश भिजवाया ताकि वह जनरल साहब को खुश कर सके, वे उसे एक बेहतर इंस्पेक्टर माने और साथ ही वह यह भी बताना चाहता था कि उसे जनरल साहब और उनके कुत्ते का कितना ख्याल है।

5. भीड़ ख्यूक्रिन पर क्यों हँसने लगती है?

उत्तर

भीड़ ख्यूक्रिन की हालत पर हँसने लगती है क्योंकि वह मुआवजे की बात कर रहा था पर यहाँ इंस्पेक्टर ओचुमेलॉव उसे डरा धमकाकर भगाने का प्रयास  कर रहा था। साथ ही ओचुमेलॉव की पल-पल रंग बदल रहा था।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए -

1. किसी कील-वील से उँगली छील ली होगी−ऐसा ओचुमेलॉव ने क्यों कहा?

उत्तर

ओचुमेलॉव चापलूस सिपाही है। जब ख्यूक्रिन की उँगली कटती है तो कुत्ते के मालिक को भला बुरा कहता है, उसे मज़ा चखाने तक की बात करता है परन्तु जैसे ही उसे पता चलता है कुत्ता जनरल साहब या उनके भाई का है। वह एकदम बदल गया और ख्यूक्रिन को ही दोषी ठहराने लगा कि किसी कील-वील से उँगली छील ली होगी और इल्ज़ाम कुत्ते पर लगा रहा है। ऐसा कहकर अपने अफसरों को खुश करने का तथ्य सामने आता है।

2. ओचुमेलॉव के चरित्र की विशेषताओं को अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर

ओचुमेलाव अत्यंत भ्रष्टाचारी, चालाक, स्वार्थी, मौकापरस्त, दोहरे व्यक्तित्व, चापलूस और अस्थिर प्रकृति का व्यक्ति है। वह अवसर वादी भी है। दुकानदारों से जबरन चीज़ें ऐठता है। कर्त्तव्य निष्ठ नहीं है फिर भी लोगों पर रोब डालता है। अपने लाभ के लिए किसी के साथ भी अन्याय कर सकता है। अपने पद का लाभ उठाने के लिए वह ख्यूक्रिन पर दोष लगाता है और कुत्ते को ज़बरदस्ती जनरल साहब के घर भिजवाता है।

पृष्ठ संख्या: 106

3. यह जानने के बाद कि कुत्ता जनरल साहब के भाई का है−ओचुमेलॉव के विचारों में क्या परिवर्तन आया और क्यों?

उत्तर

ओचुमेलॉव पहले तो कुत्ते को मरियल, आवारा, भद्दा कहता है और गोली मारने की बात करता है परन्तु जैसे ही उसे पता चलता है कि यह जनरल साहब के भाई का है - उसके व्यवहार में परिवर्तन आ जाता है। वह उसे वह 'सुंदर डॉगी' लगने लगता है। वह उस 'खूबसूरत नन्हे पिल्ले' को जनरल साहब तक पहुँचाने के लिए कहने लगा। उसने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वह जानता था कि यह खबर जनरल साहब तक पहुँचेगी और वे खुश होंगे।

4. ख्यूक्रिन का यह कहना कि 'मेरा एक भाई भी पुलिस में है.....।' समाज की किस वास्तविकता की ओर संकेत करता है?

उत्तर

ख्यूक्रिन का यह कथन कि 'मेरा एक भाई भी पुलिस में है' यह बतलाता है कि अगर आपके परिचित किसी उच्चे पद पर कार्यरत हों तो आप अपनी बात प्रभावशाली ढंग से रख सकते हैं। ये समाज में पहले जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली लोकक्ति की ओर संकेत करता है। जान-पहचान के बल पर किस तरह लाभ उठाया जा सकता है। इसलिए इस कथन को कहकर इंस्पेक्टर पर वो अपना प्रभाव जमाना चाहता है।

5. इस कहानी का शीर्षक गिरगिट क्यों रखा होगा? क्या आप इस कहानी के लिए कोई अन्य शीर्षक सुझा सकते हैं? अपने शीर्षक का आधार भी स्पष्ट कीजिए?

उत्तर

इस कहानी का शीर्षक गिरगिट रखा गया है क्योंकि गिरगिट समय के अनुसार अपने को बचाने के लिए रंग बदल लेता है। उसी प्रकार इंस्पेक्टर भी मौका परस्त है। पहले तो कुत्ते को भला बुरा कहता है, गोली मारने की बात करता है परन्तु जनरल के भाई के कुत्ते होने का पता लगते ही वह बदल जाता है। वह मरियल कुत्ता सुन्दर डॉगी हो जाता है और ख्यूक्रिन को बुरा भला कहने लगता है।

इसका नाम चापलूसी आदि भी रखा जा सकता है।

6. गिरगिट कहानी के माध्यम से समाज की किन विसंगतियों पर व्यंग्य किया गया है? क्या आप ऐसी विसगतियाँ अपने समाज में भी देखते हैं? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

गिरगिट कहानी के माध्यम से समाज की विसंगतियों जैसे भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, भाई-भतीजावाद, अवसरवादिता आदि पर व्यंग्य किया गया है। लोग सच्चाई का साथ ना देकर उच्चे पद पर आसीन लोगों  चापलूसी करते हैं। पूरी शासन व्यवस्था पक्षपात पर टिकी है। आदर्शों पर चलने वाला व्यक्ति मुसीबतें झेलता है।

ऐसी विसगतियाँ हम अपने समाज में भी देखते हैं। समचार पत्रों और न्यूज़ चैनलों में इसी तरह की खबरें छायी रहती हैं जहाँ लोग अवसरवादिता को सच्चाई से ज्यादा महत्व देते हैं।

(ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए -

1. उसकी आँसुओं से सनी आँखों में संकट और आतंक की गहरी छाप थी।

उत्तर

ख्यूक्रिन ने कुत्ते को बुरी तरह पिता और घसीटा था जिससे वह बहुत डरा और घबराया हुआ था। उसकी आँखों आंसू टपक रहे थे जिससे साफ़ पता चलता था की वह ख्यूक्रिन का आतंक उसमे समाया हुआ है।

2. कानून सम्मत तो यही है..... कि सब लोग अब बराबर हैं।

उत्तर 

ख्यूक्रिन एक आम आदमी था। जब यह पता चला कि यह कुत्ता जनरल का है तो वह कानून की दुहाई देने लगा कि कानून सबके लिए बराबर होना चाहिए। गरीब और अमीर सबके लिए बराबर होना चाहिए तथा सबको न्याय मिलना चाहिए।

3. हुज़ूर ! यह तो जनशांति भंग हो जाने जैसा कुछ दिख रहा है।

उत्तर

बाज़ार में सन्नाटा छाया हुआ था। ख्यूक्रिन के चीखने पर भीड़ इकट्ठी हो गई। ऐसा लग रहा था मानो कोई दंगा हो गया है। इस स्थिति को निपटाने के लिए चापलूस सिपाही ने इंस्पेक्टर से कहा कि जैसे जनशांति भंग होती है उसी तरह उस समय शांति भंग होती दिखाई दे रही थी।

भाषा अध्यन

1. नीचे दिए गए वाक्यों में उचित विराम-चिह्न लगाइए −

(क) माँ ने पूछा बच्चों कहाँ जा रहे हो

(ख) घर के बाहर सारा सामान बिखरा पड़ा था

(ग) हाय राम यह क्या हो गया

(घ) रीना सुहेल कविता और शेखर खेल रहे थे

(ङ) सिपाही ने कहा ठहर तुझे अभी मजा चखाता हूँ

उत्तर

(क) माँ ने पूछा "बच्चों कहाँ जा रहे हो।"

(ख) घर के बाहर सारा सामान बिखरा पड़ा था।

(ग) हाय राम! यह क्या हो गया।

(घ) रीना, सुहेल, कविता और शेखर खेल रहे थे।

(ङ) सिपाही ने कहा 'ठहर तुझे अभी मज़ा चखाता हूँ।'

2. ही, भी, तो, तक आदि निपातों का प्रयोग करते हुए पाँच वाक्य बनाइए।

उत्तर

ही − तुम ही सिर्फ़ वहाँ जाना।

भी − आप भी हमारे साथ चलिए।

तो − मैनें तो पहले ही इसकी सूचना दे दी थी।

तक − रात तक वह वहाँ रहा।

3. पाठ में आए मुहावरों में से पाँच मुहावरे छाँटकर उनका वाक्य में प्रयोग कीजिए।

उत्तर

1. ज़मीन फाड़कर निकल आना − अभी तक वहाँ कोई नहीं था। अचानक सब लोग इकट्ठे हो गए मानो ज़मीन फाड़कर निकल आए हो।

2. घेरकर खड़े होना − अभिनेता को लोग घेर कर खड़े हो गए।

3. ज़िंदगी नरक होना − उसका सब कुछ खत्म हो गया और उसकी ज़िंदगी नरक हो गई।

4. मत्थे मढ़ देना − सिपाही ने सारा दोष मोहन के मत्थे मढ़ दिया।

5. मज़ा चखाना − वह बहुत अकड़ रहा था सबने उसे अच्छा मज़ा चखाया।

पृष्ठ संख्या: 107

4. नीचे दिए गए शब्दों में उचित उपसर्ग लगाकर शब्द बनाइए −

|(क) |.................|+ |भाव |= |.................|

|(ख) |.................|+ |पसंद |= |.................|

|(ग) |.................|+ |धारण |= |.................|

|(घ) |.................|+ |उपस्थित |= |.................|

|(ङ) |.................|+ |लायक |= |.................|

|(च) |.................|+ |विश्वास |= |.................|

|(छ) |.................|+ |परवाह |= |.................|

|(ज) |.................|+ |कारण |= |.................|

उत्तर

|(क) |दुर् |+ |भाव |= |दुर्भाव |

|(ख) |ना |+ |पसंद |= |नापसंद |

|(ग) |सा |+ |घारण |= |साधारण |

|(घ) |अनु |+ |उपस्थित |= |अनुपस्थित |

|(ङ) |ना |+ |लायक |= |नालायक |

|(च) |अ |+ |विश्वास |= |अविश्वास |

|(छ) |ला |+ |परवाह |= |लापरवाह |

|(ज) |अ |+ |कारण |= |अकारण |

5. नीचे दिए गए शब्दों में उचित प्रत्यय लगाकर शब्द बनाइए −

|मदद |+ |.................|= |.................|

|बुद्धि |+ |.................|= |.................|

|गंभीर |+ |.................|= |.................|

|सभ्य |+ |.................|= |.................|

|ठंड |+ |.................|= |.................|

|प्रदर्शन |+ |.................|= |.................|

उत्तर

|मदद |+ |गार |= |मद्दगार |

|बुद्धि |+ |मान |= |बुद्धिमान |

|गंभीर |+ |ता |= |गंभीरता |

|सभ्य |+ |ता |= |सभ्यता |

|ठंड |+ |आ |= |ठंडा |

|प्रदर्शन |+ |कारी |= |प्रदर्शनकारी |

6. नीचे दिए गए वाक्यों के रेखांकित पदबंध का प्रकार बताइए −

(क) दुकानों में ऊँघते हुए चेहरे बाहर झाँके।

(ख) लाल बालोंवाला एक सिपाही चला आ रहा था।

(ग) यह ख्यूक्रिन हमेशा कोई न कोई शरारत करता रहता है।

(घ) एक कुत्ता तीन टाँगों के बल रेंगता चला आ रहा है।

उत्तर

|(क) |दुकानों में ऊँघते हुए चेहरे बाहर झाँके। |संज्ञा पदबंध |

|(ख) |लाल बालोंवाला एक सिपाही चला आ रहा था। |विशेषण पदबंध |

|(ग) |यह ख्यूक्रिन हमेशा कोई न कोई शरारात करता रहता है। |संज्ञा पदबंध |

|(घ) |एक कुत्ता तीन टाँगों के बल रेंगता चला आ रहा है। |क्रिया पदबंध |

7. आपके मोहल्ले में लावारिस/आवारा कुत्तों की संख्या बहुत ज़्यादा हो गई है जिससे आने-जाने वाले लोगों को असुविधा होती है। अत: लोगों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए नगर निगम अधिकारी को एक पत्र लिखिए।

उत्तर 

पताः ....................

दिनांकः ................

सेवा में,

नगर निगम अधिकारी,

क.ख.ग. ।

विषयः  आवारा कुत्तों के कारण उपजी समस्या को दर्शाने हेतु पत्र।

माननीय महोदय,

सविनय निवेदन यह है कि मैं आपके क्षेत्र क.ख.ग. मोहल्ले का निवासी हूँ।  हमारे इस क्षेत्र में आवारा कुत्तों की आबादी बहुत बढ़ गई है। ये यहाँ-वहाँ समूह बनाकर घूमते रहते हैं। आने-जाने वाले लोग इनके कारण बहुत परेशान है। ये राह चलते लोगों को काट लेते हैं या उन पर अचानक भौंकने लगते है। इस कारण से कई लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं। यहाँ के लोगों का जीवन इनके कारण अस्त-व्यस्त हो गया है। आए दिन कुत्तों द्वारा काटने के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं। हमने इस विषय में कई बार आपके विभाग को सूचित किया है। परन्तु उनकी ओर से इस विषय पर सकारात्मक जवाब नहीं मिला है। अतः हारकर हम आपको पत्र लिखकर रहे हैं।

आपसे विनम्र अनुरोध है कि उक्त समस्या के निदान के लिए तुरंत उचित कदम उठाने की कृपा करें। हम सारे क्षेत्रवासी आपके आभारी रहेंगे।

धन्यवाद

भवदीय

क.ख.ग.

सारांश

यह पाठ समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार पर एक व्यंग्य है। यह एक पुलिस इंस्पेक्टर द्वारा बताता है की व्यक्ति किस तरह अपने पद का दुरूपयोग अपने स्वार्थ के लिए करता है।

इंस्पेक्टर ओचुमेलॉव नया ओवरकोट पहने हाथ में बंडल लिए बाज़ार के चौराहे से गुजरा। उसके पीछे लाल बालोंवाला एक सिपाही हाथों में झरबेरी की टोकरियाँ लिए चला आ रहा था। चारों ओर खामोशी थी। दुकानों के दरवाजे खुले थे परन्तु उनके आसपास कोई नहीं दिख रहा था।

तभी अचानक ओचुमेलॉव के कानों में एक आवाज़ गूँजी - 'तो तू काटेगा? तू? शैतान कहीं का! ओ छोकरों! इसे मत जाने दो। पकड़ लो इस कुत्ते को। उसके बाद उसे कुत्ते की किकियाने की आवाज़ सुनाई दी। ओचुमेलॉव उस आवाज़ की दिशा में घुमा और पाया कि एक व्यापारी पिचुगिन के काठगोदाम में से एक कुत्ता तीन टाँगों के बल पर रेंगता चला आ रहा है। उसके पीछे एक व्यक्ति दौड़ रहा था। वह कुत्ते की टांगें पकड़कर फिर चीखा - 'मत जाने दो।' आवाज़ सुनकर भीड़ काठगोदाम घेरकर खड़ी हो गयी। ओचुमेलॉव भी मुड़कर भीड़ की तरफ चल दिया।

वहाँ एक बिना बटन वास्केट पहने आदमी अपना दायाँ हाथ उठाये मौजूद था और उपस्थित लोगों को उंगलियाँ दिखा रहा था। ओचुमेलॉव ने व्यक्ति को देखते पहचान लिया। वह ख्यूक्रिन नामक सुनार था। वहीँ पास में पड़ा एक सफ़ेद बाराजोई पिल्ला ऊपर से नीचे तक काँप रहा था। भीड़ को चीरते हुए ओचुमेलॉव ने पूछा - यह सब क्या हो रहा है? तुम सब लोग इधर क्या कर रहे हो?  ऊँगली ऊपर क्यों उठा रखी है? चिल्ला कौन रहा था? इन सवालों के जवाब में ख्यूक्रिन ने खाँसते हुए कहा की जब मैं मित्री मित्रिच से लकड़ी लेकर कुछ काम निपटाने के लिए चुपचाप चला जा रहा था तब इस कुत्ते ने अकारण मेरी ऊँगली काट खाई। चूँकि मेरा काम पेचीदा है और मुझे लगता है अब एक हफ्ते तक मेरी ऊँगली काम नहीं कर पाएगी इसलिए हुजूर मुझे इस कुत्ते के मालिक से हरजाना दिलवाया जाए। यह किसी कानून में नही लिखा की आदमखोर जानवर हमें काट खायें और हम इन्हें छोड़ते रहें।

ओचुमेलॉव ने अपना गला खँखारते हुए बोला की ठीक है बताओ यह कुत्ता किसका है। मैं इस मामले को छोड़ने वाला नही हूँ। इस तरह अपने कुत्ते को आवारा छोड़ने वाले मालिक को मैं मजा चखा कर रहूँगा। उसने सिपाही की तरफ मुड़कर कहा - येल्दीरीन पता लगाओ यह कुत्ता किसका है और पूरी रिपोर्ट तैयार करो। इस कुत्ते को मार दो। तभी भीड़ से एक आवाज़ आई शायद यह कुत्ता जनरल झिगालॉव का है।

जनरल झिगालॉव का नाम सुनते ही ओचुमेलॉव को गर्मी लगने लगती है और वह कोट उतारने लगता है। वह ख्यूक्रिन की तरफ मुड़कर कहता है की मुझे समझ नहीं आ रहा की इतना छोटा जानवर तेरी ऊँगली तक पहुँचकर काट कैसे सकता है। जरूर तेरे ऊँगली में कील गड गई होगी और तू यह दोष इस कुत्ते पर मढ़कर अपना फयदा सोच रहा है। जरूर इसने ही कुत्ते के साथ शरारत की होगी। सिपाही येल्दीरीन भी ओचुमेलॉव की बातों में हाँ मिलाते हुए ख्यूक्रिन को शरारती बताता है। ख्यूक्रिन भी कहता है की उसका एक भाई पुलिस में है।

थोड़ी देर में सिपाही कहता है की यह कुत्ता जनरल साहब को नहीं हो सकता क्योंकि उनके सभी कुत्ते पोंटर हैं। ओचुमेलॉव भी कहता है की जनरल साहब के सभी कुत्ते महँगे और अच्छी नस्ल के हैं। यह मरियल सा कुत्ता उनका नहीं हो सकता। इसे सबक सिखाना जरूरी है। सिपाही गंभीरता से सोचते हुए फिर कहता है ऐसा कुत्ता कल ही मैंने जनरल साहब के आँगन में देखा था शायद यह कुत्ता उन्हीं का हो। भीड़ में से भी आवाज़ आती है यह कुत्ता जनरल साहब का ही है। अब ओचुमेलॉव को ठंड लगने लगती है और  वह सिपाही को कोट पहनाने में मदद करने बोलता है। वह बोलता है जनरल साहब के पास ले जाकर पता लगाओ की यह कुत्ता उनका है और उनसे कहना मैंने इसे उनके पास भेजा है। इस तरह इस नाजुक प्राणी को बाहर ना छोड़ें नहीं तो गुंडे-बदमाशों के हाथों यह तबाह हो जाएगा। वह ख्यूक्रिन को भद्दा प्राणी कहते हुए उसे ऊँगली नीचे करने को कहता है।

तभी उधर से जनरल साहब को बावर्ची प्रोखोर आता दिखता है। ओचुमेलॉव उसे आवाज़ देकर बुलाता है और पूछता है की कुत्ता जनरल साहब का है? बावर्ची कहता है की ऐसा कुत्ता उसने कई जिंदगियों में नहीं देखा। तभी ओचुमेलॉव कहता है की मैंने तो पहले ही कहा था इस आवारा कुत्ते को मार दिया जाए। बावर्ची फिर कहता है की यह कुत्ता जनरल साहब का तो नहीं परन्तु उनके भाई है जो अभी यहाँ पधार हैं। उन्हें 'बारजोयस' नस्ल के कुत्ते पसंद हैं। ओचुमेलॉव ने अपने चेहरे पर ख़ुशी समेटते हुए कहा की जनरल साहब के भाई वाल्दीमीर इवानिच पधारे हैं और मुझे पता तक नहीं। कितना सुन्दर डॉगी है। बहुत खूबसूरत पिल्ला है। प्रोखोर कुत्ते को संभालकर काठगोदाम से बाहर चला गया। भीड़ ख्यूक्रिन की हालत पर हँस दी। ओचुमेलॉव ने उसे धमकाकर अपने रास्ते चल दिया।

लेखक परिचय

अंतोन चेखव

इनका जन्म दक्षिणी रूस के तगनोर नगर में 1860 में हुआ था। इन्होनें शिक्षा काल से ही कहानियाँ लिखना आरम्भ कर दिया था। उन्नीसवीं सदी का नौवाँ दशक रूस के लिए कठिन समय था। तह वह समय था जब आज़ाद ख्याल होने से ही लोग शासन के दमन का करते थे। ऐसे समय में चेखव ने उन मौकापरस्त लोगों को बेनकाब करती कहानियाँ लिखीं जिनके लिए पैसा और पद ही सब कुछ था।

प्रमुख कार्य

कहानियाँ - गिरगिट, क्लर्क की मौत, वान्का, तितली, एक कलाकार की कहानी, घोंघा, ईओनिज, रोमांस, दुलहन।

नाटक - वाल्या मामा, तीन बहनें, सीगल और चेरी का बगीचा।

कठिन शब्दों के अर्थ

• जब्त - कब्ज़ा करना

• झरबेरियाँ - बेर की एक किस्म

• किकियाना - कष्ट में होने पर कुत्ते द्वारा की जाने वाली आवाज़

• काठगोदाम - लकड़ी का गोदाम

• कलफ़ - मांड लगाया गया कपड़ा

• बारजोयस - कुत्ते की एक प्रजाति

• पेचीदा - कठिन

• गुज़ारिश - प्रार्थना

• हरज़ाना - नुक्सान के बदले में दी जाने वाली रकम

• बरदाश्त - सहना

• खँखारते - खाँसते हुए

• त्योरियाँ - भौंहें चढ़ाना

• विवरण - ब्योरा देना

• भद्दा - कुरूप

• नस्ल - जाति

• आल्हाद – ख़ुशी

NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 15- अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले स्पर्श भाग-2 हिंदी 

निदा फ़ाजली

पृष्ठ संख्या: 114

प्रश्न अभ्यास 

मौखिक 

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों दीजिए -

1. बड़े-बड़े बिल्डर समुद्र को पीछे क्यों धकेल रहे थे?

उत्तर

आबादी बढ़ने के कारण स्थान का अभाव हो रहा था इसलिए बिल्डर नई-नई इमरातें बनाने के लिए बड़े-बड़े बिल्डर समुद्र को पीछे धकेल रहे थे।

2.  लेखक का घर किस शहर में था?

उत्तर

लेखक का घर ग्वालियर शहर में था।

3. जीवन कैसे घरों में सिमटने लगा है?

उत्तर

एकल परिवारों का चलन होने के कारण जीवन डिब्बों जैसे फलैटों में सिमटने लगा है।

4. कबूतर परेशानी में इधर-उधर क्यों फड़फड़ा रहे थे?

उत्तर

कबूतर के घोंसले में दो अंडे थे। एक बिल्ली ने तोड़ दिया था दूसरा बिल्ली से बचाने के चक्कर में माँ से टूट गया। कबूतर इससे परेशान होकर इधर-उधर फड़फड़ा रहे थे।

लिखित

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए -

1. अरब में लशकर को नूह के नाम से क्यों याद करते हैं?

उत्तर

अरब में लशकर को नूह के नाम से इसलिए याद करते हैं क्योंकि वे हमेशा दूसरों के दुःख में दुखी रहते थे। नूह को पैगम्बर या ईश्वर का दूत भी कहा गया है। उनके मन में करूणा होती थी।

2. लेखक की माँ किस समय पेड़ों के पत्ते तोड़ने के लिए मना करती थीं और क्यों?

उत्तर

लेखक की माँ दिन छिपने या सूरज ढलने के बाद पेड़ों के पत्ते तोड़ने के लिए मना करती थीं क्योंकि उस समय वे रोते हैं, रात में फूल तोड़ने पर वे श्राप देते हैं।

3. प्रकृति में आए असंतुलन का क्या परिणाम हुआ?

उत्तर

प्रकृति में आए असंतुलन का परिणाम भूकंप, अधिक गर्मी, वक्त बेवक्त की बारिश, अतिवृष्टि, साइकलोन आदि और अनेक बिमारियाँ हैं।

4. लेखक की माँ ने पूरे दिन रोज़ा क्यों रखा?

उत्तर

लेखक के घर एक कबूतर का घोंसला था जिसमें दो अंडे थे। एक अंडा बिल्ली ने झपट कर तोड़ दिया, दूसरा अंडा बचाने के लिए माँ उतारने लगीं तो टूट गया। इस पर उन्हें दुख हुआ। माँ ने प्रायश्चित के लिए पूरे दिन रोज़ा रखा और नमाज़ पढ़कर माफी माँगती रहीं।

5. लेखक ने ग्वालियर से बंबई तक किन बदलावों को महसूस किया? पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

लेखक पहले ग्वालियर में रहता था। फिर बम्बई के वर्साेवा में रहने लगा। पहले घर बड़े-बड़े होते थे, दालान आंगन होते थे अब डिब्बे जैसे घर होते हैं, पहले सब मिलकर रहते थे अब सब अलग-अलग रहते हैं, इमारतें ही इमारतें हैं पशु-पक्षियों के रहने के लिए स्थान नहीं रहे,पहले अगर वे घोंसले बना लेते थे तो ध्यान रखा जाता था पर अब उनके आने के रास्ते बंद कर दिए जाते हैं।

6. डेरा डालने से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

डेरा डालने का अर्थ है कुछ समय के लिए रहना। बड़ी-बड़ी इमारतें बनने के कारण पक्षियों को घोंसले बनाने की जगह नहीं मिल रही है। वे इमारतों में ही डेरा डालने लगे हैं।

7. शेख अयाज़ के पिता अपने बाजू पर काला च्योंटा रेंगता देख भोजन छोड़ कर क्यों उठ खड़े हुए?

उत्तर

शेख अयाज़ के पिता जब कुँए से नहाकर लौटे तो काला च्योंटा चढ़ कर आ गया। भोजन करते वक्त उन्होंने उसे देखा और भोजन छोड़कर उठ खड़े हुए। वे पहले उसे घर छोड़ना चाहते थे।

पृष्ठ संख्या: 115

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए −

1. बढ़ती हुई आबादी का पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ा?

उत्तर

बढ़ती हुई आबादी के कारण पर्यावरण असंतुलित हो गया है। आवासीय स्थलों को बढ़ाने के लिए वन, जंगल यहाँ तक कि समुद्रस्थलों को भी छोटा किया जा रहा है। पशुपक्षियों के लिए स्थान नहीं है। इन सब कारणों से प्राकृतिक का सतुंलन बिगड़ गया है और प्राकृतिक आपदाएँ बढ़ती जा रही हैं। कहीं भूकंप, कहीं बाढ़, कहीं तूफान, कभी गर्मी, कभी तेज़ वर्षा इन के कारण कई बिमारियाँ हो रही हैं। इस तरह पर्यावरण के असंतुलन का जन जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा है।

2. लेखक की पत्नी को खिड़की मे जाली क्यों लगवानी पड़ी?

उत्तर

लेखक के घर में कबतूर ने घोंसला बना लिया था जिसमें दो बच्चे थे उनको दाना खिलाने के लिए कबूतर आया जाया करते थे, सामान तोड़ाकरते थे। इससे परेशान होकर लेखक की पत्नी ने मचान के आगे घोंसला सरका दिया और वहाँ जाली लगवानी पड़ी।

3. समुद्र के गुस्से की क्या वजह थी? उसने अपना गुस्सा कैसे निकाला?

उत्तर

कई सालों से बिल्डर समुद्र को पीछे धकेल रहे थे और उसकी ज़मीन हथिया रहे थे। समुद्र सिमटता जा रहा था। उसने पहले टाँगें समेटी फिर उकडू बैठा फिर खड़ा हो गया। फिर भी जगह कम पड़ने लगी जिससे वह गुस्सा हो गया। उसने गुस्सा निकालने के लिए तीन जहाज फेंक दिए। एक वार्लीके समुद्र के किनारे, दूसरा बांद्रा मे कार्टर रोड के सामने और तीसरा गेट वे ऑफ इंडिया पर टूट फूट गया।

4. मट्टी से मट्टी मिले,

खो के सभी निशान,

किसमें कितना कौन है,

कैसे हो पहचान

इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

इन पंक्तियों में बताया गया है कि सभी प्राणी एक ही मिट्टी से बने हैं और अंत में हमारा शरीर व्यक्तिगत पहचान खोकर उसी मिट्टी में मिल जाता है। यह पता नही रहता कि उस मिट्टी में कौन-कौन से मिट्टी मिली हुई है यानी मनुष्य में कितनी मनुष्यता है और कितनी पशुता यह किसी को पता नहीं होता।

(ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए −

1. नेचर की सहनशक्ति की एक सीमा होती है। नेचर के गुस्से का एक नमूना कुछ साल पहले बंबई में देखने को मिला था।

उत्तर

प्रकृति के साथ मनुष्य खिलवाड़ करता रहा है परन्तु प्रकृति की भी एक हद तक सहने की शक्ति होती है। इसके गुस्से का नमूना कुछ साल पहले बंबई में देखने को मिला था। इसने तीन जहाजों को गेंद की तरह उछाल दिया था। 

2. जो जितना बड़ा होता है उसे उतना ही कम गुस्सा आता है।

उत्तर

महान तथा बड़े लोगों में क्षमा करने की प्रधानता होती है। किसी भी व्यक्ति की महानता क्रोध कर दण्ड देने में नहीं होती है बल्कि किसी की भी गलती को क्षमा करना ही महान लोगों की विशेषता होती है। समुद्र महान है। वह मनुष्य के खिलवाड़ को सहन करता रहा। पर हर चीज़ की हद होती है। एक समय उसका क्रोध भी विकराल रूप में प्रदर्शित हुआ। वैसे तो महान व्यक्तियों की तरह उसमें अथाह गहराई,शांति व सहनशक्ति है।

3. इस बस्ती ने न जाने कितने परिंदों-चरिंदों से उनका घर छीन लिया है। इनमें से कुछ शहर छोड़कर चले गए हैं। जो नहीं जा सके हैं उन्होंने यहाँ-वहाँ डेरा डाल लिया है।

उत्तर

बस्तियों के फैलाव से पेड़ कटते गए और पक्षियों के घर छिन गए। कुछ की तो जातियाँ ही नष्ट हो गईं। कुछ पक्षियों ने यहाँ इमारतों में डेरा जमा लिया।

4. शेख अयाज़ के पिता बोले, नहीं, यह बात नहीं हैं। मैंने एक घर वाले को बेघर कर दिया है। उस बेघर को कुएँ पर उसके घर छोड़ने जा रहा हूँ। इन पंक्तियों में छिपी हुई उनकी भावना को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

शेख अयाज़ के पिता बोले, नहीं, यह बात नहीं हैं। मैने एक घर वाले को बेघर कर दिया है। उस बेघर को कुएँ पर उसके घर छोड़ने जा रहा हूँ। इन पंक्तियों में उनकी यह भावना छिपी हुई थी कि वे पशु-पक्षियों की भावनाओं को समझते थे। वे चीटें को भी घर पहुँचाने जा रहे थे। उनके लिए मनुष्य पशु-पक्षी एक समान थे। वे किसी को भी तकलीफ नहीं देना चाहते थे।

भाषा अध्यन

1. उदारण के अनुसार निम्नलिखित वाक्यों में कारक चिह्नों को पहचानकर रेखांकित कीजिए और उनके नाम रिक्त स्थानों में लिखिए; जैसे −

|(क) |माँ ने भोजन परोसा। |कर्ता |

|(ख) |मैं किसी के लिए मुसीबत नहीं हूँ। |......................|

|(ग) |मैंने एक घर वाले को बेघर कर दिया। |......................|

|(घ) |कबूतर परेशानी में इधर-उधर फड़फड़ा रहे थे। |......................|

|(ङ) |दरिया पर जाओ तो उसे सलाम किया करो। |......................|

उत्तर

|(क) |माँ ने भोजन परोसा। |कर्ता |

|(ख) |मैं किसी के लिए मुसीबत नहीं हूँ। |संप्रदान |

|(ग) |मैंने एक घर वाले को बेघर कर दिया। |कर्म |

|(घ) |कबूतर परेशानी में इधर-उधर फड़फड़ा रहे थे। |अधिकरण |

|(ङ) |दरिया पर जाओ तो उसे सलाम किया करो। |अधिकरण |

2. नीचे दिए गए शब्दों के बहुवचन रूप लिखिए −

चींटी, घोड़ा, आवाज़, बिल, फ़ौज, रोटी, बिंदु, दीवार, टुकड़ा।

उत्तर

|चींटी |- |चीटियाँ |

|घोड़ा |- |घोड़ें |

|आवाज़ |- |आवाज़ें |

|बिल |- |बिल |

|फ़ौज |- |फ़ौजें |

|रोटी |- |रोटियाँ |

|बिंदु |- |बिंदु (बिदुओ को) |

|दीवार |- |दीवारें |

|टुकड़ा |- |टुकड़े |

3. निम्नलिखित वाक्यों में उचित शब्द भरकर वाक्य पूरे किजिए −

(क) आजकल .................. बहुत खराब है। (जमाना/ज़माना)

(ख) पूरे कमरे को .................. दो। (सजा/सज़ा)

(ग) माँ दही ............... भूल गई। (जमाना/ज़माना)

(घ) ............. चीनी तो देना (जरा/ज़रा)

(ङ) दोषी को ............ दी गई। (सजा/सज़ा)

(च) महात्मा के चेहरे पर................ था। (तेज/तेज़)

उत्तर

(क) आजकल ....ज़माना...... बहुत खराब है।

(ख) पूरे कमरे को ....सजा...... दो।

(ग) माँ दही ....जमाना... भूल गई।

(घ) ...ज़रा.... चीनी तो देना

(ङ) दोषी को ..सज़ा.... दी गई।

(च) महात्मा के चेहरे पर ..तेज.. था।

सारांश

इस पाठ में लेखक ने मानव द्वारों अपने स्वार्थ के लिए किये गए धरती पर किये गए अत्याचारों से अवगत कराया है। पाठ में बताया गया है की किस तरह मानव की न मिटने वाली भूख ने धरती के तमाम जीव-जन्तुओं के साथ खुद के लिए भी मुसीबत खड़ी कर दी है।

ईसा से 1025 वर्ष पहले एक बादशाह थे जिनका नाम बाइबिल के अनुसार सोलोमेन था, उन्हें कुरआन में सुलेमान कहा गया है। वह सिर्फ मानव जाति के ही राजा नहीं थे बल्कि सभी छोटे-बड़े पशु-पक्षी के भी राजा थे। वह इन सबकी भाषा जानते थे। एक बार वे अपने लश्कर के साथ रास्ते से गुजर रहे थे। उस रास्ते में कुछ चीटियाँ घोड़ों की टापों की आवाज़ें सुनकर अपने बिलों की तरफ वापस चल पड़ीं। इसपर सुलेमान ने उनसे घबराने को न कहते हुए कहा कि खुदा ने उन्हें सबका रखवाला बनाया है। वे मुसीबत नहीं हैं बल्कि सबके लिए मुहब्बत हैं। चीटियों ने उनके लिए दुआ की और वे आगे बढ़ चलें।

ऐसी एक घटना का जिक्र करते हुए सिंधी भाषा के महाकवि शेख अयाज़ ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि एक दिन उनके पिता कुएँ से नहाकर घर लौटे तो माँ ने भोजन परोसा। जब उन्होंने रोटी का एक कौर तोड़ा तभी उन्हें अपनी बाजू पर एक काला च्योंटा रेंगता दिखाई दिया। वे भोजन छोड़कर उठ खड़े हुए और पहले उस बेघर हुए च्योंटे को वापस उसके घर कुएँ पर छोड़ आये।

बाइबिल और अन्य ग्रंथों में नूह नामक एक पैगम्बर का जिक्र मिलता है जिनका असली नाम लशकर था परन्तु अरब में इन्हें नूह नाम से याद किया जाता है क्योंकि ये पूरी जिंदगी रोते रहे। एक बार इनके सामने से एक घायल कुत्ता गुजरा चूँकि इस्लाम में कुत्ते को गन्दा माना जाता है इसलिए इन्होनें उसे गंदे कुत्ते दूर हो जा कहा। कुत्ते ने इस दुत्कार को सुनकर जवाब दिया कि  ना मैं अपनी मर्ज़ी से कुत्ता हूँ और ना तुम अपनी पसंद से इंसान हो। बनाने वाला सब एक ही है। इन बातों को सुनकर वे दुखी हो गए और सारी उम्र रोते रहे। महाभारत में भी एक कुत्ते ने युधिष्ठिर का साथ अंत तक दिया था।

भले ही इस संसार की रचना की अलग-अलग कहानियाँ हों परन्तु इतना तय है की धरती किसी एक की नहीं है। सभी जीव-जंतुओं, पशु, नदी पहाड़ सबका इसपर सामान अधिकार है। मानव इस बात को नहीं समझता। पहले उसने संसार जैसे परिवार को तोड़ा फिर खुद टुकड़ों में बँटकर एक-दूसरे से दूर हो चुका है। पहले लोग मिलजुलकर बड़े-बड़े दालानों-आंगनों में रहते थे पर अब छोटे-छोटे डिब्बे जैसे घरों में सिमटने लगे हैं। बढ़ती हुई आबादी के कारण समंदर को पीछे सरकाना पड़ रहा है, पेड़ों को रास्ते से हटाना पड़ रहा है जिस कारण फैले प्रदूषण ने पक्षियों को भागना शुरू कर दिया है। नेचर की भी सहनशक्ति होती है। इसके गुस्से का नमूना हम कई बार अत्यधिक गर्मी, जलजले, सैलाब आदि के रूप में देख रहे हैं।

लेखक की माँ कहती थीं की शाम ढलने पर पेड़ से पत्ते मत तोड़ो, वे रोयेंगे। दीया-बत्ती के वक़्त फूल मत तोड़ो। दरिया पर जाओ तो सलाम करो कबूतरों को मत सताया करो और मुर्गे को परेशान मत करो वह अज़ान देता है। लेखक बताते हैं उनका ग्वालियर में मकान था। उस मकान के दालान के रोशनदान में कबूतर के एक जोड़े ने अपना घोंसला बना लिया। एक बिल्ली ने उचककर दो में से एक अंडा फोड़ दिया। लेखक की माँ से दूसरा अंडा बचाने के क्रम में फूट गया। इसकी माफ़ी के लिए उन्होंने दिन भर कुछ नहीं खाया और नमाज़ अदा करती रहीं।

अब लेखक मुंबई के वर्सोवा में रहते हैं। पहले यहाँ पेड़, परिंदे और दूसरे जानवर रहते थे परन्तु अब यह शहर बन चुका है। दूसरे पशु-पक्षी इसे छोड़े कर जा चुके हैं, जो नहीं गए वे इधर-उधर डेरा डाले रहते हैं। लेखक के फ्लैट में भी दो कबूतरों ने एक मचान पर अपना घोंसला बनाया, बच्चे अभी छोटे थे। खिलाने-पिलाने की जिम्मेदारी बड़े कबूतरों पर थीं। वे दिन-भर आते जाते रहते थे। लेखक और उनकी पत्नी को इससे परेशानी होती इसलिए उन्होंने जाली लगाकर उन्हें बाहर कर दिया। अब दोनों कबूतर खिड़की के बाहर बैठे उदास रहते हैं परन्तु अब ना सुलेमान हैं न लेखक की माँ जिन्हें इनकी फ़िक्र हो।

लेखक परिचय

निदा फ़ाज़ली

इनका जन्म 12 अक्टूबर 1938 को दिल्ली में हुआ और बचपन ग्वालियर में बिता। ये साठोत्तर पीढ़ी के महत्वपूर्ण कवि माने जाते हैं। आम बोलचाल की भाषा में और सरलता से किसी के भी दिलोदिमाग में घर कर सकें ऐसी कविता करने में इन्हें महारत हासिल है। गद्य रचनाओं में शेर-ओ-शायरी परोसकर बहुत कुछ को थोड़े में कह देने वाले अपने किस्म के अकेले गद्यकार हैं। इन दिनों फिल्म उद्योग से सम्बन्ध हैं।

प्रमुख कार्य

पुस्तक - लफ्जों का पुल, खोया हुआ सा कुछ, तमाशा मेरे आगे

आत्मकथा - दीवारों के बीच, दीवारों के पार

पुरस्कार - खोया हुआ सा कुछ के लिये 1999 में साहित्य अकादेमी पुरस्कार।

कठिन शब्दों के अर्थ

• हाकिम - राजा या मालिक

• लश्कर (लशकर) - सेना या विशाल जनसमुदाय

• लक़ब - पदसूचक नाम

• प्रतीकात्मक - प्रतीकस्वरुप

• दालान - बरामदा

• सिमटना - सिकुड़ना

• जलजले - भूकम्प

• सैलाब - बाढ़

• सैलानी - ऐसे पर्यटक जो भ्रमण कर नए-नए विषयों के बारे में जानना चाहते हैं

• अज़ीज़ - प्रिय

• मज़ार - दरगाह

• गुंबद - मस्जिद, मंदिर और गुरुद्वारे के ऊपर बनी गोल छत जिसमें आवाज़ गूँजती है

• अज़ान - नमाज़ के समय की सूचना जो मस्जिद की छत या दूसरी ऊँचे जगह पर खड़े होकर दी जाती है

• डेरा - अस्थायी पड़ाव

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए -

1. बाइबिल के सोलोमेन जिन्हें कुरान में सुलेमान कहा गया है, ईसा से 1025 वर्ष पूर्व एक बादशाह थे। कहा गया है, वह केवल मानव जाति के ही राजा नहीं थे, सारे छोटे-बड़े पशु-पक्षी के भी हाकिम थे। वह इन सबकी भाषा जानते थे। एक दफा सुलेमान अपने लश्कर के साथ एक रास्ते से गुजर रहे थे। रास्ते में कुछ चींटियों ने घोड़ों की तापों की आवाज़ सुनी तो डर कर एक-दूसरे से कहा, 'आप जल्दी से अपने-अपने बिलों में चलो, फ़ौज आ रही है।' सुलेमान उनकी बातें सुनकर थोड़ी दूर परं रुक गए और चींटियों से बोले, 'घबराओ नहीं, सुलेमान को खुद ने सबका रखवाला बनाया है। मैं किसी के लिए मुसीबत नहीं हूँ, सबके लिए मुहब्बत हूँ।' चींटियों ने उनके लिए ईश्वर से दुआ की और सुलेमान अपनी मंज़िल की ओर बढ़ गए।

(क) सुलेमान कौन थे और उनके व्यक्तित्व की क्या विशेषता थी?  (2)

(ख) चींटियाँ क्यों भयभीत थीं?                                                     (1)                              

(ग) सुलेमान ने चींटियों क्या कहा?                                               (2)

उत्तर

(क) सुलेमान ईसा से 1025 वर्ष पूर्व एक बादशाह थे। वे मानव जाति के राजा होने के साथ पशु-पक्षियों के भी हाकिम थे। वे इनकी भाषा समझते थे तथा सबका भला चाहते थे।

(ख) चींटियाँ सुलेमान की फौज के घोड़ों की टापों की आवाज़ सुनकर भयभीत थीं।

(ग) सुलेमान ने चींटियों से कहा कि वे सबके रखवाले हैं। किसी के लिए मुसीबत ना होकर सबके लिए मुहब्बत हैं।

2. दुनिया कैसे वजूद में आई? पहले क्या थी? किस बिंदु से इसकी यात्रा शुरू हुई? इन प्रश्नों के उत्तर विज्ञान अपनी तरह से देता है, धर्मिक ग्रंथ अपनी-अपनी तरह से। संसार की रचना भले ही कैसे हुई हो लेकिन धरती किसी एक की नहीं है। पंछी, मानव, पशु, नदी, पर्वत, समंदर आदि की इसमें बराबर की हिस्सेदारी है। यह और बात है कि इस हिस्सेदारी में मानव जाति ने अपनी बुद्धि से बड़ी-बड़ी दीवारें खड़ी कर दी हैं। पहले पूरा संसार एक परिवार के समान था अब टुकड़ों में बँटकर एक-दूसरे से दूर हो चुका है। पहले बड़े-बड़े दालानों-आँगनों में सब मिल-जुलकर रहते थे अब छोटे-छोटे डिब्बे जैसे घरों में जीवन सिमटने लगा है। बढ़ती हुई आबादियों ने समंदर को पीछे सरकाना शुरू कर दिया है, पेड़ों को रास्तों से हटाना शुरू कर दिया है, फैलते हुए प्रदूषण ने पंछियों को बस्तियों से भगाना शुरू कर दिया है। बारूदों की विनाशलीलाओं ने वातावरण को सताना शुरू कर दिया। अब गरमी में ज़्यादा गरमी, बेवक्त की बरसातें, ज़लज़ले,सैलाब, तूफ़ान और नित नए रोग, मानव और प्रकृति के इसी असंतुलन के परिणाम हैं। नेचर की सहनशक्ति की एक सीमा होती है।

(क) दुनिया के विषय में कौन-कौन से सवाल उठते हैं?                                  (1)

(ख) पहले और अब के घरों में क्या बदलाव आया है?                                     (1)

(ग) मनुष्य ने दुनिया में क्या परिवर्तन लाया और इसके क्या परिणाम हुए?   (2)

उत्तर

(क) दुनिया कैसे वजूद में आई? पहले क्या थी? किस बिंदु से इसकी यात्रा शुरू हुई? यह सवाल दुनिया के विषय में उठते हैं।

(ख) पहले लोग बड़े-बड़े दालानों-आँगनों में मिलजुलकर रहते थे परन्तु अब लोग छोटे-छोटे डिब्बों जैसे घरों में जीवन बिताने लगे हैं।

(ग) मनुष्य ने समंदर को पीछे सरकाना शुरू कर दिया, पेड़ों को रास्तों से हटाया तथा बारूदों की विनाशलीलायें से वातावरण को सताना शुरू कर दिया जिस कारण प्रकृति में असंतुलन आ गया। परिणामस्वरूप गरमी में ज़्यादा गरमी, बेवक्त की बरसातें, ज़लज़ले, सैलाब, तूफ़ान और नित्य नए रोग उत्पन्न हुए।

3. कई सालों से बड़े-बडे़ बिल्डर समंदर को पीछे धकेल कर उसकी ज़मीन को हथिया रहे थे। बेचारा समंदर लगातार सिमटता जा रहा था। पहले उसने अपनी पैफली हुई टाँगें समेटीं, थोड़ा सिमटकर बैठ गया। फिर जगह कम पड़ी तो उकड़ु बैठ गया। फिर खड़ा हो गया...जब खड़े रहने की जगह कम पड़ी तो उसे गुस्सा आ गया। जो जितना बड़ा होता है उसे उतना ही कम गुस्सा आता है। परंतु आता है तो रोकना मुश्किल हो जाता है, और यही हुआ, उसने एक रात अपनी लहरों पर दौड़ते हुए तीन जहाज़ों को उठाकर बच्चों की गेंद की तरह तीन दिशाओं में पेंफक दिया। एक वर्ली के समंदर के किनारे पर आकर गिरा, दूसरा बांद्रा में कार्टर रोड के सामने औंधे मुँह और तीसरा गेट-वे-ऑफ़ इंडिया पर टूट-फूटकर सैलानियों का नज़ारा बना बावजूद कोशिश, वे फिर से चलने-फिरने के काबिल नहीं हो सके।

(क) बिल्डर समुद्र के साथ क्या और क्यों कर रहे थे?   (2)

(ख) समुद्र को गुस्सा क्यों आया?                               (2)

(ग) समुद्र ने अपना क्रोध किस प्रकार प्रकट किया?     (1)

उत्तर 

(क) बिल्डर समुद्र को धकेल कर उसकी जमीन हथिया रहे थे। वे ऐसा धन के लालच में कर रहे थे।

(ख) दिन-प्रतिदिन बिल्डरों द्वारा जमीन हथियाए जाने से समुद्र सिकुड़ता जा रहा था। समुद्र के सामने उसके अपने अस्तित्व पर खतरा उत्पन्न हो गया इसलिए उसे गुस्सा आ गया।

(ग) समुद्र ने अपना क्रोध प्रकट करने के लिए अपनी लहरों पर तीन जहाज़ों को बच्चों की गेंद की तरह तीन दिशाओं में फेंक दिया।

4. ग्वालियर में हमारा एक मकान था, उस मकान के दालान में दो रोशनदान थे। उसमें कबूतर के एक जोड़े ने घोंसला बना लिया था। एक बार बिल्ली ने उचककर दो में से एक अंडा तोड़ दिया। मेरी माँ ने देखा तो उसे दुख हुआ। उसने स्टूल पर चढ़कर दूसरे अंडे को बचाने की कोशिश की। लेकिन इस कोशिश में दूसरा अंडा उसी के हाथ से गिरकर टूट गया। कबूतर परेशानी में इधर-उधर फड़फड़ा रहे थे। उनकी आँखों में दुख देखकर मेरी माँ की आँखों में आँसू आ गए। इस गुनाह को खुदा से मुआफ़ कराने के लिए उसने पूरे दिन रो ज़ा रखा। दिन-भर कुछ खाया-पिया नहीं। सिर्फरोती रही और बार-बार नमाज पढ़-पढ़कर खुदा से इस गलती को मुआफ़ करने की दुआ माँगती रही।

(क) ग्वालियर के मकान में घटी किस घटना से लेखक की माँ को दुःख पहुँचा?   (2)

(ख) दूसरे अंडे को बचाने के प्रयास में क्या हुआ?                                               (1)

(ग) लेखक की माँ ने अपनी गलती का किस प्रकार प्रायश्चित किया?                 (1)

उत्तर

(क) ग्वालियर के मकान के दालान में रोशनदान में कबूतर के एक जोड़े ने घोंसला बनाया था। एक बार बिल्ली ने उचककर उनके एक अंडे को फोड़ दिया जिसे देखकर लेखक की माँ को दुःख पहुँचा।

(ख) दूसरे अंडे को बचाने के प्रयास में लेखक की माँ की हाथ से अंडा गिरकर टूट गया।

(ग) लेखक की माँ ने दिन भर रोज़ा रखा और दिनभर कुछ खाया-पिया नहीं। बार-बार नमाज़ पढ़ती रहीं और गलती की माफ़ी माँगती रहीं। इस तरह लेखक की माँ ने प्रायश्चित किया।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिये-

1. सुलेमान कौन थे? उन्हें सबका राजा क्यों कहते हैं?

उत्तर

सुलेमान ईसा से 1025 वर्ष पूर्व एक बादशाह थे। वे सिर्फ मनुष्य जाति की ही भलाई नहीं करते थे बल्कि पशु-पक्षियों की भी भाषा जानते थे और उनका भी ध्यान रखते थे इसलिए उन्हें सबका राजा कहते हैं।

2. शेख अयाज़ ने अपनी आत्म-कथा में किस घटना का जिक्र किया है?

उत्तर

शेख अयाज़ ने अपनी आत्म-कथा में अपने पिता की एक घटना का जिक्र किया है। एक दिन उनके पिता कुएँ से नहाकर लौटे। भोजन करते समय उन्होंने देखा कि एक काला च्योंटा उनकी बाजू पर रेंग रहा है। उन्हें लगा की च्योंटा कुएँ से उनके पास आकर बेघर हो गया है इसलिए उन्होंने थोड़ी भी देर ना करते हुए उसे वापस उसके घर पहुँचाने के लिए भोजन छोड़कर उठ खड़े हुए।

3. लशकर सारी उम्र रोते क्यों रहे?

उत्तर

एक बार लशकर के सामने एक घायल कुत्ता गुज़रा। लशकर ने उसे दुत्कारते हुए नज़रों के सामने से दूर हो जाने को कहा चूँकि इस्लाम में कुत्ते को गन्दा समझा जाता है। इसपर उसे कुत्ते ने कहा की ना तो मैं अपनी मर्ज़ी से कुत्ता हूँ और ना ही तुम अपनी मर्ज़ी से मनुष्य, हमें बनाने वाला एक ही है।

4. लेखक की माँ ने प्रायश्चित क्यों और कैसे किया?

उत्तर

लेखक की माँ की हाथों से गलती से कबतूर का अंडा फूट गया इसलिए उन्होंने दिन भर रोज़ा रखकर नमाज़ पढ़ती रहीं और गलती की माफ़ी माँगती रहीं। इस तरह लेखक की माँ ने प्रायश्चित किया।

5. 'अब कहाँ दूसरों के दुःख से दुःखी होने वाले' पाठ से हमें क्या सन्देश मिलता है?

उत्तर

इस पाठ से हमें प्रकृति से प्रेम करने का सन्देश मिलता है। हमें अपने आप को सर्वश्रेष्ठ और अन्य प्राणियों को तुच्छ नहीं समझना चाहिए। अपने स्वार्थ के लिए प्रकृति का नुकसान नहीं करना चाहिए। सबसे मिलजुलकर रहना तथा सबके सुख-दुःख का ख्याल रखना चाहिए।

NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 16- पतझर में टूटी पत्तियाँ स्पर्श भाग-2 हिंदी 

रविन्द्र केलेकर

पृष्ठ संख्या: 122

प्रश्न अभ्यास 

मौखिक 

निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए -

1. शुद्ध सोना और गिन्नी का सोना अलग क्यों होता है?

उत्तर

शुद्ध सोने में किसी प्रकार की मिलावट नही की जाती अगर इसी में थोड़ा-सा ताँबा मिला दिया जाए तो यह गिन्नी बन जाता है। ऐसा करने से सोने की मजबूती और चमक दोनों बढ़ जाती है। 

2. प्रेक्टिकल आइडियालिस्ट किसे कहते हैं?

उत्तर

जो लोग आदर्श बनते हैं और व्यवहार के समय उन्हीं आर्दशों को तोड़ मरोड़ कर अवसर का लाभ उठाते हैं, उन्हें प्रेक्टिकल आइडियालिस्ट कहते हैं।

3. पाठ के संदर्भ में शुद्ध आदर्श क्या है?

उत्तर

जिसमें लाभ हानि सोचने की गुजांइश नहीं होती है उसे शुद्ध आदर्श कहते हैं।

4. लेखक ने जापानियों के दिमाग में स्पीड का इंजन लगने की बात क्यों कही है?

उत्तर

जापानी लोग उन्नति की होड़ में सबसे आगे हैं। वे महीने का काम एक दिन में करने का सोचते हैं। इसलिए लेखक ने जापानियों के दिमाग में स्पीड का इंजन लगने की बात कही है।

5. जापानी में चाय पीने की विधि को क्या कहते हैं?

उत्तर

जापानी में चाय पीने की विधि को चा-नो-यू कहते हैं।

6. जापान में जहाँ चाय पिलाई जाती है, उस स्थान की क्या विशेषता है?

उत्तर

जापान में जहाँ चाय पिलाई जाती है, वहाँ की सजावट पारम्परिक होती है। वहाँ अत्यन्त शांति और गरीमा के साथ चाय पिलाई जाती है। शांति उस स्थान की मुख्य विशेषता है।

लिखित

(क) निम्नलिखित प्रश्न के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए −

1. शुद्ध आदर्श की तुलना सोने से और व्यावहारिकता की तुलना ताँबे से क्यों की गई है?

उत्तर

शुद्ध सोने में किसी प्रकार की मिलावट नहीं की जा सकती। ताँबे से सोना मजबूत हो जाता है परन्तु शुद्धता समाप्त हो जाती है। इसी प्रकार व्यवहारिकता में शुद्ध आर्दश समाप्त हो जाते हैं। सही भाग में व्यवहारिकता को मिलाया जाता है तो ठीक रहता है।

2. चाजीन ने कौन-सी क्रियाएँ गरिमापूर्ण ढंग से पूरी कीं?

उत्तर

चाजीन द्वारा अतिथियों का उठकर स्वागत करना, आराम से अँगीठी सुलगाना, चायदानी रखना, चाय के बर्तन लाना, तौलिए सेपोछ कर चाय डालना आदि सभी क्रियाएँ गरिमापूर्ण, अच्छे व सहज ढंग से कीं।

3. टी-सेरेमनी में कितने आदमियों को प्रवेश दिया जाता था और क्यों?

उत्तर

इसमें केवल तीन आदमियों को प्रवेश दिया जाता था क्योंकि भाग-दौड़ की ज़िदंगी से दूर भूत-भविष्य की चिंता छोड़कर शांतिमय वातावरण में कुछ समय बिताना इस जगह का उद्देश्य होता है।

4. चाय पीने के बाद लेखक ने स्वयं में क्या परिवर्तन महसूस किया?

उत्तर

चाय पीने के बाद लेखक ने महसूस किया कि उसका दिमाग सुन्न होता जा रहा है, उसकी सोचने की शक्ति धीरे-धीरे मंद हो रही है। इससे सन्नाटे की आवाज भी सुनाई देने लगी। उसे लगा कि भूत-भविष्य दोनों का चिंतन न करके वर्तमान में जी रहा हो। उसे बहुत सुख मिलने लगा।

(ख) निम्नलिखित प्रश्न के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए -

1. गाँधीजी में नेतृत्व की अद्भुत क्षमता थी; उदाहरण सहित इस बात की पुष्टि कीजिए?

उत्तर

गाँधीजी में नेतृत्व की अद्भुत क्षमता थी। यह आन्दोलन व्यावहारिकता को आदर्शों के स्वर पर चढ़ाकर चलाया गया। इन्होंने कई आन्दोलन चलाए − भारत छोड़ो आन्दोलन, दांडी मार्च, सत्याग्रह, असहयोग आन्दोलन आदि। उनके साथ भारत की सारी जनता थी। उन्होंने अहिंसा के मार्ग पर चलकर पूर्ण स्वराज की स्थापना की। भारतीयों ने भी अपने नेता के नेतृत्व में अपना भरपूर सहयोग दिया और हमें आज़ादी मिली।

2. आपके विचार से कौन-से ऐसे मूल्य हैं जो शाश्वत हैं? वर्तमान समय में इन मूल्यों की प्रांसगिकता स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

ईमानदारी, सत्य, अहिंसा, परोपकार, परहित, कावरता, सहिष्णुता आदि ऐसे शाश्वत मूल्य हैं जिनकी प्रांसगिकता आज भी है। इनकी आज भी उतनी ही ज़रूरत है जितनी पहले थी। आज के समाज को सत्य अहिंसा की अत्यन्त आवश्यक है। इन्हीं मूल्यों पर संसार नैतिक आचरण करता है। यदि हम आज भी परोपकार, जीवदया, ईमानदारी के मार्ग पर चलें तो समाज को विघटन से बचाया जा सकता है।

4. शुद्ध सोने में ताबे की मिलावट या ताँबें में सोना, गाँधीजी के आदर्श और व्यवहार के संदर्भ में यह बात किस तरह झलकती है?स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

गाँधीजी ने जीवन भर सत्य और अहिंसा का पालन किया। वे आदर्शों को उंचाई तक ले जाते हैं अर्थात वे सोने में ताँबा मिलाकर उसकी कीमत कम नही करते थे बल्कि ताँबे में सोना मिलाकर उसकी कीमत बढ़ा देते थे। गाँधीजी व्यवहारिकता की कीमत जानते थे। इसीलिए वे अपना विलक्षण आदर्श चला सके। लेकिन अपने आदर्शों को व्यावहारिकता के स्वर पर उतरने नहीं देते थे।

5. गिरगिट कहानी में आपने समाज में व्याप्त अवसरानुसार अपने व्यवहार को पल-पल में बदल डालने की एक बानगी देखी। इस पाठ के अंश 'गिन्नी का सोना' का संदर्भ में स्पष्ट कीजिए कि 'अवसरवादिता' और 'व्यवहारिकता' इनमें से जीवन में किसका महत्व है?

उत्तर

गिरगिट कहानी में स्वार्थी इंस्पेक्टर पल-पल बदलता है। वह अवसर के अनुसार अपना व्यवहार बदल लेता है। 'गिन्नी का सोना' कहानी  में इस बात पर बल दिया गया है कि आदर्श शुद्ध सोने के समान हैं। इसमें व्यवाहिरकता का ताँबा मिलाकर उपयोगी बनाया जा सकता है। केवल व्यवहारवादी लोग गुणवान लोगों को भी पीछे छोड़कर आगे बढ़ जाते हैं। यदि समाज का हर व्यक्ति आदर्शों को छोड़कर आगे बढ़ें तो समाज विनाश की ओर जा सकता है। समाज की उन्नति सही मायने में वहीं मानी जा सकती है जहाँ नैतिकता का विकास,जीवन के मूल्यों का विकास हो।

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6. लेखक के मित्र ने मानसिक रोग के क्या-क्या कारण बताए? आप इन कारणों से कहाँ तक सहमत हैं?

उत्तर 

लेखक के मित्र ने मानसिक रोग के कारण बताएँ हैं कि मनुष्य चलता नहीं दौड़ता है, बोलता नहीं बकता है, एक महीने का काम एक दिन में करना चाहता है, दिमाग हज़ार गुना अधिक गति से दौड़ता है। अतरू तनाव बढ़ जाता है। मानसिक रोगों का प्रमुख कारण प्रतिस्पर्धा के कारण दिमाग का अनियंत्रित गति से कार्य करना है।

7. लेखक के अनुसार सत्य केवल वर्तमान है, उसी में जीना चाहिए। लेखक ने ऐसा क्यों कहा होगा? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

लेखक के अनुसार सत्य वर्तमान है। उसी में जीना चाहिए। हम अक्सर या तो गुजरे हुए दिनों की बातों में उलझे रहते हैं या भविष्य के सपने देखते हैं। इस तरह भूत या भविष्य काल में जीते हैं। असल में दोनों काल मिथ्या हैं। वर्तमान ही सत्य है उसी में जीना चाहिए।

(ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए -

1. समाज के पास अगर शाश्वत मुल्यों जैसा कुछ है तो वह आर्दशवादी लोगों का ही दिया हुआ है।

उत्तर

आदर्शवादी लोग समाज को आदर्श रूप में रखने वाली राह बताते हैं। व्यवहारिक आदर्शवाद वास्तव में व्यवहारिकता ही है। उसमें आदर्शवाद कहीं नहीं होता है।

2. जब व्यवहारिकता का बखान होने लगता है तब प्रेक्टिकल आइडियालिस्टों के जीवन से आदर्श धीरे-धीरे पीछे हटने लगते हैं और उनकी व्यवहारिक सूझ-बूझ ही आगे आने लगती है?

उत्तर

जहाँ व्यवहारिकता होती है वहां आदर्श टिक नही पाते। वास्तव में व्यवहारिकता ही अवसरवादिता का दूसरा नाम है।

3. हमारे जीवन की रफ़्तार बढ़ गई है। यहाँ कोई चलता नहीं बल्कि दौड़ता है। कोई बोलता नहीं, बकता है। हम जब अकेले पड़ते हैं तब अपने आपसे लगातार बड़बड़ाते रहते हैं।

उत्तर

जीवन की भाग-दौड़, व्यस्तता तथा आगे निकलने की होड़ ने लोगों का चैन छीन लिया है। हर व्यक्ति अपने जीवन में अधिक पाने की होड़ में भाग रहा है। इससे तनाव व निराशा बढ़ रही है।

4. सभी क्रियाएँ इतनी गरिमापूर्ण ढंग से कीं कि उसकी हर भंगिमा से लगता था मानो जयजयवंती के सुर गूँज रहे हों। 

उत्तर

चाय परोसने वाले ने बहुत ही सलीके से काम किया। झुककर प्रणाम करना, बरतन पौंछना, चाय डालना सभी धीरज और सुंदरता से किए मानो कोई कलाकार बड़े ही सुर में गीत गा रहा हो।

भाषा अध्यन

1. नीचे दिए गए शब्दों का वाक्यों में प्रयोग किजिए −

व्यावहारिकता, आदर्श, सूझबूझ, विलक्षण, शाश्वत

उत्तर

(क) व्यावहारिकता − दादाजी की व्यावहारिकता सीखने योग्य है।

(ख) आदर्श − आज के युग में गाँधी जैसे आदर्शवादिता की ज़रूरत है।

(ग) सूझबूझ − उसकी सूझबूझ ने आज मेरी जान बचाई।

(घ) विलक्षण − महेश की अपने विषय में विलक्षण प्रतिभा है।

(ङ) शाश्वत − सत्य, अहिंसा मानव जीवन के शाश्वत नियम हैं।

2. नीचे दिए गए द्वंद्व समास का विग्रह कीजिए −

|(क) |माता-पिता |= |...................|

|(ख) |पाप-पुण्य |= |...................|

|(ग) |सुख-दुख |= |...................|

|(घ) |रात-दिन |= |...................|

|(ङ) |अन्न-जल |= |...................|

|(च) |घर-बाहर |= |...................|

|(छ) |देश-विदेश |= |...................|

उत्तर

|(क) |माता-पिता |= |माता और पिता |

|(ख) |पाप-पुण्य |= |पाप और पुण्य |

|(ग) |सुख-दुख |= |सुख और दुख |

|(घ) |रात-दिन |= |रात और दिन |

|(ङ) |अन्न-जल |= |अन्न और जल |

|(च) |घर-बाहर |= |घर और बाहर |

|(छ) |देश-विदेश |= |देश और विदेश |

3. नीचे दिए गए विशेषण शब्दों से भाववाचक संज्ञा बनाइए −

|(क) |सफल |= |.................|

|(ख) |विलक्षण |= |.................|

|(ग) |व्यावहारिक |= |.................|

|(घ) |सजग |= |.................|

|(ङ) |आर्दशवादी |= |.................|

|(च) |शुद्ध |= |.................|

उत्तर

|(क) |सफल |= |सफलता |

|(ख) |विलक्षण |= |विलक्षणता |

|(ग) |व्यावहारिक |= |व्यावहारिकता |

|(घ) |सजग |= |सजगता |

|(ङ) |आर्दशवादी |= |आर्दशवादिता |

|(च) |शुद्ध |= |शुद्धता |

पृष्ठ संख्या: 124

4. नीचे दिए गए वाक्यों में रेखांकित अंश पर ध्यान दीजिए और शब्द के अर्थ को समझिए −

शुद्ध सोना अलग है।

बहुत रात हो गई अब हमें सोना चाहिए।

ऊपर दिए गए वाक्यों में 'सोना' का क्या अर्थ है? पहले वाक्य में 'सोना' का अर्थ है धातु 'स्वर्ण'। दुसरे वाक्य में 'सोना' का अर्थ है 'सोना' नामक क्रिया। अलग-अलग संदर्भों में ये शब्द अलग अर्थ देते हैं अथवा एक शब्द के कई अर्थ होते हैं। ऐसे शब्द अनेकार्थी शब्द कहलाते हैं। नीचे दिए गए शब्दों के भिन्न-भिन्न अर्थ स्पष्ट करने के लिए उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए −

उत्तर, कर, अंक, नग

उत्तर

|(क) |उत्तर |- |मैंने सभी प्रश्नों के उत्तर लिख लिए हैं। |

| | | |तुम्हें उत्तर दिशा में जाना है। |

|(ख) |कर |- |हमने सभी कर चुका दिए हैं। |

| | | |मंत्री जी ने अपने कर कमलों से दीप प्रज्ज्वलित किया। |

|(ग) |अंक |- |राम के परीक्षा में अच्छे अंक आए हैं। |

| | | |बच्चा अपनी माँ की अंक में बैठा है। |

|(घ) |नग |- |हीरा एक कीमती नग है। |

| | | |हिमालय एक बड़ा नग है। |

5. नीचे दिए गए वाक्यों को संयुक्त वाक्य में बदलकर लिखिए −

(क) 1. अँगीठी सुलगायी।

2. उस पर चायदानी रखी।

(ख) 1. चाय तैयार हुई।

2. उसने वह प्यालों में भरी।

(ग) 1. बगल के कमरे से जाकर कुछ बरतन ले आया।

2. तौलिये से बरतन साफ़ किए।

उत्तर

(क) अँगीठी सुलगायी और उसपर चायदानी रखी।

(ख) चाय तैयार हुई और उसने वह प्यालों में भरी।

(ग) बगल के कमरे में जाकर कुछ बरतन ले आया और तौलिए से बरतन साफ़ किए।

6. नीचे दिए गए वाक्यों से मिश्र वाक्य बनाइए −

(क) 1. चाय पीने की यह एक विधि है।

2. जापानी में उसे चा-नो-यू कहते हैं।

(ख) 1. बाहर बेढब-सा एक मिट्टी का बरतन था।

2. उसमें पानी भरा हुआ था।

(ग) 1. चाय तैयार हुई।

2. उसने वह प्यालों में भरी।

3. फिर वे प्याले हमारे सामने रख दिए।

उत्तर

(क) यह चाय पीने की एक विधि है जिसे जापानी चा-नो-यू कहते हैं।

(ख) बाहर बेढब सा एक मिट्टी का बरतन था जिसमें पानी भरा हुआ था।

(ग) जब चाय तैयार हुई तो उसने प्यालों में भरकर हमारे सामने रख दी।

सारांश

इस पाठ में दो प्रसंग हैं। पहला 'गिन्नी का सोना' का है जिसमें लेखक ने हमें उन लोगों से परिचित कराया है जो इस संसार को जीने और रहने योग्य बनाए हुए हैं। दूसरा प्रसंग है 'झेन की देन' जो हमें ध्यान की उस पध्दित की याद दिलाता है जो बौद्ध दर्शन में दी हुई है जिसके कारण आज भी जापानी लोग अपनी व्यस्ततम दिनचर्या की बीच कुछ चैन के समय निकाल लेते हैं।

(1) गिन्नी का सोना

शुद्ध सोना और गिन्नी का सोना अलग होता है। गिन्नी के सोने में थोड़ा-सा ताँबा मिलाया जाता है जिससे यह ज्यादा चमकता है और शुद्ध सोने से मजबूत भी हो जाता है इस कारण औरतें अक्सर इसी के गहनें बनाती हैं। शुद्ध आदर्श भी शुद्ध सोने की तरह होता है परन्तु कुछ लोग उसमें व्यावहारिकता का थोड़ा-सा ताँबा मिलाकर चलाते हैं जिन्हें हम 'प्रैक्टिकल आइडीयालिस्ट' कहते हैं परन्तु वक़्त के साथ उनके आदर्श पीछे हटने लगते हैं और व्यावहारिक सूझबूझ ही केवल आगे आने लगती है यानी सोना पीछे रह गया और केवल ताँबा आगे रह गया।

कुछ लोग गांधीजी को 'प्रैक्टिकल आइडीयालिस्ट' कहते हैं। वे व्यावहारिकता के महत्व को जानते थे इसलिए वे अपने विलक्षण आदर्श को चला सकें वरना ये देश उनके पीछे कभी न जाता। यह बात सही है परन्तु गांधीजी कभी आदर्श को व्यावहारिकता के स्तर पर नही उतरने देते थे बल्कि वे व्यावहारिकता को आदर्शों के स्तर पर चढ़ाते थे। वे सोने में ताँबा मिलाकर नहीं बल्कि ताँबे में सोना मिलाकर उसकी कीमत बढ़ाते थे इसलिए सोना ही हमेशा आगे रहता। 

व्यवहारवादी लोग हमेशा सजग रहते हैं। हर काम लाभ-हानि का हिसाब लगाकर करते हैं वे जीवन में सफल होते हैं, दूसरों से आगे भी जाते हैं परन्तु ऊपर नहीं चढ़ पाते। खुद ऊपर चढ़ें और साथ में दूसरों को भी ऊपर ले चलें यह काम सिर्फ आदर्शवादी लोगों ने ही किया है। समाज के पास अगर शाश्वत मूल्य जैसा कुछ है तो वो इन्हीं का दिया है। व्यवहारवादी लोग तो केवल समाज को नीचे गिराने का काम किया है।

(2) झेन की देन

लेखक जापान की यात्रा पर गए हुए थे। वहाँ उन्होंने अपने एक मित्र से पूछा कि यहाँ के लोगों को कौन-सी बीमारियाँ सबसे अधिक होती हैं इसपर उनके मित्र ने जवाब दिया मानसिक। जापान के 80 फीसदी लोग मनोरोगी हैं। लेखक ने जब वजह जानना चाहा तो उनके मित्र ने बताया की जापानियों की जीवन की रफ़्तार बहुत बढ़ गयी है। लोग चलते नहीं, दौड़ते हैं। महीने का काम एक दिन में पूरा करने का प्रयास करते हैं। दिमाग में 'स्पीड' का इंजन लग जाने से हजार गुना अधिक तेजी से दौड़ने लगता है। एक क्षण ऐसा आता है जब दिमाग का तनाव बढ़ जाता है और पूरा इंजन टूट जाता है इस कारण मानसिक रोगी बढ़ गए हैं।

शाम को जापानी मित्र उन्हें 'टी-सेरेमनी' में ले गए। यह चाय पीने की विधि है जिसे चा-नो-यू कहते हैं। वह एक छः मंजिली इमारत थी जिसकी छत पर दफ़्ती की दीवारोंवाली और चटाई की ज़मीनवाली एक सुन्दर पर्णकुटी थी। बाहर बेढब-सा एक मिटटी का बरतन था जिसमे पानी भरा हुआ था जिससे उन्होंने हाथ-पाँव धोए। तौलिये से पोंछकर अंदर गए। अंदर बैठे 'चाजीन' ने उठकर उन्हें झुककर प्रणाम किया और बैठने की जगह दिखाई। उसने अँगीठी सुलगाकर उसपर चायदानी रखी। बगल के कमरे से जाकर बरतन ले आया और उसे तौलिये से साफ़ किया। वह सारी क्रियाएँ इतनी गरिमापूर्ण तरीके से कर रहा था जिससे लेखक को उसकी हर मुद्रा में सुर गूँज हों। वातावरण इतना शांत था की चाय का उबलना भी साफ़ सुनाई दे रहा था।

चाय तैयार हुई और चाजीन ने चाय को प्यालों में भरा और उसे तीनो मित्रों के सामने रख दिया। शान्ति को बनाये रखने के लिए वहाँ तीन व्यक्तियों से ज्यादा को एक साथ प्रवेश नही दिया जाता। प्याले में दो घूँट से ज्यादा चाय नहीं थी। वे लोग ओठों से प्याला लगाकर एक-एक बूँद कर डेढ़ घंटे तक पीते रहे। पहले दस-पंद्रह मिनट तक लेखक उलझन में रहे परन्तु फिर उनके दिमाग की रफ़्तार धीमी पड़ती गयी और फिर बिल्कुल बंद हो गयी। उन्हें लगा वो अनंतकाल में जी रहे हों। उन्हें सन्नाटे की भी आवाज़ सुनाई देने लगी।

अक्सर हम भूतकाल में जीते हैं या फिर भविष्य में परन्तु ये दोनों काल मिथ्या हैं। वर्तमान ही सत्य है और हमें उसी में जीना चाहिए। चाय पीते-पीते लेखक के दिमाग से दोनों काल हट गए थे। बस वर्तमान क्षण सामने था जो की अनंतकाल जितना विस्तृत था। असल जीना किसे कहते हैं लेखक को उस दिन मालूम हुआ ।

लेखक परिचय

रविन्द्र केलेकर

इनका जन्म 7 मार्च 1925 को कोंकण क्षेत्र में हुआ था। ये छात्र जीवन से ही गोवा मुक्ति आंदोलन में शामिल हो गए। गांधीवादी चिंतक के रूप में विख्यात केलेकर ने अपने लेखन में जन-जीवन के विविध पक्षों, मान्यताओं और व्यकितगत विचारों को देश और समाज परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया है। इनकी अनुभवजन्य टिप्पणियों में अपनी चिंतन की मौलिकता के साथ ही मानवीय सत्य तक पहुँचने की सहज चेष्टा रहती है।

प्रमुख कार्य

कृतियाँ - कोंकणी में उजवाढाचे सूर, समिधा, सांगली ओथांबे, मराठी में कोंकणीचें राजकरण, जापान जसा दिसला और हिंदी में पतझड़ में टूटी पत्तियाँ

पुरस्कार - गोवा कला अकादमी के साहित्य पुरस्कार सहित कई अन्य पुरस्कार।

कठिन शब्दों के अर्थ

• व्यावहारिकता - समय और अवसर देखकर काम करने की सूझ

• प्रैक्टिकल आईडियालिस्ट - व्यावहारिक आदर्श

• बखान - बयान करना

• सूझ-बुझ - काम करने की समझ

• स्तर - श्रेणी

• के स्तर - के बराबर

• सजग - सचेत

• शाश्वत - जो बदला ना जा सके

• शुद्ध सोना - बिना मिलावट का सोना

• गिन्नी का सोना - सोने में ताँबा मिला हुआ

• मानसिक - दिमागी

• मनोरुग्न - तनाव कर कारण मन से अस्वस्थ

• प्रतिस्पर्धा - होड़

• स्पीड - गति

• टी-सेरेमनी - जापान में चाय पिने का विशेष आयोजन

• चा-नो-यू - जापान में टी सेरेमनी का नाम

• दफ़्ती - लकड़ी की खोखली सड़कने वाली दीवार जिस पर चित्रकारी होती है

• पर्णकुटी - पत्तों से बानी कुटिया

• बेढब से - बेडौल सा

• चाजीन - जापानी विधि से चाय पिलाने वाला

NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 17- कारतूस स्पर्श भाग-2 हिंदी 

हबीब तनवीर

पृष्ठ संख्या: 133

प्रश्न अभ्यास 

मौखिक 

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए -

1. कर्नल कालिंज का खेमा जंगल में क्यों लगा हुआ था?

उत्तर

कर्नल कांलिज ने वज़ीर अली को गिरफ़्तार करने के लिए जंगल में खेमा लगाये हुए था।

2. वज़ीर अली से सिपाही क्यों तंग आ चुके थे?

उत्तर 

वज़ीर अली ने कई वर्षों से अंग्रेज़ों की आँख में धूल झोंककर उनकी नाक में दम कर रखा था। इसलिए वे वज़ीर अली से तंग आ चुके थे।

3. कर्नल ने सवार पर नज़र रखने के लिए क्यों कहा?

उत्तर

कर्नल ने सवार पर नज़र रखने के लिए इसलिए कहा क्योंकि धूल के उड़ने से उसने अंदाज लगाया कि लोग ज़्यादा हैं और वज़ीर को ढूंढ़ रहे हैं।

4. सवार ने क्यों कहा कि वज़ीर अली की गिरफ़्तारी बहुत मुश्किल है?

उत्तर

सवार खुद वज़ीर अली था जो कि बहुत बहादुर था और शत्रुओं को ललकार रहा था।

लिखित

(क) निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए −

1. वज़ीर अली के अफ़साने सुनकर कर्नल को रॉबिनहुड की याद क्यों आ जाती थी?

उत्तर

वज़ीर अली रॉबिनहुड की तरह साहसी, हिम्मतवाला और बहादुर था। वह भी रॉबिनहुड की तरह किसी को भी चकमा देकर भाग जाता था। वह अंग्रेज़ी सरकार की पकड़ में नहीं आ रहा था। कम्पनी के वकील को उसने मार डाला था। उसकी बहादुरी के अफ़साने सुनकर ही कर्नल को रॉबिनहुड की याद आती थी।

2. सआदत अली कौन था? उसने वज़ीर अली की पैदाइश को अपनी मौत क्यों समझा?

उत्तर 

सआदत अली वज़ीर अली का चाचा और नवाब आसिफउदौला का भाई था। जब तक आसिफउदौला के कोई सन्तान नहीं थी,सआदत अली की नवाब बनने की पूरी सम्भावना थी। इसलिए उसे वज़ीर अली की पैदाइश उसकी मौत लगी।

3. सआदत अली को अवध के तख्त पर बिठाने के पीछे कर्नल का क्या मकसद था?

उत्तर

सआदत अली आराम पसंद अंग्रेज़ों का पिट्ठू था। अंग्रेज़ कर्नल को उसे तख्त पर बिठाने का मकसद अवध की धन सम्पत्ति पर अधिकार करना था। उसने अंग्रेज़ों को आधी सम्पत्ति और दस लाख रूपये दिए। इस तरह सआदत अली को गद्दी पर बैठने से उन्हें लाभ ही लाभ था।

4. कंपनी के वकील का कत्ल करने के बाद वज़ीर अली ने अपनी हिफ़ाज़त कैसे की?

उत्तर

कंपनी के वकील की हत्या करने के बाद वज़ीर अली आजमगढ़ भाग गया और वहाँ के नवाब ने उसकी सहायता की और उसे सुरक्षित घागरा पहुँचा दिया। तब से वह वहाँ के जंगलों में रहने लगा।

5. सवार के जाने के बाद कर्नल क्यों हक्का-बक्का रह गया?

उत्तर

बड़ी चतुराई से वजीर अली कारतूस लेने कर्नल के खेमे में सवार बनकर आया था। जाते समय कर्नल ने नाम पूछा तो उसने वज़ीर अली बताया। उसे सामने देखकर कर्नल हक्का-बक्का रह गया।

(ख) निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए −

1. लेफ़्टीनेंट को ऐसा क्यों लगा कि कंपनी के खिलाफ़ सारे हिंदुस्तान में एक लहर दौड़ गई है?

उत्तर 

लेफ़्टीनेंट को जब कर्नल ने बताया कि कंपनी के खिलाफ़ केवल वज़ीर अली ही नहीं बल्कि दक्षिण में टीपू सुल्तान, बंगाल में नवाब का भाई शमसुद्दौला भी है। इन्होंने अफ़गानिस्तान के बादशाह शाहेज़मा को आक्रमण के लिए निमत्रंण दिया है। यह सब देखकर लेफ़्टीनेंट को आभास हुआ कि कंपनी के खिलाफ़ पूरे हिन्दूस्तान में लहर दौड़ गई है।

2. वज़ीर अली ने कंपनी के वकील का कत्ल क्यों किया?

उत्तर

वज़ीर अली को उसके नवाबी पद से हटा दिया गया और बनारस भेज दिया गया। फिर कलकत्ता बुलाया तो वज़ीर अली ने कंपनी के वकील, जोकि बनारस में रहता था, उससे शिकायत की परन्तु उसने शिकायत सुनने की जगह खरीखोटी सुनाई। इस पर वज़ीर अली को गुस्सा आ गया और उसने वकील का कत्ल कर दिया।

3. सवार ने कर्नल से कारतूस कैसे हासिल किए?

उत्तर

सवार वज़ीर अली अकेला ही घोड़े पर सवार होकर अंग्रेज़ों के खेमे में पहुँच गया और कर्नल को दिखाया कि वह भी वज़ीर अली के खिलाफ़ है। उसने कर्नल से अकेले में मिलने के लिए कहा। कर्नल मान गया और वज़ीर अली के दस कारतूस माँगने पर उसने दे दिए। इस तरह सवार ने कर्नल से कारतूस हासिल किए।

4. वज़ीर अली एक जाँबाज़ सिपाही था, कैसे? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

वज़ीर अली को अंग्रेज़ों ने अवध के तख्ते से हटा दिया पर उसने हिम्मत नहीं हारी। वज़ीफे की रकम में मुश्किल डालने वाले कंपनी के वकील की भी हत्या कर दी। अंग्रेज़ों को महीनों दौड़ाता रहा परन्तु फिर भी हाथ नहीं आया। अंग्रेज़ों के खेमे में अकेले ही पहुँच गया,कारतूस भी ले आया और अपना सही नाम भी बता गया। इस तरह वह एक जाँबाज़ सिपाही था।

पृष्ठ संख्या: 134

(ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए −

1. मुट्ठीभर आदमी और इतना दमखम।

उत्तर

इस पंक्ति में वज़ीर अली के साहस और वीरता का परिचय है। वह थोड़े से सैनिकों के साथ जंगल में रह रहा था। अंग्रेज़ों की पूरी फ़ौज उसका पीछा कर रही थी फिर भी उसे पकड़ नहीं पा रही थी।

2. गर्द तो ऐसे उड़ रही है जैसे कि पूरा एक काफ़िला चला आ रहा हो मगर मुझे तो एक ही सवार नज़र आता है।

उत्तर

यह कथन लेफ़्टीनेंट का है। जब वज़ीर अली अंग्रेज़ों के खेमे में अकेला ही आ रहा था परन्तु इतनी तेज़ी से आ रहा था, इतनी धूल उड़ रही थी कि मानों कई सैनिक आ रहे हो, पूरा एक काफ़िला आ रहा हो। लेफ़्टीनेंट कहता है सैनिक तो एक ही नज़र आ रहा है।

भाषा अध्यन

1. निम्नलिखित शब्दों का एक-एक पर्याय लिखिए −

खिलाफ़, पाक, उम्मीद, हासिल, कामयाब, वजीफ़ा, नफ़रत, हमला, इंतेज़ार, मुमकिन।

उत्तर

|खिलाफ़ |- |विरूद्ध |

|पाक |- |पवित्र |

|उम्मीद |- |आशा |

|हासिल |- |प्राप्त |

|कामयाब |- |सफल |

|वजीफ़ा |- |छात्रवृति |

|नफ़रत |- |घृणा |

|हमला |- |आक्रमण |

|इंतेज़ार |- |प्रतीक्षा |

|मुमकिन |- |संभव |

2. निम्नलिखित मुहावरों का अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए −

आँखों में धूल झोंकना, कूट-कूट कर भरना, काम तमाम कर देना, जान बख्श देना, हक्का बक्का रह जाना।

उत्तर

(क) आँखों में धूल झोंकना −चोर ने पुलिस के आँखों में धूल झोंककर चोरी कर ली।

(ख) कूट-कूट कर भरना − झाँसी की रानी में देशभक्ति कूट-कूट कर भरी थी।

(ग) काम तमाम कर देना − बिल्ली ने चूहे का काम तमाम कर दिया।

(घ) जान बख्श देना − देश के दुशमनों की जान नहीं बख्शनी चाहिए।

(ङ) हक्का-बक्का रह जाना − अचानक चाचाजी को सामने देखकर सब हक्के-बक्के रह गए।

3. कारक वाक्य में संज्ञा या सर्वनाम का क्रिया के साथ संबंध बताता है। निम्नलिखित वाक्यों में कारकों को रेखांकित कर उनके नाम लिखिए −

(क) जंगल की ज़िंदगी बड़ी खतरनाक होती है।

(ख) कंपनी के खिलाफ़ सारे हिंदुस्तान में एक लहर दौड़ गई।

(ग) वज़ीर को उसके पद से हटा दिया गया।

(घ) फ़ौज के लिए कारतूस की आवश्यकता थी।

(ङ) सिपाही घोड़े पर सवार था।

उत्तर

(क) जंगल की ज़िंदगी बड़ी खतरनाक होती है।

संबंध कारक

(ख) कंपनी के खिलाफ़ सारे हिन्दुस्तान में एक लहर दौड़ गई।

संबंध कारक, अधिकरण कारक

(ग) वज़ीर को उसके पद से हटा दिया गया।

कर्म कारक, अपादान कारक

(घ) फ़ौज के लिए कारतूस की आवश्यकता थी।

सप्रंदान कारक, संबंध कारक

(ङ) सिपाही घोड़े पर सवार था।

अधिकरण कारक

4. नीचे दिए गए वाक्यों में 'ने' लगाकर उन्हें दुबारा लिखिए −

(क) घोड़ा पानी पी रहा था।

(ख) बच्चे दशहरे का मेला देखने गए।

(ग) रॉबिनहुड गरीबों की मदद करता था।

(घ) देशभर के लोग उसकी प्रशंसा कर रहे थे।

उत्तर

(क) घोड़े ने पानी पिया।

(ख) बच्चों ने दशहरे का मेला देखा।

(ग) रॉबिनहुड ने गरीबों की मद्द की।

(घ) देशभर के लोगों ने उसकी प्रशंसा की।

पृष्ठ संख्या: 135

5. निम्नलिखित वाक्यों में उचित विराम-चिह्न लगाइए −

(क) कर्नल ने कहा सिपाहियों इस पर नज़र रखो ये किस तरफ़ जा रहा है

(ख) सवार ने पूछा आपने इस मकाम पर क्यों खेमा डाला है इतने लावलश्कर की क्या ज़रूरत है

(ग) खेमे के अंदर दो व्यक्ति बैठे बाते कर रहे थे चाँदनी छिटकी हुई थी और बाहर सिपाही पहरा दे रहे थे एक व्यक्ति कह रहा था दुशमन कभी भी हमला कर सकता है

उत्तर

(क) कर्नल ने कहा, "सिपाहियों इस पर नज़र रखो ये किस तरफ़ जा रहा है?"

(ख) सवार ने पूछा, "आपने इस मकाम पर क्यों खेमा डाला है? इतने लावलशकर की क्या ज़रूरत है?"

(ग) खेमे के अंदर दो व्यक्ति बैठे बातें कर रहे थे। चाँदनी छिटकी हुई थी और बाहर सिपाही पहरा दे रहे थे। एक व्यक्ति कह रहा था, "दुश्मन कभी भी हमला कर सकता है।"

सारांश

यह पाठ जाँबाज़ वज़ीर अली के जिंदगी का एक अंश है। इस नाटक में उस हिस्से को बताया गया है जब वज़ीर अली अपने दुश्मन के कैंप में जाकर वहाँ से अपने लिए कारतूस ले जाता है और अपने बहादुरी का गुणगान अपने दुश्मनों से करवाता है।

नाटक के पात्र - कर्नल, लेफ्टिनेंट, सिपाही, सवार (वज़ीर अली)

अंग्रेज़ सरकार के आदेशानुसार वज़ीर अली को गिरफ्तार करने के लिए कर्नल कालिंज अपने लेफ्टिनेंट और सिपाहियों के साथ जंगल में डेरा डाले हुए हैं। उन्हें जंगल में आये हुए हफ्ते गुजर गए हैं परन्तु वह अभी तक वजीर अली को गिरफ्तार नही कर पाये हैं। वजीर अली के दिल में अंग्रेज़ों के प्रति नफरत की बातें सुनकर उन्हें रॉबिनहुड की याद आ जाती है। अपने पांच महीने के शासनकाल में उसने अवध के दरबार से अंग्रेजी हुकूमत को साफ़ कर दिया। सआदत अली आसिफउद्दौला का भाई है साथ ही वज़ीर अली का दुश्मन भी है क्योंकि आसिफउद्दौला के यहाँ लड़के की कोई उम्मीद नहीं थी परन्तु वज़ीर अली ने सआदत अली के सारे सपने को तोड़ दिया।

अंग्रेज़ों ने सआदत अली को अवध के तख़्त पर बैठाया क्योंकि वो अंग्रेज़ों से मिलकर रहता है और ऐश पसंद आदमी है। इसके बदले में सआदत अली ने अंग्रेज़ों को आधी दौलत और दस लाख रूपये नगद दिए।

लेफ्टिनेंट कहता है कि सुना है वज़ीर अली ने अफ़गानिस्तान के बादशाह शाहे-ज़मा को हिन्दुस्तान पर हमला करने की दावत दी है इसपर कर्नल ने कहा कि अफ़गानिस्तान को हमले की दावत सबसे पहले टीपू सुल्तान ने दी, फिर वज़ीर अली ने भी उसे दिल्ली बुलाया फिर शमसुद्दौला ने भी जो नवाब बंगाल का रिश्ते का भाई है और बहुत खतरनाक है। इस तरह पूरे हिन्दुस्तान में कंपनी के खिलाफ लहर दौड़ गयी है। यदि यह कामयाब हो गयी तो लार्ड क्लाइव ने बक्सर और प्लासी के युद्ध में जो हासिल किया था वह लार्ड वेल्जली के हाथों खो देगी। कर्नल पूरी एक फ़ौज लिए वज़ीर अली का पीछा जंगलों में कर रहा है परन्तु वह पकड़ में नहीं आ रहा है।

कर्नल ने वज़ीर अली द्वारा कंपनी के वकील की हत्या करने का किस्सा सुनाते हुए कहा कि हमने वज़ीर अली को पद से हटाकर तीन लाख रूपए सालना देकर बनारस भेज दिया। कुछ महीने बाद गवर्नर जनरल ने उसे कलकत्ता बुलाया। वज़ीर अली बनारस में रह रहे कंपनी के वकील के पास जाकर पूछा कि उसे कलकत्ता क्यों बुलाया जाता है इसपर वकील ने उसे बुरा-भला कह दिया, जिस कारण वज़ीर अली ने वकील को खंजर से मार दिया। उसके बाद वह अपने कुछ साथियों के साथ आजमगढ़ भाग गया वहां के शासन ने उनलोगों को सुरक्षित घागरा पहुँचा दिया अब वे इन्हीं जंगलों में कई साल से भटक रहे हैं। लेफ्टिनेंट द्वारा पूछे जाने पर कर्नल ने वज़ीर अली की स्कीम बताते हुए कहता है कि वे किसी तरह नेपाल पहुँचना चाहते हैं। अफ़गानी हमले का  इंतज़ार करें  ताक़त बढ़ाएँ। वह सआदत अली को उसके पद से हटाकर खुद कब्ज़ा करे और अंग्रेज़ों को हिन्दुस्तान से निकाल दे। लेफ्टिनेंट अपनी शंका जताते हुए कहता है कि हो सकता है की वे लोग नेपाल पहुँच गए हों जिसपर कर्नल उसे भरोसा दिलाते हुए बताता है कि अंग्रेजी और सआदत अली की फौजें बड़ी सख्ती से उनका पीछा कर रही हैं और उन्हें पता है की वह इन्हीं जंगलों में है।

तभी एक सिपाही आकर कर्नल को बताता है कि दूर से धूल उड़ती दिखाई दे रही है लगता है कोई काफिला चला आ रहा हो। कर्नल सभी को मुस्तैद रहने का आदेश देता है। लेफ्टिनेंट और कर्नल देखते हैं की केवल एक ही आदमी है। कर्नल सिपाहियों से उसपर नजर रखने को कहता है। घुड़सवार उनकी और आकर रुक जाता है और इज़ाज़त लेकर कर्नल से मिलने अंदर जाता है और एकांत की माँग करता है जिसपर कर्नल सिपाही और लेफ्टिनेंट को बाहर भेज देते हैं। वह कर्नल से कहता है कि वज़ीर अली को पकड़ना कठिन और कारतूस की माँग करता है। कर्नल उसे कारतूस दे देता है। जब वह कारतूस लेकर जाने लगता है तो कर्नल उससे उसका नाम पूछता है। वह अपना नाम वज़ीर अली बताता है और कारतूस देने के कारण उसकी जान बख्शने की बात कहता है। उसके चले जाने के बाद लेफ्टिनेंट जब पूछता है कि कौन था तब कर्नल एक जाँबाज़ सिपाही बतलाता है।

लेखक परिचय

हबीब तनवीर

इनका जन्म 1923 में छत्तीसगढ़ के रायपुर में हुआ था। इन्होनें 1944 में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। उसके बाद ब्रिटेन की नाटक अकादमी से नाट्य-लेखन अध्यन करने गए और फिर दिल्ली लौटकर पेशेवर नाट्य पांच की स्थापना की।

प्रमुख कार्य

प्रमुख नाटक - आगरा बाज़ार, चरनदास चोर, देख रहे हैं नैन, हिरमा की अमर कहानी।

बसंत ऋतू का सपना, शाजापुर की शांति बाई, मिट्टी की गाडी और मुद्राराक्षस नाटकों का आधुनिक रूपांतर किया।

पुरस्कार - फेलोशिप, पद्मश्री सहित कई अन्य पुरस्कार।

कठिन शब्दों के अर्थ

• खेमा - डेरा

• अफ़साने - कहानियाँ

• कारनामे - ऐसे काम जो याद रहें

• पैदाइश - जन्म

• तख़्त - सिंहासन

• मसलेहत - रहस्य

• ऐश पसंद - भोग विलास पसंद करने वाला

• जाँबाज़ - जान की बाज़ी लगाने वाला

• दमखम- शक्ति और दृढ़ता

• जाती तौर पर - व्यक्तिगत रूप से

• वज़ीफा - परवरिश के लिए दी जाने वाली राशि

• मुकर्रर - तय करना

• तलब किया - याद किया

• हुक्मरां - शासक

• गर्द - धूल

• काफ़िला - एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में जाने वाले यात्रियों का समूह

• शुब्हे - संदेह

• दिवार हमगोश दारद - दीवारों के भी कान होते हैं

• लावलश्कर - सेना का बड़ा समूह और युद्ध सामग्री

• कारतूस - पीतल और दफ़्ती आदि की एक नली जिसमें गोली तथा बारूद भरी होती है।

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